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शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2024
वृंदावन के डालमिया बाग मामले में MVDA की भूमिका को लेकर VC एसबी सिंह से कुछ सीधे सवाल...
वृंदावन के डालमिया बाग मामले में मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण (MVDA) की भूमिका को लेकर VC एसबी सिंह से कुछ सीधे सवाल पूछना अब बहुत जरूरी हो गया है। इन सवालों का संबंध गुरुकृपा तपोवन नामक उस कथित रियल एस्टेट प्रोजेक्ट से है जो डालमिया बाग पर प्रस्तावित है तथा जिसकी गूंज प्रदेश की राजधानी लखनऊ के साथ-साथ देश की राजधानी दिल्ली तक सुनाई दे रही है क्योंकि इसमें निवेशकों का करीब एक हजार करोड़ रुपया फंस गया है। यही नहीं, राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (NGT) जहां इस पर जांच कमेटी गठित कर चुका है वहीं शासन के निर्देश से मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण की भूमिका को लेकर कमिश्नर आगरा मंडल द्वारा भी जांच बैठा दी गई है। इसके अतिरिक्त बाग का मालिक डालमिया परिवार इलाहाबाद हाईकोर्ट जा पहुंचा है। दरअसल, इन्हीं सब स्थिति-परिस्थितियों के मद्देनजर Legend News ने बुधवार की सुबह 9 बजकर 39 मिनट पर MVDA के VC एसबी सिंह को ये WhatsApp मैसेज भेजा-
VC महोदय ने Legend News को तो इस मैसेज का कोई जवाब देना जरूरी नहीं समझा अलबत्ता कुछ सिलेक्टेड मीडिया कर्मियों के माध्यम से MVDA की भूमिका पर लग रहे दागों को धोने की नाकाम कोशिश अवश्य की।
VC महोदय को ऐसा शायद इसलिए उपयुक्त लगा होगा क्योंकि सिलेक्टेड मीडियाकर्मी सवाल नहीं उठाते, कोई Cross question नहीं करते।
बहरहाल, VC एसबी सिंह के हवाले से गुरुवार सुबह छपी खबरों के मुताबिक 'तपोवन' के नाम से एक लेआउट 15 अगस्त 2024 को स्वीकृति के लिए पोर्टल पर अपलोड किया गया है। पेड़ों का कटान 18/19 सितंबर की रात किया गया था, जिस कारण अब 'तपोवन' के मानचित्र पर उनके द्वारा NGT में निस्तारण न होने तक रोक लगा दी गई है।
VC महोदय का कथन है कि 'तपोवन' का नक्शा फिलहाल लखनऊ स्तर पर स्क्रूटनी सेल में विचाराधीन है तथा MVDA को प्राप्त नहीं हुआ है लिहाजा न तो वह MVDA में विचाराधीन है और न ही स्वीकृत किया गया है।
VC महोदय के अनुसार पोर्टल पर दर्ज अभिलेखों में भूमि के मालिक का नाम नारायण प्रसाद डालमिया अंकित है।
बहरहाल, डालमिया बाग पर प्रस्तावित आवासीय प्रोजेक्ट को लेकिर VC महोदय का यह एक जवाब ही तमाम नए सवाल खड़े कर रहा है और MVDA की भूमिका पर संदेह तथा नक्शे पर भ्रम की स्थिति बढ़ा रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे बड़ी शिद्दत से उस पूरे अमले को बचाने की कोशिश की जा रही है जिसने कृष्ण की जन्मस्थली पर कलंक लगाने का काम किया है।
फोन रिसीव न करने, कॉल बैक न करने, मैसेज का उत्तर न देने तथा आरटीआई का भी संतोषजनक जवाब न देने के लिए 'कुख्यात' MVDA को इस बार खड़े हो रहे सवालों के जवाब किसी न किसी स्तर पर तो देने ही होंगे क्योंकि अब समय रहते ये उत्तर नहीं दिए गए तो अंतत: न्यापालिका सारे उत्तर मांगेगी।
जो भी हो, VC महोदय का जवाब जो कुछ महत्वपूर्ण सवाल खड़े करता है उनमें सबसे पहला सवाल तो यह है कि पोर्टल पर अपलोड किए जाने वाले नक्शों की सूचना संबंधित प्राधिकरण तक कैसे पहुंचती है और इस सूचना को पहुंचने में कितना समय लगता है?
2- क्या किसी नक्शे को स्वीकृति देने की कोई समय-सीमा शासन स्तर से निर्धारित है या प्राधिकरण अपनी सुविधानुसार समय तय करता है?
3- गुरुकृपा तपोवन का नक्शा स्वीकृति के लिए पोर्टल पर अपलोड करने की जानकारी MVDA को कब लगी, वृक्षों के अवैध कटान से पहले या बाद में?
4- वृक्षों का अवैध कटान हुए एक महीने से ऊपर का समय बीत चुका है और NGT में दायर याचिकाओं पर जांच बैठाए भी 25 दिन हो गए हैं, लेकिन MVDA अब जाकर क्यों बता रहा है कि उसने गुरुकृपा तपोवन के नक्शे पर रोक लगा दी है।
5- क्या NGT ने MVDA को इस आशय के कोई आदेश-निर्देश दिए हैं या उसने स्वत: संज्ञान लिया है?
6- यदि MVDA ने स्वत: संज्ञान लिया है तो यह तब क्यों नहीं लिया गया जब पेड़ कटने के बाद हंगामा मचना शुरू हुआ और यह बात जानकारी में आई कि न तो गुरुकृपा तपोवन का अभी कोई नक्शा पास हुआ है और न उस भूमि की रजिस्ट्री हुई है जिस पर यह प्रोजेक्ट प्रस्तावित बताया गया?
7- डालमिया परिवार द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट को दी गई सूचना बताती है कि उसने अपनी भूमि का कोई नक्शा स्वीकृति के लिए नहीं भेजा। न वो गुरुकृपा तपोवन से और न शंकर सेठ नामक किसी व्यक्ति से परिचित है। डालमिया परिवार का तो यहां तक कहना है कि उनके यहां शंकर सेठ नाम का कोई नौकर भी नहीं है। तो फिर नारायण प्रसाद डालमिया के नाम से गुरुकृपा तपोवन का नक्शा स्वीकृति के लिए किसने पोर्टल पर अपलोड कर दिया और नक्शा अपलोड करने वाले का उद्देश्य क्या था?
8- मथुरा-वृंदावन में प्रस्तावित प्रोजेक्ट्स की पूरी जानकारी स्क्रूटनी सेल को देने का जिम्मा किसका है?
9- स्क्रूटनी का मतलब ही होता है किसी चीज़ के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए उसकी सावधानीपूर्वक और विस्तृत जांच करना, तो क्या स्क्रूटनी सेल दो महीने बाद भी यह पता लगाने में असमर्थ है कि नारायण दास डालमिया तथा गुरूकृपा बिल्डर्स के बीच कोई व्यावसायिक संबंध है भी या नहीं?
