आने वाले सालों में बेमतलब हो सकता है सूचना का अधिकार
सरकारी अधिकारियों को ट्रेनिंग में सिखाया जाता है कि कैसे जवाब देने से बचा जाए। यह कहना है शैलेश गांधी का जो छह जुलाई को सूचना आयुक्त के पद से सेवानिवृत हो रहे हैं।
उनका कहना है कि सूचना अधिकार बड़े और ताकतवर लोगों को पसंद नहीं आ रहा।
शैलेश गांधी का यह भी कहना है कि सूचना का अधिकार आने वाले सालों में बेमतलब हो सकता है और देश भर के सूचना आयोग ही सूचना के अधिकार की राह में सबसे बड़े रोड़ा हैं।
फेसबुक पर लोगों द्वारा किये गये सवालों के जवाब में सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने कहा कि वे सूचना के अधिकार को लेकर तीन मुख्य खतरे देख रहे हैं।
उन्होंने कहा, "पहला खतरा सरकार से है क्योंकि सूचना का अधिकार ताकतवर लोगों को चुनौती दे रहा है और उन्हें यह पसंद नहीं आ रहा है। अधिकारियों के दिमाग में यह रहता है कि कैसे जवाब देने से बचा जा सकता है।"
वे कहते हैं, ''कई ट्रेनिंग कोर्स हकीकत में यह बताते हैं कि किस तरह जवाब देने से बचा जा सकता है।''
शैलेश गांधी कहते हैं कि सरकार के शीर्ष अधिकारियों और प्रधानमंत्री समेत कई लोगों के बयान भी आए हैं कि यह कानून कुछ ज्यादा ही तकलीफ दे रहा है।
उनका कहना है कि इस कानून का असर कम करने के लिए इसमें संशोधन किए जा रहे हैं।
न्यायिक प्रणाली
शैलेश गांधी का कहना है कि दूसरा खतरा न्यायिक प्रणाली से है जहां कई सालों तक फैसले नहीं हो पाते।
उन्होंने कहा, ''सरकारी अधिकारी 'स्टे' के लिए अदालतों में जाते हैं जहां या तो आम आदमी मुकद्दमा हार जाता है या फिर मामला स्थगित कर दिया जाता है जिसके बाद सालों बीत जाते हैं। इससे सूचना के अधिकार का सारा मकसद ही खत्म हो जाता है।''
उन्होंने कहा कि सूचना के अधिकार को सबसे बड़ा खतरा सूचना आयोगों से है।
गांधी कहते हैं कि सूचना आयोग मामलों का समय पर निपटारा नहीं कर रहे हैं। कई जगह 2010 के मामलों की सुनवाई हो रही है।
उनके अनुसार, ''पांच सालों में मुमकिन है कि स्थिति ऐसी हो जाए कि छह सात साल पुराने मामले भी लंबित पड़े हों। फिर यह अपनी न्याय प्रणाली जैसा हो जायेगा। ऐसे में ये आयोग चलते रहते हैं लेकिन आम आदमी के लिए बेमतलब हो जाते हैं।''
गांधी ने कहा कि पिछले साल उन्होंने 5,900 मामलों का निपटारा किया जो कि सबके लिए मुमकिन है। लेकिन आम तौर पर सूचना आयुक्त केवल 1000-2000 मामलों का ही सालभर में निपटारा करते हैं.
कुछ आंकड़े देते हुए उन्होंने कहा कि केंद्रीय सूचना आयोग में 20,000 मामले चल रहे हैं जबकि महाराष्ट्र में 24,000 और उत्तर प्रदेश में 40,000 से अधिक मामले निपटाये जाने बाकी हैं।
क्या किया जाए?
शैलेश गांधी के अनुसार देश की जनता को सूचना आयोगों पर दबाव डालना होगा लेकिन ऐसा लगता है कि जनता या तो सो गई है या मायूस हो गई है।
आयुक्त बनने से पहले खुद आरटीआई कार्यकर्ता रहे शैलेश गांधी का कहना है कि वे लोगों को जागरूक करने का काम जारी रखेंगे.
