(कुंभ मेला विशेष)
क्या दिल्ली में कोई ऐसी जगह है जहाँ आपको यमुना का निर्मल पानी दिखाई दे?
क्योंकि जहाँ भी आप जाएंगे, हर जगह यमुना का पानी काला ही नज़र आएगा.
दिल्ली का वज़ीराबाद बैराज एक ऐसी जगह है जहाँ पर आपको इस सवाल का जवाब शायद मिल जाएगा.
यही वो जगह है जहाँ से नदी दिल्ली में प्रवेश करती है और इसी जगह पर बना बैराज यमुना को आगे बढ़ने से रोक देता है.
वज़ीराबाद के एक तरफ यमुना का पानी एकदम साफ़ और दूसरी ओर एक दम काला है.
इसी जगह से नदी का सारा पानी उठा लिया जाता है और जल शोधन संयत्र के लिए भेज दिया जाता है ताकि दिल्ली की जनता को पीने का पानी मिल सके. बस यहीं से इस नदी की बदहाली भी शुरू हो जाती है.
नदी की बदहाली
उत्तर प्रदेश के टिहरी-गढ़वाल जिले में यमुनोत्री से निकलने वाली यमुना उत्तर प्रदेश के प्रयाग में जाकर गंगा नदी में मिल जाती है.
इस बात को मानने से कोई भी इंकार नहीं कर सकता कि यमुना भारत की सर्वाधिक प्रदूषित नदियों में से एक है.
जल-पुरुष के नाम से प्रसिद्ध रैमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित राजेंद्र सिंह कहते हैं, “ये यमुना नदी नहीं, यमुना नाले की कहानी है. जब दिल्ली में 22 किलोमीटर के सफर में ही 18 नाले मिल जाते हैं तो बाकी जगह का हाल क्या होगा. इसमें सबसे बड़ा योगदान औद्योगिक प्रदूषण का है जो साफ़ हो ही नहीं रहा.”
यमुना नदी नहीं, यमुना नाला
यमुना में प्रदूषण का स्तर खतरनाक है, और दिल्ली से आगे जा कर ये नदी मर जाती है.
विशेषज्ञों का मानना है कि इसकी वजह है औद्योगिक प्रदूषण, बिना उपचार के कारखानों से निकले दूषित पानी को सीधे नदी में गिरा दिया जाना तथा यमुना किनारे बसी आबादी का मल-मूत्र और गंदकी को सीधे नदी में बहा देना.
साथ ही धार्मिक वजहों के चलते तमाम मूर्तियों व अन्य सामग्री का नदी में विसर्जन.
लेकिन इनमें सबसे खतरनाक है रासायनिक कचरा.
सिटिजन फोरम फॉर वाटर डेमोक्रेसी के समन्वयक एसए नकवी प्रदूषित होती यमुना की कहानी बताते हैं.
नकवी कहते हैं, “यमुना एक हजार 29 किलोमीटर का जो सफर तय करती है, उसमें दिल्ली से लेकर चंबल तक का जो सात सौ किलोमीटर का जो सफर है, उसमें सबसे ज्यादा प्रदूषण तो दिल्ली, आगरा और मथुरा का है. दिल्ली के वज़ीराबाद बैराज से निकलने के बाद यमुना बद से बदतर होती जाती है. इन जगहों के पानी में ऑक्सीजन तो है ही नही. चंबल पहुंच कर इस नदी को जीवन दान मिलता है और वो फिर से अपने रूप में वापस आती है.”
लेकिन ऐसा नहीं है कि नदी कि हालत सुधारने के लिए प्रयास नहीं किए गए. सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर भी कार्यक्रम चलाए गए पर हालात जस के तस रहे.
यमुना ऐक्शन प्लान
हेजार्ड सेंटर के डुनू राय का मानना है कि यमुना ऐक्शन प्लान के दो चरणों में इतना पैसा बहाने के बाद भी अगर नदी का हाल वही का वही है तो इसका सीधा मतलब ये है कि जो किया गया है, वो सही नहीं है.
डुनू राय आगे कहते हैं कि नदी साफ़ रहने के लिए ज़रूरी है कि पानी बहने दिया जाए. हर जगह बांध बना कर उसे रोकने से काम नही चलेगा. दिल्ली के आगे जो बह रहा है वो यमुना है ही नहीं, वो तो मल-जल है. पहले मल-जल को नदी में छोड़ दो और उसके बाद उसका उपचार करते रहो तो नदी कभी साफ़ नही हो सकती.
पिछले साल 2012 के दिसंबर महीने में यमुना की सफाई को लेकर सरकारी एजेंसी के बीच तालमेल की कमी को सुप्रीम कोर्ट ने गंभीरता से लिया और पूछा कि करोड़ों रुपए खर्च होने के बाद भी अभी तक कोई परिणाम क्यों नही निकला.
पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र कहते हैं कि हिंदुस्तान का जिस तरह का मौसम चक्र है उसमें हर नदी चाहे वो कितनी भी प्रदूषित क्यों न हो, साल में एक बार बाढ़ के वक्त खुद को फिर से साफ़ करके देती है पर इसके बाद हम फिर से इसे गंदा कर देते है तो हमें नदी साफ़ करने की बजाय इसे गंदा करना बंद करना पड़ेगा.
यही यमुना संगम में मिलती है. ऐसे में सवाल ये है कि इलाहाबाद के कुंभ में लोग जिस पानी में स्नान कर रहे हैं वो कौन सा और कहाँ का है क्योंकि दिल्ली के वज़ीराबाद के आगे तो यमुना है ही नहीं, वो तो सिर्फ.....
-मोहन लाल शर्मा
क्या दिल्ली में कोई ऐसी जगह है जहाँ आपको यमुना का निर्मल पानी दिखाई दे?
