आचार्य विष्णुगुप्त ”चाणक्य” ने कहा है कि कामयाब होने के लिए जहां
अच्छे मित्रों की आवश्यकता होती है वहीं ज्यादा कामयाब होने के लिए
प्रबल शत्रुओं की आवश्यकता होती है।
याद करें 2002 के गुजरात दंगे, जिनके बाद नरेन्द्र मोदी एक ओर जहां विपक्षी पार्टियों के निशाने पर आ गए थे वहीं दूसरी ओर भाजपा के भी कुछ नेताओं को खटकने लगे थे।
कहते हैं कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने तब नरेन्द्र मोदी को राजधर्म निभाने की सीख दी थी और वो उन्हें गुजरात के मुख्यमंत्री पद से हटाना चाहते थे किंतु आडवाणी ने मोदी का पक्ष लिया।
अटल और आडवाणी की बात छोड़ दें तो तब से लेकर 2014 के लोकसभा चुनावों तक नरेन्द्र मोदी का गुजरात दंगों ने पीछा नहीं छोड़ा। न्यायालय में कोई आरोप सिद्ध न होने के बावजूद मोदी को उनके प्रबल शत्रु हमेशा कठघरे में खड़ा करते रहे और मोदी यथासंभव अपनी सफाई पेश करते रहे। मीडिया ने भी उन्हें आरोपी बनाए रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
बहरहाल…गुजरात की राजनीति करते-करते नरेन्द्र दामोदर दास मोदी कैसे अचानक पूरे देश की राजनीति पर छा गए, यह तो पता नहीं किंतु इतना जरूर पता है कि उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाने में बड़ी भूमिका उनके शत्रुओं की ही है।
वैसे तो नरेन्द्र मोदी के शत्रुओं की कमी न पार्टी के अंदर कभी रही और न बाहर, लेकिन जब से उन्होंने प्रधानमंत्री का पद संभाला है तब से शत्रुओं की संख्या में भारी इजाफा देखने को मिल रहा है।
आश्चर्य की बात यह है कि शत्रुओं की संख्या के अनुपात में ही न सिर्फ नरेन्द्र मोदी बल्कि भाजपा भी तरक्की के पायदान चढ़ती जा रही है।
कभी सोनिया गांधी ने मोदी को ”मौत का सौदागर” बताया तो कभी उनके पुत्र राहुल गांधी ने उन पर ”खून की दलाली” करने का इल्जाम लगाया। सोनिया और राहुल सहित विपक्ष ने मोदी को जितना ज्यादा निशाने पर लिया, मोदी का कद उतना ही बढ़ता गया।
बुधवार से अब कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह द्वारा प्रधानमंत्री के पद पर काबिज नरेन्द्र मोदी के बारे में गालियों की हद तक जाकर अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल किया जाना चर्चा का विषय बना हुआ है।
कांग्रेसियों का इस विषय में तर्क है कि नरेन्द्र मोदी अपने टि्वटर अकाउंट पर एसे तमाम लोगों को फॉलो करते हैं जो दिन-रात विपक्ष के लिए अपशब्द इस्तेमाल करते देखे जा सकते हैं।
कांग्रेसियों का तर्क आसानी से किसी शिक्षित व्यक्ति के गले नहीं उतर सकता।
क्या किसी को इसलिए अभद्र भाषा इस्तेमाल करने, गालियां बकने, अपशब्दों का प्रयोग करने अथवा अशिष्टता करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है कि दूसरे बहुत से लोग ऐसा करते हैं।
यदि असभ्य और अशिष्ट लोग ही कांग्रेसी नेताओं के आदर्श हैं तो फिर कुछ भी कहना निरर्थक होगा अन्यथा कांग्रेस को दूसरों का उदाहरण न देकर कांग्रेस की संस्कृति पर गौर करना चाहिए।
कांग्रेसियों को सोचना चाहिए कि वह किस पार्टी से जुड़े हैं, उस पार्टी का राजनीतिक इतिहास क्या है, उसके नेताओं का कद कैसा रहा है, देश में उनकी पहचान क्या है?
