सैकड़ों करोड़ की देनदारी मारकर मथुरा का एक बड़ा बिल्डर बाहर भागने की तैयारी कर रहा है।
बिल्डर से जुड़े सूत्रों की मानें तो इस पर करीब दो सौ करोड़ की देनदारी है लेकिन यह उसे अब हड़पना चाहता है।
बताया जाता है कि पिछले काफी समय से देनदार इस बिल्डर से अपना पैसा निकालने को दबाव बना रहे हैं किंतु वह उन्हें अब तक मीठी गोली देकर टहलाता रहा है।
जमीनी कारोबार से जुड़े लोगों का कहना है कि पिछले कुछ महीनों के अंदर इस बिल्डर ने अपनी कई संपत्तियों को बेचा है लेकिन देनदारों को फूटी कौड़ी नहीं चुकाई, जिससे उसकी नीयत में खोट का पता लगता है।
देनदारों ने हालांकि कई बार बिल्डर के आवास तथा विभिन्न कार्यालयों एवं व्यावसायिक प्रतिष्ठानों पर पहुंचकर भी हंगामा किया है किंतु वह उन्हें सिर्फ ब्याज देने की बात करता रहा है।
देनदारों का कहना है कि अब उन्हें बिल्डर पर भरोसा नहीं रहा लिहाजा वह ब्याज नहीं, अपना मूलधन निकालना चाहते हैं क्योंकि वैसे भी उन्होंने उसे बहुत कम ब्याज दर पर पैसा दे रखा है।
करोड़ों रुपए इस बिल्डर के नीचे फंसाए बैठे एक व्यक्ति ने बताया कि जब भी वह तथा उसके जैसे दूसरे लेनदार बिल्डर से अपना पैसा मांगते हैं तो वह रियल एस्टेट कारोबारियों की एसोसिएशन से जुड़े एक पदाधिकारी के साथ बैठकर पंचायत करने की बात करता है जबकि देनदारों का कहना है कि उन्होंने एसोसिएशन के पदाधिकारी को नहीं, पैसा उसे दिया है लिहाजा वह किसी दूसरे के बीच बैठकर पंचायत क्यों करें।
लेनदारों के मुताबिक इस बिल्डर का मुख्य उद्देश्य औने-पौने दामों पर शहर से दूर खरीदी गई अपनी जमीन तथा उस पर बनाए गए फ्लैट्स को मनमानी कीमत पर देनदारों को जबरन बेचना है जिससे उसके कई हित पूरे होते हैं।
लेनदारों ने स्पष्ट किया कि मूलधन मांगने पर बिल्डर या तो फिलहाल ब्याज लेकर काम चलाने की बात कहता है या फिर प्लॉट अथवा फ्लैट की रजिस्ट्री करा लेने को बाध्य करता है।
गौरतलब है कि मोदी सरकार द्वारा की गई नोटबंदी से सर्वाधिक प्रभावित यदि कोई कारोबार हुआ तो वह है रियल एस्टेट का कारोबार, क्योंकि रियल एस्टेट के कारोबार में बड़े पैमाने पर कालेधन का इस्तेमाल होता था।
एक ओर नोटबंदी और दूसरी ओर रियल एस्टेट रेगुलेशन एक्ट ”रेरा” बन जाने के कारण रियल एस्टेट कारोबारियों की कमर टूट गई। ऐसे में जिनकी नीयत खोटी नहीं थी, वह तमाम दिक्कतों के बावजूद अपना कारोबार खड़ा रखने में सफल रहे किंतु खोटी नीयत वालों ने बिना लिखा-पढ़ी के बाजार से लिया हुआ पैसा हड़पने की योजना पर काम करना शुरू कर दिया।
उन्होंने एक तीर से कई निशाने साधने की कहावत चरितार्थ करते हुए देनदारों से कहा कि या तो ब्याज लेकर काम चलाएं अथवा मुंहमांगी कीमत पर प्लॉट और फ्लैट्स लेकर अपने घर बैठें।
कुछ वर्षों पहले तक बहुत मामूली हैसियत वाले इस बिल्डर की नीयत में खोट आने का मुख्य कारण इसकी आपराधिक पृष्ठभूमि बताई जाती है।
बताया जाता है कि कभी छोटे-मोटे काम करके जीविका चलाने और फिर कुछ समय तक ठेकेदारी करने वाले इस बिल्डर पर बस लूट जैसे संगीन आरोप भी लगे हैं किंतु पिछले कुछ वर्षों से इसने खुद को शहर के नामचीन बिल्डर्स की जमात में शामिल कर लिया था और इसलिए लोग इसके अतीत से अपरिचित होते गए।
इसी बात का लाभ उठाकर इस बिल्डर ने कभी अपने किसी स्क्रैप व्यवसायी मित्र को चूना लगाया तो कभी किसी पूर्व विधायक को। कभी टोंटी के किसी कारोबारी को तो कभी किसी लिखिया को।
