ब्राह्मण बनाम वैश्य का खेल |
ब्राह्मण बनाम वैश्य के फेर में उलझी पार्टी
''लीजेण्ड न्यूज़ विशेष''
जनपद की शहरी सीट पर भाजपा द्वारा अब तक अपने पत्ते न खोलने से एक ओर जहां कार्यकर्ताओं में निराशा घर करने लगी है वहीं दूसरी ओर आमजन के बीच भी अच्छा संदेश नहीं जा रहा।
खुद को अनुशासित पार्टी कहने वाली भाजपा के मथुरा को लेकर पिछले कुछ समय से लिये जा रहे निर्णय आत्मघाती साबित हुए हैं। ऐसे में यह कहना अतिशयोक्ित नहीं होगा कि भाजपा की मथुरा-वृंदावन जैसी महत्वपूर्ण सीट को लेकर की जा रही लेट-लतीफी कहीं इस बार भी उसके लिए आत्मघाती साबित न हो।
वर्ष 2009 में हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा ने कार्यकर्ताओं की इच्छा को दरकिनार कर रालोद से हुए पैक्ट के तहत उसके युवराज जयंत चौधरी को चुनाव लड़वाया जिसके परिणाम स्वरूप जयंत चौधरी तो भारी मतों से जीत गये लेकिन भाजपा हार गई।
भाजपा में तब पैदा हुआ बिखराव आज तक कायम है और इसी बिखराव के चलते पार्टी को मथुरा-वृंदावन जैसी महत्वपूर्ण सीट पर प्रत्याशी घोषित करने में कठिनाई हो रही है। वो भी तब जबकि सभी प्रमुख पार्टियों ने अपने-अपने प्रत्याशी घोषित करके ऊहापोह की स्िथति समाप्त कर दी है।
शहरी सीट पर अब तक प्रत्याशी घोषित न कर पाने सम्बन्धी भाजपा की इस दयनीय दशा के बारे में जब ''लीजेण्ड न्यूज़'' ने पार्टी के ही अंदरूनी सूत्रों को खंगाला तो मालूम हुआ कि वहां आज तक शिकवा-शिकायतों का दौर जारी है।
जिन लोगों पर यहां का प्रत्याशी फाइनल कराने की जिम्मेदारी है, वही ऊपर बैठे लोगों को यह समझाने में लगे हैं कि मथुरा-वृंदावन विधानसभा सीट ब्राह्मणों के वर्चस्व वाली है इसलिए यहां से किसी ब्राह्मण को ही चुनाव लड़वाया जाए।
इसके लिए वह अपने पक्ष में रासाचार्य स्वामी रामस्वरूप शर्मा के चुने जाने तथा पिछले चुनाव में मुरारी अग्रवाल को मिली हार का उदाहरण देते हैं।
सच तो यह है कि इस तरह की बातें पार्टी के अंदर व्याप्त अंतर्कलह का नतीजा हैं अन्यथा सब समझ रहे हैं कि जब बसपा द्वारा पुष्पा शर्मा को इस सीट पर चुनाव लड़ने की हरी झण्डी दी जा चुकी है तो अब इस सीट पर भाजपा द्वारा किसी ब्राह्मण को चुनाव मैदान में उतारा जाना समझदारी का परिचय नहीं देगा और इसका सीधा लाभ पार्टी का निकटतम प्रतिद्वंदी उठायेगा।
उल्लेखनीय है कि मथुरा-वृंदावन विधानसभा सीट पर भाजपा में जो नाम चल रहे हैं उनमें एक ओर देवेन्द्र शर्मा, एस के शर्मा, सतीश शर्मा, सोहनलाल शर्मा आदि हैं तो दूसरी ओर पूर्व मंत्री रविकांत गर्ग तथा पिछला विधानसभा चुनाव लड़ चुके मुरारी अग्रवाल हैं।
पार्टी के सूत्रों की मानें तो ब्राह्मण और वैश्य के बीच में उलझी इस सीट को लेकर यहां तक कहा जा रहा है कि यदि इस बार किसी ब्राह्मण को टिकट नहीं दिया गया तो पार्टी की फूट सड़क पर दिखाई देगी।
ब्राह्मण बनाम वैश्य के खेल की बुनियाद में पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान दिया गया आश्वासन बताया गया।
दरअसल पिछले विधानसभा चुनाव में जब मुरारी अग्रवाल को प्रत्याशी बनाया गया तब ब्राह्मण दावेदारों को यह कहकर शांत कर दिया गया था कि अगला चुनाव किसी ब्राह्मण को ही लड़वाया जायेगा लेकिन अब हालात दूसरे पैदा हो चुके हैं।
बसपा ने डॉ. अशोक अग्रवाल को एकबार फिर ऐन वक्त पर झटका देकर पुष्पा शर्मा की टिकट फाइनल कर दी है।
इस बारे में भाजपा के अंदर यह दलील दी जा रही है कि पुष्पा शर्मा को ब्राह्मणों का एक बड़ा वर्ग ब्राह्मण ही नहीं मानता इसलिए उसका खड़ा होना इस मायने में अहमियत नहीं रखता।
जो भी हो लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि भारतीय जनता पार्टी द्वारा मथुरा-वृंदावन जैसी महत्वपूर्ण सीट पर अब तक कोई नाम फाइनल न किये जाने का संदेश अच्छा नहीं जा रहा और इससे कहीं न कहीं भाजपा कमजोर पड़ती दिखाई दे रही है क्योंकि इससे वह प्रचार में तो पिछड़ ही रही है, अंतर्कलह की शिकार भी हो रही है।
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