हे श्रीकृष्ण ! यदि वास्तव में तुम कभी अवतरित हुए थे, तुमने कभी महाभारत
युद्ध का नेतृत्व करते हुए अपने सखा अर्जुन को अपने ही बंधु-बांधवों के
खिलाफ गांडीव उठाने के लिए इसलिए प्रेरित किया था क्योंकि वह अनाचार व
अत्याचारों के पर्याय बन चुके थे तो आज तुम कहां हो ?
एक और कृष्ण जन्माष्टमी आ चुकी है । फिर एक बार मंदिर सजेंगे । मंदिरों के साथ-साथ घर-घर और गली-गली बधाई गीत गाये जायेंगे । नंदोत्सव होगा ।
हम भारतवासी उत्सव प्रेमी हैं इसलिए जन्म से लेकर मृत्यु के बाद तक विभिन्न रूपों में उत्सव मनाते चले आये हैं । मनाने भी चाहिए क्योंकि उत्सव ही लोगों के जीवन में उल्लास व उत्साह पैदा करते हैं । उत्सव ही लोगों को तनाव मुक्त करने तथा मेल-मिलाप का माध्यम बनते हैं ।नि:संदेह आज का समाज उत्सवों के आयोजन पर पहले से कहीं अधिक पैसा खर्च करने लगा है । पहले से कहीं अधिक भव्य उत्सव आज होते हैं । धार्मिक उत्सव भी स्टेटस सिंबल बन चुके हैं और इस दिखावे से वो स्थान तक अछूता नहीं रहा जिसे लोग श्रीकृष्ण जन्मस्थान के रूप में पहचानते हैं । यानि श्रीकृष्ण जन्मभूमि ।
महाभारत नायक, योगीराज, सोलह कला अवतार और एकमात्र पूर्ण पुरुष जैसी उपाधियों से विभूषित मनुष्य के इस आश्चर्यजनक रूप में श्रीकृष्ण को जन्मे एक अनुमान के मुताबिक करीब-करीब साढ़े पांच हजार वर्ष हुए हैं, जो कालखण्डों की यात्रा में बहुत कम समय कहा जा सकता है । लेकिन इस बहुत कम समय में श्रीकृष्ण जैसे व्यक्तित्व की जरूरत समाज को महसूस होने लगी है । ऐसा क्यों?
क्या द्वापर युग के वो हालात अब फिर नजर आने लगे हैं जिनकी वजह से कृष्ण ने जन्म लिया ?
क्या वो विषम परिस्थितियां पैदा हो चुकी हैं जिनका जिक्र करते हुए स्वयं श्रीकृष्ण्ा को कहना पड़ा था-
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥७॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥८॥
गौर करें तो स्पष्ट दिखाई देता है कि श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिये गये इस उपदेश के जरिये जिन परिस्थितियों की चर्चा की थी, वह सब वर्तमान में मौजूद हैं ।
तो श्रीकृष्ण दोबारा जन्म क्यों नहीं ले रहे, क्यों वह कुरुक्षेत्र में कहे गये अपने ही वचनों की अनदेखी कर रहे हैं ?
