बाबा के परलोक सिधारने के बाद उनके गरीब-गुरबा
भक्तों के लिए ''जय गुरुदेव नाम परमात्मा का'' है या नहीं, यह बता पाना
तो आसान नहीं है पर इसमें कोई दो राय नहीं कि बाबा के करोड़ों रुपये डकार
जाने का मन बना चुके बहुत से लोग अब बाबा के नाम की माला जरूर जप रहे होंगे
क्योंकि उनके लिए अवश्य ही ''जय गुरुदेव नाम परमात्मा का'' ही साबित हो
रहा है।
(लीजेण्ड न्यूज़ विशेष)
खुद को परमात्मा प्रचारित करके अपने अनुयायियों को सतयुग आने का सब्जबाग दिखाते-दिखाते बाबा जय गुरुदेव तो काल के गाल में समा गये लेकिन अब उनकी अकूत संपत्ति पर कब्जे को लेकर तथाकथित शिष्यों के बीच उपजा विवाद तमाम दूसरे लोगों को भारी लाभ पहुंचा रहा है।
उल्लेखनीय है कि ''जय गुरुदेव नाम परमात्मा का-सतयुग आयेगा'' का ताजिंदगी प्रचार करने वाले बाबा तुलसीदास उर्फ जय गुरुदेव ने योगीराज श्रीकृष्ण की पावन जन्मभूमि मथुरा में बेशुमार चल व अचल संपत्ति अर्जित की।
बाबा का शरीर जब तक पूरी तरह सक्रिय रहा तब तक तो सारी संपदा पर भी उन्ही का आधिपत्य था लेकिन जैसे-जैसे शरीर ने उनका साथ देना कम किया, वैसे-वैसे उनके इर्द-गिर्द जमा लोगों ने संपत्ति और बाबा दोनों पर अपनी पकड़ मजबूत करनी शुरू कर दी।
अब तक जिस बाबा को स्थानीय लोग जाति से मल्लाह समझते रहे, उन्हें बाबा के निकटस्थ लोगों से पता लगा कि बाबा यादव जाति से ताल्लुक रखते हैं।
बाबा की उम्र बढ़ने के साथ-साथ एसे लोगों का आश्रम पर वर्चस्व कायम होने लगा जो अपने आपको बाबा का नजदीकी रिश्तेदार कहते थे।
बहरहाल, बाबा जय गुरुदेव द्वारा अर्जित हजारों करोड़ की उस संपत्ति का विवाद तो अदालतों व थाने-चौकियों तक जा पहुंचा है जो प्रत्यक्ष दिखाई देती है लेकिन इसका एक बड़ा हिस्सा ऐसा भी है जो अप्रत्यक्ष है और जिसकी वसूली हो पाना शायद ही मुमकिन हो।
आश्रम से जुड़े सूत्र बताते हैं कि बाबा जय गुरुदेव अपने कुछ खास लोगों को माध्यम बनाकर उद्योगपतियों, व्यापारियों एवं बिल्डर्स को रुपया उधार भी देते थे।
बताया जाता है कि इस रुपये पर काफी कम मात्रा में ब्याज भी ली जाती थी, हालांकि यह नहीं कहा जा सकता कि उस ब्याज की जानकारी बाबा को थी या नहीं।
सूत्रों के मुताबिक बाबा का सर्वाधिक रुपया बिल्डर्स पर ही लगा हुआ था जिसमें मथुरा के कई बिल्डर्स शामिल हैं।
आश्रम के सूत्रों की मानें तो जय गुरुदेव ने अपने एक अनुयायी की सिफारिश पर मथुरा के एक बिल्डर को करीब 20 करोड़ रुपये दे रखे थे। इस रुपये पर 50 पैसे सैंकड़े का ब्याज लिया जाता था।
मथुरा में कई कॉलोनियों का निर्माण कर चुके इस बिल्डर से बाबा ने बीमारी की हालत में अपने पैसे वापस लेने का दबाव भी बनाया था पर बिल्डर उनसे मिलने तक नहीं गया।
दरअसल बिल्डर को पता लग चुका था कि उसे रकम दिलाने वाले माध्यम के अलावा बाबा ने उस रकम की जानकारी किसी को नहीं दी है लिहाजा उसने उक्त माध्यम को जैसे-तैसे अपने पक्ष में कर लिया और बाबा को शीघ्र रकम वापसी का भरोसा देता रहा।
