मथुरा के पाली डूंगरा में सौंख रोड पर स्थित कृष्ण मोहन मेडिकल कॉलेज का
बड़ा घपला सामने आया है। एक न्यूज़ चैनल द्वारा किए गए स्टिंग ऑपरेशन से
पता चलता है कि वर्ष 2017-18 और वर्ष 2018-19 यानि दो वर्ष के लिए कृष्ण
मोहन मेडिकल कॉलेज को मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ एंड फैमिली वेलफेअर से डीबार
कर दिए जाने के बावजूद उसका मैनेजमेंट रिश्वत लेकर एडमीशन लेने के लिए
तैयार था।
यही नहीं, जब न्यूज़ चैनल के रिपोर्टर ने स्टुडेंट का परिजन बनकर एडमीशन कन्फर्म करने का जवाब घर पर बात करने के बाद अगले हफ्ते देने की बात कही तो मैनेजमेंट के नुमाइंदे ने बाकायदा यह कहा कि अगले हफ्ते की स्थिति अगले हफ्ते बताएंगे। मैनेजमेंट के नुमाइंदे के कहने का आशय यह था कि आज जिस रेट में एडमीशन संभव है, उस रेट में अगले हफ्ते एडमीशन होगा या नहीं, यह उस समय की स्थितियों पर निर्भर होगा।
कृष्ण मोहन मेडिकल कॉलेज का यह दुस्साहस इसलिए बहुत अहमियत रखता है कि उसके द्वारा मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ एंड फैमिली वेलफेअर के समक्ष अपना पूरा पक्ष रखने के बाद भी मिनिस्ट्री ने उसे न सिर्फ दो साल के लिए डीबार किया बल्कि यह आदेश भी दिया कि भविष्य में कृष्ण मोहन मेडिकल कॉलेज तभी एडमीशन लेने के लिए अधिकृत होगा जब एमसीआई की टीम इंस्पेक्शन करके क्लीनचिट दे देगी। साथ ही एमसीआई, कॉलेज द्वारा दी गई 2 करोड़ रुपए की बैंक गारंटी भी कैश करा लेगी।
यहां यह जानकारी देना जरूरी है कि एमसीआई की टीम इससे पहले दो बार जब कृष्ण मोहन मेडिकल कॉलेज का नियमानुसार इंस्पेक्शन करने पहुंची तो पहली बार उसे कॉलेज के डीन ने यह कहकर टहला दिया कि वह कॉलेज के चेयरमैन की इजाजत के बिना इंस्पेक्शन की परमीशन नहीं दे सकते। दूसरी बार इस दलील के साथ वापस कर दिया कि उसने मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ एंड फैमिली वेलफेअर के सामने अभी अपना पक्ष नहीं रखा है इसलिए जब वह निर्धारित तिथि पर अपना पक्ष रख दे तब इंस्पैक्शन किया जाए।
गौरतलब है कि वर्ष 2016-17 में केंद्र सरकार की मिनिस्ट्री ऑफ हैल्थ एंड फैमिली वेलफेअर ने कृष्ण मोहन मेडिकल कॉलेज को 150 स्टुडेंट्स के एडमीशन की सशर्त परमीशन सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एमसीआई की ओवरसाइट कमेटी से प्राप्त रिपोर्ट के आधार पर दी थी।
शर्त के अनुसार अगले सत्र में एडमीशन के लिए कॉलेज को मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ एंड फैमिली वेलफेअर के सभी नियमों को पूरा करके एमसीआई की टीम का इंस्पेक्शन कराकर क्लीन चिट लेनी थी।
कॉलेज के संचालकों की बदनीयती और शासन को खुली चुनौती देने का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि मिनिस्ट्री ऑफ हैल्थ एंड फैमिली वेलफेअर के सामने हियरिंग पूरी हो जाने से पहले जब एमसीआई की टीम इंस्पेक्शन के लिए कॉलेज पहुंची थी तो वहां उसे ओपीडी ब्लॉक के रजिस्टर्ड काउंटर पर मात्र दो मरीज मिले जबकि कंसलटेशन रूम पूरी तरह खाली पड़ा था। फर्स्ट फ्लोर पर स्थित आईपीडी, मेडिकल वार्ड, टीबी चेस्ट वार्ड में ताला पड़ा था।
