यौन उत्पीड़न के 20 मामलों में टेक्सास की हेज काउन्टी ज्यूरी से 18 महीने
पहले 14 वर्ष की सजा प्राप्त होने के बाद फरार हुए तथाकथित धार्मिक गुरू
प्रकाशानंद सरस्वती के बारे में अमेरिका के संघीय अधिकारी इस आशय का
अनुमान लगा रहे हैं कि वह अपने धार्मिक अनुयायियों की मदद से भारत भाग आया
है। उनका यह अनुमान काफी हद तक ठीक भी है लेकिन 'लीजेण्ड न्यूज़' ने जब
इस बावत और पड़ताल की तो चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं।
कभी स्वामी प्रकाशानंद सरस्वती के नजदीक रहे सूत्रों पर भरोसा करें तो यह भी संभव है कि उसकी हत्या कर दी गई हो।
इन सूत्रों के मुताबिक जब मार्च 2011 के दौरान टेक्सास में प्रकाशानंद पर एक के बाद एक यौन उत्पीड़न के 20 आरोप लगाये गये तो उनसे जुड़ी वृंदावन व मथुरा की धार्मिक संस्थाओं के संचालक काफी परेशान हो गये थे। इन लोगों ने तभी से प्रकाशानंद को लेकर षड्यंत्र बना लिया था और उसके अनुसार योजना पर अमल करते रहे।
बताया जाता है कि धर्म का धंधा करने वाले इन तत्वों ने सबसे पहले प्रकाशानंद की जमानत का इंतजाम किया ताकि उसे कहीं से ऐसा न लगे कि कल तक उनके संरक्षक रहे ये लोग अब उससे किनारा करना चाहते हैं।
सूत्रों के मुताबिक जैसे ही प्रकाशानंद को 12 लाख के जमानती बांड एवं प्रॉमिसरी नोट पर जमानत दी गई, तुरंत उसे वहां से भगा दिया गया जिसकी व्यवस्था पहले से की जा चुकी थी।
प्रकाशानंद जैसी ही सीरत वाले इन तत्वों ने योजना के अनुसार उसकी फरारी के तत्काल बाद इस आशय की खबर फैलाई की बीमारी के चलते प्रकाशानंद का स्वर्गवास हो चुका है। कुछ समय तक लोगों ने इस अफवाह पर भरोसा भी किया पर बाद में इन्हीं के भव्य आश्रमों से छन-छन कर असलियत बाहर आने लगी।
दरअसल प्रकाशानंद की मौत का प्रचार कराने के पीछे भी वही पूर्व नियोजित षड्यंत्र था।
आश्रम के सूत्र बताते हैं कि संरक्षणदाताओं ने फरारी काट रहे प्रकाशानंद को यह समझाया कि यदि अदालत आपको बरी कर देती है तो ठीक अन्यथा आपकी मौत का समाचार आपको बचाने में मददगार रहेगा। प्रकाशानंद के पास इसके लिए स्वीकृति देने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं था लेकिन षड्यंत्रकारियों के दिमाग ने खतरनाक योजना बना रखी थी।
षड्यंत्रकारियों ने सोच रखा था कि अदालत से दोषसिद्ध होने की स्थिति में प्रकाशानंद की मौत का पूर्व प्रचारित खेल बहुत काम आयेगा। ऐसे में प्रकाशानंद को ठिकाने लगाना उनके लिए आसान हो जाना था।
षड्यंत्रकारियों ने इस दौरान एक काम और किया। प्रकाशानंद से कहा कि वह अपने आधिपत्य वाले सभी भव्य आश्रमों से छुटकारा पा लें ताकि किसी को उनकी वृंदावन व बरसाना में मौजूदगी का पता न चल पाये।
प्रकाशानंद से यह सब कराने के बाद उसे अयोध्या ले जाया गया जहां का वह मूल निवासी बताया जाता है।
अयोध्या ले जाये जाने के बाद से प्रकाशानंद का कोई पता नहीं है।
यहां एक सवाल यह पैदा होता है कि कभी प्रकाशानंद को बड़े गर्व के साथ अपना हमसफर बताने वाले उसके संरक्षणदाता ने उसे ठिकाने लगवाने जैसा कदम आखिर क्यों उठाया ?
