यमुनोत्री से अमृत धारा की तरह बहने वाली यमुना
ब्रज में पहुंचते-पहुंचते विषधारा बन जाती है। इसमें देश की राजधानी दिल्ली
की बड़ी भूमिका है। अकेले दिल्ली ही 17 विशाल नालों के माध्यम से यमुना
में प्रतिदिन 35 करोड़ लीटर गंदा पानी उड़ेल रही है।
कालिंदी की दुर्गति में इसे मां की तरह पूजने वाले ब्रजवासियों की भी भागीदारी है।
मथुरा और वृंदावन से दो दर्जन छोटे-बड़े नाले इसमें गिराए जा रहे हैं। हथिनी कुंड से कान्हा की नगरी तक 350 किलोमीटर का सफर तय करने वाली पतित पावनी यमुना करीब एक सैंकड़ा विशालकाय नालों का दंश झेल रही है।
आंकड़े बताते हैं कि यमुना किनारे बसी देश की राजधानी दिल्ली से निकलने वाले 182 नालों का पानी 17 नालों में समाहित होकर यमुना में गिर रहा है।
इसके बाद शाहदरा, हिंडन, फरीदाबाद, बल्लभगढ़, पलवल, होडल और कोसी के नाले भी इसी तरह सीधे यमुना में समाहित हो रहे हैं।
बाकी कसर यमुना को गंदा करने में खुद भगवान श्रीकृष्ण की जन्म और क्रीड़ा स्थली के निवासियों ने पूरी कर दी है। आधा दर्जन नाले वृंदावन और 19 नाले मथुरा के हैं। वृंदावन के चीरघाट, केसीघाट और तटीय स्थान पर चार बड़े नाले सीधे यमुना में गिर रहे हैं।
मथुरा शहरी क्षेत्र में यमुना का प्रत्येक घाट इस गंदगी का गवाह है। सबसे भयावह स्थिति मसानी नाले की है। शहर का करीब 48 फीसदी गंदा पानी एकत्रित करने वाला यह नाला इन दिनों सीधे यमुना में गिर रहा है। औद्योगिक क्षेत्र से गुजरने के कारण इसमें जहरीले रसायनों की भी भरमार है। इस नाले पर एसपीएस (सीवेज पंपिंग स्टेशन) भी लगा है लेकिन ये अक्सर बंद ही रहता है।
खास बात है कि यमुना कार्य योजना के तहत संचालित हो रहे एसटीपी और एसपीएस के संचालन के लिए मथुरा और वृंदावन नगर पालिकाएं करीब सवा करोड़ रुपया वार्षिक खर्च कर रही हैं। इसका मकसद यमुना में नालों के पानी को जाने से रोकना है लेकिन ये संपूर्ण प्रयास योजना की धनराशि के बंदरबांट तक सिमट कर रह गया है, जिस कारण हालात सुधरने के बजाय और ज्यादा गंभीर हो गए हैं। और इस प्रकार जीवनदायनी कही जाने वाली यमुना गंदे नाले में तब्दील होती जा रही है। (एजेंसी)
कालिंदी की दुर्गति में इसे मां की तरह पूजने वाले ब्रजवासियों की भी भागीदारी है।
मथुरा और वृंदावन से दो दर्जन छोटे-बड़े नाले इसमें गिराए जा रहे हैं। हथिनी कुंड से कान्हा की नगरी तक 350 किलोमीटर का सफर तय करने वाली पतित पावनी यमुना करीब एक सैंकड़ा विशालकाय नालों का दंश झेल रही है।
आंकड़े बताते हैं कि यमुना किनारे बसी देश की राजधानी दिल्ली से निकलने वाले 182 नालों का पानी 17 नालों में समाहित होकर यमुना में गिर रहा है।
इसके बाद शाहदरा, हिंडन, फरीदाबाद, बल्लभगढ़, पलवल, होडल और कोसी के नाले भी इसी तरह सीधे यमुना में समाहित हो रहे हैं।
बाकी कसर यमुना को गंदा करने में खुद भगवान श्रीकृष्ण की जन्म और क्रीड़ा स्थली के निवासियों ने पूरी कर दी है। आधा दर्जन नाले वृंदावन और 19 नाले मथुरा के हैं। वृंदावन के चीरघाट, केसीघाट और तटीय स्थान पर चार बड़े नाले सीधे यमुना में गिर रहे हैं।
मथुरा शहरी क्षेत्र में यमुना का प्रत्येक घाट इस गंदगी का गवाह है। सबसे भयावह स्थिति मसानी नाले की है। शहर का करीब 48 फीसदी गंदा पानी एकत्रित करने वाला यह नाला इन दिनों सीधे यमुना में गिर रहा है। औद्योगिक क्षेत्र से गुजरने के कारण इसमें जहरीले रसायनों की भी भरमार है। इस नाले पर एसपीएस (सीवेज पंपिंग स्टेशन) भी लगा है लेकिन ये अक्सर बंद ही रहता है।
खास बात है कि यमुना कार्य योजना के तहत संचालित हो रहे एसटीपी और एसपीएस के संचालन के लिए मथुरा और वृंदावन नगर पालिकाएं करीब सवा करोड़ रुपया वार्षिक खर्च कर रही हैं। इसका मकसद यमुना में नालों के पानी को जाने से रोकना है लेकिन ये संपूर्ण प्रयास योजना की धनराशि के बंदरबांट तक सिमट कर रह गया है, जिस कारण हालात सुधरने के बजाय और ज्यादा गंभीर हो गए हैं। और इस प्रकार जीवनदायनी कही जाने वाली यमुना गंदे नाले में तब्दील होती जा रही है। (एजेंसी)
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