कुछ समय पहले ईरान के परमाणु कार्यक्रम से जुड़े एक वैज्ञानिक की मौत ने
पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचा था परन्तु बहुत कम लोगों को मालूम होगा
कि भारत के सर्वोच्च प्रतिष्ठित परमाणु प्रतिष्ठान बार्क में पिछले तीन
वर्ष के दौरान नौ भारतीय वैज्ञानिकों की संदिग्ध मौत हो चुकी है।
ईरान की सरकार ने तो अपने वैज्ञानिक की मौत से सबक लेकर सभी वैज्ञानिकों को कड़ी सुरक्षा उपलब्ध कराई परन्तु भारतीय संस्थान में स्थिति इसकी ठीक उलट है। सबसे दुखद बात तो यह है कि भारतीय जनता को इसकी कानों-कान खबर तक नहीं है।
यहीं नहीं, केरल पुलिस तथा इंटेलीजेंस ब्यूरो भी इन वैज्ञानिकों पर गाहे-बगाहे झूठे आरोप लगाने से नहीं चूकते। अप्रैल 2010 की घटना बहुत कम लोगों को याद होगी जब दो शीर्ष स्तर के वैज्ञानिकों को केरल पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और लम्बे समय तक जेल में रखने के बाद उनके खिलाफ सबूत ना मिलने के कारण रिहा कर दिया था।
हाल ही हुई ताजा घटना में भाभा परमाणु रिसर्च सेंटर (बार्क) में काम करने वाले दो प्रमुख इंजीनियर्स के. के. जोश तथा अभिश शिवम के शव इसी माह की सात तारीख को विशाखापट्टनम नौसैनिक यार्ड के पास एक रेलवे पटरी पर पड़े हुए पाए गए थे। दोनों इंजीनियर भारत द्वारा स्वदेशी तकनीक से विकसित परमाण्विक पनडुब्बी पर काम कर रहे थे। पुलिस सूत्रों के मुताबिक दोनों की हत्या जहर देकर की गई थी, हत्या के बाद उनके शवों को रेल की पटरी पर लाकर पटका गया था।
चौंकाने वाली बात यह है कि अति गोपनीय और महत्वपूर्ण सुरक्षा तकनीक से जुड़े दो प्रमुख वैज्ञानिकों की हत्या को ना तो मीडिया में जगह मिली और ना ही सुरक्षा मंत्रालय ने इस पर कोई संज्ञान लिया। दोनों ही हत्याओं को एक मामूली एक्सीडेंट का रूप देकर पुलिस अधिकारी द्वारा खानापूर्ति कर जांच को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
पिछले पांच वर्ष में बार्क में एक दर्जन से भी अधिक वैज्ञानिकों, इंजीनियर्स तथा तकनीशियनों की मौत हो चुकी है और सभी में बार्क प्रशासन तथा भारत सरकार का ढुलमुल रवैया देखने को मिला है। लगभग सभी मामलों को पुलिस ने आत्महत्या का रूप देकर फाइल बंद कर दी है, बावजूद इसके कि सभी में हत्या के स्पष्ट प्रमाण पाये गये थे।
इन हत्याओं के तरीके को देखकर लगता है कि कोई बाहरी संगठन बहुत ही सुनियोजित तथा सोची-समझी साजिश के तहत इन हत्याओं को अंजाम दे रहा है। ऐसा मानने के कई कारण है, यथा सभी मृत वैज्ञानिक अतिगोपनीय व महत्वपूर्ण सुरक्षा तकनीकों पर काम कर रहे थे, सभी अपने-अपने क्षेत्र में देश में सर्वोच्च सम्मान के हकदार थे और सबसे महत्वपूर्ण सभी की मृत्यु असामान्य परिस्थितियों में हुई।
हालांकि जब तक भारत सरकार तथा पुलिस विभाग इस मामले को गंभीरता से न लें तब तक इस साजिश की तह तक पहुंचना मुश्किल है लेकिन फिर भी यह तो स्पष्ट है कि देश की सुरक्षा और संप्रभुता को बाहरी शक्तियों से बहुत बड़ा खतरा है। यदि जानकार सूत्रों पर विश्वास किया जाये तो पाकिस्तानी एजेंसी आईएसआई हमारे देश की सुरक्षा व्यवस्था में बहुत गहरे तक सेंध लगा चुकी है, साथ ही अमरीका और अन्य विकसित देशों की भी नजर हमारे परमाणु कार्यक्रमों को खत्म करने पर लगी हुई है, जिसके चलते यदि अभी इस षड्यंत्र का भंडाफोड़ कर गुनहगारों को नहीं पकड़ा गया और वैज्ञानिकों को पर्याप्त सुरक्षा उपलब्ध नहीं कराई गई तो आने वाला समय भारत के लिये कड़ी चेतावनी लेकर आएगा।