श्रीकृष्ण को अपनी बाल्यावस्था में ही कालिया नाग रूपी प्रदूषण से यमुना को मुक्त कराना पड़ा था । गौवंश की रक्षा करनी पड़ी थी । चीरहरण के वक्त द्रोपदी के शील की रक्षा करनी पड़ी । शांति की खातिर महाभारत जैसे महाविनाशकारी युद्ध का नेतृत्व करना पड़ा ।
यमुना के जैसे स्वरूप का उल्लेख धार्मिक ग्रंथों में किया गया है, आज यमुना उससे कहीं अधिक प्रदूषित है । सच तो यह है कि यमुना का अस्तित्व ही संकट में पड़ चुका है ।
वृंदावन, मथुरा, आगरा और इससे आगे तक यमुना मात्र एक गंदा नाला बन चुकी है ।
इसी प्रकार गौवंश भी भारी संकट के दौर से गुजर रहा है । उसकी उपयोगिता पर ही प्रश्नचिन्ह लगाये जाने लगे हैं । वह उपयोग की जगह, उपभोग की वस्तु बनकर रह गया है ।
हे कृष्ण ! तुम्हारे जन्म लेने पर कंस ने जितने सैनिक पहरे पर नहीं बैठाये होंगे, उससे कहीं ज्यादा सैन्यबल आज तुम्हारे जन्मस्थान को घेरे हुए है ।
जहां तक सवाल द्रोपदी के चीरहरण का है तो आज उसके लिए कौरवों की सभा जरूरी नहीं रह गयी । अब तो संपूर्ण भारत वर्ष में द्रोपदियों का चीरहरण किया जा रहा है । कोई स्थान ऐसा नहीं है जहां वह खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें ।
जिस तरह द्रोपदी का चीरहरण उसके अपने ही सगे-सम्बन्धियों ने किया था, ठीक उसी तरह आज महिलाओं के शील व उनके मान-सम्मान को उनके अपने ही तार-तार कर रहे हैं । तब पांचों पाण्डव तमाशबीन बने रहे, आज पूरा समाज तमाशा देख रहा है ।
आज किसी कृष्ण को किसी अर्जुन से यह नहीं कहना पड़ता कि धर्मयुद्ध में मोह के लिए कोई जगह नहीं है, क्योंकि अब मोह-ममता जैसी भावनाओं को लोग खुद-ब-खुद परित्याग कर चुके हैं । छोटी-छोटी बातों के लिए सगे-सम्बन्धी एक-दूसरे का खून बहाने को आतुर रहते हैं । धर्म और अधर्म की परिभाषाएं अपनी सुविधा और स्वार्थ के अनुरूप गढ़ ली जाती हैं ।
हे श्रीकृष्ण ! यदि वास्तव में तुम कभी अवतरित हुए थे, तुमने कभी महाभारत युद्ध का नेतृत्व करते हुए अपने सखा अर्जुन को अपने ही बंधु-बांधवों के खिलाफ गांडीव उठाने के लिए इसलिए प्रेरित किया था क्योंकि वह अनाचार व अत्याचारों के पर्याय बन चुके थे तो आज तुम कहां हो ?
'पतित पावनी' कहलाने वाली यमुना आज क्यों खुद 'पावन' होने को तरस रही है?
घर-घर में द्रोपदियों का चीरहरण हो रहा है लेकिन अब क्यों तुम किसी की लाज बचाने नहीं आते ?
जिस कृष्ण जन्मभूमि को तुम्हारी जन्मस्थली मानकर वहां हर साल कृष्ण जन्माष्टमी पर भव्य-दिव्य उत्सव मनाया जाता है और लाखों लोग उसमें शामिल होते हैं, उस जन्मस्थान से बमुश्किल 500 मीटर की दूरी पर तुम्हारी प्रिय गायों का बेहिसाब कत्ल किया जा रहा है लेकिन गोपाल कृष्ण कहीं दिखाई नहीं देता । क्यों ?
क्यों वह तमाशबीन बना हुआ है ?
सज्जनों के उत्पीड़न, दुष्टजनों के अनाचार तथा धर्म की हानि सम्बन्धी पराकाष्ठा का कोई और पैमाना है अथवा इसके लिए भी तुमने अपना कोई अलग मापदण्ड निर्धारित कर रखा है ?
हे श्रीकृष्ण ! इन सब प्रश्नों के अतिरिक्त कुछ और संशय भी मेरे मन में हैं जिन्हें दूर किया जाना जरूरी है अन्यथा कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारे द्वारा कही गई बातों पर से लोगों का भरोसा उठ जाए । वह मान बैठें कि श्रीकृष्ण और श्रीमद् भगवत गीता एक कपोल कल्पना के अलावा कुछ नहीं हैं ।
मेरा पहला संशय तो तुम्हारे जन्म को लेकर निर्धारित समयाविधि के सम्बन्ध में है ।
संशय इसलिए है कि अगर कुल साढ़े पांच हजार सालों के अंतराल पर ही समाज में इस कदर अनाचार व अत्याचार बढ़ जायेगा तो तुम आखिर कितनी बार जन्म लोगे ?
कहते हैं कलियुग की उम्र ही लाखों वर्ष है । तो क्या कलियुग में तुम्हें कई बार जन्म लेना होगा ? जबकि अब तक तो कलियुग में तुमने कहीं जन्म नहीं लिया।
यदि ऐसा नहीं है तो क्या तुम्हारे यदा-यदा हि धर्मस्य... की परिभाषा कुछ और है जिसकी अब तक लोग अपने हिसाब से व्याख्या करते रहे हैं ?
