शुक्रवार, 3 मई 2013

नेतृत्‍वहीन देश और हमलावर पड़ोसी

देश में तमाम समस्याएं हैं या कहना चाहिए कि यह समस्याओं का देश है जिसका समाधान यहां के राजनीतिज्ञों के पास नहीं है तभी तो वे सभी अच्छी किस्म के शुतुरमुर्ग हैं।
भारत अपनी शक्ति का प्रदर्शन सिर्फ अपने टेलीविजन चैनलों में होने वाली बहसों के दौरान लंबी-लंबी बैलिस्टिक मिसाइलें दागकर करता है।
यहां के राजनीतिज्ञों के पास कोई प्लान नहीं है, क्योंकि वे सभी संसद में आपसी लड़ाई में ही मशगूल रहते हैं।
देश में और भी कई समस्याएं हैं या कहना चाहिए कि यह समस्याओं का देश है जिसका समाधान यहां के राजनीतिज्ञों के पास नहीं है तभी तो वे सभी अच्छी किस्म के शुतुरमुर्ग हैं।
चीनी घुसपैठ के मामले में भारत की प्रतिक्रिया जरूरत से ज्यादा संयत थी। तभी तो जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि पाकिस्तानी जब एक इंच घुस आते हैं तो आप शेर बन जाते हैं और अब आप संयम की बातें कर रहे हैं।
भारत के इसी रवैये ने सामरिक कदमों का मुकाबला करने के लिए चीनी सेना को एक अच्छा मौका उपलब्ध करा दिया है। वह यह देखना चाहता था कि भारत का घुसपैठ पर रिएक्शन क्या रहता है। यदि वह आक्रामक रहता है तो पीछे हटने की और गलती मानने की बात करेंगे और नहीं तो फिर तंबू-शंबू भी लगा ही देंगे। यही तो सरकने और सरकते जाने की नीति है।
भारत को हमेशा हालात बिगड़ने का डर रहता है जबकि चीन को हालात सुधारना आता है। ऐसी बहुत-सी बातें सोची जा सकती हैं क्योंकि भारत के अंतिम मुगल अटल बिहारी वाजपेयी अपने कमरे में बंद हैं। अब भारत में कोई राजनीतिक नेतृत्व नहीं रहा। इसीलिए तो अब श्रीलंका और नेपाल भी गुर्राने लगे हैं।
देश के प्रधानमंत्री यूं तो कभी किसी मामले पर बोलते नहीं हैं लेकिन अब चीन के मामले पर बोलते हैं कि इस मामले को ज्यादा तूल न दें। आप ही बता दीजिए कि फिर किस मामले को तूल दिया जाना चाहिए?
चीन की घुसपैठ बढ़ती क्षेत्रीय महत्वाकांक्षा की ओर इशारा करती है। साम्यवादी चीन की सोच साम्राज्यवादी है। हाल ही में दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में मलेशिया, ताइवान, वियतनाम और ब्रुनेई जैसे देश चीन के साथ सीमा विवाद में उलझे हैं। यह क्षेत्र तेल समृद्ध है। पिछले दिनों चीन का जापान और वियतनाम के बीच भी जलसीमा विवाद उभरा था।
चीन ने कुछ साल पहले ही सीमा विवाद पर सख्त रुख अख्तियार कर लिया था क्योंकि उसकी सीमा सिर्फ भारत से ही नहीं लगी है। ताइवान, पाकिस्तान, रूस, मंगोलिया, कजाकिस्तान, उत्तर कोरिया, दक्षिण को‍रिया, नेपाल, बर्मा, भूटान और जापान से भी उसकी सीमाएं जुड़ती हैं।
अपनी सीमाओं को बचाने के लिए दूसरों की सीमाओं में खतरा पैदा करो यही चीन की नीति है और इसीलिए चीन हर देश के खिलाफ लगातार साहसी सामरिक कदम उठाता नजर आता है। लेकिन इस नीति के तहत चीन ने अपने लगभग सभी पड़ोसियों से दुश्मनी मोल ले ली है। चीन ने भारत के कई इलाकों को अपना बताकर उस पर विवाद खड़ा ‍कर रखा है- जैसे लेह-लद्दाख, सि‍क्किम, अरुणाचल आदि।
चीन ने भारत ही नहीं, रूस की सीमा पर भी विवाद खड़ा कर रखा है। रूस के अल्ताय प्रदेश में रूसी-चीनी राजकीय सीमा का अंकन करते हुए दो देशों के बीच मतभेद सामने आए हैं।
रेडियो रूस ने अल्ताय प्रदेश की सरकार द्वारा दी गई जानकारी के हवाले से कहा है कि चीन सीमारेखा को रूस के इलाके में मूल सीमा से कुछ दूर अंकित करने पर जोर दे रहा है। अगर ऐसा किया जाता है तो रूस को अपनी 17 हैक्टेयर जमीन से हाथ धोना पड़ सकता है। दो देशों की सीमा यहां ढाई-तीन हजार मीटर ऊंचे पहाड़ी इलाके से होकर गुजरती हैं। अभी तक इस सीमा पर कोई सीमा चौकी नहीं बनी हुई है और एक देश से दूसरे देश में आने-जाने के लिए पारगमन चौकी भी नहीं बनाई गई है।
रूस और चीन के बीच सीमा तीन अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के आधार पर पहले से ही निश्चित है। इनमें पहला चुगुचागस्की समझौता 1963 में किया गया था। फिर 1981 में सेंट पीटर्सबर्ग समझौता हुआ और फिर 1999 में भी दो देशों के बीच सीमांकन का काम किया जा चुका है।
