CAG की
रिपोर्ट को आधार बनाकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर टीम अन्ना के सदस्यों
ने भ्रष्टाचार में संलिप्तता का संदेह क्या जताया, हंगामा खड़ा हो गया।
यहां तक कि खुद प्रधानमंत्री यह कह रहे हैं- ''अगर मेरे खिलाफ लगाये जा रहे आरोप सिद्ध होते हैं तो मैं राजनीति से सन्यास ले लूंगा''।
वैसे तो कल प्रधानमंत्री के बयान पर टीम अन्ना ने अपना जवाब बाकायदा प्रेस कांफ्रेस करके दे दिया और अन्ना हजारे ने भी पूर्व में इस बावत दिये गये अपने वक्तत्व को स्पष्ट कर दिया लेकिन कुछ सवाल ऐसे हैं जो प्रधानमंत्री के बयान से ही खड़े हो जाते हैं।
प्रथम तो यह समझ में नहीं आता कि प्रधानमंत्री को ऐसा बयान क्यों देना पड़ा जैसे वह बहुत निरीह, असहाय और दया के पात्र हों।
प्रधानमंत्री कुछ इस तरह का प्रदर्शन कर रहे हैं जैसे राजनीति से सन्यास लेने की धमकी दे रहे हों। वो भी इस अंदाज में जैसे उनके राजनीति से सन्यास ले लेने से देश अनाथ और नेतृत्व विहीन हो जायेगा। जैसे उनके अतिरिक्त देश में कोई ऐसा नेता नहीं है जो प्रधानमंत्री का पद संभालने की योग्यता रखता हो।
मनमोहन सिंह के कथन का एक अर्थ और निकलता है। यह अर्थ निकलता है कांग्रेस को ही ब्लैकमेल करने की कोशिश के संदर्भ में। ऐसा लगता है जैसे वह कांग्रेस को ही इस आशय का संदेश दे रहे हों कि अगर मेरे साथ मजबूती से खड़े नहीं हुए तो मेरे जैसा कोई दूसरा नेता ऐसा नहीं है जो सब-कुछ सहकर भी मौन साधने की योग्यता रखता हो। इसका आभास इसलिए होता है कि मनमोहन सिंह द्वारा अपना बचाव करने की कोशिश के बाद कांग्रेस उनके बचाव में उतरी। यदि कांग्रेस पहले ही खड़ी हो जाती तो प्रधानमंत्री को खुद अपनी सफाई देने के लिए सामने नहीं आना पड़ता।
बहरहाल, जब प्रधानमंत्री ने अपनी भावनात्मक सफाई पेश कर ही दी है तो एक और सवाल यह खड़ा होता है कि क्या लाखों करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार में संलिप्तता साबित होने की सजा मात्र राजनीति से सन्यास ले लेना है। हालांकि इससे भी पहले यह सवाल और खड़ा होता है कि जब प्रधानमंत्री सहित समूची सरकार किसी किस्म की जांच कराने को तैयार नहीं है तो आरोप साबित कैसे होंगे।
कल इसी मामले में एक टीवी चैनल पर कांग्रेस के प्रवक्ता राशिद अल्वी ने कहा कि अगर हम जांच करवा भी लें तो फिर कहेंगे कि जांच निष्पक्ष नहीं हुई। राशिद अल्वी ने एक तरह से अपनी और कांग्रेस की मंशा पहले ही जाहिर कर दी जबकि टीम अन्ना लगातार यह बता रही है कि प्रधानमंत्री पर संदेह वह नहीं जता रहे, बल्िक CAG की रिपोर्ट जता रही है लिहाजा सरकार का दायित्व बनता है कि वह जनता के सामने सच्चाई लाए।
जहां तक सवाल प्रधानमंत्री का है तो वह ए राजा के बचाव में तब तक खड़े रहे जब तक कि कोर्ट ने राजा की गिरफ्तारी का मार्ग प्रशस्त नहीं किया। कलमाड़ी को तब तक क्लीन चिट देते रहे जब तक वह गले की हड्डी नहीं बन गये।