अगर ऐसा है तो इसकी सही परिभाषा क्या है और कब तुम्हें एक बार फिर मनुष्य रूप में जन्मने या अवतरित होने की आवश्यकता महसूस होगी ?
कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम भी कलियुग के प्रभाववश अपने नियमों की अवहेलना कर रहे हो और साल-दर-साल अपने जन्मदिन का उत्सव मनाये जाने मात्र से खुश होकर यह समझ बैठे हो कि तुम्हारी जरूरत अभी लोगों को नहीं है ?
अगर यह सच है तो हे श्रीकृष्ण.. तुम्हें खुद इस भ्रम से बाहर निकलने की जरूरत है । तुम्हें खुद यह समझने की आवश्यकता है कि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर जो दिखता है, वह सच नहीं है । न ये उत्सव सच है और ना ये भक्त सच्चे हैं । सब-कुछ दिखावा है । तेरा हर साल जन्म भी और जन्मोत्सव भी ।
सच्चाई देखनी है तो अपने विराट रूप से देख । देख कि तेरे भक्तों में बड़ी संख्या उन लोगों की है जो कंस के युग से भी कहीं अधिक प्रताड़ित हैं ।
समाज का एक खास वर्ग अनाचार व अत्याचार के माध्यम से बेशुमार धनबल और बाहुबल अर्जित कर रहा है जबकि अधिकांश लोग उनसे शोषित हैं ।
सुविधा सम्पन्न ये लोग तुझे अपने पापकर्मों में बराबर का हिस्सेदार बना रहे हैं और समाज को बता रहे हैं कि तू भी उनकी चाकरी का मोहताज है ।
तेरे मंदिरों और समाज पर ऐसे तत्वों का वर्चस्व उनकी ताकत की पुष्टि करता है क्योंकि जो दिखता है वही सच माना जाता है ।
हे कृष्ण ! कहीं ऐसा तो नहीं कि तू खुद दिग्भ्रमित हो गया हो और जिस प्रकार महाभारत के वक्त अर्जुन का भ्रम तुझे दूर करना पड़ा था, उसी प्रकार तेरा भ्रम दूर करने के लिए तुझे ही अब अर्जुन जैसे किसी सखा की आवश्यकता हो ।
अगर इसमें लेशमात्र भी सच्चाई है तो मैं पूरे मन, वचन और कर्म से ये जिम्मेदारी निभाने के लिए तैयार हूं ।
मैं वो सब-कुछ करने को तत्पर हूं जो तूने अर्जुन के लिए किया था ।
''ये कलियुग नहीं ये करयुग है, इस हाथ दे, इस हाथ ले'' । मैं अर्जुन पर किये गये तेरे उपकारों को चुकाना चाहता हूं बशर्ते तू समय की नजाकत को समझ सके ।
तू समझ सके कि आज का दौर तेरे जन्म उत्सव मनाने का नहीं रहा । आज तेरे जन्म उत्सवों की नहीं, तेरे पुनर्जन्म की जरूरत है ।
तेरे अपने मापदण्ड चाहे जो भी रहे हों लेकिन आज के हालात बहुत बदतर हैं । जनसामान्य को कहीं से आशा की कोई किरण दिखाई नहीं पड़ रही । यमुना के भक्त वर्तमान निर्लज्ज शासकों के सामने बेहद कमजोर साबित हो रहे हैं । गौवंश को बचाने वाला कोई नहीं । द्रोपदियों के रक्षक ही उनके भक्षक बन चुके हैं।
हे कृष्ण ! समय आ चुका है जब तुझे अपनी और अपने वचनों की प्रमाणिकता सिद्ध करनी होगी । अगर तेरे हिसाब से तेरे पुनर्जन्म का समय नहीं भी आया है तो तुझे पुनर्जन्म लेना होगा । तुझे साबित करना होगा कि अपने भक्तों की एक आवाज पर तू आज भी दौड़ा चला आता है।
तुझे गीता में कहे गये अपने वचन सार्थक करने होंगे ताकि कमजोरों का, दीन दुखियों का एवं निर्बलों का तुझ पर भरोसा बना रहे और वो जान सकें कि श्रीकृष्ण केवल अपने जन्मोत्सव का तमाशा नहीं देखता, वह अपने भक्तों की करुणामय पुकार भी सुनता है।
