मथुरा। 2 जून को हुए जवाहर बाग कांड का सच कभी सामने आ पायेगा, इस बात की
संभावना समय के साथ क्षीण होती जा रही है। अब तक इस मामले में की गई
पुलिसिया कार्यवाही से तो यही लगता है।
सबसे पहले गौर करें प्रदेश ही नहीं, पूरे देश को हिला देने वाले इस कांड की पहली महत्वपूर्ण गिरफ्तारी पर। यह गिरफ्तारी हुई चंदन बोस नामक उस व्यक्ति की जिसे रामवृक्ष यादव का दाहिना हाथ कहा जा रहा है। चंदन बोस की गिरफ्तारी जनपद बस्ती के परशुरामपुर थाना क्षेत्र अंतर्गत गांव कैथेलिया से बस्ती जिले की ही क्राइम ब्रांच (स्वाट टीम) करती है। पुलिस के अनुसार यह गांव चंदन बोस की ससुराल है और जवाहर बाग कांड को अंजाम देने के बाद से वह अपनी पत्नी सहित यहीं रह रहा था।
पुलिस के अनुसार चंदन बोस की पत्नी भी उसकी हर आपराधिक गतिविधि में समान रूप से साझीदार थी और रामवृक्ष के गैंग में महिला विंग की कमांडर थी। इस तरह देखा जाए तो बस्ती पुलिस ने एक नहीं, दो बड़े अपराधियों को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की। ऐसे दो बड़े अपराधी जो रामवृक्ष की पल-पल की जानकारी रखते थे और जवाहर बाग के पूरे सच से भली प्रकार वाकिफ थे।
अब देखिए कितने आश्चर्य की बात है कि जिस जवाहर बाग कांड पर न सिर्फ प्रदेश सरकार की नजर गढ़ी थी बल्कि विपक्षी दल भी पूरी तरह सक्रिय हो चुके थे और अपराधियों की धर-पकड़ के लिए मथुरा पुलिस ने कई टीमें गठित कर दी थीं, उस कांड के सरगना का दाहिना हाथ अपनी अपराधी पत्नी सहित पकड़ा जाता है मथुरा से करीब 650 किलोमीटर दूर बस्ती जिले के एक गांव में।
यही नहीं, बस्ती के पुलिस अधीक्षक चंदन बोस की गिरफ्तारी पर बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस करते हैं, और पूरी जानकारी मीडिया को देते हैं।
जाहिर है कि इसके बाद मथुरा पुलिस की भूमिका शुरू होती है और वो चंदन बोस व उसकी पत्नी को लेने के लिए जनपद बस्ती पहुंचती है।
जब बस्ती पुलिस ने चंदन बोस और उसकी पत्नी पूनम की अपने यहां कानूनन गिरफ्तारी प्रेस कांफ्रेंस करके दिखा दी तो मथुरा पुलिस के हाथ में रह क्या जाता है, सिवाय लकीर पीटने के।
मथुरा पुलिस चूंकि सारी कानूनी औपचारिकता पूरी करके चंदन और उसकी पत्नी को मथुरा लाई थी इसलिए न तो वह उन पर अपने चिर-परिचित हथकंडे इस्तेमाल कर सकती थी और न उनसे कोई बड़ा राज उगलवा सकती थी।
ऐसे में चंदन बोस ने वही सब बताया जो कई दिन पहले से अखबारों में छपता रहा था। उसने न तो रामवृक्ष को लेकर कोई जानकारी दी और न यह बताकर दिया कि आखिर रामवृक्ष रूपी विषबेल को दो साल तक खाद-पानी कहां से मिलता रहा। किसके इशारे पर वह 280 एकड़ में फैले सरकारी जवाहर बाग को कब्जाने का ख्वाब देख रहा था। क्यों पुलिस प्रशासन उनकी गालियां खाकर और जलील होकर भी उनके सामने असहाय बना रहा।
चंदन बोस और उसकी पत्नी पूनम की गिरफ्तारी के बाद फोटो सहित छपे समाचारों में देखा गया कि चंदन बोस को दो पुलिस वाले अपने कंधों का सहारा देकर ले जा रहे हैं। इसका तात्पर्य यह है कि चंदन बोस अपने बूते चलने-फिरने की स्थिति में भी नहीं था।
यहां एक सीधा सवाल यह खड़ा होता है कि जब चंदन बोस की घटना वाले दिन ही जवाहर बाग में टांग टूट गई थी और वह चलने फिरने लायक भी नहीं रह गया था तो कैसे वह मथुरा से 650 किलोमीटर दूर अपनी ससुराल जा पहुंचा। उसने अपनी टांग पर प्लास्टर ससुराल पहुंचने के बाद करवाया या कहीं बीच में इलाज कराकर ससुराल तक जा सका।