10- क्या MVDA आज भी यह स्पष्ट कर सकता है कि डालमिया बाग पर प्रोजेक्ट की स्वीकृति के लिए गुरुकृपा तपोवन ने अपने मालिकाना हक साबित करने के पक्ष में तथा नक्शा पास कराने के लिए जरूरी अन्य दस्तावेजों में कौन-कौन से पेपर्स सबमिट किए हैं?
11- VC महोदय के अनुसार जो नक्शा स्वीकृति के लिए अपलोड किया है, वो मात्र 'तपोवन' के नाम से है जबकि नक्शे में प्रोजेक्ट का नाम साफ-साफ गुरुकृपा तपोवन लिखा है जो शंकर सेठ की फर्म का नाम है। तो क्या पूरा नाम न बताने के पीछे भी कोई कारण है?
प्रश्न और भी बहुत हैं किंतु फिलहाल इनके ही जवाब मिल जाएं तो काफी हद तक भ्रम दूर हो सकता है अन्यथा MVDA की भूमिका पर संदेह कम होने की बजाय बढ़ेगा ही क्योंकि MVDA की कार्यप्रणाली पहले ही हमेशा से संदेह के घेरे में रहती है।
VC महोदय चूंकि पहले भी कृष्ण की इस नगरी में अपनी सेवाएं दे चुके हैं तो वह भलीभांति इस सच्चाई से वाकिफ होंगे। फिर अब तो मामला एक इतने बड़े घपले से जुड़ा है जिसे सिर्फ एक नक्शे से अंजाम दे दिया गया। ऐसे में जांच होगी तो दूर तक जाएगी ही। NGT इस पर अपना क्या निर्णय देता है, इसका MVDA से दूर-दूर तक कोई वास्ता फिलहाल नजर नहीं आता।
बेहतर होगा कि मूल प्रश्नों को भटकाने की जगह मुद्दे की बात की जाए, और मुद्दा यही है कि 15 अगस्त को गुरुकृपा तपोवन का जो नक्शा अपलोड करके या उससे भी पहले हजार करोड़ से अधिक का फ्रॉड किया गया उसमें प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से किस-किस ने भूमिका अदा की है तथा उस भूमिका के एवज में क्या-क्या हासिल किया है?
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
बुधवार, 23 अक्तूबर 2024
...तो डालमिया बाग मामले में 120B के आरोपी बनाए जाएंगे MVDA के कई अधिकारी और कर्मचारी
वैसे तो समूचे उत्तर प्रदेश के विकास प्राधिकरण अपनी भ्रष्ट कार्यप्रणाली को लेकर अच्छे-खासे बदनाम हैं, लेकिन अगर बात करें मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण (MVDA) की तो यहां तैनात उसके अधिकारी एवं कर्मचारी बाकायदा अपराधियों के किसी संगठित गिरोह की तरह काम करते हैं। इसमें सबकी अपनी भूमिका और उसके अनुसार सबकी हिस्सेदारी भी तय है। कोई किसी के काम में दखल नहीं देता, इसलिए सबकुछ बहुत सहजता के साथ चलता रहता है। ताजा मामला वृंदावन के डालमिया बाग का है जिस पर एक रियल एस्टेट प्रोजेक्ट खड़ा करने के लिए गुरुकृपा तपोवन के नाम से MVDA में नक्शा मूव किया गया और नक्शा पास हुए बिना ही प्लॉट बुक करने शुरू कर दिए। यही नहीं, माफिया ने मात्र एक नक्शे की आड़ में अनुमानत: एक हजार करोड़ रुपया एकत्र कर लिया। चूंकि माफिया ने निवेशकों से एक बड़ी रकम हथिया ली थी इसलिए उसे एक ओर जहां डालमिया बाग पर अपना कब्जा दिखाना था वहीं दूसरी ओर ये भी जाहिर करना था कि उसका काम पूरी प्रगति पर है लिहाजा उसने बाग के साढ़े चार सौ से अधिक हरे वृक्षों को रातों-रात कटवा डाला। हरे वृक्षों के इस अवैध कटान ने माफिया की बदनीयति सामने लाकर रख दी।
MVDA की भूमिका पहले दिन से संदिग्ध
मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण ने हालांकि पेड़ कटने के बाद अपना मुंह साफ रखने की कोशिश में प्राधिकरण की रेलिंग काटने का एक केस भी दर्ज कराया किंतु उसका मुंह साफ हो नहीं पा रहा, जिसके कुछ ठोस कारण हैं।
सबसे पहला और बड़ा कारण तो यह है कि MVDA के जो अधिकारी एवं कर्मचारी अपने क्षेत्र में छोटे से छोटे अवैध निर्माण को सूंघते फिरते हैं और उसके खिलाफ कार्रवाई का भय दिखाकर मनमानी वसूली करने जा धमकते हैं, वो एक ऐसे रियल एस्टेट प्रोजेक्ट की आड़ में की जा रही अवैध बुकिंग पर क्यों मौन साधे रहे जिसका नक्शा उसके यहां विचाराधीन था लेकिन पास नहीं किया गया था। नियमानुसार MVDA को नक्शा पेश किए जाने की सूचना सार्वजनिक करनी चाहिए थी, जो उसने नहीं की।
ताज्जुब इस बात का भी है कि MVDA आज तक गुरुकृपा तपोवन के नक्शे की असलियत पर चुप्पी साधे बैठा है जबकि निवेशक अपनी रकम डूब जाने के भय से माफिया के यहां चक्कर काट रहा है। विकास प्राधिकरण की यही चुप्पी उसकी माफिया से मिलीभगत का दूसरा संकेत है।
नक्शा पास कराने के लिए पेश सपोर्टिंग पेपर्स की स्थिति तक स्पष्ट नहीं
यहां गौर करने वाली बात यह है कि किसी भी प्रोजेक्ट, यहां तक कि घर-दुकान या मकान का नक्शा पास कराने के लिए नक्शे के साथ कुछ सपोर्टिंग पेपर्स भी सबमिट करने होते हैं जिनमें सबसे जरूरी होता है मालिकाना हक साबित करना। इसके बाद नंबर आता है विभिन्न विभागों के नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOC) लगाने का जो आवश्यकता अनुसार लगाने होते हैं।
ऐसे में एक महत्वपूर्ण सवाल खुद-ब-खुद सामने खड़ा हो जाता है कि गुरुकृपा तपोवन का नक्शा पास कराने के लिए मालिकाना हक साबित करने वाले पेपर्स पेश किए गए हैं या नहीं, और किए गए हैं तो मालिकाना हक किसके पास बताया गया है।
यह मान भी लिया जाए कि MVDA को न तो डालिमया बाग में सैकड़ों हरे वृक्ष खड़े होने की कोई जानकारी थी और न रजिस्ट्री होने-न होने का कुछ पता था तब भी उसे यह स्पष्ट करना चाहिए कि गुरुकृपा तपोवन का नक्शा पास कराने किसने भेजा तथा किस आधार पर भेजा।
डालमिया बाग पर उपजे विवाद को अब एक महीने से ऊपर का समय बीत चुका है। जाहिर है कि अब तक तो MVDA को काफी कुछ पता लग चुका होगा, किंतु आज भी MVDA का कोई अधिकारी या कर्मचारी इस मुद्दे पर अपना मुंह खोलने को तैयार नहीं। आखिर क्यों?
