शनिवार, 22 दिसंबर 2012

लफंगे परिंदों से मथुरा के समाजवादी भी परेशान

हालात का अंदाज मथुरा में आयेदिन घटने वाली उन घटनाओं से लगाया जा सकता है जब किसी बड़े नेता या मंत्री के यहां आगमन पर 'लफंगों का तो वर्चस्‍व' कायम रहता है और 'निष्‍ठावान समाजवादी' उनके दीदार तक करने को तरस जाते हैं।
(लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष)
अगस्‍त 2010 में एक हिंदी फिल्‍म रिलीज हुई थी, इस फिल्‍म का नाम था- 'लफंगे परिंदे'। यह फिल्‍म यशराज बैनर की थी और इसका समाजवादी पार्टी से दूर-दूर तक कोई ताल्‍लुक नहीं था। लेकिन ठीक सवा दो साल बाद इस फिल्‍म के 'टाइटिल' ने 'समाजवादी पार्टी' में एक किस्‍म का 'हंगामा' खड़ा कर दिया है।
हंगामे की शुरूआत उस दिन हुई, जिस दिन पार्टी के राष्‍ट्रीय महासचिव रामजीलाल सुमन ने एटा के अलीगंज में एक सार्वजनिक सभा के दौरान मंच से कहा कि समाजवादी पार्टी में 'लफंगों' की भरमार हो गई है। कल तक दूसरी सत्‍ताधारी पार्टी के झण्‍डे लगाकर अपना मकसद पूरा करने वाले ये 'लफंगे' अब 'समाजवादी पार्टी' को अपने 'कारनामों' से बदनाम कर रहे हैं। लफंगों की भर्ती पार्टी के ही लोगों की सिफारिश पर हो रही है और ये पार्टी के निष्‍ठावान कार्यकर्ताओं पर भारी पड़ रहे हैं क्‍योंकि इनका मकसद अपने स्‍वार्थ पूरे करना है। एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत पार्टी में शामिल हो रहे 'लफंगे' पुलिस व प्रशासनिक अफसरों पर रौब गांठकर अपना उल्‍लू तो सीधा कर ही रहे हैं, साथ ही अपने 'अतीत की कालिख' से भी सपा को 'कलंकित' करने में लगे हैं।
इस सभा में समाजवादी पार्टी के तमाम दूसरे कद्दावर नेताओं के अतिरिक्‍त खुद मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव भी मौजूद थे।
पार्टी के ही राष्‍ट्रीय महासचिव व वरिष्‍ठ नेता रामजीलाल सुमन द्वारा मंच से कही गई यह बात मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव को कुछ नागवार गुजरी और उन्‍होंने इसका जवाब भी अपने अंदाज में यह कहकर दिया कि यदि ऐसा है तो 'लफंगों' को पार्टी से बेदखल करने की शुरूआत 'श्री सुमन' के गृह जनपद आगरा से करेंगे तथा देखेंगे कि कितने 'लफंगे' सामने आते हैं। मुख्‍यमंत्री चाहे जो कहें, पर सुमन का कहा अक्षरश: सत्‍य है।
हो सकता है कि अखिलेश यादव को एक बड़े नेता द्वारा सार्वजनिक तौर पर कही गई इस बात का अंदाज पसंद न आया हो और इसलिए उन्‍होंने प्रतिउत्‍तर देना जरूरी समझा लेकिन इससे सच्‍चाई नहीं छुप जाती।
मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव ने सुमन के गृह जनपद आगरा से लफंगों के सफाये की शुरूआत करने का बयान चाहे जिस उद्देश्‍य से दिया हो और चाहे वह ऐसा कहकर अपनी झेंप मिटाना चाहते हों परंतु 'लफंगे परिंदे' आगरा से लेकर अलीगढ़ तक तथा मथुरा से लेकर मुजफ्फरनगर तक सब जगह सपा के झंडे को अपनी 'पूछ' पर वर्षों से लगी 'बीट' (गंदगी) लगाकर गंदा कर रहे हैं।
फिलहाल अगर बात करें यदुवंशी श्रीकृष्‍ण की जन्‍मस्‍थली तथा विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक जनपद मथुरा की, तो यहां भी 'लफंगे परिंदों' का बोलबाला है। प्रदेश की पिछली सरकार में नीले झण्‍डे पर सवार होकर सत्‍ता की हनक दिखाने वाले इन 'लफंगों' ने सपा की सरकार बनते ही उसका दामन थाम लिया।