क्या इस सब काम में उसकी किसी ने मदद की, और की तो वह मददगार कौन था।
घटना के तुरंत बाद जब पूरे प्रदेश की पुलिस में एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी तथा एसओ संतोष यादव की जान लेने वालों के प्रति भारी उबाल था और मथुरा के लोग तो जवाहर बाग के कथित सत्याग्रहियों को ढूंढ-ढूंढ कर पीट रहे थे तब कैसे चंदन बोस अपनी पत्नी व बच्चों सहित टूटी हुई टांग से सैकड़ों किलोमीटर दूर पहुंचने में कामयाब हो गया। क्या इस बीच उसे कहीं भी किसी जिले की पुलिस ने नहीं देखा।
अब जरा गौर करें जवाहर बाग कांड की दूसरी सबसे बड़ी गिरफ्तारी पर। यह गिरफ्तारी बदायूं पुलिस ने शुक्रवार 17 जून को की। गिरफ्तार किया गया शख्स राकेश गुप्ता बदायूं के ही थाना हजरतपुर अंतर्गत गांव शहापुर का निवासी है।
रामवृक्ष को लाखों रुपए खुद देने से लेकर जवाहर बाग में मौजूद हजारों लोगों के लिए रसद की व्यवस्था तथा पुलिस प्रशासन से मुकाबले के लिए हथियारों तक का बंदोबस्त करने वाला राकेश गुप्ता भी घटना वाले दिन जवाहर बाग में मौजूद था लेकिन पुलिस कार्यवाही के बाद बड़े इत्मीनान से सपरिवार मथुरा पुलिस लाइन होकर रेलवे स्टेशन जा पहुंचा तथा वहां से कासगंज, बरेली व फर्रुखाबाद होकर बदायूं पहुंच गया।
गौरतलब है कि कासगंज, बरेली तथा फर्रुखाबाद व बदायूं आदि सब उसी प्रदेश के हिस्से हैं जिस प्रदेश में दो पुलिस अफसरों को निर्ममता के साथ अवैध कब्जाधारियों ने हजारों लोगों के सामने मार डाला और जिस प्रदेश की पुलिस कथित तौर पर इन अफसरों की हत्या करने वालों को पूरी शिद्दत के साथ तलाश रही थी। जिनकी गिरफ्तारी के लिए कई टीमें सक्रिय थीं और शासन स्तर से हर पल जवाब तलब किया जा रहा था क्योंकि उस पर राजनीति शुरू हो चुकी थी।
पुलिस की अब तक की पूरी कार्यवाही तथा चंदन बोस, उसकी पत्नी पूनम एवं रामवृक्ष के फायनेंसर राकेश गुप्ता की गिरफ्तारियों को देखकर तो लगता है कि जवाहर बाग कांड की लीपापोती का खेल शुरू हो चुका है और पुलिस बड़े सुनियोजित तरीके से इसका पटाक्षेप करने में लगी है।
टूटी टांग लेकर चंदन बोस का पत्नी सहित जवाहर बाग से निकल भागना, दोनों की गिरफ्तारी पूनम के घर यानि चंदन के सुसराल बस्ती जिले के एक गांव से होना। बस्ती पुलिस द्वारा सारी लिखा-पढ़ी करने व मीडिया से रूबरू होने के बाद चंदन व पूनम को मथुरा पुलिस के हवाले करना। दो दिन बाद राकेश गुप्ता की गिरफ्तारी भी उसके गृह जनपद बदायूं से होना। उसे भी बदायूं की पुलिस द्वारा पूरी लिखा-पढ़ी व कानूनी प्रक्रिया के तहत मथुरा पुलिस के सुपुर्द करना, क्या सब-कुछ एक इत्तेफाकभर है।
क्या शासन-प्रशासन नहीं जानता कि कानूनी प्रक्रिया पूरी करके किसी अपराधी को दूसरे जिले की पुलिस के सुपुर्द करने पर उससे पूछताछ के कितने ”हथियार” शेष रह जाते हैं।
दो पुलिस अधिकारियों को घेरकर मार डालने जैसे गंभीर अपराध के आरोपियों को यदि दूसरे जनपद में पकड़ा भी गया था तो क्या सारी कानूनी प्रक्रिया पूरी करके ही उन्हें उस जिले की पुलिस के सुपुर्द करना जरूरी था, जिस जिले की पुलिस उनसे बहुत कुछ उगलवा सकती थी। या यूं कहें कि जिनसे बहुत कुछ उगलवाना बेहद जरूरी था।
चंदन बोस, उसकी पत्नी पूनम तथा राकेश गुप्ता की गिरफ्तारी को देखें तो ऐसा लगता है कि जैसे इनकी गिरफ्तारी के लिए स्क्रिप्ट पहले तैयार कर ली गई तथा गिरफ्तारी उसके बाद दिखाई गई जिससे सांप मर जाए और लाठी भी न टूटे।