यह तेरे भक्तों की नहीं, तेरी परीक्षा की घड़ी है ।
एक और कृष्ण जन्माष्टमी आ चुकी है । फिर एक बार मंदिर सजेंगे । मंदिरों के साथ-साथ घर-घर और गली-गली बधाई गीत गाये जायेंगे । नंदोत्सव होगा ।
हम भारतवासी उत्सव प्रेमी हैं इसलिए जन्म से लेकर मृत्यु के बाद तक विभिन्न रूपों में उत्सव मनाते चले आये हैं । मनाने भी चाहिए क्योंकि उत्सव ही लोगों के जीवन में उल्लास व उत्साह पैदा करते हैं । उत्सव ही लोगों को तनाव मुक्त करने तथा मेल-मिलाप का माध्यम बनते हैं ।नि:संदेह आज का समाज उत्सवों के आयोजन पर पहले से कहीं अधिक पैसा खर्च करने लगा है । पहले से कहीं अधिक भव्य उत्सव आज होते हैं । धार्मिक उत्सव भी स्टेटस सिंबल बन चुके हैं और इस दिखावे से वो स्थान तक अछूता नहीं रहा जिसे लोग श्रीकृष्ण जन्मस्थान के रूप में पहचानते हैं । यानि श्रीकृष्ण जन्मभूमि ।
महाभारत नायक, योगीराज, सोलह कला अवतार और एकमात्र पूर्ण पुरुष जैसी उपाधियों से विभूषित मनुष्य के इस आश्चर्यजनक रूप में श्रीकृष्ण को जन्मे एक अनुमान के मुताबिक करीब-करीब साढ़े पांच हजार वर्ष हुए हैं, जो कालखण्डों की यात्रा में बहुत कम समय कहा जा सकता है । लेकिन इस बहुत कम समय में श्रीकृष्ण जैसे व्यक्तित्व की जरूरत समाज को महसूस होने लगी है । ऐसा क्यों?
क्या द्वापर युग के वो हालात अब फिर नजर आने लगे हैं जिनकी वजह से कृष्ण ने जन्म लिया ?
क्या वो विषम परिस्थितियां पैदा हो चुकी हैं जिनका जिक्र करते हुए स्वयं श्रीकृष्ण्ा को कहना पड़ा था-
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥७॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥८॥
गौर करें तो स्पष्ट दिखाई देता है कि श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिये गये इस उपदेश के जरिये जिन परिस्थितियों की चर्चा की थी, वह सब वर्तमान में मौजूद हैं ।
तो श्रीकृष्ण दोबारा जन्म क्यों नहीं ले रहे, क्यों वह कुरुक्षेत्र में कहे गये अपने ही वचनों की अनदेखी कर रहे हैं ?
श्रीकृष्ण को अपनी बाल्यावस्था में ही कालिया नाग रूपी प्रदूषण से यमुना को मुक्त कराना पड़ा था । गौवंश की रक्षा करनी पड़ी थी । चीरहरण के वक्त द्रोपदी के शील की रक्षा करनी पड़ी । शांति की खातिर महाभारत जैसे महाविनाशकारी युद्ध का नेतृत्व करना पड़ा ।
यमुना के जैसे स्वरूप का उल्लेख धार्मिक ग्रंथों में किया गया है, आज यमुना उससे कहीं अधिक प्रदूषित है । सच तो यह है कि यमुना का अस्तित्व ही संकट में पड़ चुका है ।
वृंदावन, मथुरा, आगरा और इससे आगे तक यमुना मात्र एक गंदा नाला बन चुकी है ।
इसी प्रकार गौवंश भी भारी संकट के दौर से गुजर रहा है । उसकी उपयोगिता पर ही प्रश्नचिन्ह लगाये जाने लगे हैं । वह उपयोग की जगह, उपभोग की वस्तु बनकर रह गया है ।
हे कृष्ण ! तुम्हारे जन्म लेने पर कंस ने जितने सैनिक पहरे पर नहीं बैठाये होंगे, उससे कहीं ज्यादा सैन्यबल आज तुम्हारे जन्मस्थान को घेरे हुए है ।