न कि इस आशय के खोखले तर्क देने चाहिए कि नरेन्द्र मोदी के टि्वटर अकाउंट की फॉलोइंग में गाली देने वाले भी शामिल हैं।
नरेन्द्र मोदी यदि आज कुछ गलत कर रहे हैं तो तय जानिए कि इसका खामियाजा उन्हें भुगतना होगा, किंतु फिलहाल तो वक्त यह विचार करने का है कि कांग्रेस ने ऐसा क्या किया जिससे वो अपने वजूद को भी कायम रखने की लड़ाई लड़ रही है।
आज स्थिति यह है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष जैसे पद को सुशोभित करने वाली सोनिया गांधी से लेकर उनके पुत्र और कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी तक तथा दिग्विजय सिंह जैसे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता से लेकर मणिशंकर अय्यर व पी. चिदम्बरम तक कहीं कोई अंतर नजर नहीं आता।
सड़क छाप लोगों की भाषा में और देश का भाग्य विधाता बनने को आतुर लोगों की भाषा में कहीं तो कोई भेद दिखाई देना चाहिए।
दिग्विजय सिंह ने जहां प्रधानमंत्री के प्रति अपशब्दों का प्रयोग करके यह साबित किया है कि क्वालिफिकेशन से एजुकेशन का दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं होता, वहीं अब दिग्विजय सिंह का समर्थन करने वाले यह प्रमाणित कर रहे हैं कि राजनीति कितनी सड़क छाप हो गई है।
इसे यूं भी कह सकते हैं कि राजनीति में किसी तरह ऊंचाइयां छू लेने वाले लोग जरूरी नहीं कि सड़क छाप न हों।
दिग्विजय सिंह ने तो अपने निम्नस्तरीय कृत्य से उस कुलीन कुल को भी कलंकित किया है जिसमें वो पैदा हुए थे और जिसके कारण आज तक लोग उन्हें ”दिग्गी राजा” कहते हैं।
नि: संदेह भारतीय जनता पार्टी में भी ऐसे तत्व हैं जो आये दिन अनर्गल प्रलाप करते रहते हैं और भाषा तथा आचरण की मर्यादा एवं पद की गरिमा का भी ध्यान नहीं रखते, किंतु इसका मतलब यह नहीं कि दूसरे लोगों को उनसे असभ्य आचरण का अधिकार प्राप्त हो जाता हो।
प्रधानमंत्री कोई व्यक्ति नहीं, एक पद है। एक ऐसा पद जिससे देश की मान-मर्यादा बंधी है। उस पद पर हमारे देश में कोई सत्ता छीनकर नहीं बैठ जाता, देश की जनता अपने मताधिकार का प्रयोग करके उसे उस पद पर प्रतिष्ठापित करती है।
जाहिर है कि यदि कोई उस पद पर बैठे व्यक्ति के लिए गालियों का प्रयोग कर रहा है तो इसका सीधा मतलब है कि वह देश की जनता के साथ-साथ देश का भी अपमान कर रहा है। राजनीति को लज्जित कर रहा है।
दिग्विजय सिंह भी एक लंबे समय तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। राजनीति में अवसान, कोई अनहोनी बात नहीं। राजनीति तो सदा से ही अप्रत्याशित नतीजों का खेल रही है। शून्य से शिखर तक पहुंचने की अनेक कहानियों से राजनीति का इतिहास भरा पड़ा है। कांग्रेस यदि आज हाशिए पर है तो कभी भाजपा भी हाशिए पर रही है।
प्रतिद्वंदियों के प्रति घृणा की हद तक दुर्भावना रखने वाले राजनीतिज्ञ राजनीति को तो कलंकित करते ही हैं, चाणक्य के उस कथन को भी साबित करते हैं कि ज्यादा कामयाब होने के लिए प्रबल शत्रुओं की आवश्यकता होती है।
और शत्रु यदि दिग्विजय सिंह जैसा हो तो निश्चित जानिए कि तरक्की के लिए किसी मित्र की आवश्यकता रह नहीं जाती।