यही कारण है कि दो-दो पुलिस अधिकारियों की नृशंस हत्या के जिम्मेदार दोनों शातिर अपराधियों से पुलिस ऐसा कुछ नहीं उगलवा सकी जिससे यह पता लग सके कि आखिर किसके संरक्षण में रामवृक्ष पूरे दो साल तक शासन, प्रशासन व अदालतों तक को खुली चुनौती देने में कामयाब रहा। कैसे वह पूरी प्लानिंग के साथ हथियार जमा करके पुलिस-प्रशासन पर बेखौफ हमला करने का दुस्साहस कर पाया।
पुलिस यह तक पता नहीं लगा सकी कि रामवृक्ष कैसे मारा गया। उसे किसने मारा और कहां मारा।
आगरा से प्रकाशित आज के ”दैनिक हिंदुस्तान” का समाचार सच मानें तो राकेश गुप्ता ने रामवृक्ष के बारे में पुलिस को जो जानकारी दी है उसके मुताबिक रामवृक्ष को घटना के तुरंत बाद जवाहर बाग की चारदीवारी के बाहर महिला-पुरुषों की भीड़ ने पत्थर आदि से तभी मार डाला जब वह भागने की कोशिश कर रहा था। राकेश गुप्ता का कहना है कि खुद को घिरा देख वह भी कपड़े उतारकर भीड़ का हिस्सा बन गया और भीड़ के साथ रामवृक्ष पर पथराव करने लगा। उसने खुद रामवृक्ष को अपनी आंखों से मरते हुए देखा।
राकेश के दावे से ठीक विपरीत उत्तर प्रदेश पुलिस के मुखिया जाविद अहमद ने रामवृक्ष यादव की मौत का कारण जवाहर बाग में उसकी खुद की लगाई गई आग के अंदर जल जाना बताया।
डीजीपी जाविद अहमद ने जिस दिन रामवृक्ष के मारे जाने की पुष्टि पहले ट्वीट करके और फिर मीडिया को दी, उस दिन बताया कि मथुरा के एसएसपी राकेश सिंह ने उन्हें सारी जानकारी उपलब्ध कराई है तथा रामवृक्ष के शव की शिनाख्त जेल में बंद उसके एक साथी से करा ली है।
डीजीपी साहब ओर मथुरा के तत्कालीन एसएसपी राकेश सिंह क्या अब यह बतायेंगे कि यदि रामवृक्ष की मौत जवाहर बाग के अंदर उसकी खुद की लगाई गई आग से हुई थी तो राकेश गुप्ता के सामने भीड़ ने जिसे मारा वह कौन था।
उल्लेखनीय है कि रामवृक्ष यादव की मौत के इस पुलिसिया दावे को मथुरा में एडीजे-9 की कोर्ट ने भी तब खारिज कर दिया जब वह उसके खिलाफ एक अन्य मामले में जारी गैर जमानती वारंट की तामील न करा पाने का कारण उसकी मौत बताकर अपना पीछा छुड़ाना चाहती थी।
कोर्ट ने पुलिस की कहानी पर सवालिया निशान लगाते हुए उसे आदेशित किया है कि वह रामवृक्ष का डीएनए कराकर पूरे तथ्यों सहित कोर्ट के समक्ष हाजिर हो।
जहां तक सवाल चंदन बोस और उसकी पत्नी का है, तो पुलिस की पूछताछ में उन्होंने रामवृक्ष के बावत कोई जानकारी नहीं दी।
आगरा से ही प्रकाशित आज का दैनिक जागरण भी यही कहता है कि चंदन बोस से पुलिस रामवृक्ष के बारे में कुछ नहीं उगलवा सकी। सिवाय इसके के रामवृक्ष मारा जा चुका है।
ऐसा लगता है कि पुलिस भी अपने ही दो अधिकारियों की शहादत को जैसे भूलने लगी है और शहीदों के परिजनों को आर्थिक मदद करके ही अपने कर्तव्य की इतिश्री मान बैठी है।
यदि ऐसा नहीं होता तो यह कैसे संभव था कि जहां इतना बड़ा कांड हुआ, जहां के दो बड़े अफसरान डीएम व एसएसपी को घटना के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए उनका तबादला कर दिया गया, उस जिले की पुलिस रामवृक्ष के दाहिने व बाएं किसी हाथ को नहीं पकड़ सकी और मात्र खाना-पूरी करने तक सिमट कर रह गई।
जिन तेज-तर्रार एसएसपी बबलू कुमार और अनुभवी डीएम निखिल चंद्र शुक्ला को हवाई मार्ग के जरिए मथुरा भेजा गया, वो देखते रह गए और चंदन बोस तथा राकेश गुप्ता की गिरफ्तारी का श्रेय बस्ती व बदायूं की पुलिस ले गई।
