शनिवार, 30 जून 2012

अबू जंदाल: सिर्फ आतंकी या कुछ और..

ऐसा लगता है कि हमारे मंत्रीगण अधिकांश मामलों और विशेषकर पाकिस्‍तान से जुड़े मुद्दों पर या तो अपनी बुद्धि व विवेक का इस्‍तेमाल किये बिना अमेरिका की लिखी हुई स्‍क्रिप्‍ट पढ़ते हैं या फिर वह इतनी अक्‍ल भी नहीं रखते जितनी कि उच्‍च पदों पर आसीन लोगों के लिए जरूरी होती है।
ताजा मुद्दा मुंबई पर 26/11 को किये गये हमले के निर्देशक ज़बीयुद्दीन उर्फ अबू हमजा उर्फ अबू जंदाल से  जुड़ा है।
इस आतंकी को सऊदी अरब द्वारा भारत के सुपुर्द किये जाने के बाद से सरकार के मंत्रियों द्वारा जिस तरह सिर्फ जुबानी जंग लड़ी जा रही है, उससे साफ ज़ाहिर है कि उनका मकसद पाकिस्‍तान को घेरना न होकर मात्र ढोल बजाना है। तय है कि यह ढोल भी अमेरिका के  इशारे पर उसके लाभ के लिए बजाया जा रहा है।
यही कारण है कि विदेश मंत्री से लेकर गृहमंत्री तक के  दावों की पाकिस्‍तान न केवल हवा निकाल देता है बल्‍िक एक तरह से मज़ाक उड़ाता है। उड़ायेगा भी क्‍यों नहीं,  जब हमारे दावे ही हास्‍यास्‍पद हों।
अब ज़रा गौर करें अबू जंदाल की गिरफ्तारी के बाद से लेकर अब तक हमारी सरकार व उसके नुमाइंदों द्वारा दिये गये वक्‍तव्‍यों पर।
शुरू करते हैं वहां से जब उसकी इंदिरा गांधी अंतर्राष्‍ट्रीय एयरपोर्ट पर गिरफ्तारी का प्रचार किया गया जबकि उसे सऊदी अरब ने सौंपा था। इस बात के साफ हो जाने के बावजूद कुछ ऐसा प्रचार किया गया जैसे हमारी एजेंसियों ने सऊदी अरब को अपनी काबिलियत से जंदाल की सुपुर्दगी के लिए बाध्‍य कर दिया हो। बाद में यह भी स्‍पष्‍ट हो गया कि सऊदी अरब ने जंदाल को अमेरिकी दबाव में भारत के सुपुर्द किया है, न कि  भारतीय एजेंसियों ने कोई तीर मारा है।
अब सवाल यह पैदा होता है कि अमेरिका का जंदाल को भारत के सुपुर्द कराने में क्‍या स्‍वार्थ हो सकता है ?
इस सवाल का जवाब भी देश का हर जिम्‍मेदार नागरिक  जानता है, सिवाय हमारे माननीय मंत्रीगणों के।
कौन नहीं जानता कि अमेरिका द्वारा पाकिस्‍तान में ओसामा बिन लादेन को मार गिराने के बाद से उपजे  हालातों के बाद पाकिस्‍तान और अमेरिका के रिश्‍ते  लगातार बिगड़ रहे हैं। नाटो सेनाओं के लिए सप्‍लाई का रास्‍ता पाक द्वारा अवरुद्ध किये जाने के बाद से अमेरिका  ज्‍यादा परेशान है। पहले उसने कहा कि लादेन का उत्‍तराधिकारी जवाहिरी भी पाकिस्‍तान में है लेकिन उसके इस कथन में दम नहीं था। हो सकता है जवाहिरी ने पूर्व में पाकिस्‍तान को अपना अड्डा बना रखा हो पर लादेन के मारे जाने के बाद उससे ऐसी मूर्खता की उम्‍मीद करना किसी मूर्खता से कम नहीं। संभवत:  इसीलिए अमेरिका ने जवाहिरी की पाक में मौजूदगी को दरकिनार कर मुंबई हमलों के मास्‍टर माइण्‍ड हाफिज़ सईद पर भारी-भरकम ईनाम का शिगूफ़ा छोड़ा और उससे काम चलता न देख तुरंत अपना बयान पलट दिया। कहा कि यह ईनाम उसके सिर पर नहीं, मुंबई हमलों में उसकी संलिप्‍तता के ठोस सुबूत देने पर है।
लेकिन इससे भी बात नहीं बनी।
इधर हाफिज़ सईद के खिलाफ भारत द्वारा सौंपे गये सुबूतों को न पाकिस्‍तान ने कोई तरजीह दी और न अमेरिका ने।
