सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

मुखबिरों के झूठ से इंटेलीजेंस एजेंसियां परेशान

मुखबिरों से मिल रही गलत सूचनाओं की वजह से भारत की खुफिया एजेंसियों के सामने समस्या खड़ी हो गई है। पिछले कुछ वक्त से भारत-पाकिस्तान बॉर्डर से खुफिया एजेंसियों को जिस तरह की गलत सूचनाएं मिल रही हैं, उससे यह शंका पैदा हो गई है कि कहीं मुखबिर सिर्फ पैसा लेने के लिए तो मनगढ़ंत बातें बता रहे हैं?
सूत्रों के मुताबिक 8 जनवरी को लांस नायक हेमराज का सिर काटे जाने की घटना पर इंटेलिजेंस ब्यूरो और मिलिटरी इंटेलिजेंस ने एक जैसी रिपोर्ट बनाई थी। एजेसियों की खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक लश्कर-ए-तैयबा प्रमुख हाफिज सईद ने घटना के कुछ दिन पहले पीओके में आकर भारतीय जवानों के खिलाफ जहर उगला था। मगर बाद में पता चला कि यह खबर पुख्ता नहीं थी। दोनों इंटेलिजेंस एजेंसियों को यह जानकारी मुखबिरों से मिली थी। काफी सालों से इंटेलिजेंस सर्विसेज से जुड़े एक सीनियर ऑफिशल का मानना है कि दोनों एजेसियों को एक ही सोर्स से जानकारी मिली थी।
खुफिया एजेंसियों को इसी तरह की गलत सूचनाएं पुंछ के मेंढर से भी मिलती रही हैं। मुखबिरों ने बताया था कि पिछले कई साल से सूबेदार जब्बार खान पीओके में आईएसआई की तत्तापानी यूनिट का प्रमुख है। यह भी बताया गया था कि हेमराज का सिर कलम करने वाले पाक सैनिक को इनाम देने वाला पाकिस्तानी कर्नल सिद्दीकी 5 साल से इस इलाके में तैनात है। लेकिन ये दोनों बातें इसलिए सही नहीं लगतीं, क्योंकि आमतौर पर बॉर्डर पर इतने लंबे समय तक तैनाती नहीं की जाती।
पैसों के लिए गुमराह कर रहे हैं मुखबिर
बॉर्डर और खासकर LoC से मिलने वाली इंटेलिजेंस में इस तरह के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। इंटेलिजेंस के एक और अधिकारी ने कहा, 'मुखबिर जो इन्फर्मेशन दे रहे हैं, वह ज्यादातर मौकों पर गलत होती है। मेरे विचार से वे पैसों के लालच में आकर एजेंसियों को गुमराह कर रहे हैं।' बॉर्डर वाले इलाकों से पाकिस्तान के बारे में जो जानकारी जुटाई जाती हैं, उनमें से ज्यादातर स्मगलर्स से हासिल की जाती है। ये स्मगलर अक्सर बॉर्डर क्रॉस करते रहते हैं। इनके अलावा बॉर्डर से सटे गांवों के लोगों से भी जानकारियां ली जाती हैं। मगर ये सब लोग पैसे लेने के लालच में सुरक्षा एजेसियों को गलत और काल्पनिक खबरें दे देते हैं। इनमें से ज्यादातर तथ्यों से परे होती हैं और उनमें वही सब रहता है, जो भारतीय एजेंसियां सुनना चाहती हैं।
इंटेलिजेंस के और सोर्स ने कहा कि ऐसा कई सालों से हो रहा है। उन्होंने बताया, 'मई 2012 में रॉ को खबर मिली थी कि मुंबई पर हमला करने के इरादे से 5 पाकिस्तानी भारत में घुस चुके हैं। उन आतंकियों की तस्वीरें भी जारी की गई थीं, लेकिन बाद में पता चला कि तस्वीरें लाहौर के व्यापारियों की थीं। खास बात यह है कि इस जानकारी को देने वाला शख्स खुद को लश्कर-ए-तैयबा प्रमुख का करीबी रिश्तेदार बता रहा था।
इस तरह की घटनाएं बार-बार न हों, इसके लिए इंटेलिजेंस एजेसियों को अपने सिस्टम में सुधार लाना होगा। ऐसी व्यवस्था करनी होगी कि फील्ड में तैनात ऑपरेटिव अपने मुखबिरों को जो पैसा देता है, उसे टॉप ऑफिसर्स वेरिफाई करें। बहुत सारे देशों में यही सिस्टम फॉलो किया जाता है। मगर भारत में ऐसा कोई सिस्टम नहीं है, जिससे यह पता लगाया जा सके कि मुखबिर को पैसा दिया गया है या नहीं। क्योंकि कई बार सूचना के बदले पैसे न मिलने पर अगली बार मुखबिर या तो फैक्ट्स को छिपाते हैं या फिर गलत जानकारी देते हैं।
-जॉय जोसफ

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