बताते हैं कि अब जबकि बाबा की संपत्ति पर विवाद उत्पन्न हो चुका है और उसके समाप्त होने की भी फिलहाल कोई संभावना नजर नहीं आती तो बिल्डर को पूरे 20 करोड़ रुपया पचा जाने का अच्छा मौका हाथ लगा है।
बिल्डर के पैसा पचा जाने की प्रबल संभावना इसलिए भी है क्योंकि बाबा ने पहले ही इसमें किसी को राजदार नहीं बनाया था और जो एक राजदार है भी वह कोई दावा करने की स्थिति में नहीं है।
बाबा के तथाकथित उत्तराधिकारियों को आपस में लड़ने से फुर्सत नहीं मिल रही क्योंकि जितनी संपत्ति के लिए वह लड़ रहे हैं, उसके सामने 20 करोड़ की रकम बहुत छोटी है।
आश्रम के सूत्र बताते हैं कि बाबा द्वारा उधार दी गई रकम का यह तो केवल एक उदाहरण भर है अन्यथा ऐसे तमाम लोग मथुरा और मथुरा से बाहर भरे पड़े हैं जिन्होंने अपने उद्योग, व्यापार तथा दूसरे कारोबारों को बाबा के पैसों से पंख लगाये।
बताया जाता है कि आज उन लोगों की जैसे लॉटरी निकल आई है।
यह भी ज्ञात हुआ है कि यही लोग बाबा की संपत्ति पर उपजे विवाद को हवा दे रहे हैं क्योंकि उनका भला इसी में है।
बाबा के परलोक सिधारने के बाद उनके गरीब-गुरबा भक्तों के लिए जय गुरुदेव नाम परमात्मा का है या नहीं, यह बता पाना तो आसान नहीं है पर इसमें कोई दो राय नहीं कि बाबा के करोड़ों रुपये डकार जाने का मन बना चुका बहुत से लोग अब बाबा के नाम की माला जरूर जप रहे होंगे क्योंकि उनके लिए अवश्य ही जय गुरुदेव नाम परमात्मा का साबित हो रहा है।
(लीजेण्ड न्यूज़ विशेष)
खुद को परमात्मा प्रचारित करके अपने अनुयायियों को सतयुग आने का सब्जबाग दिखाते-दिखाते बाबा जय गुरुदेव तो काल के गाल में समा गये लेकिन अब उनकी अकूत संपत्ति पर कब्जे को लेकर तथाकथित शिष्यों के बीच उपजा विवाद तमाम दूसरे लोगों को भारी लाभ पहुंचा रहा है।
उल्लेखनीय है कि ''जय गुरुदेव नाम परमात्मा का-सतयुग आयेगा'' का ताजिंदगी प्रचार करने वाले बाबा तुलसीदास उर्फ जय गुरुदेव ने योगीराज श्रीकृष्ण की पावन जन्मभूमि मथुरा में बेशुमार चल व अचल संपत्ति अर्जित की।
बाबा का शरीर जब तक पूरी तरह सक्रिय रहा तब तक तो सारी संपदा पर भी उन्ही का आधिपत्य था लेकिन जैसे-जैसे शरीर ने उनका साथ देना कम किया, वैसे-वैसे उनके इर्द-गिर्द जमा लोगों ने संपत्ति और बाबा दोनों पर अपनी पकड़ मजबूत करनी शुरू कर दी।
अब तक जिस बाबा को स्थानीय लोग जाति से मल्लाह समझते रहे, उन्हें बाबा के निकटस्थ लोगों से पता लगा कि बाबा यादव जाति से ताल्लुक रखते हैं।
बाबा की उम्र बढ़ने के साथ-साथ एसे लोगों का आश्रम पर वर्चस्व कायम होने लगा जो अपने आपको बाबा का नजदीकी रिश्तेदार कहते थे।