आज भी 'लीजेण्ड न्यूज़' ने MVDA के उपाध्यक्ष श्याम बहादुर सिंह को whatsapp मैसेज भेजकर गुरुकृपा तपोवन के नक्शे पर विभाग की स्थिति सामने रखने का अनुरोध किया लेकिन मैसेज भेजे हुए कई घंटे बीत जाने के बावजूद कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।
हजार करोड़ की ठगी में किस-किस की हिस्सेदारी
मात्र एक फर्जी नक्शा पेश करके पब्लिक से करीब हजार करोड़ रुपए ठग लिए गए लेकिन विकास प्राधिकरण मुंह सिल कर बैठ जाए तो इसका क्या अर्थ निकालता है, इसे समझना कोई मुश्किल काम नहीं।
गुरुकृपा तपोवन के नाम पर जो आपराधिक कृत्य किया गया वह सीधे-सीधे IPC की धारा 420, 467, 468 और 471 के अलावा 120B का गंभीर अपराध है क्योंकि एक ऐसे प्रोजेक्ट का सब्जबाग दिखाकर हजार करोड़ रुपया ठग लिया गया जिसका मालिकाना हक तो दूर नक्शा तक पास नहीं हुआ। जिसे लेकर कोई एग्रीमेंट नहीं हुआ। जो हुआ, वो सिर्फ और सिर्फ एक Memorandum of understanding (MOU) है यानी कोई सौदा करने के लिए दो पक्षों के बीच अंडरस्टेंडिंग।
चूंकि विकास प्राधिकरण इतना सब हो जाने पर भी अपनी स्थिति स्पष्ट करने को तैयार नहीं है इसलिए इससे यही संदेश जाता है कि उसकी माफिया से मिलीभगत है। ऐसा न होता तो जनहित में ही सही, वह कम से कम सच्चाई तो सामने ला ही सकता है ताकि अपने प्लॉट बुकिंग की कच्ची पर्ची हाथ में लेकर घूम रहे लोगों को तो पता लग सके कि वास्तविकता क्या है।
यदि वह ऐसा नहीं करता तो साफ है कि उसके भी कई अधिकारी एवं कर्मचारी न केवल हजार करोड़ की ठगी करने वाले गिरोह से मिले हुए हैं बल्कि वह उसका हिस्सा भी हैं जो उनको IPC की धारा 120B का आरोपी बनाने के लिए पर्याप्त है।
सबकुछ कमिश्नर द्वारा गठित जांच कमेटी की रिपोर्ट पर निर्भर
अब जबकि मंडलायुक्त ऋतु माहेश्वरी ने शासन के निर्देश पर इस मामले में मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण की भूमिका का पता लगाने को 3 सदस्यीय जांच कमेटी का गठन कर दिया है तो सबकुछ उस रिपोर्ट पर निर्भर करता है, लेकिन इतना तय है कि MVDA के अधिकारियों के लिए तमाम प्रश्नों के उत्तर देना बहुत मुश्किल होगा।
संभवत: यह पहली बार होगा जब माफिया और अधिकारियों का गठजोड़ बेनकाब होगा और आमजन भी यह जान सकेगा कि कैसे योगी सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद प्रदेश में भ्रष्टाचार एवं भ्रष्टाचारी फल-फूल रहे हैं क्योंकि एक ओर कमिश्नर आगरा ऋतु माहेश्वरी बहुत सख्त मिजाज अधिकारी हैं तो दूसरी ओर जांच कमेटी में शामिल तीनों उच्च अधिकारी भी ईमानदार बताए जाते हैं। बस इंतजार है तो निर्धारित 15 दिन पूरे होने का।
-Legend News
गुरुवार, 10 अक्तूबर 2024
डालमिया मामले में विस्फोटक खुलासा: वृंदावन के बाग का कोई एग्रीमेंट हुआ ही नहीं, पोंजी स्कीम की तरह माफिया ने किया हजारों करोड़ का फ्रॉड
मथुरा। वृंदावन के डालमिया बाग का मामला कोई सामान्य सौदा न होकर पूरी साजिश से किया गया हजारों करोड़ रुपए का ऐसा फ्रॉड है जिसे पहले तो माफिया ने पोंजी स्कीम की तरह अंजाम तक पहुंचाया और फिर निवेशकों को उसके जाल में फंसाकर मोटी रकम हड़पी गई। धर्म की नगरी में अधर्म के सहारे खेले गए इस खेल की कोई सामान्य कारोबारी तो कल्पना तक नहीं कर सकता।
डालमिया परिवार के साथ वृंदावन के बाग का नहीं हुआ कोई एग्रीमेंट
किसी को भी यह जानकार घोर आश्चर्य हो सकता है कि डालमिया परिवार ने वृंदावन के अपने बाग का कोई एग्रीमेंट नहीं किया। जिसे एग्रीमेंट बता कर निवेशकों को गुमराह किया गया, वह वास्तव में मात्र एक Memorandum of understanding (MOU) है, न कि एग्रीमेंट। सामान्य भाषा में कहें तो एमओयू और एग्रीमेंट के बीच मुख्य अंतर है उनकी कानूनी प्रवर्तनीयता (Enforceability)। एग्रीमेंट कानूनी रूप से बाध्यकारी एक दस्तावेज है जबकि एमओयू नहीं।
कोलकाता के डालमिया परिवार ने वृंदावन निवासी गिर्राज अग्रवाल तथा मथुरा निवासी आशीष कौशिक की पार्टनरशिप फर्म राधामाधव डेवलेपर्स के साथ वर्ष 2023 में एक एमओयू साइन किया है जिसकी कोई कानूनी अहमियत नहीं है। उसे बाग के सौदे का कोई दस्तावेज नहीं माना जा सकता। यदि बाग के सौदे का कोई एग्रीमेंट हुआ होता तो अनुबंध की शर्तों का उल्लंघन करने वाले को अदालत में घसीटा जा सकता था लेकिन एमओयू साइन करने भर से ऐसा नहीं किया जा सकता।
इसका सीधा-सीधा अर्थ यह होता है कि डालमिया परिवार द्वारा सौदा कैंसिल किए जाने की चर्चा निराधार नहीं है। वह जब चाहे एमओयू को खारिज कर सकता है।
कोलकाता में तो एग्रीमेंट कराया ही नहीं जा सकता था
यहां यह भी समझना बहुत जरूरी हो जाता है कि डालिमया परिवार किसी भी तरह कोलकाता में बैठकर बाग का एग्रीमेंट नहीं कर सकता और यह बात दोनों पक्ष भली प्रकार जानते होंगे। कानूनन किसी जमीन का एग्रीमेंट उसी तहसील क्षेत्र में रजिस्टर्ड हो सकता है जहां वह जमीन है, न कि किसी दूसरे शहर में।
इसके अलावा रजिस्टर्ड एग्रीमेंट के लिए यह आवश्यक है कि विक्रेता द्वारा क्रेता से ली जा रही रकम पर निर्धारित स्टांप ड्यूटी देय होगी। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो यह कृत्य कर की चोरी के दायरे में आता है जिससे बड़ी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।
जाहिर है कि ऐसे में डालमिया बाग के सौदे को लेकर अब तक प्रचारित की गईं सभी बातें न सिर्फ भ्रामक हैं बल्कि किसी खास उद्देश्य की पूर्ति के लिए फैलाया गया सोचा-समझा झूठ है।
डालमिया परिवार और राधामाधव डेवलेपर्स के दो साझेदारों गिर्राज अग्रवाल तथा आशीष कौशिक द्वारा साइन किए गए एमओयू से पूरी तरह साबित होता है कि सैकड़ों करोड़ के इस सौदे की शुरूआत ही नेकनीयत से नहीं की गई।
बेशक यह जांच का विषय हो सकता है कि ऐसा करने के पीछे मूल रूप से बदनीयती किसकी है, परंतु इस बात में कोई शक नहीं रह जाता कि निवेशकों को गुमराह किया गया और उनसे एग्रीमेंट को लेकर झूठ बोला गया।
डालमिया परिवार द्वारा सौदे का इनकम टैक्स जमा कराने वाली बात भी नितांत झूठ
बाग के सौदे को लेकर लगातार बोले जा रहे झूठ का एक हिस्सा वह भी है जिसमें कहा गया कि डालमिया परिवार ने तो ली गई रकम पर बनने वाला इनकम टैक्स भी जमा करा दिया है जबकि मात्र एमओयू साइन करने की स्थिति में कोई टैक्स बनता ही नहीं।
