मंगलवार, 3 जुलाई 2012

WOW CM साहब : न जन का मान, न तंत्र का भान

लोहिया को अपना आदर्श और खुद को धरती पुत्र कहलाने वाले मुलायम सिंह के पुत्र का यह कैसा समाजवाद है जो जनप्रतिधियों को जनता के पैसों से  मौज कराने का हिमायती है।
एक ओर जहां आम जनता महंगाई व भ्रष्‍टाचार से त्रस्‍त है और कानून-व्‍यवस्‍था की बदहाली ने उसका जीना हराम कर रखा है वहीं दूसरी ओर अखिलेश सरकार के अजीबो-गरीब फैसले ''जले पर नमक छिड़कने'' की कहावत को चरितार्थ करते नजर आते हैं।
अभी तीन महीने पहले की बात है जब समाजवादी पार्टी को यूपी की जनता ने बड़ी हसरत के साथ स्‍पष्‍ट बहुमत दिया था। साइकिल को पंख लगवाने का श्रेय सपा के युवराज अखिलेश को दिया गया। पार्टी द्वारा अखिलेश को मुख्‍यमंत्री बनाये जाने पर आमजन ने कुछ ऐसी खुशी जाहिर की जैसे उसकी मन मांगी मुराद पूरी हो गई हो।
पिछले दिनों अखिलेश सरकार के 100 दिन पूरे होने पर जनता ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। किसी का मानना था कि सरकार का आंकलन करने के लिए 100 दिन पर्याप्‍त नहीं हैं तो किसी ने कहा कि आगे-आगे देखिये होता है क्‍या।
उधर सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने अपने सीएम पुत्र को 100 में से पूरे 100 नम्‍बर दे डाले।
जो भी हो पर आज अखिलेश सरकार द्वारा विधायकों को उनकी अपनी निधि से 20 लाख रुपये कीमत तक की लग्‍ज़री गाड़ी खरीदने का अधिकार देना शायद ही किसी के गले उतरा हो।
उल्‍लेखनीय है कि इस निधि के रूप में प्रत्‍येक विधायक को सरकारी खजाने से प्रति वर्ष 2 करोड़ रुपये क्षेत्रीय विकास के लिए दिये जाते हैं। यूपी में कुल 403 विधायक हैं।
गौरतलब है कि विधायकों पर अपनी निधि के दुरुपयोग का आरोप लगता रहा है क्‍यों कि अधिकांश विधायक इसे क्षेत्रीय विकास में न लगाकर वहां लगाते हैं जहां उनके व्‍यक्‍ितगत हित जुड़े हों।
उदाहरण के तौर पर ऐसी शिक्षण संस्‍थाओं में कमरे बनवा देना या उसके कैंपस की सड़क का निर्माण करा देना जो उनके किसी परिवारीजन, इष्‍ट-मित्र अथवा रिश्‍तेदार का हो। ऐसे स्‍कूल-कॉलेजों पर खर्च करा देना जहां से कुल खर्च का आधा या उससे भी अधिक पैसा उन्‍हें वापस मिल जाता है।
इस सबके अलावा विधायकों द्वारा अपनी निधि से कराये जाने वाले विकास कार्यों में 35 प्रतिशत तक कमीशन लेने या फिर ठेका ही अपने किसी आदमी को दिलाये जाने की बातें आम हैं।
इस तरह कुल दो करोड़ रुपये प्रति वर्ष की विधायक निधि का करीब-करीब आधा हिस्‍सा तो घूम-फिरकर विधायक जी की जेब में पहले से आता रहा है।
अब अगर वह इसमें से 20 लाख रुपये की लग्‍ज़री गाड़ी और खरीद लेंगे तो जनता के हिस्‍से क्‍या आयेगा, इसका अंदाज हर व्‍यक्‍ित लगा सकता है।
यह वही अखिलेश सरकार है जिसने पेट्रोल पर एकमुश्‍त साढ़े सात रुपये की मूल्‍यवृद्धि के बाद प्रदेश सरकार द्वारा पेट्रोल पर वसूले जा रहे कर में राहत देने से स्‍पष्‍ट इंकार कर दिया था जबकि दूसरे राज्‍यों ने इस कर में छूट देकर जनता को राहत दी थी।
लोहिया को अपना आदर्श और खुद को धरती पुत्र कहलाने वाले मुलायम सिंह के पुत्र का यह कैसा समाजवाद है जो जनता के पैसों से जनप्रतिधियों को मौज कराने का हिमायती है।
आश्‍चर्य की बात तो यह है कि 20 लाख की कार खरीदने के लिए जो दलील दी जा रही है वह न केवल हास्‍यास्‍पद बल्‍िक बेवकूफीभरी है। दलील दी है कि विधायकों को अपने क्षेत्र की जनता से मिलने जाने में बिना कार के असुविधा होती है।
