गुरुवार, 20 जून 2013

तबाही को लेकर CAG ने चेताया था

नई दिल्ली। उत्तराखण्ड में हुई तबाही का जिम्मेदार खुद इंसान है। विकास के लिए हमने प्रकृति को भारी नुकसान पहुंचाया, जिसका नतीजा सामने है। उत्तराखण्ड में बिजली के लिए बड़े बड़े पावर प्रोजेक्ट बन रहे हैं।
इन पावर प्रोजेक्ट के लिए नदियों पर बड़े बड़े बांध बनाए जा रहे हैं, पहाड़ों को खोदकर सुरंगें बनाई जा रही है। वनों को काटा जा रहा है, जिससे पहाड़ियां पूरी तरह नंगी हो चुकी हैं। वनों की कटाई के कारण मृदा का क्षरण हो रहा है जिससे भूस्खलन हो रहा है। इस कारण नदियां और पहाड़ अपना बदला ले रहे हैं। प्रकृति ने पहले ही विनाश के संकेत दे दिए थे।
अगस्त 2012 में उत्तरकाशी में आई बाढ़ में सैंकड़ों मकान तबाह हो गए थे। रुद्रप्रयाग में बादल फटने से 69 लोगों की मौत हो गई थी।
पर्यावरण विशेषज्ञों के मुताबिक बीसवीं शताब्दी में पहली बार मनुष्य के कार्यकलापों ने प्रकृति के बनने और बिगड़ने की प्रक्रिया को त्वरित किया और पिछले पचास सालों में उसमें तेजी आई है। जब से हमने आठ और नौ फीसदी वाले विकास मॉडल को अपनाया है तब से प्रकृति में मानवीय हस्तक्षेप बढ़ गया है।
उत्तराखण्ड बनते ही यहां की नदियों को खोदने, बांधने और बिगाड़ने की शुरूआत हो गई। बारह साल पहले उत्तराखण्ड में असाधारण रूप से सड़कें बनाने, खनन और बिजली परियोजनाओं का काम इतनी तेजी और अनियंत्रित तरीके से हुआ कि नदियों ने विकराल रूप से लिया।
कैग ने तीन साल पहले भागीरथी और अलकनंदा का पर्यावरणीय आंकलन किया था। कैग ने उस वक्त ही खतरे के बारे में चेता दिया था। कैग का कहना था कि दोनों नदियों की प्राकृतिक पारिस्थिति बिगड़ रही है और नदी के तले के साथ पहाड़ियां झुक रही हैं। इससे भारी तबाही आ सकती है।
दरअसल कैग ने उत्तराखण्ड में प्राइवेट पार्टनरशिप के साथ विकसित हो रहे हाइड्रो पावर को लेकर रिपोर्ट दी थी। दोनों नदियों को लेकर चेतावनी उसी रिपोर्ट का हिस्सा है। कैग ने केन्द्र और राज्य सरकार को अलर्ट किया था कि नदियों पर हाईडल पावर प्रोजेक्ट को बढ़ावा देने से पहाडियों को नुकसान हो रहा और इससे बाढ़ की संभावना उत्पन्न हो रही, जिससे हजारों लोगों की जान जा सकती है।
रिपोर्ट के मुताबिक 42 हाईड्रो पावर प्रोजेक्ट शुरू हो चुके हैं और 302 निर्माणाधीन हैं और मंजूरी के इंतजार में हैं। रिपोर्ट में कहा गया था कि पावर प्रोजेक्ट के कारण वनों को काटा जा रहा है इससे पहाडियों को नुकसान हो रहा है। प्रोजेक्ट लगाने से पहले शर्त रखी गई थी कि वनों की कटाई के बाद फिर से पेड़ लगाए जाएंगे लेकिन 38 फीसदी प्रोजेक्ट के मामले में ऎसा नहीं हुआ। कैग ने आठ प्रोजेक्ट का अध्ययन किया। इसमें तीन प्रोजेक्ट वनरोपड़ के मामले में जीरो साबित हुए। बाढ़ से प्रभावित श्रीनगर में निर्माणाधीन पावर प्रोजेक्ट को 1 लाख 15 हजार 700 पेड़ लगाने थे लेकिन एक भी पेड़ नहीं लगा।- एजेंसी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया बताते चलें कि ये पोस्‍ट कैसी लगी ?

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...