एग्रीमेंट कराया होता तो नंबर एक में लिए गए पेमेंट का पूरा ब्यौरा देना पड़ता किंतु एमओयू साइन करने के लिए उसकी दरकार नहीं होती। डालमिया परिवार ने इसीलिए एमओयू में प्राप्त रकम तथा बकाया रकम का जिक्र तो जरूर किया है परंतु इसका उल्लेख कहीं नहीं किया कि वो रकम उसे किस माध्यम से प्राप्त हुई।
मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण भी साजिश में शामिल
इस पूरे प्रकरण को गौर से देखें तो मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण भी पूरी साजिश का हिस्सा मालूम पड़ता है क्योंकि उसके जिम्मेदार अधिकारी अब तक मौन साधे बैठे हैं।
बिना नक्शा पास कराए मामूली निर्माण की सूचना पाकर किसी के भी यहां जा धमकने वाले और नोटिस पर नोटिस जारी करने वाले विकास प्राधिकरण के अधिकारियों ने डालमिया बाग मामले में कोई संज्ञान नहीं लिया।
सब जानते हैं कि डालमिया बाग में रियल एस्टेट प्रोजेक्ट डेवलेप करने के लिए गुरूकृपा तपोवन के नाम से एक नक्शा पेश किया गया है। यह नक्शा मीडिया में भी प्रकाशित व प्रचारित हो चुका है। इसी नक्शे को आधार बनाकर निवेशकों को आकर्षित किया गया और उनसे अच्छी-खासी रकम ऐंठी गई।
डालमिया बाग से रातों-रात सैकड़ों हरे पेड़ काटे जाने के बाद जब यह मामला चर्चा में आया और वनविभाग ने डालमिया परिवार के साथ गुरुकृपा तपोवन के मालिक का नाम भी एफआईआर में दर्ज कराया तो गुरुकृपा तपोवन के मालिक ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि उसका इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है।
चूंकि डालमिया परिवार और राधामाधव डेवलेपर्स के बीच साइन हुए एमओयू में भी गुरुकृपा तपोवन के मालिक का नाम नहीं है तो सवाल यह पैदा होता है कि मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण में गुरूकृपा तपोवन के नाम से नक्शा किसने पेश कर दिया?
इससे भी बड़ी बात यह है कि मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण की ओर से गुरूकृपा तपोवन का नक्शा न तो आज तक खारिज किया है और न फर्जी नक्शा पेश करने वाले के खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही अमल में लाई गई है।
आश्चर्यजनक रूप से गुरुकृपा तपोवन के मालिक ने भी नक्शा पेश करने वाले के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करना जरूरी नहीं समझा जिससे मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण की भूमिका पर संदेह होना स्वाभाविक है।
पोंजी स्कीम की तरह माफिया ने किया हजारों करोड़ का फ्रॉड
एक अनुमान के अनुसार कथित रियल एस्टेट प्रोजेक्ट गुरुकृपा तपोवन के नाम पर अब तक एक हजार करोड़ रुपए से अधिक की रकम बतौर एडवांस ली जा चुकी है जबकि ऐसा कोई प्रोजेक्ट फिलहाल धरातल पर है ही नहीं। डालमिया बाग का एग्रीमेंट होना तो दूर, उसके अंजाम तक पहुंचने की संभावना दिखाई नहीं दे रही।
जो एमओयू साइन किया गया है, उसकी कोई कानूनी अहमियत नहीं है। बावजूद इसके निवेशकों को लगातार गुमराह किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि सब ठीक कर देंगे। पैसे में बड़ी ताकत है।
अभी और खुलेंगे बहुत से राज
ऐसे में तय है कि अभी बहुत से राज खुलने बाकी हैं। जैसे कि राधामाधव डेवलेपर्स में गिर्राज अग्रवाल तथा आशीष कौशिक के अतिरिक्त भी क्या और पार्टनर है, यदि हैं तो वो कौन-कौन हैं। उनकी भूमिका अब तक क्या रही है। निवेशकों से पैसा किस-किस ने लिया और किस आधार पर लिया।
ईडी ने ली इनकम टैक्स विभाग से जानकारी
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस मामले में ईडी ने इनकम टैक्स विभाग से भी जानकारी मांगी है ताकि राधामाधव डेवलेपर्स के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष हिस्सेदारों का पता लगाया जा सके, साथ ही इस फर्म का वास्तविक स्टेटस जाना जा सके।
ईडी को पूरा भरोसा है कि कृष्ण की पावन जन्मभूमि पर जमीन की आड़ में खेले गए इस सबसे बड़े खेल का पर्दाफाश होगा तो बहुत से चौंकाने वाले चेहरे बेनकाब होंगे।
बस देखना यह है कि उसके शिकंजे में कौन-कौन फंसता है और कब तक फंसता है क्योंकि सरकारी मशीनरी की कछुआ चाल से फिलहाल तो माफिया के बुलंद हौसले सबको चुनौती देते दिखाई दे रहे हैं। हालांकि यह मानने वालों की भी कमी नहीं जो कहते हैं कि इन्होंने सैकड़ों हरे पेड़ों को काटकर जो पाप किया है, वही एक दिन इन्हें कहीं का नहीं छोड़ेगा।
बहरहाल, इस सबसे इतर यह जानकर निश्चित ही निवेशकों पर पहाड़ टूट पड़ेगा जब उन्हें पता लगेगा कि डालमिया परिवार से बाग का सौदा और एग्रीमेंट किए जाने जैसी बातें पूरी तरह बेबुनियाद हैं, लिहाजा उनका पैसा पूरी तरह खटाई में पड़ चुका है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
मंगलवार, 8 अक्तूबर 2024
ED की सक्रियता से डालमिया बाग के खरीदारों में खलबली, भूमिगत होने या विदेश भाग जाने की आशंका
मथुरा। वृंदावन के डालमिया बाग मामले में अब ED की सक्रियता बढ़ जाने से खरीदारों में भारी खलबली देखी जा रही है। आशंका है कि उनमें से कुछ लोग या तो भूमिगत हो सकते हैं, या फिर देश छोड़कर भी भाग सकते हैं। हालांकि ED को भी इस बात का अंदाज है लिहाजा उसने ऐसे लोगों की हर गतिविधि पर अपनी पैनी नजर गड़ा रखी है। दरअसल, इस खरीद-फरोख्त में बढ़ती प्रवर्तन निदेशालय यानी ED की सक्रियता का बड़ा कारण इसके धन शोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) अर्थात ब्लैक मनी को सफेद बनाने तथा विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) के तहत आने की प्रबल संभावना दिखाई देना है। यही वजह है कि ED ने इस पर तेजी से काम करना शुरू कर दिया है।
ED से जुड़े अत्यंत भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार की इस स्वतंत्र जांच एजेंसी ने प्राथमिक जानकारी जुटाने के लिए अपने कुछ बिंदु भी तय कर लिए हैं। ये ऐसे बिंदु हैं जिनसे एजेंसी न केवल इस पूरे मामले की तह तक जा सकती है बल्कि इसमें शामिल सफेदपोश अपराधियों के चेहरे भी सामने ला सकती है।
ED क्या-क्या जानना चाहती है
ED इस मामले में सबसे पहले तो यह जानकारी चाहती है कि वृंदावन की जिस रियल एस्टेट फर्म का नाम अब तक इस सौदे में सामने आया है, उसका स्टेटस क्या है?