क्या वाकई यह सब इत्तेफाक ही है अथवा इस सबके पीछे भी वही राजनीतिक ताकत काम कर रही है जो रामवृक्ष को दो साल तक संरक्षण देने में काम करती रही थी।
कहीं दो जांबाज अफसरों की हत्या के आरोपी चंदन बोस तथा रामवृक्ष के फायनेंसर राकेश गुप्ता सहित रामवृक्ष के पूरे गैंग और उसके संरक्षणदाताओं को बचाने के लिए ही तो यह ”सारे इत्तेफाक” नहीं हो रहे।
लगता तो ऐसा ही है क्योंकि अब तक पुलिस न तो उस असलाह को बरामद कर सकी है जिस असलाह से एसओ फरह संतोष यादव की हत्या हुई, न यह बता सकी है जब उसकी ओर से 200 राउंड फायर किए गए तो एक भी गोली किसी उपद्रवी को क्यों नहीं लगी जबकि राकेश गुप्ता की लाइसेंसी रायफल पुलिस को जवाहर बाग से मिल गई लेकिन रिवॉल्वर अब तक नहीं मिली।
नए एसएसपी बबलू कुमार ने यह तो मीडिया के समक्ष स्वीकार किया कि पुलिस की ओर 200 राउंड फायर किए गए लेकिन यह नहीं बताया कि फायर कहां तथा किसलिए किए गए।
मथुरा पुलिस ने तो घटना के 17 दिन बाद अब तक उन पुलिसकर्मियों के खिलाफ भी कोई कार्यवाही नहीं की है जो सत्याग्रह के नाम पर एकजुट हुए भेड़ियों के बीच मुकुल द्विवेदी को अकेला छोड़कर भाग खड़े हुए थे।
पुलिस के पास इस बात का भी शायद ही कोई जवाब हो कि जवाहर बाग में आगजनी करने वाले यदि कथित सत्याग्रही ही थे तो वह अपनी ही लगाई आग में कैसे जल गए और चंदन बोस, पूनम, राकेश यादव, रामवृक्ष का लड़का विवेक स्वाधीन यादव, वीरेश यादव व इनके जैसे अनेक दूसरे शातिर अपराधी कैसे बच निकलने में सफल रहे।
अब तक की पूछताछ से जो सामने आया है, उसके अनुसार जवाहर बाग की हिंसा के आरोपियों में से एकमात्र रामवृक्ष ही कथित तौर पर मारा गया है, बाकी सभी शातिर अपराधी बड़े इत्मीनान के साथ निकल गए।
अब जो पकड़े भी जा रहे हैं, वह भी अपने प्रभाव वाले दूसरे जनपदों में पकड़े जा रहे हैं ताकि मथुरा पुलिस सिर्फ खानापूरी करती रहे और कार्यवाही होती दिखाई तो दे किंतु नतीजा ढाक के तीन पात ही रहे।
अगर अब भी शहीद पुलिस अफसरों के परिजन अथवा मथुरा की जनता ऐसी कोई गलतफहमी पाले बैठी हो कि जवाहर बाग कांड का पूरा सच सामने आ पायेगा, तो उसे अपनी गलतफहमी दूर कर लेनी चाहिए क्योंकि उत्तर प्रदेश पुलिस इस इतने गंभीर व संगीन केस में भी उसी ढर्रे पर चल पड़ी है जिसके लिए वह पहचानी जाती है और जिसके कारण मुकुल द्विवेदी व संतोष यादव जैसे अफसरों को अपनी जान गंवानी पड़ती है।
सच तो यह है कि ”कोई शक्ति” लगातार इस पूरे कांड पर बारीकी से नजर रख रही है और पुलिस को हिदायत दे रही है कि उसे क्या करना है तथा कैसे करना है ताकि जवाहर बाग कांड के असली दोषियों को साफ बचाया जा सके।
विपक्षी दलों ने भी जवाहर बाग कांड पर एकसाथ चुप्पी साध ली है क्योंकि उनके हाथ अब राजनीति के लिए ”कैराना का सांप्रदायिक मुद्दा” लग चुका है। सांप्रदायिकता निश्चित ही हमेशा से राजनीतिज्ञों का पसंदीदा विषय रही है क्योंकि उससे जितना उबाल लाया जा सकता है, उतना दो पुलिस अफसरों की शहादत से संभव नहीं हो सकता। इस मामले में सारे राजनीतिक दल एक जैसे हैं। यूं भी यूपी में चुनावों की दुंदुभि बज चुकी है। चुनावों में ध्रुवीकरण के लिए आखिर जाति, धर्म, संप्रदाय की राजनीति ही काम आयेगी। जवाहर बाग में जो कुछ हुआ उसे किसी जाति, धर्म या संप्रदाय से जोड़ पाना संभव नहीं है। संभव होता तो पुलिस-प्रशासन इस तरह उसकी लीपापोती नहीं कर पाता जैसी कि अब की जा रही है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