एमसीआई ने अपनी फाइनल इंस्पेक्शन रिपोर्ट में कृष्ण मेडिकल कॉलेज की जो दयनीय दशा बताई है, उसके अनुसार कॉलेज की फैकल्टी 86.15 प्रतिशत कम पाई गई। इसी प्रकार रेजीडेंट डॉक्टर्स 89.13 प्रतिशत कम मिले। किसी भी वार्ड में कोई मरीज कमेटी को नहीं मिला।
एमसीआई की रिपोर्ट के अनुसार कॉलेज में इसी प्रकार की कुल 19 बड़ी कमियां पाई गईं। इन कमियों से साफ पता लग रहा था कि कृष्ण मोहन मेडिकल कॉलेज एक ओर जहां मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ एंड फैमिली वेलफेअर, एमसीआई व सुप्रीम कोर्ट सहित शिकायतकर्ताओं की आंखों में भी धूल झोंक रहा है वहीं दूसरी ओर इन सभी को खुली चुनौती देते हुए लाखों रुपए अतिरिक्त वसूल कर एडमीशन देने का काम कर रहा है।
यह हाल तो तब है जबकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाए हुए हैं और देशभर में भ्रष्टाचारियों के खिलाफ मुहिम चल रही है।
शिक्षा और विशेषकर मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे इस भ्रष्टाचार का सर्वाधिक चिंताजनक पहलू यह है कि इस तरह बनने वाले डॉक्टर जब सरकारी अथवा निजी क्षेत्र में प्रेक्टिस करने उतरेंगे तो लोगों की जेब तथा जिंदगी पर कितने भारी पड़ेंगे।
देखना यह होगा कि कृष्ण मोहन मेडिकल कॉलेज के संचालकों द्वारा ”आजतक” न्यूज़ चैनल के स्टिंग ऑपरेशन में एडमीशन ने लिए खुलेआम रिश्वत मांगते हुए दिखाए जाने के बाद भी अब इनके खिलाफ कोई ठोस कार्यवाही हो पाती है अथवा नहीं।
या फिर ये शिक्षा माफिया इसी प्रकार मनमानी करने को स्वतंत्र रहते हैं और अच्छे तथा पेशेवर कॉलेजों की भी छवि खराब करने को आजाद रहते हैं।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
यही नहीं, जब न्यूज़ चैनल के रिपोर्टर ने स्टुडेंट का परिजन बनकर एडमीशन कन्फर्म करने का जवाब घर पर बात करने के बाद अगले हफ्ते देने की बात कही तो मैनेजमेंट के नुमाइंदे ने बाकायदा यह कहा कि अगले हफ्ते की स्थिति अगले हफ्ते बताएंगे। मैनेजमेंट के नुमाइंदे के कहने का आशय यह था कि आज जिस रेट में एडमीशन संभव है, उस रेट में अगले हफ्ते एडमीशन होगा या नहीं, यह उस समय की स्थितियों पर निर्भर होगा।
कृष्ण मोहन मेडिकल कॉलेज का यह दुस्साहस इसलिए बहुत अहमियत रखता है कि उसके द्वारा मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ एंड फैमिली वेलफेअर के समक्ष अपना पूरा पक्ष रखने के बाद भी मिनिस्ट्री ने उसे न सिर्फ दो साल के लिए डीबार किया बल्कि यह आदेश भी दिया कि भविष्य में कृष्ण मोहन मेडिकल कॉलेज तभी एडमीशन लेने के लिए अधिकृत होगा जब एमसीआई की टीम इंस्पेक्शन करके क्लीनचिट दे देगी। साथ ही एमसीआई, कॉलेज द्वारा दी गई 2 करोड़ रुपए की बैंक गारंटी भी कैश करा लेगी।
यहां यह जानकारी देना जरूरी है कि एमसीआई की टीम इससे पहले दो बार जब कृष्ण मोहन मेडिकल कॉलेज का नियमानुसार इंस्पेक्शन करने पहुंची तो पहली बार उसे कॉलेज के डीन ने यह कहकर टहला दिया कि वह कॉलेज के चेयरमैन की इजाजत के बिना इंस्पेक्शन की परमीशन नहीं दे सकते। दूसरी बार इस दलील के साथ वापस कर दिया कि उसने मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ एंड फैमिली वेलफेअर के सामने अभी अपना पक्ष नहीं रखा है इसलिए जब वह निर्धारित तिथि पर अपना पक्ष रख दे तब इंस्पैक्शन किया जाए।