-एजेंसी
ईरान की सरकार ने तो अपने वैज्ञानिक की मौत से सबक लेकर सभी वैज्ञानिकों को कड़ी सुरक्षा उपलब्ध कराई परन्तु भारतीय संस्थान में स्थिति इसकी ठीक उलट है। सबसे दुखद बात तो यह है कि भारतीय जनता को इसकी कानों-कान खबर तक नहीं है।
यहीं नहीं, केरल पुलिस तथा इंटेलीजेंस ब्यूरो भी इन वैज्ञानिकों पर गाहे-बगाहे झूठे आरोप लगाने से नहीं चूकते। अप्रैल 2010 की घटना बहुत कम लोगों को याद होगी जब दो शीर्ष स्तर के वैज्ञानिकों को केरल पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और लम्बे समय तक जेल में रखने के बाद उनके खिलाफ सबूत ना मिलने के कारण रिहा कर दिया था।
हाल ही हुई ताजा घटना में भाभा परमाणु रिसर्च सेंटर (बार्क) में काम करने वाले दो प्रमुख इंजीनियर्स के. के. जोश तथा अभिश शिवम के शव इसी माह की सात तारीख को विशाखापट्टनम नौसैनिक यार्ड के पास एक रेलवे पटरी पर पड़े हुए पाए गए थे। दोनों इंजीनियर भारत द्वारा स्वदेशी तकनीक से विकसित परमाण्विक पनडुब्बी पर काम कर रहे थे। पुलिस सूत्रों के मुताबिक दोनों की हत्या जहर देकर की गई थी, हत्या के बाद उनके शवों को रेल की पटरी पर लाकर पटका गया था।
चौंकाने वाली बात यह है कि अति गोपनीय और महत्वपूर्ण सुरक्षा तकनीक से जुड़े दो प्रमुख वैज्ञानिकों की हत्या को ना तो मीडिया में जगह मिली और ना ही सुरक्षा मंत्रालय ने इस पर कोई संज्ञान लिया। दोनों ही हत्याओं को एक मामूली एक्सीडेंट का रूप देकर पुलिस अधिकारी द्वारा खानापूर्ति कर जांच को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
पिछले पांच वर्ष में बार्क में एक दर्जन से भी अधिक वैज्ञानिकों, इंजीनियर्स तथा तकनीशियनों की मौत हो चुकी है और सभी में बार्क प्रशासन तथा भारत सरकार का ढुलमुल रवैया देखने को मिला है। लगभग सभी मामलों को पुलिस ने आत्महत्या का रूप देकर फाइल बंद कर दी है, बावजूद इसके कि सभी में हत्या के स्पष्ट प्रमाण पाये गये थे।
इन हत्याओं के तरीके को देखकर लगता है कि कोई बाहरी संगठन बहुत ही सुनियोजित तथा सोची-समझी साजिश के तहत इन हत्याओं को अंजाम दे रहा है। ऐसा मानने के कई कारण है, यथा सभी मृत वैज्ञानिक अतिगोपनीय व महत्वपूर्ण सुरक्षा तकनीकों पर काम कर रहे थे, सभी अपने-अपने क्षेत्र में देश में सर्वोच्च सम्मान के हकदार थे और सबसे महत्वपूर्ण सभी की मृत्यु असामान्य परिस्थितियों में हुई।
हालांकि जब तक भारत सरकार तथा पुलिस विभाग इस मामले को गंभीरता से न लें तब तक इस साजिश की तह तक पहुंचना मुश्किल है लेकिन फिर भी यह तो स्पष्ट है कि देश की सुरक्षा और संप्रभुता को बाहरी शक्तियों से बहुत बड़ा खतरा है। यदि जानकार सूत्रों पर विश्वास किया जाये तो पाकिस्तानी एजेंसी आईएसआई हमारे देश की सुरक्षा व्यवस्था में बहुत गहरे तक सेंध लगा चुकी है, साथ ही अमरीका और अन्य विकसित देशों की भी नजर हमारे परमाणु कार्यक्रमों को खत्म करने पर लगी हुई है, जिसके चलते यदि अभी इस षड्यंत्र का भंडाफोड़ कर गुनहगारों को नहीं पकड़ा गया और वैज्ञानिकों को पर्याप्त सुरक्षा उपलब्ध नहीं कराई गई तो आने वाला समय भारत के लिये कड़ी चेतावनी लेकर आएगा।
-एजेंसी
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