वह एक पार्टनरशिप फर्म है या किसी व्यक्ति विशेष के हक वाली प्रोपराइटरशिप में रजिस्टर्ड है?
यदि वह एक पार्टनरशिप फर्म है तो उसके पार्टनर कितने हैं और उनकी हिस्सेदारी कितनी-कितनी है?
डालमिया बाग का सौदा करते वक्त इस फर्म में कितने हिस्सेदार थे और क्या सौदा हो जाने के बाद अन्य लोग हिस्सेदार बनाए गए?
अगर सौदा हो जाने के बाद और हिस्सेदार बनाए गए तो उनकी संख्या तथा उनका हिस्सा कितना-कितना रखा गया?
जैसा अब तक प्रचारित किया गया है कि डालमिया परिवार ने अपने बाग का पूरा सौदा नंबर एक में किया है और खरीदारों से पैसा भी नंबर एक में लिया है तो पूरी पैसा मिल जाने के बावजूद उसने बाग की रजिस्ट्री क्यों नहीं की, रजिस्ट्री करने के लिए डालिमया परिवार किस बात का इंतजार कर रहा था?
इस सबके अलावा ED यह भी जानना चाहती है कि बिना रजिस्ट्री किए ही डालमिया परिवार ने खरीदारों को जमीन पर काबिज होने की क्या कोई लिखित अथवा मौखिक सहमति दी थी?
अगर डालमिया परिवार ने ऐसी कोई सहमति दी थी तो वो किसे दी थी और कब दी थी?
कॉलोनी डेवलव करने के लिए नक्शा किसने पेश किया
ED के सामने एक यक्ष प्रश्न यह है कि वो कौन से तत्व हैं जिन्होंने बाग की रजिस्ट्री कराने से पहले ही मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण में गुरूकृपा तपोवन के नाम से कॉलोनी डेवलव करने के लिए नक्शा पेश कर दिया क्योंकि इस पूरे प्रकरण में अब तक सिर्फ एक नाम सर्वाधिक चर्चित रहा है, और वह नाम है किसी शंकर सेठ का जो गुरूकृपा बिल्डर्स का मालिक बताया जाता है तथा जिसने इस नाम से पहले भी दूसरे प्रोजेक्ट खड़े किए हैं।
आश्चर्यजनक बात यह है गुरूकृपा तपोवन के नाम से विकास प्राधिकरण में नक्शा पेश किए जाने की अब तक न तो किसी ने जिम्मेदारी ली है और न ही खंडन किया है जबकि उसी नक्शे के आधार पर निवेशकों से बड़ी रकम ली गई तथा उसी नक्शे के हिसाब से कॉलोनी की प्लॉटिंग की गई।
बताया जाता है कि शंकर सेठ वृंदावन में ही छटीकरा रोड पर गुरूकृपा के नाम से एक अन्य प्रोजेक्ट बना रहा है और उसका नक्शा उसने विकास प्राधिकरण से पास भी कराया है। ये बात अलग है कि उस नक्शे को पास कराने में भी हेराफेरी किए जाने की शिकायतें अब मिली हैं, जिनकी जांच शुरू हो चुकी है।
बहरहाल, ED को इस पूरे खेल में किसी बड़ी आपराधिक साजिश की बू आ रही है इसलिए वह यह भी पता लगाने में जुटी है कि गुरूकृपा तपोवन कॉलोनी के नाम पर निवेशकों से एडवांस में मोटी रकम लेने वाले कौन-कौन लोग हैं और उन्होंने किस हैसियत से यह रकम ली थी?