जहां तक सवाल द्रोपदी के चीरहरण का है तो आज उसके लिए कौरवों की सभा जरूरी नहीं रह गयी । अब तो संपूर्ण भारत वर्ष में द्रोपदियों का चीरहरण किया जा रहा है । कोई स्थान ऐसा नहीं है जहां वह खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें ।
जिस तरह द्रोपदी का चीरहरण उसके अपने ही सगे-सम्बन्धियों ने किया था, ठीक उसी तरह आज महिलाओं के शील व उनके मान-सम्मान को उनके अपने ही तार-तार कर रहे हैं । तब पांचों पाण्डव तमाशबीन बने रहे, आज पूरा समाज तमाशा देख रहा है ।
आज किसी कृष्ण को किसी अर्जुन से यह नहीं कहना पड़ता कि धर्मयुद्ध में मोह के लिए कोई जगह नहीं है, क्योंकि अब मोह-ममता जैसी भावनाओं को लोग खुद-ब-खुद परित्याग कर चुके हैं । छोटी-छोटी बातों के लिए सगे-सम्बन्धी एक-दूसरे का खून बहाने को आतुर रहते हैं । धर्म और अधर्म की परिभाषाएं अपनी सुविधा और स्वार्थ के अनुरूप गढ़ ली जाती हैं ।
हे श्रीकृष्ण ! यदि वास्तव में तुम कभी अवतरित हुए थे, तुमने कभी महाभारत युद्ध का नेतृत्व करते हुए अपने सखा अर्जुन को अपने ही बंधु-बांधवों के खिलाफ गांडीव उठाने के लिए इसलिए प्रेरित किया था क्योंकि वह अनाचार व अत्याचारों के पर्याय बन चुके थे तो आज तुम कहां हो ?
'पतित पावनी' कहलाने वाली यमुना आज क्यों खुद 'पावन' होने को तरस रही है?
घर-घर में द्रोपदियों का चीरहरण हो रहा है लेकिन अब क्यों तुम किसी की लाज बचाने नहीं आते ?
जिस कृष्ण जन्मभूमि को तुम्हारी जन्मस्थली मानकर वहां हर साल कृष्ण जन्माष्टमी पर भव्य-दिव्य उत्सव मनाया जाता है और लाखों लोग उसमें शामिल होते हैं, उस जन्मस्थान से बमुश्किल 500 मीटर की दूरी पर तुम्हारी प्रिय गायों का बेहिसाब कत्ल किया जा रहा है लेकिन गोपाल कृष्ण कहीं दिखाई नहीं देता । क्यों ?
क्यों वह तमाशबीन बना हुआ है ?
सज्जनों के उत्पीड़न, दुष्टजनों के अनाचार तथा धर्म की हानि सम्बन्धी पराकाष्ठा का कोई और पैमाना है अथवा इसके लिए भी तुमने अपना कोई अलग मापदण्ड निर्धारित कर रखा है ?
हे श्रीकृष्ण ! इन सब प्रश्नों के अतिरिक्त कुछ और संशय भी मेरे मन में हैं जिन्हें दूर किया जाना जरूरी है अन्यथा कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारे द्वारा कही गई बातों पर से लोगों का भरोसा उठ जाए । वह मान बैठें कि श्रीकृष्ण और श्रीमद् भगवत गीता एक कपोल कल्पना के अलावा कुछ नहीं हैं ।
मेरा पहला संशय तो तुम्हारे जन्म को लेकर निर्धारित समयाविधि के सम्बन्ध में है ।
संशय इसलिए है कि अगर कुल साढ़े पांच हजार सालों के अंतराल पर ही समाज में इस कदर अनाचार व अत्याचार बढ़ जायेगा तो तुम आखिर कितनी बार जन्म लोगे ?
कहते हैं कलियुग की उम्र ही लाखों वर्ष है । तो क्या कलियुग में तुम्हें कई बार जन्म लेना होगा ? जबकि अब तक तो कलियुग में तुमने कहीं जन्म नहीं लिया।
यदि ऐसा नहीं है तो क्या तुम्हारे यदा-यदा हि धर्मस्य... की परिभाषा कुछ और है जिसकी अब तक लोग अपने हिसाब से व्याख्या करते रहे हैं ?