गौरतलब है कि वर्ष 2016-17 में केंद्र सरकार की मिनिस्ट्री ऑफ हैल्थ एंड फैमिली वेलफेअर ने कृष्ण मोहन मेडिकल कॉलेज को 150 स्टुडेंट्स के एडमीशन की सशर्त परमीशन सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एमसीआई की ओवरसाइट कमेटी से प्राप्त रिपोर्ट के आधार पर दी थी।
शर्त के अनुसार अगले सत्र में एडमीशन के लिए कॉलेज को मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ एंड फैमिली वेलफेअर के सभी नियमों को पूरा करके एमसीआई की टीम का इंस्पेक्शन कराकर क्लीन चिट लेनी थी।
कॉलेज के संचालकों की बदनीयती और शासन को खुली चुनौती देने का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि मिनिस्ट्री ऑफ हैल्थ एंड फैमिली वेलफेअर के सामने हियरिंग पूरी हो जाने से पहले जब एमसीआई की टीम इंस्पेक्शन के लिए कॉलेज पहुंची थी तो वहां उसे ओपीडी ब्लॉक के रजिस्टर्ड काउंटर पर मात्र दो मरीज मिले जबकि कंसलटेशन रूम पूरी तरह खाली पड़ा था। फर्स्ट फ्लोर पर स्थित आईपीडी, मेडिकल वार्ड, टीबी चेस्ट वार्ड में ताला पड़ा था।
एमसीआई ने अपनी फाइनल इंस्पेक्शन रिपोर्ट में कृष्ण मेडिकल कॉलेज की जो दयनीय दशा बताई है, उसके अनुसार कॉलेज की फैकल्टी 86.15 प्रतिशत कम पाई गई। इसी प्रकार रेजीडेंट डॉक्टर्स 89.13 प्रतिशत कम मिले। किसी भी वार्ड में कोई मरीज कमेटी को नहीं मिला।
एमसीआई की रिपोर्ट के अनुसार कॉलेज में इसी प्रकार की कुल 19 बड़ी कमियां पाई गईं। इन कमियों से साफ पता लग रहा था कि कृष्ण मोहन मेडिकल कॉलेज एक ओर जहां मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ एंड फैमिली वेलफेअर, एमसीआई व सुप्रीम कोर्ट सहित शिकायतकर्ताओं की आंखों में भी धूल झोंक रहा है वहीं दूसरी ओर इन सभी को खुली चुनौती देते हुए लाखों रुपए अतिरिक्त वसूल कर एडमीशन देने का काम कर रहा है।
यह हाल तो तब है जबकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाए हुए हैं और देशभर में भ्रष्टाचारियों के खिलाफ मुहिम चल रही है।
शिक्षा और विशेषकर मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे इस भ्रष्टाचार का सर्वाधिक चिंताजनक पहलू यह है कि इस तरह बनने वाले डॉक्टर जब सरकारी अथवा निजी क्षेत्र में प्रेक्टिस करने उतरेंगे तो लोगों की जेब तथा जिंदगी पर कितने भारी पड़ेंगे।
देखना यह होगा कि कृष्ण मोहन मेडिकल कॉलेज के संचालकों द्वारा ”आजतक” न्यूज़ चैनल के स्टिंग ऑपरेशन में एडमीशन ने लिए खुलेआम रिश्वत मांगते हुए दिखाए जाने के बाद भी अब इनके खिलाफ कोई ठोस कार्यवाही हो पाती है अथवा नहीं।
या फिर ये शिक्षा माफिया इसी प्रकार मनमानी करने को स्वतंत्र रहते हैं और अच्छे तथा पेशेवर कॉलेजों की भी छवि खराब करने को आजाद रहते हैं।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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