बिल्डर के नजदीकी सूत्र तो यहां तक बताते हैं कि एक प्रसिद्ध धार्मिक संस्था ने भी करोड़ों रुपए का कर्ज बहुत मामूली ब्याज दर पर इस बिल्डर को दिया हुआ है किंतु इन दिनों वह धार्मिक संस्था खुद अवैध कब्जों के आरोप झेल रही है इसलिए वह कुछ कहने की स्थिति में नहीं है।
इस धार्मिक संस्था पर सरकार ने इतना शिकंजा कसा हुआ है कि वह दूसरे झंझटों में फंसने से बच रही है लेकिन निकट भविष्य में वह भी बिल्डर से अपना पैसा निकालने की कोशिश जरूर करेगी।
प्रदेश सरकार में एक कबीना मंत्री और उनके खास सिपहसालार को अपना संरक्षक बताने वाले इस बिल्डर की नीयत में खोट का अंदाज इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इसने अपने सगे भाइयों तक को नहीं बख्शा और उनका भी मोटा पैसा अपने नीचे हमेशा दबाकर रखा।
बाजार में अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए इस बिल्डर ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को भी परवान चढ़ाने की भरपूर कोशिश की किंतु उसमें वह सफल नहीं हुआ क्योंकि इसके राजनैतिक आका इसकी महत्वाकांक्षा कभी पूरी नहीं होने देना चाहते थे। हालांकि उन्होंने इस पर अपना वरदहस्थ हमेशा बनाए रखा।
बाजार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इस बिल्डर पर पड़ोसी जनपद हाथरस व अलीगढ़ के लोगों का तो काफी पैसा है ही किंतु मथुरा के लोगों का भी कम पैसा नहीं है। ये लोग अब हर हाल में अपना पैसा इसके नीचे से निकालने की कोशिश कर रहे हैं।
ऐसी भी खबरें देनदारों को मिल रही हैं कि पूर्व में यह बिल्डर कई लोगों का पैसा हड़प चुका है। इनमें से कृष्णा नगर शंकर विहार निवासी एक व्यक्ति को तो शहर छोड़कर जाने पर मजबूर होना पड़ा क्योंकि इसके नीचे पैसा फंस जाने के कारण वह खुद बड़ा कर्जदार हो गया था। रातों-रात अपना सबकुछ छोड़कर वह ऐसा गया कि आजतक उसका कोई सुराग नहीं है।
जो भी हो, इधर देनदार अब इस बिल्डर पर जितना दबाव बना रहे हैं उधर बिल्डर इन देनदारों को चूना लगाकर मथुरा से बाहर भाग जाने की तैयारी में बताया जाता है।
सूत्र बताते हैं कि बीमारी का इलाज कराने के बहाने यहां से निकलने की योजना बना रहा यह बिल्डर देश से ही बाहर जाने की तैयारी कर रहा है ताकि फिर किसी के हाथ न आ सके।
यही कारण है कि पिछले कई महीनों से यह अपने स्वामित्व वाली संपत्तियों को बेचने में लगा है और कई संपत्तियां बेच भी चुका है।
बिल्डर जानता है कि यदि देनदारों ने एकजुट होकर पुलिस प्रशासन पर दबाव बनाना शुरू कर दिया और एकबार कानूनी प्रक्रिया शुरू हो गई तो फिर उसका भाग निकलना आसान नहीं होगा।
देनदार भी इस सच्चाई को समझ रहे हैं और कुछ देनदारों ने अपने स्तर से पुलिस प्रशासन की मदद लेने के लिए हाथपैर मारना शुरू भी किया है लेकिन फिलहाल उन्हें सफलता मिली नहीं है।
अब देखना यह है कि बिल्डर अपने मकसद में सफल होता है या देनदार समय रहते उस पर कानूनी शिकंजा कसवा पाते हैं।
कहीं ऐसा न हो कि यह मामला कल्पतरू ग्रुप के मालिक राणा की तरह उलझ कर रह जाए और देनदार आत्महत्या करने पर मजबूर हों क्योंकि प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी के एक मंत्री से राजनीतिक संरक्षण तो इसे भी प्राप्त है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
