उत्तर प्रदेश के विकास की ये कौन
सी परिभाषा गढ़ रहे हैं अखिलेश यादव कि बुंदेलखंड में कर्ज़ के बोझ से दबे
किसानों की खुदकुशी चार महीनों में चालीस का आंकड़ा छू रहा है वहीं उनके
अपने जिले इटावा में लायन सफारी के लिए पूरी सरकारी ताकत झोंकी जा रही है।
तस्वीर भयावह है.....
कि एक ओर सूखे के हालातों के बाद भी किसानों का जबरन उगाही के लिए टॉर्चर किया जा रहा है क्योंकि सरकारी कागजों के मुताबिक पूरे बुंदेलखंड के किसानों पर अब तक 5 अरब रु. का कर्ज बकाया है। इन आकड़ों में किसानों द्वारा साहूकारों से लिया गया कर्ज शामिल नहीं है।
ठीक चार महीने पहले चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी के घोषणापत्र में किसानों को सपना दिखाया गया था कि उनका 500 करोड़ का कर्ज माफ कर दिया जाएगा। हुआ ठीक इसके उलट कि युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के सत्ता में आने के बाद से अब तक बुंदेलखंड में लगभग चालीस किसान खुदकुशी कर चुके हैं।
गौरतलब है कि गरीबी, भुखमरी और कुपोषण से अभिशप्त बुंदेलखंड के लिए समाजवादी पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में बड़े बड़े वादे किये। सरकार आई तो लोगों में उम्मीद जगी। लेकिन हकीकत में कुछ भी नहीं बदला। किसानों का कहना है कि घर में खाने को रोटी नहीं है तो बच्चों को स्कूल कैसे भेजा जाये या बिजली का बिल कैसे चुकाया जाये । भूख से जानवर भी मर रहे हैं। सूखा चारा भी बमुश्किल मिल पा रहा है ।
किसानों की शिकायत है कि सरकार की तरफ से कोई सुनवाई नहीं हो रही।
अभी तक 50,000 से लेकर तीन लाख तक के कर्ज़ बुंदेलखंड के जिन किसानों पर हैं उन्हें पिछले कई वर्षों से कभी सूखे तो कभी बाढ़ की वजह से अपने परिवारों के लिए दाना जुटाना मुश्किल हो रहा है । बावज़ूद इसके इन्हें मजबूरी में हर फसल पर कर्ज़ लेना पड़ रहा है, ऐसे में कर्ज़ वसूलने के लिए प्रशासनिक
अधिकारियों द्वारा पूरे गांव के सामने कर्ज़दार किसान की बेइज्ज़ती ही इतनी तादाद में आत्महत्याओं का मुख्य वजह बन रही है ।
हालात यहां तक पहुंच गये हैं कि किसान या तो खुदकुशी कर रहे हैं या वे गांवों से पलायन कर मज़दूरी करने को विवश हो रहे हैं ।
ये हाल तो तब है जब कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का साफ आदेश है कि किसी किसान पर कर्ज वसूली का दबाव नहीं बनाया जाए। कोर्ट ने सरकार से भी ऐसी सख्त नीति ना बनाने को कहा है, जिससे किसान आत्महत्या पर मजबूर हो जाएं। लेकिन इस आदेश का अखिलेश के राज में पूरी तरह मखौल उड़ाया जा रहा है।
पड़ताल करने पर कर्ज़ देने वाले बैंक के मैनेजरों ने बताया कि ये उनके बस की बात नहीं है। बैंक सीधे कार्यवाही नहीं करता। ये तो सरकार का काम है। प्रशासन को आरसी दी जाती है। इसके बाद सब कुछ प्रशासन के हाथ में होता है।
इधर कर्ज़ की वजह से भूमिहीन होते ये अन्न्दाता दाने दाने को मोहताज हो अपने घर के मुखिया की लाश ढोने पर विवश हैं, उधर सरकार ने कागजों में ही सूखे से निपटने की तैयारी कर ली है।
वैसे भी जानकार किसानों का कहना है कि सरकार सूखे के समय 'बाढ़' और बाढ़ के समय 'सूखे' से निपटने की तैयारी करती है, जिससे किसान बर्बाद हो गया है। नतीजा यह कि लाखों की तादाद में किसान अपनी खेती की जमीन बेच कर भूमिहीन हो चुका है, हजारों किसानों की भूमि सरकार के मामूली कर्ज की बदौलत नीलाम भी हो चुकी है |
एक ओर एफडीआई व लैपटॉप वितरण जैसे बेहद महात्वाकांक्षी सपने को अखिलेश यादव पूरा करने के लिए ताबड़तोड़ मीटिंगें कर रहे हैं, प्रदेश में आईटी पार्क बनाने की कार्यवाही भी शुरू हो चुकी है मगर ये सब किस कीमत पर हो रहा है?