सबसे पहले गौर करें प्रदेश ही नहीं, पूरे देश को हिला देने वाले इस कांड की पहली महत्वपूर्ण गिरफ्तारी पर। यह गिरफ्तारी हुई चंदन बोस नामक उस व्यक्ति की जिसे रामवृक्ष यादव का दाहिना हाथ कहा जा रहा है। चंदन बोस की गिरफ्तारी जनपद बस्ती के परशुरामपुर थाना क्षेत्र अंतर्गत गांव कैथेलिया से बस्ती जिले की ही क्राइम ब्रांच (स्वाट टीम) करती है। पुलिस के अनुसार यह गांव चंदन बोस की ससुराल है और जवाहर बाग कांड को अंजाम देने के बाद से वह अपनी पत्नी सहित यहीं रह रहा था।
पुलिस के अनुसार चंदन बोस की पत्नी भी उसकी हर आपराधिक गतिविधि में समान रूप से साझीदार थी और रामवृक्ष के गैंग में महिला विंग की कमांडर थी। इस तरह देखा जाए तो बस्ती पुलिस ने एक नहीं, दो बड़े अपराधियों को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की। ऐसे दो बड़े अपराधी जो रामवृक्ष की पल-पल की जानकारी रखते थे और जवाहर बाग के पूरे सच से भली प्रकार वाकिफ थे।
अब देखिए कितने आश्चर्य की बात है कि जिस जवाहर बाग कांड पर न सिर्फ प्रदेश सरकार की नजर गढ़ी थी बल्कि विपक्षी दल भी पूरी तरह सक्रिय हो चुके थे और अपराधियों की धर-पकड़ के लिए मथुरा पुलिस ने कई टीमें गठित कर दी थीं, उस कांड के सरगना का दाहिना हाथ अपनी अपराधी पत्नी सहित पकड़ा जाता है मथुरा से करीब 650 किलोमीटर दूर बस्ती जिले के एक गांव में।
यही नहीं, बस्ती के पुलिस अधीक्षक चंदन बोस की गिरफ्तारी पर बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस करते हैं, और पूरी जानकारी मीडिया को देते हैं।
जाहिर है कि इसके बाद मथुरा पुलिस की भूमिका शुरू होती है और वो चंदन बोस व उसकी पत्नी को लेने के लिए जनपद बस्ती पहुंचती है।
जब बस्ती पुलिस ने चंदन बोस और उसकी पत्नी पूनम की अपने यहां कानूनन गिरफ्तारी प्रेस कांफ्रेंस करके दिखा दी तो मथुरा पुलिस के हाथ में रह क्या जाता है, सिवाय लकीर पीटने के।
मथुरा पुलिस चूंकि सारी कानूनी औपचारिकता पूरी करके चंदन और उसकी पत्नी को मथुरा लाई थी इसलिए न तो वह उन पर अपने चिर-परिचित हथकंडे इस्तेमाल कर सकती थी और न उनसे कोई बड़ा राज उगलवा सकती थी।
ऐसे में चंदन बोस ने वही सब बताया जो कई दिन पहले से अखबारों में छपता रहा था। उसने न तो रामवृक्ष को लेकर कोई जानकारी दी और न यह बताकर दिया कि आखिर रामवृक्ष रूपी विषबेल को दो साल तक खाद-पानी कहां से मिलता रहा। किसके इशारे पर वह 280 एकड़ में फैले सरकारी जवाहर बाग को कब्जाने का ख्वाब देख रहा था। क्यों पुलिस प्रशासन उनकी गालियां खाकर और जलील होकर भी उनके सामने असहाय बना रहा।
चंदन बोस और उसकी पत्नी पूनम की गिरफ्तारी के बाद फोटो सहित छपे समाचारों में देखा गया कि चंदन बोस को दो पुलिस वाले अपने कंधों का सहारा देकर ले जा रहे हैं। इसका तात्पर्य यह है कि चंदन बोस अपने बूते चलने-फिरने की स्थिति में भी नहीं था।
यहां एक सीधा सवाल यह खड़ा होता है कि जब चंदन बोस की घटना वाले दिन ही जवाहर बाग में टांग टूट गई थी और वह चलने फिरने लायक भी नहीं रह गया था तो कैसे वह मथुरा से 650 किलोमीटर दूर अपनी ससुराल जा पहुंचा। उसने अपनी टांग पर प्लास्टर ससुराल पहुंचने के बाद करवाया या कहीं बीच में इलाज कराकर ससुराल तक जा सका।
क्या इस सब काम में उसकी किसी ने मदद की, और की तो वह मददगार कौन था।
