शनिवार, 27 जुलाई 2013

मूर्ख हैं अमर्त्‍य सेन (मेरे निजी विचार)

मोदी कितने सांप्रदायिक हैं और कांग्रेस कितनी सेक्‍युलर, इस नतीजे पर पहुंचने की जगह बेहतर होता कि बतौर अर्थशास्‍त्री अमर्त्‍य सेन, देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तथा वित्‍तमंत्री पी. चिदंबरम को बताते कि खस्‍ताहाल अर्थव्‍यवस्‍था को कैसे सुधारें व रुपये के चवन्‍नी से भी दुहन्‍नी हो जाने को कैसे रोकें।
राजनीति में पड़ने की जगह ऐसा कुछ कहते जिससे महंगाई के कारण त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रही जनता को कुछ राहत मिलती और अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर हर रोज गिर रही भारत की साख को कहीं स्‍थिर किया जा सकता।

(लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष)

नोबल पुरस्‍कार विजेता और भारत रत्‍न अमर्त्‍य सेन ने नरेन्‍द्र मोदी को लेकर जो-कुछ कहा, उस पर हंगामा खड़ा हो गया। कुछ लोग कह रहे हैं कि अमर्त्‍य सेन ने एक भारतीय होने के नाते अपने निजी विचार व्‍यक्‍त किये तो कुछ लोगों का कहना है कि उन्‍होंने एक विवादित राजनीतिक बयान दिया जो उचित नहीं है।
भाजपा के चंदन मित्रा ने अमर्त्‍य सेन के बयान पर कहा कि अगर एनडीए सत्‍ता में आता है तो सेन से भारत रत्‍न छीन लिया जायेगा।
केंन्‍द्रीय मंत्री मनीष तिवारी ने इसे भाजपा की फासीवादी मानसिकता करार दिया, हालांकि भाजपा ने चंदन मित्रा के बयान को उनकी निजी राय बताकर अपना पल्‍लू झाड़ लिया था।
ठीक उसी तरह जिस तरह कांग्रेस अपने बे-लगाम नेता दिग्‍विजय सिंह के बयानों से हर रोज पल्‍ला झाड़ती रहती है।
बहरहाल, चंदन मित्रा के कथन पर अमर्त्‍य सेन का जवाब था कि यदि अटल बिहारी वाजपेयी कहें तो मैं भारत रत्‍न लौटाने को तैयार हूं।
इस सबके बीच कुछ प्रश्‍न हैं जो आम आदमी के दिमाग में पैदा हो रहे हैं।
सबसे पहला प्रश्‍न तो यह कि क्‍या अमर्त्‍य सेन जैसे विश्‍व विख्‍यात व्‍यक्‍ति को कुछ भी बोलने से पहले यह नहीं सोचना चाहिए कि उनका बोलना किसी सामान्‍य आदमी का बोलना नहीं है और इसलिए उनके बोलने का असर होता है।
दूसरा प्रश्‍न यह है कि अमर्त्‍य सेन जैसी शख्‍सियत के किसी विचार को क्‍या मात्र इतना कहकर दरकिनार किया जा सकता है कि यह उनके निजी विचार थे।
ऐसा माना जाता है कि जब कोई व्‍यक्‍ति पब्‍लिक फिगर बन जाता है तो उसके आचार-विचारों पर भी पब्‍लिक का हक बनता है क्‍योंकि पब्‍लिक उससे प्रभावित होती है..... क्‍योंकि वह पब्‍लिक के लिए एक आदर्श बन जाता है।
यहां यदि में अपने निजी विचार व्‍यक्‍त करते हुए यह कहूं कि अमर्त्‍य सेन या तो नोबल पुरस्‍कार और भारत रत्‍न पाने के योग्‍य ही नहीं थे या फिर उन्‍होंने जो कुछ बोला वह सोच-समझ कर सस्‍ती लोकप्रियता पाने के लिए बोला तो एक बड़े वर्ग को भारी आपत्‍ति हो सकती है।
हुआ करे आपत्‍ति, पर ये मेरे व्‍यक्‍तिगत विचार हैं।
निजी विचारों के लिए अमर्त्‍य सेन, चंदन मित्रा, मनीष तिवारी, पी. चिदंबरम, दिग्‍विजय सिंह, शत्रुघ्‍न सिन्‍हा, राजबब्‍बर, मोंटेक सिंह अहलूवालिया, शकील अहमद या रशीद मसूद होना तो जरूरी नहीं।