पाकिस्‍तान तरजीह देने भी क्‍यों लगा। उसने तो मुंबई  हमले के आरोपी एकमात्र जीवित आतंकी कसाब को ही बमुश्‍िकल पाकिस्‍तानी नागरिक माना। फिर उससे यह  उम्‍मीद कैसे की जा सकती है कि वह पाकिस्‍तान में  बैठे हाफिज़ सईद की मुंबई हमलों में संलिप्‍तता मान  लेगा।
बहरहाल, पाकिस्‍तान पर नये सिरे से दबाब बनाने के लिए अमेरिका को सईद के खिलाफ सुबूतों की दरकार है और इस काम के लिए भारत का कंधा सर्वधिक मुफीद  हो सकता है।
यहां दूसरा सवाल इस आशय का खड़ा हो रहा था कि सईद के खिलाफ भारत द्वारा अब तक सौंपे गये सुबूतों  को पाक मान नहीं रहा था तो नये सुबूत कहां से जुटाये  जाएं ? कुछ ऐसे नये सुबूत जिन पर अमेरिका अपनी  मोहर लगा सके।
इसके लिए जब अमेरिका ने अपना जाल डाला तो सऊदी अरब में मिल गया अबू जंदाल। इसके बाद का खेल सार्वजनिक हो चुका है।
जो हुआ, वह ठीक माना जा सकता है क्‍योंकि एक और आतंकी तो भारत के हाथ आया लेकिन दु:ख इस बात का है कि उसके बाद केन्‍द्र सरकार में बैठे हमारे बयानवीर लगातार हास्‍यास्‍पद बयान दे रहे हैं। ऐसे  बयान जिनका कोई महत्‍व नहीं है। कम से कम  पाकिस्‍तान की नजर में तो नहीं है।
उदाहरण के तौर पर यह कहना कि जंदाल के पास पाकिस्‍तानी पासपोर्ट पाया गया है, उसे सऊदी अरब भेजने के लिए पाक ने वीजा उपलब्‍ध कराया, उसने यह  जानकारी दी है कि मुंबई हमलों के वक्‍त जिस कंट्रोल रूम में बैठकर वह हमलावरों को निर्देशित कर रहा था,  वहां हाफिज सईद भी मौजूद था, आदि-आदि।
थोड़ी देर के लिए भूल जाइये कि हम पाकिस्‍तान की  बात कर रहे हैं। उसकी जगह किसी दूसरे मुल्‍क को सामने रख लीजिये। तो भी क्‍या संभव है कि कोई  मुल्‍क इतनी आसानी से आपकी बातों पर भरोसा कर  लेगा। वह मान लेगा कि आपके द्वारा लगाये गये आरोप सही हैं। फिर भारत के गृहमंत्री यह कहकर क्‍या साबित करना चाहते हैं कि पाकिस्‍तान को मुंबई हमलों में अपनी संलिप्‍तता स्‍वीकार कर लेनी चाहिए।
पाकिस्‍तान की ओर से रहमान मलिक ने एक झटके में हमारे सारे आरोपों को न सिर्फ खारिज कर दिया बल्‍िक यहां तक कह दिया कि अबू जंदाल या अबू हमजा जो  कोई भी है, वह भारत का नागरिक है। उसने यदि आतंक की ट्रेनिंग ली है तो वह भी भारत में ली होगी।  भारत को उसे सऊदी अरब ने सौंपा है। फर्जी पासपोर्ट  रखने वाले ऐसे मुजरिम पाकिस्तानी नहीं हो सकते।
एक ओर रहमान मलिक इतने भरोसे से भारत के आरोपों को खारिज कर रहे हैं और दूसरी ओर हमारे गृहमंत्री अब तक यह कह रहे हैं कि ज़बीयुद्दीन उर्फ अबू जंदाल भारतीय नागरिक हो सकता है। देश का गृहमंत्री अब तक कनफर्म नहीं है कि अबू जंदाल भारतीय नागरिक है या नहीं। वह भी तब जबकि हमारी ही जांच  ऐजेंसियां उसके भारतीय होने की पुष्‍टि कर चुकी हैं और यहां तक बता चुकी हैं कि उसका डीएनए टैस्‍ट कराया जा चुका है। हालांकि डीएनए पर दिया गया बयान भी बेहूदा साबित हुआ। कहा गया कि डीएनए के लिए अबू हमजा की मां के खून का नमूना चुपके से ले लिया गया था। जब उसकी मां ने इस बात का खण्‍डन किया तो कहा गया कि उसके पिता की पहले जबरन एक  मुखबिर से लड़ाई कराई गई और फिर जब उन्‍हें उपचार  कराने हॉस्‍पीटल ले जाया गया तो वहां उनके खून का  नमूना ले लिया गया।
