(लीजेण्ड न्यूज़ विशेष)
बात निकली है तो दूर तक जायेगी ही। आज नहीं तो कल, धर्म नगरी मथुरा को वो दिन देखने पड़ सकते हैं जिसकी शायद फिलहाल किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी।
हम बात कर रहे हैं कल रात रत्नेश अग्रवाल तथा गुड्डू सिंह के बीच मसानी क्षेत्र में हुए उस विवाद तथा मारपीट की जिसे देर रात पुलिस ने समझौते की आड़ में दबा तो दिया लेकिन यह नहीं सोचा कि यह समझौता सिर्फ कैंसर के घाव को ढंक देने जैसा है, उसका उपचार नहीं।
दरअसल ऐसा करने के पीछे पुलिस की भी अपनी मजबूरी है, या यूं कहें कि मजबूरी में छिपा स्वार्थ है।
एक ओर है खुद को समाजवादी पार्टी व्यापार सभा का पदाधिकारी दर्शाने वाला रत्नेश अग्रवाल तो दूसरी ओर है राष्ट्रीय लोकदल के कद्दावर विधायक ठाकुर तेजपाल सिंह का सगा साला गुड्डू सिंह।
रत्नेश अग्रवाल के पिता हरिओम अग्रवाल की अपनी गतिविधियां बहुत पाक-साफ कभी नहीं रहीं। अपने एकमात्र पुत्र रत्नेश के प्रति उनके मोह का ही परिणाम है कि रत्नेश बहुत कम उम्र से विवादित रहा और इसीलिए उसने हमेशा सत्ताधारी पार्टी का दामन थामे रखा। बसपा के शासन काल में वह अपनी गाड़ी पर शान के साथ हाथी छपा झण्डा लगाकर चलता था और अब सपा की साइकिल वाला झण्डा लगाकर चलता है।
उधर मथुरा की छाता विधानसभा सीट से रालोद के विधायक ठाकुर तेजवाल सिंह की समाजवादी पार्टी पर भी अच्छी पकड़ है क्योंकि पूर्व में एक बार वह सपा का दामन थाम चुके हैं। प्रदेश में मंत्री पद को भी सुशोभित कर चुके ठाकुर तेजपाल सिंह के पुत्र की भी कल के घटनाक्रम में प्रत्यक्ष न सही लेकिन अप्रत्यक्ष भूमिका जरूर है क्योंकि मामला खास मामाजी का है। इसके अलावा ठाकुर तेजपाल का साढ़ू पुत्र भी इस प्रकरण से जुड़ा हुआ है।
कल का घटनाक्रम जिसमें रत्नेश अग्रवाल ने गुड्डू सिंह पर अपनी प्रिंटिंग प्रेस के कर्मचारियों के साथ मारपीट करने तथा फायरिंग भी किये जाने का आरोप लगाया और सीओ सिटी को बताया कि घटना की पृष्ठभूमि में वायदा कारोबार एमसीएक्स का लेनदेन है, पूरा सच नहीं है।
दरअसल सारा विवाद रत्नेश अग्रवाल द्वारा गुड्डू सिंह से ऊंची ब्याज दर पर करोड़ों रुपये लेने का है। रत्नेश उस पैसे का क्या करता है, यह एक अलग बात है।
ब्याज पर ली गई इस मोटी रकम का एक बड़ा हिस्सा देने की बात कल रत्नेश ने गुड्डू सिंह से कही थी और उसमें हील-हुज्जत होने के परिणाम स्वरूप यह विवाद सामने आया।
अब सवाल यह पैदा होता है कि आखिर रत्नेश ने सीओ सिटी अनिल यादव से खुद यह क्यों कहा कि उसे गुड्डू को जो भुगतान करना है वह एमसीएक्स में हुए घाटे का है।
आजतक कभी ऐसा नहीं हुआ जब किसी ने खुद अपने ऊपर एमसीएक्स की देनदारी और एमसीएक्स जैसे अवैध वायदा कारोबार में लिप्त होने की बात स्वीकारी हो क्योंकि यह तो अपने आप में एक अपराध है।
इसके पीछे बाकायदा एक सोची-समझी चाल काम कर रही थी।
रत्नेश अग्रवाल जानता है कि अवैध कहलाने वाले एमसीएक्स के डिब्बा कारोबार में पैसे की लेनदारी का कोई कानूनी अधिकार नहीं होता इसलिए उसने एमसीएक्स का सहारा लेने में अपनी भलाई समझी।
जो भी हो, लेकिन इससे एक बार यह फिर साबित हो गया कि एमसीएक्स का डिब्बा कारोबार इस धर्म नगरी में बड़े पैमाने पर चल रहा है और पुलिस को भी इसकी पूरी जानकारी है।
अब एक अन्य सवाल यहां और खड़ा होता है कि फिर पुलिस इस अवैध कारोबार को बंद क्यों नहीं कराती तथा क्यों इससे जुड़े लोगों को कभी नहीं पकड़ती जबकि इसी नेचर के दूसरे कारोबार क्रिकेट के सटोरियों को कई बार गिरफ्तार कर चुकी है।