ज़ाहिर है कि अन्नदाता की जान की कीमत पर। प्रदेश की ये तरक्की खुशहाली तो नहीं ही ला सकती, अलबत्ता सरकार के प्रति मोहभंग अवश्य कर सकती है।
कि एक ओर सूखे के हालातों के बाद भी किसानों का जबरन उगाही के लिए टॉर्चर किया जा रहा है क्योंकि सरकारी कागजों के मुताबिक पूरे बुंदेलखंड के किसानों पर अब तक 5 अरब रु. का कर्ज बकाया है। इन आकड़ों में किसानों द्वारा साहूकारों से लिया गया कर्ज शामिल नहीं है।
ठीक चार महीने पहले चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी के घोषणापत्र में किसानों को सपना दिखाया गया था कि उनका 500 करोड़ का कर्ज माफ कर दिया जाएगा। हुआ ठीक इसके उलट कि युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के सत्ता में आने के बाद से अब तक बुंदेलखंड में लगभग चालीस किसान खुदकुशी कर चुके हैं।
गौरतलब है कि गरीबी, भुखमरी और कुपोषण से अभिशप्त बुंदेलखंड के लिए समाजवादी पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में बड़े बड़े वादे किये। सरकार आई तो लोगों में उम्मीद जगी। लेकिन हकीकत में कुछ भी नहीं बदला। किसानों का कहना है कि घर में खाने को रोटी नहीं है तो बच्चों को स्कूल कैसे भेजा जाये या बिजली का बिल कैसे चुकाया जाये । भूख से जानवर भी मर रहे हैं। सूखा चारा भी बमुश्किल मिल पा रहा है ।
किसानों की शिकायत है कि सरकार की तरफ से कोई सुनवाई नहीं हो रही।
अभी तक 50,000 से लेकर तीन लाख तक के कर्ज़ बुंदेलखंड के जिन किसानों पर हैं उन्हें पिछले कई वर्षों से कभी सूखे तो कभी बाढ़ की वजह से अपने परिवारों के लिए दाना जुटाना मुश्किल हो रहा है । बावज़ूद इसके इन्हें मजबूरी में हर फसल पर कर्ज़ लेना पड़ रहा है, ऐसे में कर्ज़ वसूलने के लिए प्रशासनिक
अधिकारियों द्वारा पूरे गांव के सामने कर्ज़दार किसान की बेइज्ज़ती ही इतनी तादाद में आत्महत्याओं का मुख्य वजह बन रही है ।
हालात यहां तक पहुंच गये हैं कि किसान या तो खुदकुशी कर रहे हैं या वे गांवों से पलायन कर मज़दूरी करने को विवश हो रहे हैं ।
ये हाल तो तब है जब कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का साफ आदेश है कि किसी किसान पर कर्ज वसूली का दबाव नहीं बनाया जाए। कोर्ट ने सरकार से भी ऐसी सख्त नीति ना बनाने को कहा है, जिससे किसान आत्महत्या पर मजबूर हो जाएं। लेकिन इस आदेश का अखिलेश के राज में पूरी तरह मखौल उड़ाया जा रहा है।
पड़ताल करने पर कर्ज़ देने वाले बैंक के मैनेजरों ने बताया कि ये उनके बस की बात नहीं है। बैंक सीधे कार्यवाही नहीं करता। ये तो सरकार का काम है। प्रशासन को आरसी दी जाती है। इसके बाद सब कुछ प्रशासन के हाथ में होता है।
इधर कर्ज़ की वजह से भूमिहीन होते ये अन्न्दाता दाने दाने को मोहताज हो अपने घर के मुखिया की लाश ढोने पर विवश हैं, उधर सरकार ने कागजों में ही सूखे से निपटने की तैयारी कर ली है।
वैसे भी जानकार किसानों का कहना है कि सरकार सूखे के समय 'बाढ़' और बाढ़ के समय 'सूखे' से निपटने की तैयारी करती है, जिससे किसान बर्बाद हो गया है। नतीजा यह कि लाखों की तादाद में किसान अपनी खेती की जमीन बेच कर भूमिहीन हो चुका है, हजारों किसानों की भूमि सरकार के मामूली कर्ज की बदौलत नीलाम भी हो चुकी है |
एक ओर एफडीआई व लैपटॉप वितरण जैसे बेहद महात्वाकांक्षी सपने को अखिलेश यादव पूरा करने के लिए ताबड़तोड़ मीटिंगें कर रहे हैं, प्रदेश में आईटी पार्क बनाने की कार्यवाही भी शुरू हो चुकी है मगर ये सब किस कीमत पर हो रहा है?
ज़ाहिर है कि अन्नदाता की जान की कीमत पर। प्रदेश की ये तरक्की खुशहाली तो नहीं ही ला सकती, अलबत्ता सरकार के प्रति मोहभंग अवश्य कर सकती है।
sarkar kai pas kisano kai liyai samay nahi hai
जवाब देंहटाएंR B Gautam