इसके सवाल का जवाब आश्रम के ही सूत्र कुछ यूं देते हैं-
प्रकाशानंद को ठिकाने लगवाने की सबसे बड़ी वजह तो उसके द्वारा अर्जित की गई वो अकूत चल व अचल संपत्ति थी जिस पर उसके जीवित रहते उसी का आधिपत्य बना रहता।
दूसरी वजह एक लंबे समय से धार्मिक चोले में चल रहा यौन उत्पीड़न का वह कृत्य था, जिस पर अदालत की मोहर लग जाने के बाद साफ-सफाई की गुंजाइश नहीं रह गई थी।
चूंकि प्रकाशानंद के संरक्षणदाता भी पहले खुद इस तरह के आरोपों से जैसे-तैसे खुद को निकाल पाये थे इसलिए वो नहीं चाहते थे कि अदालत का ठप्पा लगने के बाद होने वाली बदनामी को वह भी ढोए ।
कभी स्वामी प्रकाशानंद सरस्वती के नजदीक रहे सूत्रों पर भरोसा करें तो यह भी संभव है कि उसकी हत्या कर दी गई हो।
इन सूत्रों के मुताबिक जब मार्च 2011 के दौरान टेक्सास में प्रकाशानंद पर एक के बाद एक यौन उत्पीड़न के 20 आरोप लगाये गये तो उनसे जुड़ी वृंदावन व मथुरा की धार्मिक संस्थाओं के संचालक काफी परेशान हो गये थे। इन लोगों ने तभी से प्रकाशानंद को लेकर षड्यंत्र बना लिया था और उसके अनुसार योजना पर अमल करते रहे।
बताया जाता है कि धर्म का धंधा करने वाले इन तत्वों ने सबसे पहले प्रकाशानंद की जमानत का इंतजाम किया ताकि उसे कहीं से ऐसा न लगे कि कल तक उनके संरक्षक रहे ये लोग अब उससे किनारा करना चाहते हैं।
सूत्रों के मुताबिक जैसे ही प्रकाशानंद को 12 लाख के जमानती बांड एवं प्रॉमिसरी नोट पर जमानत दी गई, तुरंत उसे वहां से भगा दिया गया जिसकी व्यवस्था पहले से की जा चुकी थी।
प्रकाशानंद जैसी ही सीरत वाले इन तत्वों ने योजना के अनुसार उसकी फरारी के तत्काल बाद इस आशय की खबर फैलाई की बीमारी के चलते प्रकाशानंद का स्वर्गवास हो चुका है। कुछ समय तक लोगों ने इस अफवाह पर भरोसा भी किया पर बाद में इन्हीं के भव्य आश्रमों से छन-छन कर असलियत बाहर आने लगी।
दरअसल प्रकाशानंद की मौत का प्रचार कराने के पीछे भी वही पूर्व नियोजित षड्यंत्र था।
आश्रम के सूत्र बताते हैं कि संरक्षणदाताओं ने फरारी काट रहे प्रकाशानंद को यह समझाया कि यदि अदालत आपको बरी कर देती है तो ठीक अन्यथा आपकी मौत का समाचार आपको बचाने में मददगार रहेगा। प्रकाशानंद के पास इसके लिए स्वीकृति देने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं था लेकिन षड्यंत्रकारियों के दिमाग ने खतरनाक योजना बना रखी थी।
षड्यंत्रकारियों ने सोच रखा था कि अदालत से दोषसिद्ध होने की स्थिति में प्रकाशानंद की मौत का पूर्व प्रचारित खेल बहुत काम आयेगा। ऐसे में प्रकाशानंद को ठिकाने लगाना उनके लिए आसान हो जाना था।
षड्यंत्रकारियों ने इस दौरान एक काम और किया। प्रकाशानंद से कहा कि वह अपने आधिपत्य वाले सभी भव्य आश्रमों से छुटकारा पा लें ताकि किसी को उनकी वृंदावन व बरसाना में मौजूदगी का पता न चल पाये।
प्रकाशानंद से यह सब कराने के बाद उसे अयोध्या ले जाया गया जहां का वह मूल निवासी बताया जाता है।
अयोध्या ले जाये जाने के बाद से प्रकाशानंद का कोई पता नहीं है।
यहां एक सवाल यह पैदा होता है कि कभी प्रकाशानंद को बड़े गर्व के साथ अपना हमसफर बताने वाले उसके संरक्षणदाता ने उसे ठिकाने लगवाने जैसा कदम आखिर क्यों उठाया ?
इसके सवाल का जवाब आश्रम के ही सूत्र कुछ यूं देते हैं-
प्रकाशानंद को ठिकाने लगवाने की सबसे बड़ी वजह तो उसके द्वारा अर्जित की गई वो अकूत चल व अचल संपत्ति थी जिस पर उसके जीवित रहते उसी का आधिपत्य बना रहता।
दूसरी वजह एक लंबे समय से धार्मिक चोले में चल रहा यौन उत्पीड़न का वह कृत्य था, जिस पर अदालत की मोहर लग जाने के बाद साफ-सफाई की गुंजाइश नहीं रह गई थी।
चूंकि प्रकाशानंद के संरक्षणदाता भी पहले खुद इस तरह के आरोपों से जैसे-तैसे खुद को निकाल पाये थे इसलिए वो नहीं चाहते थे कि अदालत का ठप्पा लगने के बाद होने वाली बदनामी को वह भी ढोए ।
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