टीम अन्ना में चाहे बिखराव हो गया हो या उस पर अपने मूल उद्देश्य से भटक जाने की बात कही जा रही हो लेकिन जो दस्तावेज उसने सामने रखे हैं और जिनमें 1.80 लाख करोड़ के कोयला घोटाले की बात सामने आ रही है, उसका टीम अन्ना के बिखराव या भटकाव से क्या वास्ता।
इस सबके अलावा यहां एक बात और देखी जा रही है कि जब से भ्रष्टाचार के खिलाफ सक्रियता बढ़ी है, तब से ऐसे कुतर्क पेश किये जा रहे हैं कि जो खुद भ्रष्टाचार में लिप्त हैं उन्हें भ्रष्टाचार पर बोलने का कोई अधिकार नहीं है।
आश्चर्य की बात यह है कि ऐसे कुतर्क भी सरकार या उसके नुमाइंदों की ओर से प्रस्तुत किये जाते हैं। क्या ऐसा कहने वाले बतायेंगे कि किस कानून में लिखा है कि भ्रष्टाचार के आरोपी को भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने का अधिकार नहीं है या किसी महिला को बलात्कार के खिलाफ बोलने का अधिकार केवल इसलिए नहीं हो सकता क्योंकि उसका चरित्र संदिग्ध है।
प्रधानमंत्री यदि यह कहते कि मेरे ऊपर जो संदेह किया जा रहा है, मैं उसकी जांच कराने को तैयार हूं और यदि दोषी पाया जाता हूं तो कानून मुझे जो सजा देगा, वह भी भुगतने को तैयार हूं, तो लगता कि प्रधानमंत्री की बात में वजन है। अब तो ऐसा लगता है जैसे वह और उनका मंत्रिमण्डल यह मान बैठा हो कि प्रथम तो वह कानून से ऊपर हैं लिहाजा उनकी जांच या उसके बाद सजा जैसे किसी चीज का प्रश्न ही पैदा नहीं होता, दूसरे यदि वह दोषी पाये भी जाते हैं तो सजा तय वह खुद करेंगे। यह सजा अधिकतम क्या होगी, इसका भी खुलासा उन्होंने कर दिया है यानि राजनीति से सन्यास।
ऐसा लगता है जैसे प्रधानमंत्री सहित समूचा केन्द्रीय मंत्रिमण्डल और कांग्रेस पार्टी, यह समझ बैठी है कि वह अब कभी सत्ता से बेदखल नहीं होंगे और देश के वही एकमात्र भाग्य विधाता हैं। उनके अलावा कोई नहीं जो सरकार चलाने या नेतृत्व करने की योग्यता रखता हो। संभवत: इसीलिए उनके हर क्रिया-कलाप में सत्तामद साफ दिखाई देता है। फिर चाहे वह महंगाई की बात हो या भ्रष्टाचार की। केन्द्र के मंत्री और कांग्रेस के पदाधिकारी जब बोलते हैं तब महंगाई से त्रस्त आम जनता के घावों पर नमक छिड़कने वाले शब्द बोलते हैं। वह भूल रहे हैं कि भ्रष्टाचार और महंगाई की शिकार आम जनता हो रही है। टीम अन्ना तो केवल जनभावनाओं को सामने लाने या अधिक से अधिक उन्हें उभारने के काम में लगी है। केन्द्र सरकार और उसके नेतृत्व वाली कांग्रेस के सत्तामद से टीम अन्ना का ही सरोकार नहीं है, उसका असल सरोकार तो आमजन से है। मंत्रियों के अहम्, उनकी जिद और गलत नीतियों से उपजे भ्रष्टाचार व महंगाई का दंश आमजन को झेलना पड़ रहा है।
और हां, जनता यह भी देख रही है कि कल तक त्यागमूर्ति बनी बैठी यूपीए व कांग्रेस की हाईकमान सोनिया गांधी व उनके पुत्र एवं कांग्रेस के प्रस्तावित भावी प्रधानमंत्री किस तरह अपने मुंह में दही जमाये बैठे हैं।