अगर ऐसा है तो इसकी सही परिभाषा क्या है और कब तुम्हें एक बार फिर मनुष्य रूप में जन्मने या अवतरित होने की आवश्यकता महसूस होगी ?
कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम भी कलियुग के प्रभाववश अपने नियमों की अवहेलना कर रहे हो और साल-दर-साल अपने जन्मदिन का उत्सव मनाये जाने मात्र से खुश होकर यह समझ बैठे हो कि तुम्हारी जरूरत अभी लोगों को नहीं है ?
अगर यह सच है तो हे श्रीकृष्ण.. तुम्हें खुद इस भ्रम से बाहर निकलने की जरूरत है । तुम्हें खुद यह समझने की आवश्यकता है कि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर जो दिखता है, वह सच नहीं है । न ये उत्सव सच है और ना ये भक्त सच्चे हैं । सब-कुछ दिखावा है । तेरा हर साल जन्म भी और जन्मोत्सव भी ।
सच्चाई देखनी है तो अपने विराट रूप से देख । देख कि तेरे भक्तों में बड़ी संख्या उन लोगों की है जो कंस के युग से भी कहीं अधिक प्रताड़ित हैं ।
समाज का एक खास वर्ग अनाचार व अत्याचार के माध्यम से बेशुमार धनबल और बाहुबल अर्जित कर रहा है जबकि अधिकांश लोग उनसे शोषित हैं ।
सुविधा सम्पन्न ये लोग तुझे अपने पापकर्मों में बराबर का हिस्सेदार बना रहे हैं और समाज को बता रहे हैं कि तू भी उनकी चाकरी का मोहताज है ।
तेरे मंदिरों और समाज पर ऐसे तत्वों का वर्चस्व उनकी ताकत की पुष्टि करता है क्योंकि जो दिखता है वही सच माना जाता है ।
हे कृष्ण ! कहीं ऐसा तो नहीं कि तू खुद दिग्भ्रमित हो गया हो और जिस प्रकार महाभारत के वक्त अर्जुन का भ्रम तुझे दूर करना पड़ा था, उसी प्रकार तेरा भ्रम दूर करने के लिए तुझे ही अब अर्जुन जैसे किसी सखा की आवश्यकता हो ।
अगर इसमें लेशमात्र भी सच्चाई है तो मैं पूरे मन, वचन और कर्म से ये जिम्मेदारी निभाने के लिए तैयार हूं ।
मैं वो सब-कुछ करने को तत्पर हूं जो तूने अर्जुन के लिए किया था ।
''ये कलियुग नहीं ये करयुग है, इस हाथ दे, इस हाथ ले'' । मैं अर्जुन पर किये गये तेरे उपकारों को चुकाना चाहता हूं बशर्ते तू समय की नजाकत को समझ सके ।
तू समझ सके कि आज का दौर तेरे जन्म उत्सव मनाने का नहीं रहा । आज तेरे जन्म उत्सवों की नहीं, तेरे पुनर्जन्म की जरूरत है ।
तेरे अपने मापदण्ड चाहे जो भी रहे हों लेकिन आज के हालात बहुत बदतर हैं । जनसामान्य को कहीं से आशा की कोई किरण दिखाई नहीं पड़ रही । यमुना के भक्त वर्तमान निर्लज्ज शासकों के सामने बेहद कमजोर साबित हो रहे हैं । गौवंश को बचाने वाला कोई नहीं । द्रोपदियों के रक्षक ही उनके भक्षक बन चुके हैं।
हे कृष्ण ! समय आ चुका है जब तुझे अपनी और अपने वचनों की प्रमाणिकता सिद्ध करनी होगी । अगर तेरे हिसाब से तेरे पुनर्जन्म का समय नहीं भी आया है तो तुझे पुनर्जन्म लेना होगा । तुझे साबित करना होगा कि अपने भक्तों की एक आवाज पर तू आज भी दौड़ा चला आता है।
तुझे गीता में कहे गये अपने वचन सार्थक करने होंगे ताकि कमजोरों का, दीन दुखियों का एवं निर्बलों का तुझ पर भरोसा बना रहे और वो जान सकें कि श्रीकृष्ण केवल अपने जन्मोत्सव का तमाशा नहीं देखता, वह अपने भक्तों की करुणामय पुकार भी सुनता है।
यह तेरे भक्तों की नहीं, तेरी परीक्षा की घड़ी है ।
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