शुक्रवार, 11 सितंबर 2015

आत्‍मप्रशंसा से अभिभूत समाजवादी सरकार

इधर उत्‍तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों के लिए अब दो साल से भी कम समय बचा है और उधर अखिलेश यादव के नेतृत्‍व वाली समाजवादी कुनबे की सरकार अपनी आत्‍मप्रशंसा से अभिभूत है। वो उस कहावत को सिद्ध कर रही है कि दीपक जब बुझने को होता है तब ज्‍यादा रोशनी देता है।
अखिलेश यादव पर भरोसा करके जनता ने समाजवादी पार्टी को स्‍पष्‍ट बहुमत इस उम्‍मीद में दिया था कि एक ऊर्जावान युवा नेता संभवत: सूबे की सूरत बदल देगा और उत्‍तर प्रदेश की गिनती देश के उत्‍तम प्रदेशों में होने लगेगी किंतु अखिलेश यादव ने साबित कर दिया कि न तो हर चमकने वाली चीज सोना होती है तथा ना ही हर युवा ऊर्जावान हो सकता है।
आज उत्‍तर प्रदेश के हालात बद से बदतर हो चुके हैं। बात चाहे कानून-व्‍यवस्‍था की हो या फिर बिजली-पानी व सड़क आदि की। भ्रष्‍टाचार की हो अथवा औद्योगिक विकास की, रोजी-रोजगार की हो या व्‍यापार की, हर मायने में सरकार पूरी तरह फेल है और समाजवादी कुनबे को चुहलबाजी सूझ रही है।
सार्वजनिक मंचों से कभी समाजवादी कुनबे के भीष्‍मपितामह मुलायम सिंह यादव कहते हैं कि अखिलेश ब्‍यूराक्रेसी को हेंडिल करना नहीं जानते तो कभी कहते हैं कि उन्‍हें 100 में से 100 नंबर दिये जा सकते हैं।
एक पल कहते हैं कि यदि आज चुनाव हो जाएं तो हम फिर सत्‍ता में नहीं आ सकते तो दूसरे पल अपने मंत्रियों और पदाधिकारियों की फौज से पूछते हैं कि जितवा तो दोगे ना।
मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव के चचा शिवपाल यादव अधिकारियों को लेकर उन पर सार्वजनिक मंच से कटाक्ष करते हैं तो वहीं मुख्‍यमंत्री उन्‍हें जवाब देते हैं कि अब मुझे अधिकारियों को चलाना आ गया है।
तू मेरी पीठ खुजा, मैं तेरी खुजा देता हूं कि तर्ज पर पूरा समाजवादी कुनबा कभी आत्‍मप्रशंसा में मुग्‍ध हो जाता है तो कभी 2017 को याद करके अपने अंदर बैठे भय को दूर करने की कोशिश करता प्रतीत होता है।
पूरा प्रदेश बिजली की भारी किल्‍लत और कानून-व्‍यवस्‍था की बदहाली से त्रस्‍त है लेकिन समाजवादी कुनबा ”जो दिन कटें आनंद में जीवन कौ फल सोई…को चरितार्थ कर रहा है। जिनकी जुबान तक साफ नहीं है, वह नदियां साफ करने की बात कर रहे हैं। मुलायम से लेकर अखिलेश तक के बयानों को टीवी चैनल वाले अब लिखकर देने लगे हैं क्‍योंकि वह क्‍या बोल गए…इसका सिर्फ अंदाज ही लगाया जा सकता है। सुन पाना संभव नहीं है।
अखिलेश सरकार बिना कुछ सोचे-समझे भ्रष्‍टाचार का पर्याय बन चुके यादव सिंह की सुप्रीम कोर्ट में पैरवी कर रही है और सरकारी नौकरियों में यादवों की भर्ती करके सरकार का स्‍थाई रूप से यादवीकरण करने में लगी है।
कभी-कभी ऐसा लगता है कि समाजवादी कुनबे का बुझता हुआ दीपक इस प्रयास में है कि यादव सिंह जैसों को बचाकर तथा यादवों की अधिक से अधिक भर्ती करके कानून के शिकंजे से बच पाने का बेशक असफल ही सही किंतु आखिरी प्रयास कर लिया जाए। यूं भी कहते हैं पहलवानों का बुढ़ापा बड़ा कष्‍टप्रद होता है। मुलायम सिंह ने बड़ी अखाड़ेबाजी की है और अब भी अखाड़ा खोदने से बाज नहीं आ रहे। कहीं ऐसा न हो कि उनकी यही अखाड़ेबाजी उनके साथ-साथ पूरे कुनबे को ले डूबे।
नि:संदेह यादव सिंह की तूती माया सरकार में भी बोलती रही और जैसे-जैसे यादव सिंह पर सीबीआई का शिकंजा कसेगा, वैसे-वैसे मायावती की मायावी दुनिया का सच भी सामने आयेगा लेकिन समाजवादी कुनबे के भी बच पाने की उम्‍मीद कम ही है।
यादव सिंह की सही तरीके से जांच हो जाती है तो तय मानिए कि धुर-विरोधी माया-मुलायम एक ही जगह दिखाई देंगे। वो जगह कौन सी हो सकती है, इसका अंदाज लगाना कोई बहुत मुश्‍किल काम नहीं है।
फिलहाल सूबे की सत्‍ता पर काबिज समाजवादी कुनबा अपनी शान में कसीदे पढ़ता रहे या चुहलबाजी में मशगूल रहे परंतु इतना तय है कि जनता सब देख भी रही है और सुन भी रही है।
उसे पैर पटकते-पटकते जैसे तीन साल से ऊपर का समय बीत गया वैसे ही बाकी करीब दो साल भी काट लेगी लेकिन 2017 के चुनाव निश्‍चित ही अपना अंदाज कुछ अलग ही बयां करेंगे क्‍योंकि अति हर चीज की बुरी होती है। नशा चाहे सत्‍ता का हो या बोतल का, उतना ही करना चाहिए जितना खुद को झिल जाए और जिससे कोई दूसरा प्रभावित न हो। जब नशा सिर चढ़कर बोलने लगता है और दूसरों को प्रभावित करता है तो नागरिक ऐसा अभिनंदन करते हैं कि उसकी गूंज कई दशकों तक सुनाई देती है। कई बार तो उसकी गूंज में कई-कई पीढ़ियों दबकर रह जाती है।
-लीजेंड न्‍यूज़

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