यहां तक कि खुद प्रधानमंत्री यह कह रहे हैं- ''अगर मेरे खिलाफ लगाये जा रहे आरोप सिद्ध होते हैं तो मैं राजनीति से सन्यास ले लूंगा''।
वैसे तो कल प्रधानमंत्री के बयान पर टीम अन्ना ने अपना जवाब बाकायदा प्रेस कांफ्रेस करके दे दिया और अन्ना हजारे ने भी पूर्व में इस बावत दिये गये अपने वक्तत्व को स्पष्ट कर दिया लेकिन कुछ सवाल ऐसे हैं जो प्रधानमंत्री के बयान से ही खड़े हो जाते हैं।
प्रथम तो यह समझ में नहीं आता कि प्रधानमंत्री को ऐसा बयान क्यों देना पड़ा जैसे वह बहुत निरीह, असहाय और दया के पात्र हों।
प्रधानमंत्री कुछ इस तरह का प्रदर्शन कर रहे हैं जैसे राजनीति से सन्यास लेने की धमकी दे रहे हों। वो भी इस अंदाज में जैसे उनके राजनीति से सन्यास ले लेने से देश अनाथ और नेतृत्व विहीन हो जायेगा। जैसे उनके अतिरिक्त देश में कोई ऐसा नेता नहीं है जो प्रधानमंत्री का पद संभालने की योग्यता रखता हो।
मनमोहन सिंह के कथन का एक अर्थ और निकलता है। यह अर्थ निकलता है कांग्रेस को ही ब्लैकमेल करने की कोशिश के संदर्भ में। ऐसा लगता है जैसे वह कांग्रेस को ही इस आशय का संदेश दे रहे हों कि अगर मेरे साथ मजबूती से खड़े नहीं हुए तो मेरे जैसा कोई दूसरा नेता ऐसा नहीं है जो सब-कुछ सहकर भी मौन साधने की योग्यता रखता हो। इसका आभास इसलिए होता है कि मनमोहन सिंह द्वारा अपना बचाव करने की कोशिश के बाद कांग्रेस उनके बचाव में उतरी। यदि कांग्रेस पहले ही खड़ी हो जाती तो प्रधानमंत्री को खुद अपनी सफाई देने के लिए सामने नहीं आना पड़ता।
बहरहाल, जब प्रधानमंत्री ने अपनी भावनात्मक सफाई पेश कर ही दी है तो एक और सवाल यह खड़ा होता है कि क्या लाखों करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार में संलिप्तता साबित होने की सजा मात्र राजनीति से सन्यास ले लेना है। हालांकि इससे भी पहले यह सवाल और खड़ा होता है कि जब प्रधानमंत्री सहित समूची सरकार किसी किस्म की जांच कराने को तैयार नहीं है तो आरोप साबित कैसे होंगे।
कल इसी मामले में एक टीवी चैनल पर कांग्रेस के प्रवक्ता राशिद अल्वी ने कहा कि अगर हम जांच करवा भी लें तो फिर कहेंगे कि जांच निष्पक्ष नहीं हुई। राशिद अल्वी ने एक तरह से अपनी और कांग्रेस की मंशा पहले ही जाहिर कर दी जबकि टीम अन्ना लगातार यह बता रही है कि प्रधानमंत्री पर संदेह वह नहीं जता रहे, बल्िक CAG की रिपोर्ट जता रही है लिहाजा सरकार का दायित्व बनता है कि वह जनता के सामने सच्चाई लाए।
जहां तक सवाल प्रधानमंत्री का है तो वह ए राजा के बचाव में तब तक खड़े रहे जब तक कि कोर्ट ने राजा की गिरफ्तारी का मार्ग प्रशस्त नहीं किया। कलमाड़ी को तब तक क्लीन चिट देते रहे जब तक वह गले की हड्डी नहीं बन गये।