ED यह मानकर चल रही है कि डालमिया बाग का प्रकरण भले ही सैकड़ों हरे पेड़ काटने के बाद मीडिया की नजर में आया हो किंतु इसके तार ऐसे गहरे आपराधिक षडयंत्र से जुड़ रहे हैं जिसमें मनी लॉन्ड्रिंग से लेकर फेमा तक और आम निवेशकों एवं आम जनता से हजारों करोड़ रुपए ठगने तक का सुनियोजित अपराध बनता है।
ED का शक निराधार इसलिए नहीं है कि रातों-रात सैकड़ों पेड़ काट डालने वालों में से एक भी व्यक्ति अब सामने आकर कुछ बोलने को तैयार नहीं है। वो भी तब जबकि निवेशक परेशान हैं अपने पैसों को लेकर, और वृंदावनवासी दुखी हैं उनके दुस्साहस तथा जिला प्रशासन की अकर्मण्यता एवं भ्रष्टाचार को लेकर।
ED को तो यह भी शक है डालमिया बाग का सौदा करके व उस पर काबिज होकर हजारों करोड़ रुपया जुटाने के लिए पेशेवर आर्थिक अपराधियों की तरह ऐसे-ऐसे हथकंड़े अपनाए गए हैं जो आरोप सिद्ध हो जाने की स्थिति में अंतत: वर्षों कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने के बाद आजन्म कैद जैसी सजा तक ले जाते हैं।
इन आर्थिक अपराधियों को भी संभवत: इस बात का इल्म हो चुका है इसलिए वो आरोपों का सामना करने के बजाय नित नई कहानी गढ़ने तथा मीडिया को मैनेज करने में लगे हैं ताकि ED के शिकंजे में फंसने से पहले समय रहते या तो भूमिगत हो जाएं या फिर विदेश भाग निकलें, क्योंकि अब न तो डालमिया बाग पर प्रोजेक्ट खड़ा करना आसान होगा और न निवेशकों का भरोसा बहाल हो सकेगा।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
डालमिया बाग का एंग्रीमेंट कैंसिल करने की खबर से परेशान माफिया अब मीडिया को मैनेज करने में जुटा
मथुरा। वृंदावन के डालमिया बाग का एग्रीमेंट कैंसिल करने की खबर से परेशान माफिया अब मीडिया को मैनेज करने में जुट गया है, क्योंकि एग्रीमेंट कैंसिल होने की खबर के बाद निवेशकों ने उस पर पैसा लौटाने के लिए अच्छा-खासा दबाव बनाना शुरू कर दिया है। सैकड़ों हरे पेड़ों को काटने की जिम्मेदारी लेने से भी भाग रहे माफिया ने आज तक न तो अपने ''कथित नंबर एक'' में हुए सौदे की सच्चाई सामने रखी है और न ये बताया है कि आखिर डालमिया परिवार से उसके बगीचे का एग्रीमेंट किस-किसने किया तथा किन शर्तों पर किया।
ऐसे में अब इस पूरे सौदे पर उठ रहे कुछ ऐसे सवाल ''माफिया'' से लेकर ''मीडिया'' तक को सवालों के घेरे में ले रहे हैं जिनका जवाब देना उनके लिए जरूरी हो जाता है, और यदि वो उसके जवाब नहीं देते तो उनकी नीयत स्वत: संदिग्ध साबित हो जाती है।
कहा जा रहा है कि डालमिया परिवार ने अपने बाग का सौदा आठ समझौता पत्रों (एग्रीमेंट) के जरिए किया तथा हर एग्रीमेंट के साथ एक निर्धारित रकम ली गई और डालिमया परिवार ने एग्रीमेंट में मिली इस रकम का आयकर तक जमा कर दिया। एग्रीमेंट करने वालों ने शंकर सेठ से सौदा बाद में किया।
बस यहीं से माफिया के साथ-साथ मीडिया की भी नीयत में खोट नजर आने लगता है और ये खोट बहुत महत्वपूर्ण सवाल खड़े करता है।
सवाल नंबर एक: यदि डालमिया परिवार से आठ समझौता पत्रों के जरिए पूरी नेक नीयत से सौदा किया गया है तो दोनों ही पक्षों को यानी विक्रेता और क्रेता को उसे सार्वजनिक करने में हर्ज क्या है?
सवाल नंबर दो: किसी भी सौदे का एग्रीमेंट कर लेने भर से वह इनकम टैक्स तो क्या किसी भी टैक्स के दायरे में नहीं आ जाता, यह बात छोटे से छोटा व्यापारी भी जानता है। तो फिर डालमिया परिवार ने डील फाइनल हुए बिना मात्र एडवांस पर इनकम टैक्स कैसे जमा कर दिया जबकि यह तो ''जीएसटी तथा कैपिटल गेन'' का भी मामला नहीं बनता। इस बात की पुष्टि किसी भी चार्टर्ड अकाउंटेंट (CA) से की जा सकती है।
सवाल नंबर तीन: कहीं ऐसा तो नहीं कि यह सारा खेल मीडिया को मैनेज करके निवेशकों को गुमराह करने के लिए खेला जा रहा हो जिससे किसी भी तरह अपने ऊपर पड़ रहे दबाव को कम किया जा सके।
सवाल नंबर चार: जब डालमिया परिवार से सौदा बाकायदा एग्रीमेंट करके किया गया है और हर एग्रीमेंट के साथ एक निर्धारित रकम उसे दी गई है तो शंकर सेठ ने भी अपना सौदा स्थानीय खरीदारों से किसी न किसी एग्रीमेंट के साथ किया होगा। शंकर सेठ ने भी अपनी रकम सुरक्षित करने के लिए कोई न कोई लिखा-पढ़ी कराई होगी। तो फिर पेड़ कटने के बाद से लेकर अब तक शंकर सेठ क्यों कह रहा है कि उसका इस सौदे से कोई वास्ता नहीं है और पेड़ों को काटने में उसकी किसी भूमिका का प्रश्न ही पैदा नहीं होता। जमानत के लिए कोर्ट में भी उसके वकीलों द्वारा यही दलील क्यों दी गई।
सवाल नंबर पांच: यदि डालमिया परिवार से लेकर एग्रीमेंट कराने वालों तक और उनसे लेकर शंकर सेठ तक सब के सब पाक साफ हैं, सौदा भी पूरी ईमानदारी से नंबर एक में हुआ है तो सब मिलकर क्यों एक प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं कर देते। क्यों नहीं बता देते कि एक रियल एस्टेट प्रोजेक्ट खड़ा करने के लिए यह सौदा किया गया है और सौदे में कोई बदनीयत नहीं है।
इस प्रेस कॉन्फ्रेस में सब अपनी-अपनी भूमिका भी साफ कर सकते हैं। उसके बाद मुद्दा रह जाएगा केवल सैकड़ों हरे वृक्षों को रातों-रात काट डालने का, तो उसकी जांच चलती रहेगी। एनजीटी में दायर याचिकाओं का भी समय पर निपटारा हो ही जाएगा।
और आखिरी सवाल यह कि शंकर सेठ की रियल एस्टेट फर्म गुरूकृपा तपोवन के नाम से जो नक्शा मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण के पास भेजा गया है, वो किसने और किस अधिकार से दाखिल किया है?