एक पाठक मृणाल कुमार के सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा, ''कानून को कमजोर करने का काम कोई जानबूझ कर नहीं कर रहा है लेकिन सत्ता में बैठे लोगों की प्रतिक्रिया यह है कि मजा नहीं आ रहा।''
जब एक पाठक आचार्य पंकज त्रिपाठी ने पूछा कि क्या आरटीआई भी भ्रष्टाचार की चपेट में है, तो उन्होंने कहा कि इसका स्पष्ट जवाब देना मुश्किल है।
गांधी ने कहा, ''मेरे पास नहीं आंकड़े नहीं हैं। जिस देश में भ्रष्टाचार इतना हो, वहां कोई प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी होगी, यह मानना मुश्किल है।''
सरकारी अधिकारियों को ट्रेनिंग में सिखाया जाता है कि कैसे जवाब देने से बचा जाए। यह कहना है शैलेश गांधी का जो छह जुलाई को सूचना आयुक्त के पद से सेवानिवृत हो रहे हैं।
उनका कहना है कि सूचना अधिकार बड़े और ताकतवर लोगों को पसंद नहीं आ रहा।
शैलेश गांधी का यह भी कहना है कि सूचना का अधिकार आने वाले सालों में बेमतलब हो सकता है और देश भर के सूचना आयोग ही सूचना के अधिकार की राह में सबसे बड़े रोड़ा हैं।
फेसबुक पर लोगों द्वारा किये गये सवालों के जवाब में सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने कहा कि वे सूचना के अधिकार को लेकर तीन मुख्य खतरे देख रहे हैं।
उन्होंने कहा, "पहला खतरा सरकार से है क्योंकि सूचना का अधिकार ताकतवर लोगों को चुनौती दे रहा है और उन्हें यह पसंद नहीं आ रहा है। अधिकारियों के दिमाग में यह रहता है कि कैसे जवाब देने से बचा जा सकता है।"
वे कहते हैं, ''कई ट्रेनिंग कोर्स हकीकत में यह बताते हैं कि किस तरह जवाब देने से बचा जा सकता है।''
शैलेश गांधी कहते हैं कि सरकार के शीर्ष अधिकारियों और प्रधानमंत्री समेत कई लोगों के बयान भी आए हैं कि यह कानून कुछ ज्यादा ही तकलीफ दे रहा है।
उनका कहना है कि इस कानून का असर कम करने के लिए इसमें संशोधन किए जा रहे हैं।
न्यायिक प्रणाली
शैलेश गांधी का कहना है कि दूसरा खतरा न्यायिक प्रणाली से है जहां कई सालों तक फैसले नहीं हो पाते।
उन्होंने कहा, ''सरकारी अधिकारी 'स्टे' के लिए अदालतों में जाते हैं जहां या तो आम आदमी मुकद्दमा हार जाता है या फिर मामला स्थगित कर दिया जाता है जिसके बाद सालों बीत जाते हैं। इससे सूचना के अधिकार का सारा मकसद ही खत्म हो जाता है।''
उन्होंने कहा कि सूचना के अधिकार को सबसे बड़ा खतरा सूचना आयोगों से है।
गांधी कहते हैं कि सूचना आयोग मामलों का समय पर निपटारा नहीं कर रहे हैं। कई जगह 2010 के मामलों की सुनवाई हो रही है।
उनके अनुसार, ''पांच सालों में मुमकिन है कि स्थिति ऐसी हो जाए कि छह सात साल पुराने मामले भी लंबित पड़े हों। फिर यह अपनी न्याय प्रणाली जैसा हो जायेगा। ऐसे में ये आयोग चलते रहते हैं लेकिन आम आदमी के लिए बेमतलब हो जाते हैं।''
गांधी ने कहा कि पिछले साल उन्होंने 5,900 मामलों का निपटारा किया जो कि सबके लिए मुमकिन है। लेकिन आम तौर पर सूचना आयुक्त केवल 1000-2000 मामलों का ही सालभर में निपटारा करते हैं.
कुछ आंकड़े देते हुए उन्होंने कहा कि केंद्रीय सूचना आयोग में 20,000 मामले चल रहे हैं जबकि महाराष्ट्र में 24,000 और उत्तर प्रदेश में 40,000 से अधिक मामले निपटाये जाने बाकी हैं।
क्या किया जाए?
शैलेश गांधी के अनुसार देश की जनता को सूचना आयोगों पर दबाव डालना होगा लेकिन ऐसा लगता है कि जनता या तो सो गई है या मायूस हो गई है।
आयुक्त बनने से पहले खुद आरटीआई कार्यकर्ता रहे शैलेश गांधी का कहना है कि वे लोगों को जागरूक करने का काम जारी रखेंगे.
एक पाठक मृणाल कुमार के सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा, ''कानून को कमजोर करने का काम कोई जानबूझ कर नहीं कर रहा है लेकिन सत्ता में बैठे लोगों की प्रतिक्रिया यह है कि मजा नहीं आ रहा।''
जब एक पाठक आचार्य पंकज त्रिपाठी ने पूछा कि क्या आरटीआई भी भ्रष्टाचार की चपेट में है, तो उन्होंने कहा कि इसका स्पष्ट जवाब देना मुश्किल है।
गांधी ने कहा, ''मेरे पास नहीं आंकड़े नहीं हैं। जिस देश में भ्रष्टाचार इतना हो, वहां कोई प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी होगी, यह मानना मुश्किल है।''
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