घटना के तुरंत बाद जब पूरे प्रदेश की पुलिस में एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी तथा एसओ संतोष यादव की जान लेने वालों के प्रति भारी उबाल था और मथुरा के लोग तो जवाहर बाग के कथित सत्याग्रहियों को ढूंढ-ढूंढ कर पीट रहे थे तब कैसे चंदन बोस अपनी पत्नी व बच्चों सहित टूटी हुई टांग से सैकड़ों किलोमीटर दूर पहुंचने में कामयाब हो गया। क्या इस बीच उसे कहीं भी किसी जिले की पुलिस ने नहीं देखा।
अब जरा गौर करें जवाहर बाग कांड की दूसरी सबसे बड़ी गिरफ्तारी पर। यह गिरफ्तारी बदायूं पुलिस ने शुक्रवार 17 जून को की। गिरफ्तार किया गया शख्स राकेश गुप्ता बदायूं के ही थाना हजरतपुर अंतर्गत गांव शहापुर का निवासी है।
रामवृक्ष को लाखों रुपए खुद देने से लेकर जवाहर बाग में मौजूद हजारों लोगों के लिए रसद की व्यवस्था तथा पुलिस प्रशासन से मुकाबले के लिए हथियारों तक का बंदोबस्त करने वाला राकेश गुप्ता भी घटना वाले दिन जवाहर बाग में मौजूद था लेकिन पुलिस कार्यवाही के बाद बड़े इत्मीनान से सपरिवार मथुरा पुलिस लाइन होकर रेलवे स्टेशन जा पहुंचा तथा वहां से कासगंज, बरेली व फर्रुखाबाद होकर बदायूं पहुंच गया।
गौरतलब है कि कासगंज, बरेली तथा फर्रुखाबाद व बदायूं आदि सब उसी प्रदेश के हिस्से हैं जिस प्रदेश में दो पुलिस अफसरों को निर्ममता के साथ अवैध कब्जाधारियों ने हजारों लोगों के सामने मार डाला और जिस प्रदेश की पुलिस कथित तौर पर इन अफसरों की हत्या करने वालों को पूरी शिद्दत के साथ तलाश रही थी। जिनकी गिरफ्तारी के लिए कई टीमें सक्रिय थीं और शासन स्तर से हर पल जवाब तलब किया जा रहा था क्योंकि उस पर राजनीति शुरू हो चुकी थी।
पुलिस की अब तक की पूरी कार्यवाही तथा चंदन बोस, उसकी पत्नी पूनम एवं रामवृक्ष के फायनेंसर राकेश गुप्ता की गिरफ्तारियों को देखकर तो लगता है कि जवाहर बाग कांड की लीपापोती का खेल शुरू हो चुका है और पुलिस बड़े सुनियोजित तरीके से इसका पटाक्षेप करने में लगी है।
टूटी टांग लेकर चंदन बोस का पत्नी सहित जवाहर बाग से निकल भागना, दोनों की गिरफ्तारी पूनम के घर यानि चंदन के सुसराल बस्ती जिले के एक गांव से होना। बस्ती पुलिस द्वारा सारी लिखा-पढ़ी करने व मीडिया से रूबरू होने के बाद चंदन व पूनम को मथुरा पुलिस के हवाले करना। दो दिन बाद राकेश गुप्ता की गिरफ्तारी भी उसके गृह जनपद बदायूं से होना। उसे भी बदायूं की पुलिस द्वारा पूरी लिखा-पढ़ी व कानूनी प्रक्रिया के तहत मथुरा पुलिस के सुपुर्द करना, क्या सब-कुछ एक इत्तेफाकभर है।
क्या शासन-प्रशासन नहीं जानता कि कानूनी प्रक्रिया पूरी करके किसी अपराधी को दूसरे जिले की पुलिस के सुपुर्द करने पर उससे पूछताछ के कितने ”हथियार” शेष रह जाते हैं।
दो पुलिस अधिकारियों को घेरकर मार डालने जैसे गंभीर अपराध के आरोपियों को यदि दूसरे जनपद में पकड़ा भी गया था तो क्या सारी कानूनी प्रक्रिया पूरी करके ही उन्हें उस जिले की पुलिस के सुपुर्द करना जरूरी था, जिस जिले की पुलिस उनसे बहुत कुछ उगलवा सकती थी। या यूं कहें कि जिनसे बहुत कुछ उगलवाना बेहद जरूरी था।
चंदन बोस, उसकी पत्नी पूनम तथा राकेश गुप्ता की गिरफ्तारी को देखें तो ऐसा लगता है कि जैसे इनकी गिरफ्तारी के लिए स्क्रिप्ट पहले तैयार कर ली गई तथा गिरफ्तारी उसके बाद दिखाई गई जिससे सांप मर जाए और लाठी भी न टूटे।
