गुरुवार, 7 मार्च 2013

TRP के खेल की शिकार यमुना पदयात्रा

लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष-
नदियां सिर्फ जल का प्रवाह मात्र नहीं होतीं। वह सभ्‍यता, संस्‍कृति, धर्म और आध्‍यात्‍म की वाहक भी होती हैं।
इसके अलावा उनके कारण न केवल प्राणी मात्र को जीवन मिलता है बल्‍कि प्रकृति के जड़ और चेतन तत्‍व का अस्‍तित्‍व भी उन्‍हीं पर टिका है।

इतना सब-कुछ होने के बावजूद हम नदियों को पूरी तरह नष्‍ट व भ्रष्‍ट करने पर आमादा हैं। देश की पहचान और प्रमुख जीवनदायिनी नदियों में शुमार गंगा व यमुना आज बदहाल हैं।
कहने को वर्षों पहले गंगा एक्‍शन प्‍लान और यमुना एक्‍शन प्‍लान इस मकसद से बनाये गये थे ताकि इन नदियों को प्रदूषण मुक्‍त करके इनकी निर्मलता बरकरार रखी जा सके परंतु सब-कुछ बेनतीजा रहा।
अब तो ऐसा लगता है कि जो प्‍लान बनाये गये थे, वह गंगा-यमुना की प्रदूषण मुक्‍ति के प्‍लान न होकर भ्रष्‍टाचार के 'प्‍लान' थे क्‍योंकि इनकी आड़ में हजारों करोड़ रुपया डकारा जा चुका है।
यूं तो विभिन्‍न स्‍तर पर गंगा-यमुना के लिए काफी समय से लड़ाइयां लड़ी जा रही हैं लेकिन फिलहाल यमुना की मुक्‍ति के लिए मथुरा-वृंदावन से दिल्‍ली तक शुरू की गई पदयात्रा चर्चा में है।
इस पद यात्रा की चर्चा के वैसे तो कई कारण हैं परंतु सबसे महत्‍वपूर्ण कारण है इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया की उदासीनता।
ब्रेकिंग न्‍यूज़ के नाम पर दिन-रात उबाऊ घटनाओं के दोहराव का प्रतीक बन चुका इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया यमुना मुक्‍ति के लिए शुरू की गई पदयात्रा में कोई रुचि नहीं दिखा रहा जबकि भारी भीड़ के साथ इस यात्रा को निकले आज पांचवां दिन है। पदयात्रियों का लक्ष्‍य 10 मार्च को दिल्‍ली पहुंचना है।
पहले यहां यह जान लें कि इस यात्रा का नेतृत्‍व कर रहे संत जयकृष्‍णदास का कहना है कि हम यमुना में प्रदूषण की लड़ाई नहीं लड़ रहे। हम तो यमुना को हरियाणा के हथिनीकुंड से मुक्‍त कराने निकले हैं क्‍योंकि हथिनी कुंड से आगे तो यमुना है ही नहीं। यमुना के मार्ग को अवैध रूप से कब्‍जाकर उसे आम सड़क की तरह इस्‍तेमाल किया जा रहा है। वहां से आगे दिल्‍ली तथा दिल्‍ली के भी आगे मथुरा-आगरा तक यमुना के स्‍थान पर जो दिखाई दे रहा है, वह मात्र नाले-नालियों से उपजी तथा कल-कारखानों से निकल रही गंदगीभर है।
यमुना मुक्‍त कराने को निकले पदयात्री आश्‍चर्य व्‍यक्‍त करते हैं कि नेता-अभिनेताओं की मामूली से मामूली गतिविधियों को दिखाने वाला देश का इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया एक ऐसे आंदोलन से पूरी तरह मुंह मोड़े हुए है जिसका ताल्‍लुक प्राणी मात्र के साथ-साथ प्रकृति, सभ्‍यता, संस्‍कृति, धर्म और आध्‍यात्‍म सभी से है।
उल्‍लेखनीय है कि यमुना मुक्‍ति आंदोलन में सहभागिता करने आईं भाजपा की फायरब्राण्‍ड नेत्री उमा भारती ने भी आंदोलन को लेकर इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया द्वारा अपनाये जा रहे रवैये पर असंतोष जाहिर किया था।