कांग्रेस चाहे तो अब भी समझ सकती है कि आज यदि नरेन्द्र मोदी उसे और समूचे विपक्ष को अपराजेय नजर आ रहे हैं तो उसके पीछे मोदी का कोई तिलिस्म कम, कांग्रेस और कांग्रेसियों सहित विपक्ष के प्रबल शत्रुओं का बड़ा योगदान है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
याद करें 2002 के गुजरात दंगे, जिनके बाद नरेन्द्र मोदी एक ओर जहां विपक्षी पार्टियों के निशाने पर आ गए थे वहीं दूसरी ओर भाजपा के भी कुछ नेताओं को खटकने लगे थे।
कहते हैं कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने तब नरेन्द्र मोदी को राजधर्म निभाने की सीख दी थी और वो उन्हें गुजरात के मुख्यमंत्री पद से हटाना चाहते थे किंतु आडवाणी ने मोदी का पक्ष लिया।
अटल और आडवाणी की बात छोड़ दें तो तब से लेकर 2014 के लोकसभा चुनावों तक नरेन्द्र मोदी का गुजरात दंगों ने पीछा नहीं छोड़ा। न्यायालय में कोई आरोप सिद्ध न होने के बावजूद मोदी को उनके प्रबल शत्रु हमेशा कठघरे में खड़ा करते रहे और मोदी यथासंभव अपनी सफाई पेश करते रहे। मीडिया ने भी उन्हें आरोपी बनाए रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
बहरहाल…गुजरात की राजनीति करते-करते नरेन्द्र दामोदर दास मोदी कैसे अचानक पूरे देश की राजनीति पर छा गए, यह तो पता नहीं किंतु इतना जरूर पता है कि उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाने में बड़ी भूमिका उनके शत्रुओं की ही है।
वैसे तो नरेन्द्र मोदी के शत्रुओं की कमी न पार्टी के अंदर कभी रही और न बाहर, लेकिन जब से उन्होंने प्रधानमंत्री का पद संभाला है तब से शत्रुओं की संख्या में भारी इजाफा देखने को मिल रहा है।
आश्चर्य की बात यह है कि शत्रुओं की संख्या के अनुपात में ही न सिर्फ नरेन्द्र मोदी बल्कि भाजपा भी तरक्की के पायदान चढ़ती जा रही है।
कभी सोनिया गांधी ने मोदी को ”मौत का सौदागर” बताया तो कभी उनके पुत्र राहुल गांधी ने उन पर ”खून की दलाली” करने का इल्जाम लगाया। सोनिया और राहुल सहित विपक्ष ने मोदी को जितना ज्यादा निशाने पर लिया, मोदी का कद उतना ही बढ़ता गया।
बुधवार से अब कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह द्वारा प्रधानमंत्री के पद पर काबिज नरेन्द्र मोदी के बारे में गालियों की हद तक जाकर अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल किया जाना चर्चा का विषय बना हुआ है।
कांग्रेसियों का इस विषय में तर्क है कि नरेन्द्र मोदी अपने टि्वटर अकाउंट पर एसे तमाम लोगों को फॉलो करते हैं जो दिन-रात विपक्ष के लिए अपशब्द इस्तेमाल करते देखे जा सकते हैं।
कांग्रेसियों का तर्क आसानी से किसी शिक्षित व्यक्ति के गले नहीं उतर सकता।
क्या किसी को इसलिए अभद्र भाषा इस्तेमाल करने, गालियां बकने, अपशब्दों का प्रयोग करने अथवा अशिष्टता करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है कि दूसरे बहुत से लोग ऐसा करते हैं।
यदि असभ्य और अशिष्ट लोग ही कांग्रेसी नेताओं के आदर्श हैं तो फिर कुछ भी कहना निरर्थक होगा अन्यथा कांग्रेस को दूसरों का उदाहरण न देकर कांग्रेस की संस्कृति पर गौर करना चाहिए।
कांग्रेसियों को सोचना चाहिए कि वह किस पार्टी से जुड़े हैं, उस पार्टी का राजनीतिक इतिहास क्या है, उसके नेताओं का कद कैसा रहा है, देश में उनकी पहचान क्या है?