बिल्डर से जुड़े सूत्रों की मानें तो इस पर करीब दो सौ करोड़ की देनदारी है लेकिन यह उसे अब हड़पना चाहता है।
बताया जाता है कि पिछले काफी समय से देनदार इस बिल्डर से अपना पैसा निकालने को दबाव बना रहे हैं किंतु वह उन्हें अब तक मीठी गोली देकर टहलाता रहा है।
जमीनी कारोबार से जुड़े लोगों का कहना है कि पिछले कुछ महीनों के अंदर इस बिल्डर ने अपनी कई संपत्तियों को बेचा है लेकिन देनदारों को फूटी कौड़ी नहीं चुकाई, जिससे उसकी नीयत में खोट का पता लगता है।
देनदारों ने हालांकि कई बार बिल्डर के आवास तथा विभिन्न कार्यालयों एवं व्यावसायिक प्रतिष्ठानों पर पहुंचकर भी हंगामा किया है किंतु वह उन्हें सिर्फ ब्याज देने की बात करता रहा है।
देनदारों का कहना है कि अब उन्हें बिल्डर पर भरोसा नहीं रहा लिहाजा वह ब्याज नहीं, अपना मूलधन निकालना चाहते हैं क्योंकि वैसे भी उन्होंने उसे बहुत कम ब्याज दर पर पैसा दे रखा है।
करोड़ों रुपए इस बिल्डर के नीचे फंसाए बैठे एक व्यक्ति ने बताया कि जब भी वह तथा उसके जैसे दूसरे लेनदार बिल्डर से अपना पैसा मांगते हैं तो वह रियल एस्टेट कारोबारियों की एसोसिएशन से जुड़े एक पदाधिकारी के साथ बैठकर पंचायत करने की बात करता है जबकि देनदारों का कहना है कि उन्होंने एसोसिएशन के पदाधिकारी को नहीं, पैसा उसे दिया है लिहाजा वह किसी दूसरे के बीच बैठकर पंचायत क्यों करें।
लेनदारों के मुताबिक इस बिल्डर का मुख्य उद्देश्य औने-पौने दामों पर शहर से दूर खरीदी गई अपनी जमीन तथा उस पर बनाए गए फ्लैट्स को मनमानी कीमत पर देनदारों को जबरन बेचना है जिससे उसके कई हित पूरे होते हैं।
लेनदारों ने स्पष्ट किया कि मूलधन मांगने पर बिल्डर या तो फिलहाल ब्याज लेकर काम चलाने की बात कहता है या फिर प्लॉट अथवा फ्लैट की रजिस्ट्री करा लेने को बाध्य करता है।
गौरतलब है कि मोदी सरकार द्वारा की गई नोटबंदी से सर्वाधिक प्रभावित यदि कोई कारोबार हुआ तो वह है रियल एस्टेट का कारोबार, क्योंकि रियल एस्टेट के कारोबार में बड़े पैमाने पर कालेधन का इस्तेमाल होता था।
एक ओर नोटबंदी और दूसरी ओर रियल एस्टेट रेगुलेशन एक्ट ”रेरा” बन जाने के कारण रियल एस्टेट कारोबारियों की कमर टूट गई। ऐसे में जिनकी नीयत खोटी नहीं थी, वह तमाम दिक्कतों के बावजूद अपना कारोबार खड़ा रखने में सफल रहे किंतु खोटी नीयत वालों ने बिना लिखा-पढ़ी के बाजार से लिया हुआ पैसा हड़पने की योजना पर काम करना शुरू कर दिया।
उन्होंने एक तीर से कई निशाने साधने की कहावत चरितार्थ करते हुए देनदारों से कहा कि या तो ब्याज लेकर काम चलाएं अथवा मुंहमांगी कीमत पर प्लॉट और फ्लैट्स लेकर अपने घर बैठें।
कुछ वर्षों पहले तक बहुत मामूली हैसियत वाले इस बिल्डर की नीयत में खोट आने का मुख्य कारण इसकी आपराधिक पृष्ठभूमि बताई जाती है।
बताया जाता है कि कभी छोटे-मोटे काम करके जीविका चलाने और फिर कुछ समय तक ठेकेदारी करने वाले इस बिल्डर पर बस लूट जैसे संगीन आरोप भी लगे हैं किंतु पिछले कुछ वर्षों से इसने खुद को शहर के नामचीन बिल्डर्स की जमात में शामिल कर लिया था और इसलिए लोग इसके अतीत से अपरिचित होते गए।
इसी बात का लाभ उठाकर इस बिल्डर ने कभी अपने किसी स्क्रैप व्यवसायी मित्र को चूना लगाया तो कभी किसी पूर्व विधायक को। कभी टोंटी के किसी कारोबारी को तो कभी किसी लिखिया को।