टीम अन्ना में चाहे बिखराव हो गया हो या उस पर अपने मूल उद्देश्य से भटक जाने की बात कही जा रही हो लेकिन जो दस्तावेज उसने सामने रखे हैं और जिनमें 1.80 लाख करोड़ के कोयला घोटाले की बात सामने आ रही है, उसका टीम अन्ना के बिखराव या भटकाव से क्या वास्ता।
इस सबके अलावा यहां एक बात और देखी जा रही है कि जब से भ्रष्टाचार के खिलाफ सक्रियता बढ़ी है, तब से ऐसे कुतर्क पेश किये जा रहे हैं कि जो खुद भ्रष्टाचार में लिप्त हैं उन्हें भ्रष्टाचार पर बोलने का कोई अधिकार नहीं है।
आश्चर्य की बात यह है कि ऐसे कुतर्क भी सरकार या उसके नुमाइंदों की ओर से प्रस्तुत किये जाते हैं। क्या ऐसा कहने वाले बतायेंगे कि किस कानून में लिखा है कि भ्रष्टाचार के आरोपी को भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने का अधिकार नहीं है या किसी महिला को बलात्कार के खिलाफ बोलने का अधिकार केवल इसलिए नहीं हो सकता क्योंकि उसका चरित्र संदिग्ध है।
प्रधानमंत्री यदि यह कहते कि मेरे ऊपर जो संदेह किया जा रहा है, मैं उसकी जांच कराने को तैयार हूं और यदि दोषी पाया जाता हूं तो कानून मुझे जो सजा देगा, वह भी भुगतने को तैयार हूं, तो लगता कि प्रधानमंत्री की बात में वजन है। अब तो ऐसा लगता है जैसे वह और उनका मंत्रिमण्डल यह मान बैठा हो कि प्रथम तो वह कानून से ऊपर हैं लिहाजा उनकी जांच या उसके बाद सजा जैसे किसी चीज का प्रश्न ही पैदा नहीं होता, दूसरे यदि वह दोषी पाये भी जाते हैं तो सजा तय वह खुद करेंगे। यह सजा अधिकतम क्या होगी, इसका भी खुलासा उन्होंने कर दिया है यानि राजनीति से सन्यास।
ऐसा लगता है जैसे प्रधानमंत्री सहित समूचा केन्द्रीय मंत्रिमण्डल और कांग्रेस पार्टी, यह समझ बैठी है कि वह अब कभी सत्ता से बेदखल नहीं होंगे और देश के वही एकमात्र भाग्य विधाता हैं। उनके अलावा कोई नहीं जो सरकार चलाने या नेतृत्व करने की योग्यता रखता हो। संभवत: इसीलिए उनके हर क्रिया-कलाप में सत्तामद साफ दिखाई देता है। फिर चाहे वह महंगाई की बात हो या भ्रष्टाचार की। केन्द्र के मंत्री और कांग्रेस के पदाधिकारी जब बोलते हैं तब महंगाई से त्रस्त आम जनता के घावों पर नमक छिड़कने वाले शब्द बोलते हैं। वह भूल रहे हैं कि भ्रष्टाचार और महंगाई की शिकार आम जनता हो रही है। टीम अन्ना तो केवल जनभावनाओं को सामने लाने या अधिक से अधिक उन्हें उभारने के काम में लगी है। केन्द्र सरकार और उसके नेतृत्व वाली कांग्रेस के सत्तामद से टीम अन्ना का ही सरोकार नहीं है, उसका असल सरोकार तो आमजन से है। मंत्रियों के अहम्, उनकी जिद और गलत नीतियों से उपजे भ्रष्टाचार व महंगाई का दंश आमजन को झेलना पड़ रहा है।
और हां, जनता यह भी देख रही है कि कल तक त्यागमूर्ति बनी बैठी यूपीए व कांग्रेस की हाईकमान सोनिया गांधी व उनके पुत्र एवं कांग्रेस के प्रस्तावित भावी प्रधानमंत्री किस तरह अपने मुंह में दही जमाये बैठे हैं।
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