सच तो यह है कि इनमें से किसी भी सवाल का जवाब देना आसान नहीं है इसलिए सारे सफेदपोश अपना मुंह छिपाए घूम रहे हैं और अब तक किसी ने सीना ठोक कर नहीं कहा कि सौदा उसने किया है।
बेशक जमीन का सौदा करना गुनाह नहीं, लेकिन वह तब गुनाह बन जाता है जब उसके लिए कानून को ताक पर रखकर नियम विरुद्ध ऐसे-ऐसे काम किए जाएं जो एक ओर अपराध की परिधि में आते हों तथा दूसरी ओर उनसे एक बड़े वर्ग की भावनाएं भी आहत होती हों।
मीडिया को भी अब एक बात और साफ कर देनी चाहिए कि कब तक वह अतार्किक बातें छापता रहेगा और कब तक सफेदपोशों को बचाने के लिए अपने जमीर का सौदा करता रहेगा।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
बड़ी खबर: डालमिया परिवार ने कैंसिल किया बगीचे का सौदा, खरीदारों में मचा हड़कंप... निवेशकों के बीच फैली अफरा-तफरी
मथुरा। वृंदावन के छटीकरा रोड पर स्थित जिस डालमिया बगीचे से सैकड़ों हरे पेड़ काटने का मामला इन दिनों खासी चर्चा का विषय बना हुआ है, उसे लेकर आज एक बड़ी खबर सामने आई है।
विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार अब तक हुए संपूर्ण घटनाक्रम में खरीदारों के रवैये और उनकी आपराधिक गतिविधियों से खासे नाराज डालमिया परिवार ने अपने बगीचे का सौदा ही कैंसिल कर दिया है। सूत्रों के मुताबिक डालमिया परिवार ने बगीचे का सौदा करने वालों को दो-टूक जवाब दे दिया है। उन्होंने साफ-साफ कह दिया है कि अब किसी भी कीमत पर बगीचे का सौदा आपके साथ संभव नहीं है। हालांकि फिलहाल इसकी पुष्टि करने वाला कोई नहीं है क्योंकि सब अपनी-अपनी गर्दन बचाने में लगे हैं।
डालमिया परिवार का कहना है कि खरीदारों ने सौदा करने के बाद जिस तरह 'ब्रीच ऑफ कॉन्ट्रैक्ट' किया, उससे न सिर्फ उनकी आपराधिक मानसिकता का पता लगता है बल्कि यह भी जाहिर होता है कि उनका व्यावसायिक नजरिया भी पाक-साफ नहीं है।
सूत्र बताते हैं डालमिया परिवार ने न तो खरीदारों को इस तरह बगीचे पर काबिज होने की कोई लिखित या मौखिक इजाजत दी थी, और न सैकड़ों हरे वृक्षों को काटने पर सहमत थे।
डालमिया परिवार तो इस पूरे प्रकरण को लेकर आश्चर्यचकित है कि कैसे कोई इस तरह गैर व्यावसायिक तरीका अख्तियार करते हुए आपराधिक कृत्य कर सकता है। कैसे कोई सौदा पूरा हुए बिना विकास प्राधिकरण में नक्शा पास कराने की कोशिश कर सकता है और कैसे उस नक्शे के लिए फर्जी नाम का इस्तेमाल कर सकता है।
डालमिया परिवार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि शीघ्र ही वो अपने बाग पर अवैध रूप से काबिज होने, हरे वृक्षों का अवैध कटान करने, गलत नाम देकर नक्शा पास कराने की कोशिश करने सहित ऐसी सभी आपराधिक गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्यवाही करने जा रहे हैं जिससे स्थिति पूरी तरह साफ हो सके।
डालमिया परिवार की मानें तो उनके घर तक कभी पुलिस नहीं पहुंची, लेकिन सौदेबाजों की ओछी हरकत एवं आपराधिक गतिविधियों ने उनके घर तक पुलिस पहुंचाने का काम किया।
डालमिया परिवार के मुखिया का आरोप है कि पेड़ काटने के बाद अपनी गर्दन फंसती देख सौदा करने वालों में से किसी ने तो वन विभाग को हमारे नाम बताए, अन्यथा जिस वन विभाग को एफआईआर दर्ज कराते वक्त मथुरा के ही निवासी गुरू कृपा तपोवन के मालिक का नाम मालूम नहीं था और उसने एफआईआर में उसका नाम तक नहीं दिया, उसे पूरे डालमिया परिवार यहां तक कि महिला का भी नाम कैसे पता लगा।
उनका मानना है कि वन विभाग और फिर पुलिस को परिवार की पूरी जानकारी और कोलकाता का एड्रेस सौदेबाजों में से ही किसी ने मुहैया कराया।
सौदेबाजों की हरकत से डालमिया परिवार इतने अधिक गुस्से में है कि बताया जाता है उसने 'जो बन पड़े वो करने' को कह दिया है लेकिन डील फाइनल करने को तैयार नहीं है। यूं भी कानूनी पचड़ों में फंसने के बाद बाग की डील करना डालमिया परिवार के लिए इतना आसान नहीं होगा।
सौदा कैंसिल होने से खरीदारों में मचा हड़कंप, निवेशकों में फैली अफरा-तफरी
डालमिया परिवार द्वारा मौखिक तौर पर सौदा कैंसिल कर देने की सूचना दिए जाने से एक ओर जहां खरीदारों में हड़कंप मच गया है वहीं दूसरी ओर निवेशकों के बीच अफरा-तफरी फैल गई है और वो किसी भी तरह अपना पैसा निकालने को तत्पर हैं।
एक अनुमान के अनुसार चूंकि डालमिया बाग पर गुरू कृपा कॉलोनी काटने का प्रचार करके और विकास प्राधिकरण से नक्शा पास हो जाने की भ्रामक सूचना देकर सौदेबाजों ने करीब-करीब एक हजार करोड़ रुपया हासिल कर लिया इसलिए निवेशक उनके ऊपर प्लॉटों की रजिस्ट्री कराने का दबाव बना रहे थे। निवेशकों के दबाव में रातों-रात ये खेल खेला गया जिससे ऐसा संदेश दिया जा सके कि अब प्लॉटों की रजिस्ट्री कराने में न देर होगी, और न कोई बाधा आएगी।
उलटा पड़ गया दांव
निवेशकों के दबाव में खेला गया यह दांव इस बार सौदेबाजों पर उलटा पड़ गया अन्यथा वह ऐसे कई दांव अपने अन्य रियल एस्टेट प्रोजेक्ट पर पहले भी लगा चुके थे, और सफल भी रहे। शायद यही कारण रहा कि आपराधिक कृत्यों में शुमार इन हरकतों को करने से पहले जहां कोई भी कारोबारी हजार बार सोचता है और प्रयास करता है कि सब-कुछ प्रक्रिया के तहत पूरा हो जाए, वहीं इन्होंने एक रात में वो सब कर दिया।
मूल सौदेबाज के होटल पर निवेशकों ने किया जमकर हंगामा
ये भी ज्ञात हुआ है कि बाग का सौदा कैंसिल होने की जानकारी मिलते ही डालमिया परिवार से सर्वप्रथम सौदा करने वालों में शामिल वृंदावन निवासी व्यक्ति के होटल पर कई निवेशक जा पहुंचे और उन्होंने जमकर हंगामा किया। स्थिति इतनी बिगड़ गई कि इस मूल सौदेबाज ने खुद को होटल के एक कमरे में बंद करके अपने सीए को सामने कर दिया। सीए ने जैसे-तैसे निवेशकों को समझा कर शांत किया।
सौदेबाजों के बीच भी पैदा होने लगा है अविश्वास, बैठकों का दौर जारी