पुलिस ऐसा इसलिए नहीं करती क्योंकि एमसीएक्स से लेकर क्रिकेट का सट्टा तक, न सिर्फ पुलिस के ही कुछ अधिकारियों के संरक्षण में चलता है बल्कि पुलिस इन अवैध धंधों का पैसा वसूल कराने में बड़ी भूमिका निभाती है।
पूर्व में यहां सीओ सिटी के पद पर लंबे समय तक रहे एक पुलिस अधिकारी तो इन दोनों अवैध धंधों में बाकायदा साइलेंट पार्टनर हुआ करते थे और इसीलिए करोड़ों रुपया कमाने में सफल रहे।
खैर, फिलहाल मुद्दा यह है कि पुलिस ने चाहे रत्नेश अग्रवाल और गुड्डू सिंह को बैठकर फौरी तौर पर समझौता करा दिया हो लेकिन मथुरा ऐसे अनेक रत्नेश अग्रवाल व गुड्डू सिंहों से भरी पड़ी है।
ये वो लोग हैं जो इन्हीं की तरह रसूख वाले हैं और अवैध धंधे करना अपनी शान समझते हैं।
इन लोगों के तार ऊपर तक जुड़े हैं और पुलिस-प्रशासन को यह अपना ताबेदार मानकर चलते हैं।
बताया जाता है कि आर्थिक मंदी और उसके कारण सोने-चांदी के दामों में हुए बड़े फ्लक्चुएशन ने मथुरा के तमाम अवैध कारोबारियों को अर्श से फर्श पर ला पटका है। पिछले दिनों बमुश्किल एक सर्राफा कारोबारी ने इसके कारण उपजी देनदारी से अपना पीछा छुड़ाया है लेकिन अनेक कारोबारी अभी इसके चंगुल में फंसे हुए हैं और उनके बीच पैसों के लेन-देन को लेकर तनातनी चल रही है।
ये तनातनी कब कोई बड़ी आपराधिक वारदात का रूप धारण कर ले, कह पाना मुश्किल है लेकिन पुलिस अपनी लीक पर चलती है।
इधर रत्नेश और गुड्डू सिंह का पुलिस के संरक्षण में आज परवान चढ़ने वाला समझौता मुकाम तक पहुंचेगा या नहीं, यह भी देखने वाली बात होगी क्योंकि यदि ऐसा नहीं हुआ तो परिणाम शायद अच्छे न हों। क्योंकि बात हजारों या लाखों की नहीं, करोड़ों की है।
बात निकली है तो दूर तक जायेगी ही। आज नहीं तो कल, धर्म नगरी मथुरा को वो दिन देखने पड़ सकते हैं जिसकी शायद फिलहाल किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी।
हम बात कर रहे हैं कल रात रत्नेश अग्रवाल तथा गुड्डू सिंह के बीच मसानी क्षेत्र में हुए उस विवाद तथा मारपीट की जिसे देर रात पुलिस ने समझौते की आड़ में दबा तो दिया लेकिन यह नहीं सोचा कि यह समझौता सिर्फ कैंसर के घाव को ढंक देने जैसा है, उसका उपचार नहीं।
दरअसल ऐसा करने के पीछे पुलिस की भी अपनी मजबूरी है, या यूं कहें कि मजबूरी में छिपा स्वार्थ है।
एक ओर है खुद को समाजवादी पार्टी व्यापार सभा का पदाधिकारी दर्शाने वाला रत्नेश अग्रवाल तो दूसरी ओर है राष्ट्रीय लोकदल के कद्दावर विधायक ठाकुर तेजपाल सिंह का सगा साला गुड्डू सिंह।
रत्नेश अग्रवाल के पिता हरिओम अग्रवाल की अपनी गतिविधियां बहुत पाक-साफ कभी नहीं रहीं। अपने एकमात्र पुत्र रत्नेश के प्रति उनके मोह का ही परिणाम है कि रत्नेश बहुत कम उम्र से विवादित रहा और इसीलिए उसने हमेशा सत्ताधारी पार्टी का दामन थामे रखा। बसपा के शासन काल में वह अपनी गाड़ी पर शान के साथ हाथी छपा झण्डा लगाकर चलता था और अब सपा की साइकिल वाला झण्डा लगाकर चलता है।
उधर मथुरा की छाता विधानसभा सीट से रालोद के विधायक ठाकुर तेजवाल सिंह की समाजवादी पार्टी पर भी अच्छी पकड़ है क्योंकि पूर्व में एक बार वह सपा का दामन थाम चुके हैं। प्रदेश में मंत्री पद को भी सुशोभित कर चुके ठाकुर तेजपाल सिंह के पुत्र की भी कल के घटनाक्रम में प्रत्यक्ष न सही लेकिन अप्रत्यक्ष भूमिका जरूर है क्योंकि मामला खास मामाजी का है। इसके अलावा ठाकुर तेजपाल का साढ़ू पुत्र भी इस प्रकरण से जुड़ा हुआ है।