यही कारण है कि दो-दो पुलिस अधिकारियों की नृशंस हत्या के जिम्मेदार दोनों शातिर अपराधियों से पुलिस ऐसा कुछ नहीं उगलवा सकी जिससे यह पता लग सके कि आखिर किसके संरक्षण में रामवृक्ष पूरे दो साल तक शासन, प्रशासन व अदालतों तक को खुली चुनौती देने में कामयाब रहा। कैसे वह पूरी प्लानिंग के साथ हथियार जमा करके पुलिस-प्रशासन पर बेखौफ हमला करने का दुस्साहस कर पाया।
पुलिस यह तक पता नहीं लगा सकी कि रामवृक्ष कैसे मारा गया। उसे किसने मारा और कहां मारा।
आगरा से प्रकाशित आज के ”दैनिक हिंदुस्तान” का समाचार सच मानें तो राकेश गुप्ता ने रामवृक्ष के बारे में पुलिस को जो जानकारी दी है उसके मुताबिक रामवृक्ष को घटना के तुरंत बाद जवाहर बाग की चारदीवारी के बाहर महिला-पुरुषों की भीड़ ने पत्थर आदि से तभी मार डाला जब वह भागने की कोशिश कर रहा था। राकेश गुप्ता का कहना है कि खुद को घिरा देख वह भी कपड़े उतारकर भीड़ का हिस्सा बन गया और भीड़ के साथ रामवृक्ष पर पथराव करने लगा। उसने खुद रामवृक्ष को अपनी आंखों से मरते हुए देखा।
राकेश के दावे से ठीक विपरीत उत्तर प्रदेश पुलिस के मुखिया जाविद अहमद ने रामवृक्ष यादव की मौत का कारण जवाहर बाग में उसकी खुद की लगाई गई आग के अंदर जल जाना बताया।
डीजीपी जाविद अहमद ने जिस दिन रामवृक्ष के मारे जाने की पुष्टि पहले ट्वीट करके और फिर मीडिया को दी, उस दिन बताया कि मथुरा के एसएसपी राकेश सिंह ने उन्हें सारी जानकारी उपलब्ध कराई है तथा रामवृक्ष के शव की शिनाख्त जेल में बंद उसके एक साथी से करा ली है।
डीजीपी साहब ओर मथुरा के तत्कालीन एसएसपी राकेश सिंह क्या अब यह बतायेंगे कि यदि रामवृक्ष की मौत जवाहर बाग के अंदर उसकी खुद की लगाई गई आग से हुई थी तो राकेश गुप्ता के सामने भीड़ ने जिसे मारा वह कौन था।
उल्लेखनीय है कि रामवृक्ष यादव की मौत के इस पुलिसिया दावे को मथुरा में एडीजे-9 की कोर्ट ने भी तब खारिज कर दिया जब वह उसके खिलाफ एक अन्य मामले में जारी गैर जमानती वारंट की तामील न करा पाने का कारण उसकी मौत बताकर अपना पीछा छुड़ाना चाहती थी।
कोर्ट ने पुलिस की कहानी पर सवालिया निशान लगाते हुए उसे आदेशित किया है कि वह रामवृक्ष का डीएनए कराकर पूरे तथ्यों सहित कोर्ट के समक्ष हाजिर हो।
जहां तक सवाल चंदन बोस और उसकी पत्नी का है, तो पुलिस की पूछताछ में उन्होंने रामवृक्ष के बावत कोई जानकारी नहीं दी।
आगरा से ही प्रकाशित आज का दैनिक जागरण भी यही कहता है कि चंदन बोस से पुलिस रामवृक्ष के बारे में कुछ नहीं उगलवा सकी। सिवाय इसके के रामवृक्ष मारा जा चुका है।
ऐसा लगता है कि पुलिस भी अपने ही दो अधिकारियों की शहादत को जैसे भूलने लगी है और शहीदों के परिजनों को आर्थिक मदद करके ही अपने कर्तव्य की इतिश्री मान बैठी है।
यदि ऐसा नहीं होता तो यह कैसे संभव था कि जहां इतना बड़ा कांड हुआ, जहां के दो बड़े अफसरान डीएम व एसएसपी को घटना के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए उनका तबादला कर दिया गया, उस जिले की पुलिस रामवृक्ष के दाहिने व बाएं किसी हाथ को नहीं पकड़ सकी और मात्र खाना-पूरी करने तक सिमट कर रह गई।
जिन तेज-तर्रार एसएसपी बबलू कुमार और अनुभवी डीएम निखिल चंद्र शुक्ला को हवाई मार्ग के जरिए मथुरा भेजा गया, वो देखते रह गए और चंदन बोस तथा राकेश गुप्ता की गिरफ्तारी का श्रेय बस्ती व बदायूं की पुलिस ले गई।
क्या वाकई यह सब इत्तेफाक ही है अथवा इस सबके पीछे भी वही राजनीतिक ताकत काम कर रही है जो रामवृक्ष को दो साल तक संरक्षण देने में काम करती रही थी।