क्योंकि जहाँ भी आप जाएंगे, हर जगह यमुना का पानी काला ही नज़र आएगा.
दिल्ली का वज़ीराबाद बैराज एक ऐसी जगह है जहाँ पर आपको इस सवाल का जवाब शायद मिल जाएगा.
यही वो जगह है जहाँ से नदी दिल्ली में प्रवेश करती है और इसी जगह पर बना बैराज यमुना को आगे बढ़ने से रोक देता है.
वज़ीराबाद के एक तरफ यमुना का पानी एकदम साफ़ और दूसरी ओर एक दम काला है.
इसी जगह से नदी का सारा पानी उठा लिया जाता है और जल शोधन संयत्र के लिए भेज दिया जाता है ताकि दिल्ली की जनता को पीने का पानी मिल सके. बस यहीं से इस नदी की बदहाली भी शुरू हो जाती है.
नदी की बदहाली
उत्तर प्रदेश के टिहरी-गढ़वाल जिले में यमुनोत्री से निकलने वाली यमुना उत्तर प्रदेश के प्रयाग में जाकर गंगा नदी में मिल जाती है.
इस बात को मानने से कोई भी इंकार नहीं कर सकता कि यमुना भारत की सर्वाधिक प्रदूषित नदियों में से एक है.
जल-पुरुष के नाम से प्रसिद्ध रैमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित राजेंद्र सिंह कहते हैं, “ये यमुना नदी नहीं, यमुना नाले की कहानी है. जब दिल्ली में 22 किलोमीटर के सफर में ही 18 नाले मिल जाते हैं तो बाकी जगह का हाल क्या होगा. इसमें सबसे बड़ा योगदान औद्योगिक प्रदूषण का है जो साफ़ हो ही नहीं रहा.”
यमुना नदी नहीं, यमुना नाला
यमुना में प्रदूषण का स्तर खतरनाक है, और दिल्ली से आगे जा कर ये नदी मर जाती है.
विशेषज्ञों का मानना है कि इसकी वजह है औद्योगिक प्रदूषण, बिना उपचार के कारखानों से निकले दूषित पानी को सीधे नदी में गिरा दिया जाना तथा यमुना किनारे बसी आबादी का मल-मूत्र और गंदकी को सीधे नदी में बहा देना.
साथ ही धार्मिक वजहों के चलते तमाम मूर्तियों व अन्य सामग्री का नदी में विसर्जन.
लेकिन इनमें सबसे खतरनाक है रासायनिक कचरा.
सिटिजन फोरम फॉर वाटर डेमोक्रेसी के समन्वयक एसए नकवी प्रदूषित होती यमुना की कहानी बताते हैं.
नकवी कहते हैं, “यमुना एक हजार 29 किलोमीटर का जो सफर तय करती है, उसमें दिल्ली से लेकर चंबल तक का जो सात सौ किलोमीटर का जो सफर है, उसमें सबसे ज्यादा प्रदूषण तो दिल्ली, आगरा और मथुरा का है. दिल्ली के वज़ीराबाद बैराज से निकलने के बाद यमुना बद से बदतर होती जाती है. इन जगहों के पानी में ऑक्सीजन तो है ही नही. चंबल पहुंच कर इस नदी को जीवन दान मिलता है और वो फिर से अपने रूप में वापस आती है.”
लेकिन ऐसा नहीं है कि नदी कि हालत सुधारने के लिए प्रयास नहीं किए गए. सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर भी कार्यक्रम चलाए गए पर हालात जस के तस रहे.
यमुना ऐक्शन प्लान
हेजार्ड सेंटर के डुनू राय का मानना है कि यमुना ऐक्शन प्लान के दो चरणों में इतना पैसा बहाने के बाद भी अगर नदी का हाल वही का वही है तो इसका सीधा मतलब ये है कि जो किया गया है, वो सही नहीं है.
डुनू राय आगे कहते हैं कि नदी साफ़ रहने के लिए ज़रूरी है कि पानी बहने दिया जाए. हर जगह बांध बना कर उसे रोकने से काम नही चलेगा. दिल्ली के आगे जो बह रहा है वो यमुना है ही नहीं, वो तो मल-जल है. पहले मल-जल को नदी में छोड़ दो और उसके बाद उसका उपचार करते रहो तो नदी कभी साफ़ नही हो सकती.
पिछले साल 2012 के दिसंबर महीने में यमुना की सफाई को लेकर सरकारी एजेंसी के बीच तालमेल की कमी को सुप्रीम कोर्ट ने गंभीरता से लिया और पूछा कि करोड़ों रुपए खर्च होने के बाद भी अभी तक कोई परिणाम क्यों नही निकला.
पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र कहते हैं कि हिंदुस्तान का जिस तरह का मौसम चक्र है उसमें हर नदी चाहे वो कितनी भी प्रदूषित क्यों न हो, साल में एक बार बाढ़ के वक्त खुद को फिर से साफ़ करके देती है पर इसके बाद हम फिर से इसे गंदा कर देते है तो हमें नदी साफ़ करने की बजाय इसे गंदा करना बंद करना पड़ेगा.
यही यमुना संगम में मिलती है. ऐसे में सवाल ये है कि इलाहाबाद के कुंभ में लोग जिस पानी में स्नान कर रहे हैं वो कौन सा और कहाँ का है क्योंकि दिल्ली के वज़ीराबाद के आगे तो यमुना है ही नहीं, वो तो सिर्फ.....
-मोहन लाल शर्मा
yamuna ke liye batayee gayee haqiqat behad sharminda karne wali hai.
जवाब देंहटाएंyamuna ke liye batayee gayee haqiqat behad sharminda karne wali hai.
जवाब देंहटाएं