बेशक हर आंदोलन की तरह इस आंदोलन की सफलता-असफलता से लेकर तमाम अन्‍य बातों पर सवाल खड़े किये जा रहे हैं और राजनीतिक रोटियां सेंकने वाले भी सक्रिय हैं, बावजूद इसके इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया पर उंगली उठने के अनेक कारण बनते हैं।
दरअसल इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया की दुनिया अब भी दिल्‍ली तक सिमटी हुई है और दिल्‍ली से बाहर होने वाली गतिविधियां उनके लिए अहमियत नहीं रखतीं। दिल्‍ली से बाहर के घटनाक्रम पर उसकी निगाएं तब ठहरती हैं, जब वह घटनाक्रम टीआरपी के खेल से जुड़ता दिखाई देता हो।
यमुना मुक्‍ति आंदोलन फिलहाल हरियाणा में है। आगे उसे दिल्‍ली पहुंचना है। दिल्‍ली पहुंचते ही इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया सक्रिय हो जाएगा, इसकी पूरी संभावना है।
लेकिन यहां सवाल यह पैदा होता है कि इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया का यह प्रोफेशनल गणित क्‍या दिल्‍ली को आंदोलनों के लिए सर्वाधिक मुफीद बनाने तथा लॉ एण्‍ड ऑर्डर की समस्‍या पैदा करने का जिम्‍मेदार नहीं है ?
क्‍या वह उन समस्‍याओं का जिम्‍मेदार नहीं हैं, जो जनमानस को उद्वेलित करती हैं और जिनकी वजह से आमजन का शासन, प्रशासन एवं न्‍याय व्‍यवस्‍था पर भरोसा कमजोर पड़ता जा रहा है ?
इलेक्‍ट्रानिक मीडिया इसलिए जिम्‍मेदार है क्‍योंकि यदि वह जनसरोकारों को प्राथमिकता के आधार पर प्रसारित करने लगे तो गूंगे-बहरे शासकों तक समस्‍याएं असानी से पहुंच सकती हैं। तब उन पर संज्ञान लेने की उम्‍मीद कहीं अधिक बढ़ जाती है।
यमुना की मुक्‍ति के लिए शुरू की गई पदयात्रा का छद्म मकसद चाहे जो भी हो और इससे जुड़ रहे लोगों के अपने-अपने कितने भी स्‍वार्थ हों लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि यमुना का अस्‍तित्‍व संकट में है। कृष्‍ण और कालिंदी के कारण ही जिस मथुरा की तीर्थ के रूप में पहचान है और आगरा के ताजमहल की खूबसूरती में यमुना का बड़ा महत्‍व है, उस यमुना के बिना न तो मथुरा-वृंदावन की कल्‍पना की जा सकती है और ना ब्रजभूमि व ताजमहल की।
इतना सब होने के बावजूद यमुना मुक्‍ति पदयात्रा से इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया का अब तक मुंह मोड़े रखना, भारतीय प्रेस परिषद् के अध्‍यक्ष मार्केण्‍डेय काटजू के उन आरोपों की पुष्‍टि करता है जिनको वह समय-समय पर रेखांकित करते रहते हैं।
मार्केण्‍डेय काटजू की सारी बातें अक्ष्ररश: सही हों, बेशक ऐसा नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना जरूर माना जा सकता है कि मीडिया की कार्यपद्धति को लेकर उनके द्वारा खड़े किये जाने वाले प्रश्‍न बेमानी भी नहीं हैं।
मीडिया फिलहाल अनेक मामलों में मुजरिम होते हुए अपना मुंसिफ खुद बन जाता है और खुद ही अपने पक्ष में फैसला सुनाकर अपनी पीठ थपथपा लेता है।
नि:संदेह यह स्‍थिति घातक है और आगे आने वाले समय में उन हालातों के लिए जिम्‍मेदार हो सकती है जो देश की जनता के धैर्य की परीक्षा ले रही हैं तथा जिनके कारण लोग उद्वेलित होने लगे हैं।

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