न कि इस आशय के खोखले तर्क देने चाहिए कि नरेन्द्र मोदी के टि्वटर अकाउंट की फॉलोइंग में गाली देने वाले भी शामिल हैं।
नरेन्द्र मोदी यदि आज कुछ गलत कर रहे हैं तो तय जानिए कि इसका खामियाजा उन्हें भुगतना होगा, किंतु फिलहाल तो वक्त यह विचार करने का है कि कांग्रेस ने ऐसा क्या किया जिससे वो अपने वजूद को भी कायम रखने की लड़ाई लड़ रही है।
आज स्थिति यह है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष जैसे पद को सुशोभित करने वाली सोनिया गांधी से लेकर उनके पुत्र और कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी तक तथा दिग्विजय सिंह जैसे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता से लेकर मणिशंकर अय्यर व पी. चिदम्बरम तक कहीं कोई अंतर नजर नहीं आता।
सड़क छाप लोगों की भाषा में और देश का भाग्य विधाता बनने को आतुर लोगों की भाषा में कहीं तो कोई भेद दिखाई देना चाहिए।
दिग्विजय सिंह ने जहां प्रधानमंत्री के प्रति अपशब्दों का प्रयोग करके यह साबित किया है कि क्वालिफिकेशन से एजुकेशन का दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं होता, वहीं अब दिग्विजय सिंह का समर्थन करने वाले यह प्रमाणित कर रहे हैं कि राजनीति कितनी सड़क छाप हो गई है।
इसे यूं भी कह सकते हैं कि राजनीति में किसी तरह ऊंचाइयां छू लेने वाले लोग जरूरी नहीं कि सड़क छाप न हों।
दिग्विजय सिंह ने तो अपने निम्नस्तरीय कृत्य से उस कुलीन कुल को भी कलंकित किया है जिसमें वो पैदा हुए थे और जिसके कारण आज तक लोग उन्हें ”दिग्गी राजा” कहते हैं।
नि: संदेह भारतीय जनता पार्टी में भी ऐसे तत्व हैं जो आये दिन अनर्गल प्रलाप करते रहते हैं और भाषा तथा आचरण की मर्यादा एवं पद की गरिमा का भी ध्यान नहीं रखते, किंतु इसका मतलब यह नहीं कि दूसरे लोगों को उनसे असभ्य आचरण का अधिकार प्राप्त हो जाता हो।
प्रधानमंत्री कोई व्यक्ति नहीं, एक पद है। एक ऐसा पद जिससे देश की मान-मर्यादा बंधी है। उस पद पर हमारे देश में कोई सत्ता छीनकर नहीं बैठ जाता, देश की जनता अपने मताधिकार का प्रयोग करके उसे उस पद पर प्रतिष्ठापित करती है।
जाहिर है कि यदि कोई उस पद पर बैठे व्यक्ति के लिए गालियों का प्रयोग कर रहा है तो इसका सीधा मतलब है कि वह देश की जनता के साथ-साथ देश का भी अपमान कर रहा है। राजनीति को लज्जित कर रहा है।
दिग्विजय सिंह भी एक लंबे समय तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। राजनीति में अवसान, कोई अनहोनी बात नहीं। राजनीति तो सदा से ही अप्रत्याशित नतीजों का खेल रही है। शून्य से शिखर तक पहुंचने की अनेक कहानियों से राजनीति का इतिहास भरा पड़ा है। कांग्रेस यदि आज हाशिए पर है तो कभी भाजपा भी हाशिए पर रही है।
प्रतिद्वंदियों के प्रति घृणा की हद तक दुर्भावना रखने वाले राजनीतिज्ञ राजनीति को तो कलंकित करते ही हैं, चाणक्य के उस कथन को भी साबित करते हैं कि ज्यादा कामयाब होने के लिए प्रबल शत्रुओं की आवश्यकता होती है।
और शत्रु यदि दिग्विजय सिंह जैसा हो तो निश्चित जानिए कि तरक्की के लिए किसी मित्र की आवश्यकता रह नहीं जाती।
कांग्रेस चाहे तो अब भी समझ सकती है कि आज यदि नरेन्द्र मोदी उसे और समूचे विपक्ष को अपराजेय नजर आ रहे हैं तो उसके पीछे मोदी का कोई तिलिस्म कम, कांग्रेस और कांग्रेसियों सहित विपक्ष के प्रबल शत्रुओं का बड़ा योगदान है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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