कल का घटनाक्रम जिसमें रत्नेश अग्रवाल ने गुड्डू सिंह पर अपनी प्रिंटिंग प्रेस के कर्मचारियों के साथ मारपीट करने तथा फायरिंग भी किये जाने का आरोप लगाया और सीओ सिटी को बताया कि घटना की पृष्ठभूमि में वायदा कारोबार एमसीएक्स का लेनदेन है, पूरा सच नहीं है।
दरअसल सारा विवाद रत्नेश अग्रवाल द्वारा गुड्डू सिंह से ऊंची ब्याज दर पर करोड़ों रुपये लेने का है। रत्नेश उस पैसे का क्या करता है, यह एक अलग बात है।
ब्याज पर ली गई इस मोटी रकम का एक बड़ा हिस्सा देने की बात कल रत्नेश ने गुड्डू सिंह से कही थी और उसमें हील-हुज्जत होने के परिणाम स्वरूप यह विवाद सामने आया।
अब सवाल यह पैदा होता है कि आखिर रत्नेश ने सीओ सिटी अनिल यादव से खुद यह क्यों कहा कि उसे गुड्डू को जो भुगतान करना है वह एमसीएक्स में हुए घाटे का है।
आजतक कभी ऐसा नहीं हुआ जब किसी ने खुद अपने ऊपर एमसीएक्स की देनदारी और एमसीएक्स जैसे अवैध वायदा कारोबार में लिप्त होने की बात स्वीकारी हो क्योंकि यह तो अपने आप में एक अपराध है।
इसके पीछे बाकायदा एक सोची-समझी चाल काम कर रही थी।
रत्नेश अग्रवाल जानता है कि अवैध कहलाने वाले एमसीएक्स के डिब्बा कारोबार में पैसे की लेनदारी का कोई कानूनी अधिकार नहीं होता इसलिए उसने एमसीएक्स का सहारा लेने में अपनी भलाई समझी।
जो भी हो, लेकिन इससे एक बार यह फिर साबित हो गया कि एमसीएक्स का डिब्बा कारोबार इस धर्म नगरी में बड़े पैमाने पर चल रहा है और पुलिस को भी इसकी पूरी जानकारी है।
अब एक अन्य सवाल यहां और खड़ा होता है कि फिर पुलिस इस अवैध कारोबार को बंद क्यों नहीं कराती तथा क्यों इससे जुड़े लोगों को कभी नहीं पकड़ती जबकि इसी नेचर के दूसरे कारोबार क्रिकेट के सटोरियों को कई बार गिरफ्तार कर चुकी है।
पुलिस ऐसा इसलिए नहीं करती क्योंकि एमसीएक्स से लेकर क्रिकेट का सट्टा तक, न सिर्फ पुलिस के ही कुछ अधिकारियों के संरक्षण में चलता है बल्कि पुलिस इन अवैध धंधों का पैसा वसूल कराने में बड़ी भूमिका निभाती है।
पूर्व में यहां सीओ सिटी के पद पर लंबे समय तक रहे एक पुलिस अधिकारी तो इन दोनों अवैध धंधों में बाकायदा साइलेंट पार्टनर हुआ करते थे और इसीलिए करोड़ों रुपया कमाने में सफल रहे।
खैर, फिलहाल मुद्दा यह है कि पुलिस ने चाहे रत्नेश अग्रवाल और गुड्डू सिंह को बैठकर फौरी तौर पर समझौता करा दिया हो लेकिन मथुरा ऐसे अनेक रत्नेश अग्रवाल व गुड्डू सिंहों से भरी पड़ी है।
ये वो लोग हैं जो इन्हीं की तरह रसूख वाले हैं और अवैध धंधे करना अपनी शान समझते हैं।
इन लोगों के तार ऊपर तक जुड़े हैं और पुलिस-प्रशासन को यह अपना ताबेदार मानकर चलते हैं।
बताया जाता है कि आर्थिक मंदी और उसके कारण सोने-चांदी के दामों में हुए बड़े फ्लक्चुएशन ने मथुरा के तमाम अवैध कारोबारियों को अर्श से फर्श पर ला पटका है। पिछले दिनों बमुश्किल एक सर्राफा कारोबारी ने इसके कारण उपजी देनदारी से अपना पीछा छुड़ाया है लेकिन अनेक कारोबारी अभी इसके चंगुल में फंसे हुए हैं और उनके बीच पैसों के लेन-देन को लेकर तनातनी चल रही है।
ये तनातनी कब कोई बड़ी आपराधिक वारदात का रूप धारण कर ले, कह पाना मुश्किल है लेकिन पुलिस अपनी लीक पर चलती है।
इधर रत्नेश और गुड्डू सिंह का पुलिस के संरक्षण में आज परवान चढ़ने वाला समझौता मुकाम तक पहुंचेगा या नहीं, यह भी देखने वाली बात होगी क्योंकि यदि ऐसा नहीं हुआ तो परिणाम शायद अच्छे न हों। क्योंकि बात हजारों या लाखों की नहीं, करोड़ों की है।
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