मंगलवार, 21 मई 2013

गुट बनाकर टेलीकॉम कंपनियों ने फेल की नीलामी

नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक (CAG) विनोद राय की रिटायरमेंट से ठीक पहले की एक और रिपोर्ट के तहत सरकार को कठघरे में खड़ा किया गया है।
नेशनल ऑडिटर ने आरोप लगाया है कि हाल में हुई स्पेक्ट्रम नीलामी में टेलिकॉम कंपनियों ने कार्टेल (गुट) की तरह काम किया। उसने इसमें सरकार पर जाने-अनजाने मोबाइल कंपनियों की मदद का इल्जाम भी लगाया है।
नेशनल ऑडिटर ने कहा है कि सरकार ने इन कंपनियों के खिलाफ ऐक्शन नहीं लेकर उनकी मदद की।
कैग ने दूसरी बार स्पेक्ट्रम पॉलिसी को लेकर सवाल खड़े किए हैं।
पहली बार उसने 2010 में ऐसा किया था। तब कैग ने कहा था कि यूपीए सरकार और तत्कालीन टेलिकॉम मिनिस्टर ए राजा की गलत पॉलिसी से देश को 1,77,000 करोड़ रुपये का लॉस हुआ। कैग ने कहा था कि स्पेक्ट्रम को कम कीमत पर बेचने से यह लॉस हुआ था।
कैग ने इस साल 9 अप्रैल को टेलिकॉम डिपार्टमेंट को भेजे लेटर में लिखा है कि हाल में हुई दो नीलामियों में मोबाइल कंपनियों ने गुट की तरह काम किया। उसने यह भी कहा है कि इन स्पेक्ट्रम नीलामी के फेल होने से सरकार को रेवेन्यू लॉस हुआ है। कैग के इस आरोप से यूपीए सरकार के लिए एक और मुसीबत खड़ी हो सकती है। इससे मुश्किलों का सामना कर रही टेलिकॉम इंडस्ट्री की परेशानी भी बढ़ेगी।
गौरतलब है कि हाल की दोनों नीलामियों में बड़ी मोबाइल कंपनियां शामिल नहीं हुई थीं। इससे इस तरह की अटकलों ने जोर पकड़ा था कि उन्होंने मिलकर नीलामी में शामिल नहीं होने का फैसला किया।
हालांकि, पहली बार किसी ऑफिशल बॉडी ने उन पर इस तरह के आरोप लगाए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल ए. राजा की ओर से 2008 में दिए गए सभी लाइसेंस कैंसल कर दिए थे। उसने सरकार को ऑक्शन के जरिए नए लाइसेंस देने का आदेश दिया था। इसके बाद स्पेक्ट्रम की दो बार नीलामी हो चुकी है। पहली नीलामी नवंबर 2012 में हुई थी। इससे सरकार को सिर्फ 9,407 करोड़ रुपए मिले थे। हालांकि, 2जी स्पेक्ट्रम की नीलामी से सरकार को तब 40,000 करोड़ रुपए मिलने की उम्मीद थी।
इस नीलामी में 60 फीसदी स्पेक्ट्रम की बोली नहीं लगी थी। इसके अलावा सरकार को सीडीएमए एयरवेव्स का ऑक्शन भी कैंसल करना पड़ा था। इसके लिए किसी भी कंपनी ने बोली नहीं लगाई थी। मार्च 2013 में दूसरे राउंड का ऑक्शन हुआ। इसमें बेस प्राइस भी कम किया गया था। इसके बावजूद यह नीलामी भी फेल रही।

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