मेरे पास मेरे निजी विचारों को सही ठहराने के पक्ष में कुछ दलीलें भी हैं।
मसलन, अमर्त्‍य सेन कहते हैं यदि अटल बिहारी वाजपेयी कहें तो मैं भारत रत्‍न लौटा दूंगा।
सम्‍मान सहित मैं अमर्त्‍य सेन जी से यह जानना चाहता हूं कि भारत रत्‍न क्‍या किसी की व्‍यक्‍तिगत जागीर है, क्‍या वह अटलजी की निजी संपत्‍ति है?
यदि नहीं, तो अमर्त्‍यसेन ने ऐसा क्‍यों कहा।
यह कहकर उन्‍होंने खुद साबित नहीं कर दिया कि दुनिया का कोई भी पुरस्‍कार किसी की योग्‍यता या अयोग्‍यता का पैमाना नहीं हो सकता। फिर चाहे वह नोबल पुरस्‍कार हो या भारत रत्‍न?
सच तो यह है कि अमर्त्‍य सेन को पहले ही अपनी गरिमा का ध्‍यान रखकर बोलना चाहिए था।
अगर वो भारत के मतदाता हैं तो राहुल या मोदी के पक्ष-विपक्ष में बोलकर विवाद उत्‍पन्‍न करने की बजाय जिसे देश के लिए अच्‍छा समझें, उसकी पार्टी को वोट दे सकते हैं।
हां, अगर उनकी मंशा 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ने की है तो बात अलग है।
मोदी कितने सांप्रदायिक हैं और कांग्रेस कितनी सेक्‍युलर, इस नतीजे पर पहुंचने की जगह बेहतर होता कि वह बतौर अर्थशास्‍त्री देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तथा वित्‍तमंत्री पी चिदंबरम को बताते कि खस्‍ताहाल अर्थव्‍यवस्‍था को कैसे सुधारें व रुपये के चवन्‍नी से भी दुहन्‍नी हो जाने को कैसे रोकें।
अमर्त्‍यसेन जैसे लोग देश के भाग्‍यविधाता नहीं हैं, देश का भाग्‍य आज नहीं तो कल लिखेगी जनता ही।
आज बेशक सत्‍ता के नशे में चूर लोगों द्वारा गरीबी की नित नई परिभाषाएं गढ़कर गरीबों का मजाक उड़ाया जा रहा है लेकिन कल स्‍थितियां बदल भी सकती हैं।
मुद्दा किसी नरेन्‍द्र मोदी के विरोध में बोलने या राहुल गांधी के पक्ष में बोलने का नहीं है, मुद्दा यह है अमर्त्‍य सेन जी... कि यदि आपको भारत की इतनी ही चिंता है तो राजनीति में पड़ने की जगह ऐसा कुछ बताइए जिससे महंगाई के कारण त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रही जनता को कुछ राहत मिल सके और अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर हर रोज गिर रही भारत की साख को कहीं स्‍थिर किया जा सके।
एक बात और.....कि व्‍यक्‍तिगत विचार जब सार्वजनिक हो जाते हैं तब उनके लांक्षित होने का पूरा अंदेशा रहता ही है क्‍योंकि झगड़े हों या विचार, जनता के बीच आते ही उनका पोस्‍टमार्टम होना शुरू हो जाता है।
यह बात दीगर है कि आप जैसे लोगों को तो उनसे भी चर्चा में बने रहने का सुअवसर मिल जाता है।
नोबल पुरस्‍कार विजेता अमर्त्‍य सेन को जानने वालों की संख्‍या भले ही उतनी ना हो, पर पीएम पद के लिए नरेन्‍द्र मोदी का विरोध करने वाले तथा राहुल को बेहतर विकल्‍प बताने वाले अमर्त्‍य सेन को कहीं अधिक लोग जान चुके हैं।

1 टिप्पणी:

  1. इंसान सिर्फ अपनी कोई ना पसंद बताये तो वह चलता है, किन्तु यदि फिर अपने मन मुताविक अपनी पसंद यह कहकर बताये
    की अमुक एक अच्छा विकल्प साबित हो सकता है तो तब प्रोब्लम है ! भारत रत्न हो, रत्न की तरह डिग्निटी रखो न की चाटुकारिता में लीं हो जाओ !

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