कहीं दो जांबाज अफसरों की हत्या के आरोपी चंदन बोस तथा रामवृक्ष के फायनेंसर राकेश गुप्ता सहित रामवृक्ष के पूरे गैंग और उसके संरक्षणदाताओं को बचाने के लिए ही तो यह ”सारे इत्तेफाक” नहीं हो रहे।
लगता तो ऐसा ही है क्योंकि अब तक पुलिस न तो उस असलाह को बरामद कर सकी है जिस असलाह से एसओ फरह संतोष यादव की हत्या हुई, न यह बता सकी है जब उसकी ओर से 200 राउंड फायर किए गए तो एक भी गोली किसी उपद्रवी को क्यों नहीं लगी जबकि राकेश गुप्ता की लाइसेंसी रायफल पुलिस को जवाहर बाग से मिल गई लेकिन रिवॉल्वर अब तक नहीं मिली।
नए एसएसपी बबलू कुमार ने यह तो मीडिया के समक्ष स्वीकार किया कि पुलिस की ओर 200 राउंड फायर किए गए लेकिन यह नहीं बताया कि फायर कहां तथा किसलिए किए गए।
मथुरा पुलिस ने तो घटना के 17 दिन बाद अब तक उन पुलिसकर्मियों के खिलाफ भी कोई कार्यवाही नहीं की है जो सत्याग्रह के नाम पर एकजुट हुए भेड़ियों के बीच मुकुल द्विवेदी को अकेला छोड़कर भाग खड़े हुए थे।
पुलिस के पास इस बात का भी शायद ही कोई जवाब हो कि जवाहर बाग में आगजनी करने वाले यदि कथित सत्याग्रही ही थे तो वह अपनी ही लगाई आग में कैसे जल गए और चंदन बोस, पूनम, राकेश यादव, रामवृक्ष का लड़का विवेक स्वाधीन यादव, वीरेश यादव व इनके जैसे अनेक दूसरे शातिर अपराधी कैसे बच निकलने में सफल रहे।
अब तक की पूछताछ से जो सामने आया है, उसके अनुसार जवाहर बाग की हिंसा के आरोपियों में से एकमात्र रामवृक्ष ही कथित तौर पर मारा गया है, बाकी सभी शातिर अपराधी बड़े इत्मीनान के साथ निकल गए।
अब जो पकड़े भी जा रहे हैं, वह भी अपने प्रभाव वाले दूसरे जनपदों में पकड़े जा रहे हैं ताकि मथुरा पुलिस सिर्फ खानापूरी करती रहे और कार्यवाही होती दिखाई तो दे किंतु नतीजा ढाक के तीन पात ही रहे।
अगर अब भी शहीद पुलिस अफसरों के परिजन अथवा मथुरा की जनता ऐसी कोई गलतफहमी पाले बैठी हो कि जवाहर बाग कांड का पूरा सच सामने आ पायेगा, तो उसे अपनी गलतफहमी दूर कर लेनी चाहिए क्योंकि उत्तर प्रदेश पुलिस इस इतने गंभीर व संगीन केस में भी उसी ढर्रे पर चल पड़ी है जिसके लिए वह पहचानी जाती है और जिसके कारण मुकुल द्विवेदी व संतोष यादव जैसे अफसरों को अपनी जान गंवानी पड़ती है।
सच तो यह है कि ”कोई शक्ति” लगातार इस पूरे कांड पर बारीकी से नजर रख रही है और पुलिस को हिदायत दे रही है कि उसे क्या करना है तथा कैसे करना है ताकि जवाहर बाग कांड के असली दोषियों को साफ बचाया जा सके।
विपक्षी दलों ने भी जवाहर बाग कांड पर एकसाथ चुप्पी साध ली है क्योंकि उनके हाथ अब राजनीति के लिए ”कैराना का सांप्रदायिक मुद्दा” लग चुका है। सांप्रदायिकता निश्चित ही हमेशा से राजनीतिज्ञों का पसंदीदा विषय रही है क्योंकि उससे जितना उबाल लाया जा सकता है, उतना दो पुलिस अफसरों की शहादत से संभव नहीं हो सकता। इस मामले में सारे राजनीतिक दल एक जैसे हैं। यूं भी यूपी में चुनावों की दुंदुभि बज चुकी है। चुनावों में ध्रुवीकरण के लिए आखिर जाति, धर्म, संप्रदाय की राजनीति ही काम आयेगी। जवाहर बाग में जो कुछ हुआ उसे किसी जाति, धर्म या संप्रदाय से जोड़ पाना संभव नहीं है। संभव होता तो पुलिस-प्रशासन इस तरह उसकी लीपापोती नहीं कर पाता जैसी कि अब की जा रही है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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