बिल्डर के नजदीकी सूत्र तो यहां तक बताते हैं कि एक प्रसिद्ध धार्मिक संस्था ने भी करोड़ों रुपए का कर्ज बहुत मामूली ब्याज दर पर इस बिल्डर को दिया हुआ है किंतु इन दिनों वह धार्मिक संस्था खुद अवैध कब्जों के आरोप झेल रही है इसलिए वह कुछ कहने की स्थिति में नहीं है।
इस धार्मिक संस्था पर सरकार ने इतना शिकंजा कसा हुआ है कि वह दूसरे झंझटों में फंसने से बच रही है लेकिन निकट भविष्य में वह भी बिल्डर से अपना पैसा निकालने की कोशिश जरूर करेगी।
प्रदेश सरकार में एक कबीना मंत्री और उनके खास सिपहसालार को अपना संरक्षक बताने वाले इस बिल्डर की नीयत में खोट का अंदाज इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इसने अपने सगे भाइयों तक को नहीं बख्शा और उनका भी मोटा पैसा अपने नीचे हमेशा दबाकर रखा।
बाजार में अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए इस बिल्डर ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को भी परवान चढ़ाने की भरपूर कोशिश की किंतु उसमें वह सफल नहीं हुआ क्योंकि इसके राजनैतिक आका इसकी महत्वाकांक्षा कभी पूरी नहीं होने देना चाहते थे। हालांकि उन्होंने इस पर अपना वरदहस्थ हमेशा बनाए रखा।
बाजार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इस बिल्डर पर पड़ोसी जनपद हाथरस व अलीगढ़ के लोगों का तो काफी पैसा है ही किंतु मथुरा के लोगों का भी कम पैसा नहीं है। ये लोग अब हर हाल में अपना पैसा इसके नीचे से निकालने की कोशिश कर रहे हैं।
ऐसी भी खबरें देनदारों को मिल रही हैं कि पूर्व में यह बिल्डर कई लोगों का पैसा हड़प चुका है। इनमें से कृष्णा नगर शंकर विहार निवासी एक व्यक्ति को तो शहर छोड़कर जाने पर मजबूर होना पड़ा क्योंकि इसके नीचे पैसा फंस जाने के कारण वह खुद बड़ा कर्जदार हो गया था। रातों-रात अपना सबकुछ छोड़कर वह ऐसा गया कि आजतक उसका कोई सुराग नहीं है।
जो भी हो, इधर देनदार अब इस बिल्डर पर जितना दबाव बना रहे हैं उधर बिल्डर इन देनदारों को चूना लगाकर मथुरा से बाहर भाग जाने की तैयारी में बताया जाता है।
सूत्र बताते हैं कि बीमारी का इलाज कराने के बहाने यहां से निकलने की योजना बना रहा यह बिल्डर देश से ही बाहर जाने की तैयारी कर रहा है ताकि फिर किसी के हाथ न आ सके।
यही कारण है कि पिछले कई महीनों से यह अपने स्वामित्व वाली संपत्तियों को बेचने में लगा है और कई संपत्तियां बेच भी चुका है।
बिल्डर जानता है कि यदि देनदारों ने एकजुट होकर पुलिस प्रशासन पर दबाव बनाना शुरू कर दिया और एकबार कानूनी प्रक्रिया शुरू हो गई तो फिर उसका भाग निकलना आसान नहीं होगा।
देनदार भी इस सच्चाई को समझ रहे हैं और कुछ देनदारों ने अपने स्तर से पुलिस प्रशासन की मदद लेने के लिए हाथपैर मारना शुरू भी किया है लेकिन फिलहाल उन्हें सफलता मिली नहीं है।
अब देखना यह है कि बिल्डर अपने मकसद में सफल होता है या देनदार समय रहते उस पर कानूनी शिकंजा कसवा पाते हैं।
कहीं ऐसा न हो कि यह मामला कल्पतरू ग्रुप के मालिक राणा की तरह उलझ कर रह जाए और देनदार आत्महत्या करने पर मजबूर हों क्योंकि प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी के एक मंत्री से राजनीतिक संरक्षण तो इसे भी प्राप्त है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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