उधर, बताया जाता है कि समय के साथ सौदेबाजों के मध्य भी अब अविश्वास पैदा होने लगा है और वो वर्तमान स्थितियों के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। सारा दोष एक-दूसरे के सिर मढ़ने की कोशिश की जा रही है। मामला कहीं हद से आगे न चला जाए और चौराहे पर हड़िया फूटने से बचाई जा सके, उसके लिए कभी मथुरा तो कभी वृंदावन तथा कभी मथुरा-वृंदावन से बाहर बैठकों का दौर जारी है। इन बैठकों के हालात का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि कई बार इसमें शामिल लोगों के बीच गाली-गलौज तक की नौबत आ चुकी है।
जो भी हो, लेकिन इतना तो तय है कि डालमिया बगीचे को लेकर उपजे घटनाक्रम ने मथुरा-वृंदावन से लेकर कोलकाता तक रंजिश की नई नींव रख दी है और समय रहते यदि इसे समझदारी एवं कुशलता के साथ नहीं निपटाया गया तो इसके बड़े गंभीर परिणाम देखने को मिल सकते हैं।
डालमिया बगीचे का सौदा तो अभी भूल ही जाएं, इसका असर रियल एस्टेट से जुड़े दूसरे सौदों तथा अन्य कारोबारियों पर भी पड़ने की पूरी आशंका है क्योंकि यह पूरा करोबार अधिकांशत: भरोसे की कच्ची डोर तथा कच्ची परचियों पर होने वाले लेन-देन से जुड़ा रहता है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
डालमिया बाग कांड: अब ED और CBI की भी एंट्री जल्द, एक पूर्व और एक वर्तमान मंत्री का निवेश बनेगा फांस
मथुरा (September 29th, 2024)। वृंदावन के छटीकरा रोड पर स्थित बेशकीमती डालमिया बाग भले ही 300 हरे वृक्षों को रातों-रात काट डालने के कारण चर्चा में आया लेकिन अब जैसे-जैसे इसके सौदे से लेकर प्लॉटिंग और निवेश से लेकर अवैध रूप से काबिज होने तक की पटकथा सामने आ रही है... वैसे-वैसे इसकी वो परतें भी उघड़ रही हैं जो सामान्य स्थितियों में शायद ही कभी सामने आतीं। विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार आज बेशक इस आशय का प्रचार किया जा रहा है कि समूचे डालिमया बाग का सौदा नंबर एक का पैसा देकर किया गया है, किंतु ऐसा है नहीं।
सूत्र बताते हैं कि इस सौदे के लिए कुछ रकम नंबर एक में जरूर दी गई है परंतु उससे कहीं बहुत अधिक रकम नंबर दो में पहुंचाई गई है।
सब जानते हैं कि नंबर दो की रकम को खपाने का यदि कोई बड़ा माध्यम है तो वह है रियल एस्टेट का कारोबार यानी जमीन की खरीद-फरोख्त। इस मामले में भी यही किया गया।
चूंकि बाग की पूरी 36 एकड़ जमीन पर काबिज होने के लिए डालमिया परिवार के पास शेष रकम भी पहुंचानी थी इसलिए सबसे पहले मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण में एक नक्शा पेश करके मालिकाना हक साबित करने का षड्यंत्र रचा गया।
प्रदेश के एक पूर्व मंत्री और एक वर्तमान मंत्री भी मुखौटा पार्टनर
इस षड्यंत्र में सफल होने के लिए ऊपर तक सेटिंग जरूरी थी इसलिए एक पूर्व मंत्री के साथ-साथ प्रदेश सरकार के एक वर्तमान मंत्री को भी उन दामों में मुखौटा पार्टनर बनाया गया जिनमें डालमिया परिवार से सौदा हुआ था। एक ओर पैसा फेंककर तो दूसरी ओर मुखौटा पार्टनर्स के नाम का इस्तेमाल करके पुलिस, प्रशासन, सिंचाई विभाग, वन विभाग तथा विकास प्राधिकरण को दबाव में लिया गया।
इस पूरे खेल में अब तक जिस शंकर सेठ को मास्टर माइंड बताकर पेश किया जा रहा है, वो तो एक ऐसी टूल किट है जिसे बाग पर काबिज होने से लेकर प्लॉटिंग के नाम पर पैसा जुटाने और उसके लिए सैकड़ों हरे पेड़ों की हत्या कराने एवं उससे भी पहले वृंदावन माइनर को पाटने का काम कराने के लिए इस्तेमाल किया गया।
सिंचाई विभाग, वन विभाग तथा विकास प्राधिकरण की चुप्पी यह साबित करने के लिए काफी है कि दबाव किस तरह काम कर रहा था। ये बात दीगर है कि मामले के तूल पकड़ने पर वन विभाग तथा विकास प्राधिकरण ने एफआईआर दर्ज करा दी। साथ ही बिजली विभाग ने भी अपनी जान बचाने को एक एफआईआर दर्ज कराई क्योंकि जब पेड़ काटे जा रहे थे तब बिजली भी गुल करा दी गई। हालांकि बिजली विभाग अब दावा कर रहा है कि काटे गए पेड़ बिजली के तारों पर गिरे इसलिए बिजली चली गई।
अब ED और CBI की एंट्री जल्द
बहरहाल, अब इस पूरे प्रकरण में ED और CBI की भी जल्द एंट्री होने वाली है क्योंकि मनी लॉन्ड्रिंग का मामला तो साफ-साफ दिखाई दे रहा है, विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) का भी खेल निकल कर आ सकता है क्योंकि बाग का सौदा एक ऐसे शख्स के जरिए हुआ है जो एक अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक संस्था से जुड़ा है और डालमिया बंधुओं का सजातीय है।
इस विश्व विख्यात धार्मिक संस्था की शाखाएं दुनियाभर में फैली हैं इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि बाग के सौदे में विदेशी धन का भी इस्तेमाल किया गया हो।
जहां तक सवाल CBI की एंट्री का है तो उसकी मांग NGT से की गई है। अगर एनजीटी इस मांग को मांग लेता है तो ठीक अन्यथा प्रदेश सरकार भी इसकी जांच CBI को सौंप सकती है क्योंकि यह पूरी साजिश के साथ गिरोहबद्ध होकर किया गया वो आपराधिक कृत्य है जिसके तहत लोगों को गुमराह करके मोटा पैसा जुटाया जा चुका है।
धार्मिक दृष्टि से तूल पकड़ रहा है मामला
समय के साथ यह मामला धार्मिक दृष्टि से भी तूल पकड़ने लगा है। वृंदावन के तमाम संत-महंत पिछले कई दिनों से मुखर होकर माफिया की मुखालफत कर रहे हैं। मशहूर संत प्रेमानंद महाराज ने इस घृणित कृत्य पर अपनी नाराजगी का इजहार करते हुए आठ मिनट से ऊपर का एक वीडियो संदेश जारी किया है और साफ-साफ कहा है कि माफिया ने अपने नाश का इंतजाम कर लिया है।
जो भी हो लेकिन इतना तय है कि डालमिया बगीचे पर काबिज होकर हजारों करोड़ रुपए कमाने का जो सपना माफिया ने देखा था, वह अब पूरा होने से रहा। होगा तो सिर्फ इतना कि आगे-पीछे के सब पाप एक-एक करके सामने आएंगे और एक-एक कर विभिन्न सरकारी एजेंसियां शिकंजा कसेंगी। हो सकता है कि इसमें कुछ ऐसे सफेदपोश लोगों को भी जेल जाना पड़ जाए जिन्होंने अनेक कुकर्म करने के बावजूद आज तक जेल का मुंह नहीं देखा है।
-Legend News
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