ऐसा नहीं है कि इन्‍होंने अपने कारनामों से बसपा सरकार को बदनाम करने में कोई कसर छोड़ी हो। तब भी इन्‍होंने आज ही की तरह पहले तो पार्टी के प्रति निष्‍ठा का प्रदर्शन किया और फिर उसका भरपूर दुरुपयोग भी किया। इनके कारनामों की गूंज जब लखनऊ तक पहुंची तब खुद बहिनजी ने इन्‍हें सबक सिखाने का इंतजाम किया।
चूंकि इनकी फितरत और कारगुजारियां व गोरखधंधे इन्‍हें सत्‍ताधारी दल से अलग रहने की इजाजत नहीं देते इसलिए यह तब पार्टी हाईकमान की दुत्‍कार खाकर भी बसपा के झण्‍डे पर बैठे रहे लेकिन जैसे ही जनता ने बसपा को सत्‍ता से बेदखल किया, यह भी उसी तरह बसपा का साथ छोड़ गये जिस तरह जहाज डूबने का अंदेशा होने पर सबसे पहले चूहे उसे छोड़ जाते हैं।
रामजीलाल सुमन की तरह मथुरा में सपा के निष्‍ठावान कार्यकर्ताओं एवं नेताओं को इन 'लफंगे परिंदों' की हरकतें काफी परेशान कर रही हैं लेकिन पार्टी का ही एक धड़ा उन्‍हें सहयोग कर रहा है इसलिए वह खून का घूंट पीकर चुप्‍पी साधने पर मजबूर हैं।
सुमन जैसे कद्दावर समाजवादी की भी कुछ तो मजबूरी रही होगी जिस कारण वह मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव की मौजूदगी में इतनी बड़ी बात मंच से कहने पर बाध्‍य हुए।
हालात का अंदाज मथुरा में आये दिन घटने वाली उन घटनाओं से लगाया जा सकता है जब किसी बड़े नेता या मंत्री के यहां आगमन पर 'लफंगों का तो वर्चस्‍व' कायम रहता है और 'निष्‍ठावान समाजवादी' उनके दीदार तक करने को तरस जाते हैं।
दरअसल सुविधा संपन्‍न ये लफंगे पार्टी के लोगों पर इस तरह अपना प्रभुत्‍व जमा लेते हैं कि वह मथुरा आने वाले पार्टी के लगभग हर बड़े नेता व मंत्री को वही दिखाते हैं जो लफंगे दिखवाना चाहते हैं।
इन लोगों का सहयोग पाकर लफंगे परिंदे बड़े से बड़े नेताओं एवं उनके कार्यक्रमों को हाइजैक करने में अब तक सफल रहे हैं और इस तरह आला पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों सहित आमजन के बीच भी यह संदेश दे रहे हैं कि सरकार चाहे जिसकी हो, कान्‍हा की नगरी में तूती उन्‍हीं की बोलती है। वह किसी झण्‍डे के नीचे नहीं, हर झण्‍डा उनके नीचे रहता है। फिर चाहे वह नीला हो या लाल और हरा।
समाजवादी पार्टी अब तक कृष्‍ण की नगरी में अपना खाता तो नहीं खोल पाई अलबत्‍ता गत विधानसभा चुनावों ने उसे उम्‍मीद की किरण जरूर दिखाई है। शायद इसीलिए उसने लोकसभा चुनावों के लिए मथुरा से भी अपना प्रत्‍याशी घोषित कर दिया है, पर सवाल यह पैदा होता है कि क्‍या लफंगे परिदों के पार्टी पर काबिज रहते वह यहां अपना खाता खोल पायेगी ?
जिन लोगों ने नीले झण्‍डे को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और उसकी हनक से अपनी दुकान खूब चलाई, वह लोग क्‍या लोकसभा चुनाव होने तक सपा में भी इतने सबल नहीं हो जायेंगे कि उसकी लुटिया डुबोने में अहम् भूमिका निभा सकें।
मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव को बेशक अपने राष्‍ट्रीय महासचिव रामजीलाल सुमन की बात कहने का मंच व तरीका पसंद न आया हो लेकिन उसकी सच्‍चाई से आंखें फेरना उन्‍हें मथुरा तथा आगरा सहित बहुत सी जगहों पर भारी पड़ सकता है। इतना भारी, जितने की कल्‍पना तक करना अखिलेश के लिए नौ महीने के शासनकाल में असंभव न सही, मुश्‍किल जरूर होगा। 


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