मंगलवार, 31 जनवरी 2012

दवा परीक्षण:जिंदगी का सौदा कर रही हैं कंपनियां


हैदराबाद। विधानसभा के आसपास फैले पब्लिक गार्डन में पता रिसर्च के नाम पर दवा कंपनियों के दलाल घूमते हैं। उन दलालों का शिकार बनने वाले आम इंसान भी यहीं मिलते हैं।  इंसानी शरीर की सौदेबाजी पूरे आंध्र प्रदेश के अलग अलग हिस्सों में जारी है और इसकी एक मंडी है सूबे की विधानसभा के बाहर वो जगह जो आम आदमी को उम्मीद बंधाती है कि उसके अधिकारों के लिए आवाज उठाई जाएगी लेकिन इसी के बाहर उसके अधिकारों को कुचला जा रहा है। खुलआम घूमते दलाल पेट की आग बुझाने में नाकाम लोगों का सौदा कर रहे हैं।
विधानसभा के नजदीक मिले दलालों से जब ऐसे लोगों को इकट्ठा करने को कहा गया जिन पर नई दवा की रिसर्च की जा सके। तो ऐसा लगा ये उनका रोज का काम हो। उसने विधानसभा परिसर के जुबली हाल के पास मिलने के लिए बुला लिया। वहां करीब एक दर्जन मजदूर मौजूद थे।
यानि सिर्फ पैसों के लिए ये लोग अपनी जिंदगी अनजान हाथों में सौंपने पर मजबूर हैं। इन्हें इस बात की भी फिक्र नहीं कि दवा के परीक्षण के बाद उन्हें खतरनाक बीमारियां हो सकती हैं। इन्हें तो बस इतना मालूम है कि अगर वो सौदा नहीं करेंगे तो शाम को इनके घर चूल्हा नहीं जलेगा। इनमें कुछ लड़के भी थे उनकी उम्र महज 18 से 20 साल थी।
दलाल अच्छी तरह जानते हैं कि ट्रायल के दौरान अगर मौत हो गई तो क्या करना है। शातिर दवा कंपनियां अनपढ़ और मजबूर मजदूरों से एक डिक्लेरेशन पर साइन करवाती हैं और इसके बाद उस मजदूर की जिंदगी गिरवी रख जाती है।
इसके अलावा चेन्नई जहां ट्रायल के लिए महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश से 80 लोग लाए गए थे। उनमें से एक शख्स ने खुलासा किया कि एक बार ट्रायल के लिए लैब में घुसने के बाद बाहर की दुनिया उनके लिए अनजानी होती है।
वो बताते हैं कि ज़्यादातर लोग मज़बूरी में पैसे के लिये ये सौदेबाजी करते हैं..अन्दर मोबाइल भी नहीं अलाउड होता है...जब तक अंदर रहो, बाहर से कोई कॉन्टेक्ट नहीं रहता..
फार्मा कंपनियों के लिए बेसहारा और अनपढ़ सबसे अच्छा मोहरा होते हैं क्योंकि उनकी जिंदगी-मौत की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती। अगर वो किस्मत वाले हुए तो जिंदा बाहर आते हैं, नहीं तो उनकी लाश और मुश्किल ये कि इसका पता तक किसी को नहीं चलता।

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