चीन और पाकिस्तान की सांठगांठ कोई नई बात नहीं है। चीन ने भारत की घेराबंदी के लिए जहां पाकिस्तान को अपना सामरिक दोस्त बनाया वहीं उसने नेपाल और बांग्लादेश के साथ हाल ही में युद्धाभ्यास किया है। दूसरी और उसने बर्मा और श्रीलंका जैसे बौद्ध राष्ट्रों के लिए अपने खजाने खोल दिए हैं।
ऐसे में भारत की लचर राजनीतिक व्यवस्था और कमजोर नेतृत्व के चलते आने वाले समय में एक रणनीति के तहत भारत की सीमाओं को हड़पा जाएगा और यदि भारत जल्द ही वक्त रहते कदम नहीं उठा पाएगा तो पाकिस्तान भी घुसपैठ के माध्यम से दबाव बनाना शुरू कर देगा। पाक अधिकृत कश्मीर में चीन की उपस्थिति इसी रणनीति का एक हिस्सा है।
हालांकि चीनी सैनिकों की लद्दाख सेक्टर में घुसपैठ के पश्चात् करगिल सेक्टर में सुरक्षाबलों ने अपनी चौकसी बढ़ा दी है क्योंकि संदेह व्यक्त किया जा रहा है कि इस नई परिस्थिति का लाभ उठाकर पाकिस्तान फिर से करगिल में कोई नई शरारत न करे। 1999 में पाकिस्तानी घुसपैठियों ने इस क्षेत्र की कई पहाडिय़ों पर अतिक्रमण कर लिया था।
पाक अधिकृत कश्मीर में चीनी सैनिकों की गतिविधियों में गत वर्षों के दौरान अच्छी-खासी वृद्धि हुई है और गिलगित व कुछ अन्य क्षेत्रों में सड़क के अतिरिक्त कुछ अन्य निर्माण भी उसने कर लिए हैं। इससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि भारत के प्रति चीन के इरादे क्या हैं?
दोनों देशों के बीच कुछ तो खिचड़ी पक रही है तभी तो यह चीनी घुसपैठ हुई है जिसके परिणाम भारत के लिए खतरनाक साबित होने वाले हैं।
रक्षा विशेषमों का अनुमान है कि चीन और पाकिस्तान की सांठ-गांठ भारत के लिए कई-नई समस्याओं का कारण बन सकती है। इसके अतिरिक्त बर्फ के पिघलने के साथ ही गर्मियों में अधिकृत कश्मीर के क्षेत्रों से उग्रवादियों की घुसपैठ का खतरा वैसे भी बढ़ जाता है और उग्रवाद की घटनाओं में वृद्धि होती जा रही है।
अब भी ऐसे समाचार हैं कि कश्मीर घाटी में कई नए उग्रवादी घुसपैठ करके प्रवेश होने में सफल हुए हैं। इसी कारण वहां उग्रवादी घटनाओं में वृद्धि हुई है।
सेना संबंधी मामलों की समिति के अनुसार पाकिस्तान और चीन से एकसाथ युद्ध की स्थिति में उत्पन्न चुनौती से निपटने के लिए भारतीय वायुसेना को 39 युद्धक विमान इकाइयों की आवश्यकता होगी, लेकिन फिलहाल उसके पास केवल 34 स्क्वाड्रन हैं।
रक्षा संबंधी संसद की स्थायी समिति ने अपनी एक रिपोर्ट में सरकार की इस बात के लिए आलोचना की है कि नई आधुनिकीकरण स्कीमों के लिए भारतीय वायुसेना को केवल 2,000 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया, जबकि केवल राफेल युद्धक जेट सौदे के लिए ही 15,000 करोड़ रुपए की आवश्यकता है।
भारत में पास अच्छे रक्षा उपकरणों की कमी है और बहुत से मामलों में जिन कंपनियों को रक्षा उपकरण के ऑर्डर दे रखे हैं उनके मामले के सालों से निपटारे नहीं हुए हैं। इसी मामले में एक उदाहरण है कि फ्रांसीसी कंपनी दासाल्त के साथ रक्षा मंत्रालय की वार्ता में कुछ मुद्दों के कारण विलंब हो रहा है। भारत ने दासाल्त के ही राफेल युद्धक जेट का चयन किया है लेकिन सेना को वे अभी तक ‍नहीं मिल पाए हैं।
वायुसेना ने समिति को बताया कि अधिकृत 42 स्क्वाड्रनों के विपरीत उसके पास 34 युद्धक स्क्वाड्रन हैं। यदि दो मोर्चों पर युद्ध की स्थिति बनी तो चुनौती से निपटने के लिए किसी भी समय 39 स्क्वाड्रन आवश्यक होंगे। स्वदेशी हल्के युद्धक विमान (एलसीए) को वायुसेना में शामिल करने में 20 साल से अधिक का विलंब हुआ, जबकि मध्यम बहुआयामी युद्धक विमान के अधिग्रहण की प्रक्रिया में विलंब हो रहा है।
समिति ने कहा कि भारतीय वायुसेना की स्क्वाड्रन क्षमता घट रही है, ऐसे में यह बात समझ से परे है कि केवल 2,000 करोड़ रपए का वित्तपोषण करने से वायुसेना कैसे एमएमआरसीए और अन्य उपकरण खरीदने की स्थिति में होगी।
-एजेंसी

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