कोयला खदानों
के आवंटन पर कैग की अंतिम रिपोर्ट ने सीधे-सीधे सरकार को कठघरे में खड़ा
करते हुए कहा है कि उसने कंपनियों को चुनते समय पारदर्शी प्रक्रिया का पालन
नहीं किया।
रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि कोयला मंत्रालय के सेक्रेट्री की 2004 में की गई उस सिफारिश को नजरंदाज करना गलत था, जिसमें प्रतिस्पर्धी बोलियों के जरिये खदानों के आवंटन की सिफारिश की गई थी।
रिपोर्ट की विषयवस्तु की जानकारी रखने वाले लोगों ने ईटी को बताया कि कैग ने पाया है कि कोयला खदानों के खनन के लिए कंपनियों को किस तरह चुना गया, इस बारे में कोई सूचना उपलब्ध नहीं है। यह रिपोर्ट संसद के मॉनसून सेशन में पेश की जाएगी।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदुओं की जानकारी रखने वाले व्यक्तियों में से एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि कैग के मुताबिक कोल माइंस के आवंटन में प्रतिस्पर्धी बोलियां मंगाई जानी चाहिए थीं लेकिन इसकी जगह सरकार ने एक 'अपारदर्शी' नीति का सहारा लिया, जो फरवरी 2012 तक चलन में थी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन कंपनियों को ये खान आवंटित किए गए, उन्हें करीब 1,86,000 करोड़ रुपए का फायदा हुआ। सबसे पहले एक अंग्रेजी अखबार ने इन आंकड़ों का खुलासा किया था। इससे फायदा उठाने वालों में अन्य कंपिनयों के अलावा जिंदल स्टील ऐंड पावर और टाटा एवं दक्षिण अफ्रीका की सासोल के बीच जॉइंट वेंचर से बनी एक कंपनी भी शामिल हैं।
जिस समय के आवंटन को लेकर कैग ने ये तल्ख टिप्पणियां की हैं, उस दौरान कोयला मंत्रालय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास था और राज्य स्तर के मंत्री दसरी नारायण राव और संतोष बगरोदिया उनके सहयोगी थे।
उस समय के कोयला सेक्रेट्री पी. सी. पारेख ने स्वीकार किया कि कुछ खास कंपनियों को खदान आवंटित करने के लिए उन पर 'दबाव' था। उन्होंने कहा, 'हां, उस समय दबाव था और हर तरह के लोग आ रहे थे और किसी खास कंपनी के पक्ष में फैसले की मांग कर रहे थे।'
पारेख ने 2004 में कोयला राज्य मंत्री राव को एक नोट पेश किया था, जिसमें पारदर्शिता के नियमों का पालन करते हुए ब्लॉक के आवंटन में प्रतिस्पर्धी बोलियों की व्यवस्था लागू करने का प्रस्ताव किया गया था।
तेलुगू फिल्म निर्माता और इस साल की शुरुआत तक कांग्रेस समर्थित राज्य सभा सदस्य रहे राव ने आरोपों पर कोई टिप्पणी करने से इंकार कर दिया। दूसरे मंत्री बगरोदिया ने कहा कि उनका इस पूरे मामले से कोई लेना देना नहीं था।
रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि कोयला मंत्रालय के सेक्रेट्री की 2004 में की गई उस सिफारिश को नजरंदाज करना गलत था, जिसमें प्रतिस्पर्धी बोलियों के जरिये खदानों के आवंटन की सिफारिश की गई थी।
रिपोर्ट की विषयवस्तु की जानकारी रखने वाले लोगों ने ईटी को बताया कि कैग ने पाया है कि कोयला खदानों के खनन के लिए कंपनियों को किस तरह चुना गया, इस बारे में कोई सूचना उपलब्ध नहीं है। यह रिपोर्ट संसद के मॉनसून सेशन में पेश की जाएगी।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदुओं की जानकारी रखने वाले व्यक्तियों में से एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि कैग के मुताबिक कोल माइंस के आवंटन में प्रतिस्पर्धी बोलियां मंगाई जानी चाहिए थीं लेकिन इसकी जगह सरकार ने एक 'अपारदर्शी' नीति का सहारा लिया, जो फरवरी 2012 तक चलन में थी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन कंपनियों को ये खान आवंटित किए गए, उन्हें करीब 1,86,000 करोड़ रुपए का फायदा हुआ। सबसे पहले एक अंग्रेजी अखबार ने इन आंकड़ों का खुलासा किया था। इससे फायदा उठाने वालों में अन्य कंपिनयों के अलावा जिंदल स्टील ऐंड पावर और टाटा एवं दक्षिण अफ्रीका की सासोल के बीच जॉइंट वेंचर से बनी एक कंपनी भी शामिल हैं।
जिस समय के आवंटन को लेकर कैग ने ये तल्ख टिप्पणियां की हैं, उस दौरान कोयला मंत्रालय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास था और राज्य स्तर के मंत्री दसरी नारायण राव और संतोष बगरोदिया उनके सहयोगी थे।
उस समय के कोयला सेक्रेट्री पी. सी. पारेख ने स्वीकार किया कि कुछ खास कंपनियों को खदान आवंटित करने के लिए उन पर 'दबाव' था। उन्होंने कहा, 'हां, उस समय दबाव था और हर तरह के लोग आ रहे थे और किसी खास कंपनी के पक्ष में फैसले की मांग कर रहे थे।'
पारेख ने 2004 में कोयला राज्य मंत्री राव को एक नोट पेश किया था, जिसमें पारदर्शिता के नियमों का पालन करते हुए ब्लॉक के आवंटन में प्रतिस्पर्धी बोलियों की व्यवस्था लागू करने का प्रस्ताव किया गया था।
तेलुगू फिल्म निर्माता और इस साल की शुरुआत तक कांग्रेस समर्थित राज्य सभा सदस्य रहे राव ने आरोपों पर कोई टिप्पणी करने से इंकार कर दिया। दूसरे मंत्री बगरोदिया ने कहा कि उनका इस पूरे मामले से कोई लेना देना नहीं था।
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