बहरहाल, बाबा जय गुरुदेव द्वारा अर्जित हजारों करोड़ की उस संपत्ति का विवाद तो अदालतों व थाने-चौकियों तक जा पहुंचा है जो प्रत्यक्ष दिखाई देती है लेकिन इसका एक बड़ा हिस्सा ऐसा भी है जो अप्रत्यक्ष है और जिसकी वसूली हो पाना शायद ही मुमकिन हो।
आश्रम से जुड़े सूत्र बताते हैं कि बाबा जय गुरुदेव अपने कुछ खास लोगों को माध्यम बनाकर उद्योगपतियों, व्यापारियों एवं बिल्डर्स को रुपया उधार भी देते थे।
बताया जाता है कि इस रुपये पर काफी कम मात्रा में ब्याज भी ली जाती थी, हालांकि यह नहीं कहा जा सकता कि उस ब्याज की जानकारी बाबा को थी या नहीं।
सूत्रों के मुताबिक बाबा का सर्वाधिक रुपया बिल्डर्स पर ही लगा हुआ था जिसमें मथुरा के कई बिल्डर्स शामिल हैं।
आश्रम के सूत्रों की मानें तो जय गुरुदेव ने अपने एक अनुयायी की सिफारिश पर मथुरा के एक बिल्डर को करीब 20 करोड़ रुपये दे रखे थे। इस रुपये पर 50 पैसे सैंकड़े का ब्याज लिया जाता था।
मथुरा में कई कॉलोनियों का निर्माण कर चुके इस बिल्डर से बाबा ने बीमारी की हालत में अपने पैसे वापस लेने का दबाव भी बनाया था पर बिल्डर उनसे मिलने तक नहीं गया।
दरअसल बिल्डर को पता लग चुका था कि उसे रकम दिलाने वाले माध्यम के अलावा बाबा ने उस रकम की जानकारी किसी को नहीं दी है लिहाजा उसने उक्त माध्यम को जैसे-तैसे अपने पक्ष में कर लिया और बाबा को शीघ्र रकम वापसी का भरोसा देता रहा।
बताते हैं कि अब जबकि बाबा की संपत्ति पर विवाद उत्पन्न हो चुका है और उसके समाप्त होने की भी फिलहाल कोई संभावना नजर नहीं आती तो बिल्डर को पूरे 20 करोड़ रुपया पचा जाने का अच्छा मौका हाथ लगा है।
बिल्डर के पैसा पचा जाने की प्रबल संभावना इसलिए भी है क्योंकि बाबा ने पहले ही इसमें किसी को राजदार नहीं बनाया था और जो एक राजदार है भी वह कोई दावा करने की स्थिति में नहीं है।
बाबा के तथाकथित उत्तराधिकारियों को आपस में लड़ने से फुर्सत नहीं मिल रही क्योंकि जितनी संपत्ति के लिए वह लड़ रहे हैं, उसके सामने 20 करोड़ की रकम बहुत छोटी है।
आश्रम के सूत्र बताते हैं कि बाबा द्वारा उधार दी गई रकम का यह तो केवल एक उदाहरण भर है अन्यथा ऐसे तमाम लोग मथुरा और मथुरा से बाहर भरे पड़े हैं जिन्होंने अपने उद्योग, व्यापार तथा दूसरे कारोबारों को बाबा के पैसों से पंख लगाये।
बताया जाता है कि आज उन लोगों की जैसे लॉटरी निकल आई है।
यह भी ज्ञात हुआ है कि यही लोग बाबा की संपत्ति पर उपजे विवाद को हवा दे रहे हैं क्योंकि उनका भला इसी में है।
बाबा के परलोक सिधारने के बाद उनके गरीब-गुरबा भक्तों के लिए जय गुरुदेव नाम परमात्मा का है या नहीं, यह बता पाना तो आसान नहीं है पर इसमें कोई दो राय नहीं कि बाबा के करोड़ों रुपये डकार जाने का मन बना चुका बहुत से लोग अब बाबा के नाम की माला जरूर जप रहे होंगे क्योंकि उनके लिए अवश्य ही जय गुरुदेव नाम परमात्मा का साबित हो रहा है।
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