उधर विदेश मंत्री एस एम कृष्‍णा का बयान भी काबिले  गौर है। वह कहते हैं कि हम पाकिस्‍तान पर न तो आरोप लगा रहे हैं और ना उससे वाद-विवाद करना  चाहते हैं। हम तो यह चाहते हैं कि भारत और  पाकिस्‍तान मिलकर आतंकवाद से निपटें और इसीलिए  उनके साथ सूचनाएं साझा करते हैं।
पता नहीं हमारे विदेश मंत्री और गृहमंत्री क्‍या करना  चाहते हैं और क्‍या कहना चाहते हैं। वह पाकिस्‍तान के सामने रिरिया रहे हैं या उसकी चिरौरी कर रहे हैं कि भाई, खुदा के लिए हम पर रहम करके मान लो कि  मुंबई हमले में आपका हाथ है। हमारे ऊपर ऐसा मनवाने  के लिए ऊपर से बहुत दबाव है। चाहो तो बाद में मुकर  जाना।
क्‍या ये बेहतर नहीं होता कि पाकिस्‍तान के सामने इस तरह गिड़गिड़ाने या अमेरिका की लिखी हुई स्‍क्रिप्‍ट पढ़ने की जगह अबू जंदाल से वो सब-कुछ जो वह यहां उगल रहा है, सऊदी अरब में ही उगलवाया जाता ताकि दुनिया को बताया जा सकता कि देखिये मुंबई हमला किसने  करवाया।
तब पाकिस्‍तान हमसे नहीं कह पाता कि फर्जी पासपोर्ट  वाले पाकिस्‍तानी नहीं हो सकते और अपने ही नागरिक  को पकड़कर भारत कुछ भी कहलवा ले, उससे  पाकिस्‍तान का क्‍या लेना-देना।
अब तीसरा और सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण सवाल यह खड़ा होता है कि भारत ऐसा कर क्‍यों रहा है ?
इसका सीधा सा जवाब यह है कि वह जो-कुछ कर रहा  है, अमेरिका के कहने पर और उसके दबाव में कर रहा  है क्‍योंकि अबू जंदाल की गिरफ्तारी व उसके द्वारा पाकिस्‍तान के बावत दी गई जानकारियों का प्रत्‍यक्ष लाभ अमेरिका उठा सकता है। वह जानकारी चाहे  हाफिज़ सईद को लेकर हो या लश्‍करे तैयबा को लेकर।  अमेरिका किसी न किसी तरह पाकिस्‍तान पर नये सिरे से दबाब बनाना चाहता है और अबू जंदाल से मिली  जानकारियां उसके इस काम को आसान करेंगी। पाकिस्‍तान बेशक भारत के बयानों को खारिज कर चुका है पर अमेरिका चुप्‍पी साधे बैठा है। तय है कि वह अबू  जंदाल द्वारा दी गई जानकारियों को तमाम कारणों से उचित समय देखकर सही ठहरायेगा और फिर पाकिस्‍तान पर दबाव बनाकर नाटो सेनाओं के लिए निर्बाध आपूर्ति का रास्‍ता साफ करा लेगा। और यदि ऐसा नहीं कर पाया तो पाकिस्‍तान में घुसकर किये जा  रहे ड्रोन हमलों और अपने दूसरे लक्ष्‍य साधने में अपनाये जा रहे जायज व नाजायज तरीकों को पूरी तरह जायज ठहरा देगा।
कुल मिलाकर यह तय है कि भारत के लिए अबू जंदाल  का पकड़ में आना कितना लाभदायक साबित हो पायेगा,  इस पर तो संदेह किया जा सकता है लेकिन उसमें कोई  संदेह नहीं कि अमेरिका के लिए उसकी पकड़ लाभदायक  साबित होगी।
हो भी क्‍यों नहीं, जब भारत में ऐसे-ऐसे मंत्री बैठे हों जिनके लिए देश की मान-मर्यादा के कोई मायने न हों।  यहां ऐसी सरकार काबिज हो जो डॉलर को ऊपर लाने  के लिए अपने रुपये को रसातल तक ले जाने में  रत्‍तीभर न झिझके और किसी कुख्‍यात आतंकी के पकड़े जाने पर वो बयान दे जिनका राष्‍ट्रहित में कोई  महत्‍व न हो, साथ ही जिनका पाकिस्‍तानी नेता मजाक भी उड़ा सकें। राष्‍ट्रहित किस चिड़िया को कहते हैं, न वो  जानते हों और ना जानने की जरूरत महसूस करते हों।

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