पहली बात तो यह कि आज शायद ही कोई विधायक ऐसा हो, जिसके पास अपनी गाड़ी न हो। मात्र एक बार की विधायिकी भी इतना कुछ दे जाती है कि विधायक जी तो क्‍या उनकी आने वाली कई पीढ़ियों का इंतजाम हो जाता है।
जाहिर है कि गलत या सही किसी भी तरीके से यह इंतजाम होता जनता के पैसों से ही है।
फिर भी अगर यह मान लिया जाए कि विधायकगण आज तक गाड़ी विहीन हैं तो क्‍या 20 लाख से कम कीमत की गाड़ी उनके क्षेत्र का दौरा नहीं कर पायेगी।
सब जानते हैं कि 4-5 लाख रुपयों तक में ऐसी अच्‍छी AC गाड़ियां आती हैं जिन्‍हें कहीं भी ले जाया जा सकता है।
इस सब के अतिरिक्‍त प्रदेश को अनेक ऐसे संसाधनों की जरूरत है जो उसकी बदहाली दूर करने में कारगर साबित हो सकते हैं।
क्‍या युवा मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव को नहीं मालूम कि 100 दिनों के उनके कार्यकाल में हुए बेहिसाब अपराधों ने सरकार की सफलता पर प्रश्‍नवाचक चिन्‍ह लगा दिया है और विपक्ष ने उन्‍हें घेरना शुरू कर दिया है।
क्‍या अखिलेश नहीं जानते कि कानून-व्‍यवस्‍था के पटरी पर ना आ पाने की एक बड़ी वजह पुलिस का संसाधन विहीन होना भी है। अपराधी जहां दिन-प्रतिदिन हाईटैक होते जा रहे हैं वहीं पुलिस उन संसाधनों से काम चला रही है जो पूर्णत: आउटडेटेड हो चुके हैं ?
पुलिस की गाड़ियां अपराधियों के वाहनों का मुकाबला करने से पहले हांफने लगती हैं। थानों को जो जीप दी हुई हैं उनका मेंटीनेंस तक थाना प्रभारी को अपनी जेब या किसी का उपकार लेकर कराना पड़ता है।
पुलिस के आला अधिकारियों को भी वो गाड़ियां मुहैया नहीं कराई गईं जो आज के हालातों में जरूरत बन चुकी हैं। प्रदेशभर के पुलिस अधिकारी आज भी एम्‍बेसेडर गाड़ियों से काम चलाते देखे जा सकते हैं। प्रशासनिक अधिकारियों का भी यही हाल है। यह तो मात्र एक उदाहरण हैं अन्‍यथा तमाम विभाग और तमाम अधिकारी वक्‍त व जरूरत के हिसाब से संसाधनों के मोहताज हैं पर उनके बावत अखिलेश सरकार ने कुछ नहीं सोचा।
 मुख्‍यमंत्री अखिलेश की समाजवादी सरकार को संसाधनों के अभाव में खुले में बर्बाद हो रहा गेहूं दिखाई नहीं देता बल्‍कि उसके लिए कम बजट का रोना रोया जा रहा है,क्‍या इस समस्‍या को सुलझाने में माननीयों की निधि काम में नहीं लाई जा सकती ?
वह तो गनीमत है कि चाहे राजनीतिक कारणों से ही सही पर बसपा, कांग्रेस व भाजपा के विधायकों ने अखिलेश सरकार के इस निर्णय का तुरंत विरोध शुरू कर दिया और साफ कहा कि वह गाड़ियां नहीं लेंगे वरना उन्‍होंने तो अपना फैसला सुना ही दिया है।
इससे पहले बिजली की भारी किल्‍लत के चलते अखिलेश सरकार शाम सात बजे ही बाजार बंद करने का तुगलकी फरमान देकर अपनी फजीहत करा चुकी है।
इन सब के बावजूद अब विधायक निधि के पैसों में से विधायकों को 20 लाख की गाड़ी खरीदने का जो अधिकार अखिलेश यादव ने दिया है उससे साफ है कि सूबे का निजाम बेशक बदल गया हो पर न तो ''सत्‍ता'' की मानसिकता बदली है और न बसपा को जनता द्वारा सिखाये गये सबक से कुछ सीखा है।
इसे यूं भी कहा जा सकता है कि सपा को बेहिसाब प्‍यार व सम्‍मान से पहली मर्तबा दिये गये स्‍पष्‍ट बहुमत का मान भी अखिलेश यादव नहीं रख पा रहे जबकि वह जानते हैं इससे पहले जब-जब सपा ने सत्‍ता हासिल की है, जोड़-तोड़ कर ही की है।

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