2019 के लोकसभा चुनावों में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी करीब 120 सिटिंग सांसदों का पत्ता काटने वाली है। इनमें करीब डेढ़ दर्जन सांसद तो ऐसे हैं जो वर्तमान मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री बने बैठे हैं। पार्टी अब इन सांसदों को टिकट देने के ही मूड में नहीं है।
इस बावत पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा की गई मीटिंग में उपस्थित रहे सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार भाजपा अपने इस समय मौजूद कुल 273 लोकसभा सदस्यों में से लगभग 45 प्रतिशत सदस्यों का पत्ता काटने की तैयारी कर चुकी है जिनमें वो 19 सांसद भी शामिल हैं जो 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले 75 साल की उम्र पूरी करने वाले हैं।
75 साल और उससे अधिक की उम्र वाले ऐसे सांसदों में पार्टी के मार्गदर्शक मंडल से लालकृष्ण आडवाणी तथा मुरली मनोहर जोशी के अलावा करिया मुंडा, शांता कुमार, भुवनचंद्र खंडूरी, लीलाधरभाई वाघेला, कलराज मिश्र, रामटहल चौधरी, हुकुमदेव नारायण यादव के नाम प्रमुख हैं।
बताया जाता है कि 75 साल की उम्र पूरी करने वाले सांसदों के अलावा जिन सांसदों का टिकट 2019 में काटा जाना है, उनकी परफॉरमेंस के बारे में पार्टी ने विभिन्न स्तर पर अपने सोर्सेज से फीडबैक ले लिया है।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक फीडबैक देने वालों में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ यानि आरएसएस के अलावा चुनिंदा पार्टी कार्यकर्ता तो हैं ही, साथ ही कुछ प्राइवेट एजेंसीज तथा ”नमो एप” की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
इन सभी सोर्सेज ने सीधे प्रधानमंत्री मोदी को अपने-अपने सर्वे से अवगत कराया है और इसी आधार पर यह निर्णय लेने की तैयारी की गई है ताकि समय रहते 2019 के लिए लोकप्रिय व ईमानदार चेहरों को तलाश लिया जाए।
गत दिनों हरियाणा के सूरजकुंड में इस विषय पर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा की गई बैठक में राष्ट्रीय सचिव और महासचिव एवं आरएसएस के वरिष्ठ नेता भी मौजूद थे। इस बैठक में विस्तृत रूप से इस बात पर चर्चा के बाद सहमति बनी कि नाकाबिल सिटिंग सांसदों को टिकट न दिया जाए।
ऐसे सांसदों में सबसे अहम नाम विदेश मंत्री और मध्य प्रदेश के विदिशा से सांसद सुषमा स्वराज का है क्योंकि विदिशा की जनता सुषमा स्वराज से खासी नाराज बताई गई है। इसके अलावा नीति आयोग ने भी विदिशा की विकास संबंधी रिपोर्ट को बहुत खराब बताया है।
बताया जाता है कि संगठन के सचिव और महासचिवों ने अपनी रिपोर्ट में जिन सांसदों की जनता के बीच परफॉरमेंस और पॉपुलेरिटी पूअर बताई गई है, उनकी संख्या एक सैकड़ा से अधिक है।
ऐसे सभी सांसदों को पार्टी ने अंतिम रूप से अधिकतम 6 माह का समय इसलिए दिया है कि यदि वह इस दौरान अपनी परफॉरमेंस को पूअर से प्रॉपर बना पाते हैं तो उन्हें चुनाव लड़ाने के बावत विचार किया जा सकता है।
पार्टी ने ये समय भी इसलिए दिया है ताकि इसी वर्ष चार राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों के नतीजे भी सामने आ जाएं और वहां के सिटिंग भाजपा सांसदों की परफॉरमेंस का ठोस आकलन किया जा सके।
इन सब के अलावा पार्टी उन सांसदों को रीप्लेस करने का पूरा मन बना चुकी है जिन्होंने पार्टी के अंदर रहकर मोदी सरकार के काम-काज की न सिर्फ तीखी आलोचना की है बल्कि समय-समय पर पार्टी को नुकसान पहुंचाने का काम भी किया है।
पार्टी के अंदरुनी और अत्यंत भरोसमंद इन सूत्रों के अनुसार 2019 के लोकसभा चुनावों में जिन सांसदों का पत्ता काटा जाना है उनमें से करीब डेढ़ दर्जन ने उत्तर प्रदेश से जबकि 26 ने मध्यप्रदेश जीत हासिल की थी। बाकी का ताल्लुक राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश, कर्नाटक व गुजरात से है।
इस सबके बीच पार्टी ने इस बात का भी पूरा ख्याल रखा है कि विपक्ष का संभावित गठबंधन कौन-कौन से और कहां-कहां के उम्मीदवारों को प्रभावित कर सकता है।
उल्लेखनीय है कि मथुरा भी ऐसा ही संसदीय क्षेत्र है जहां विपक्ष का संभावित गठबंधन भाजपा के सामने संकट खड़े कर सकता है।
मथुरा से 2014 में भी भाजपा ने बाहरी प्रत्याशी सिने अभिनेत्री हेमा मालिनी को चुनाव लड़वाया क्योंकि तब यहां पार्टी को कोई जिताऊ कद्दावर प्रत्याशी नहीं मिल सका था।
बाहरी प्रत्याशियों को लेकर मथुरा की जनता का जैसा कटु अनुभव पूर्व में रहा है, उसमें फिलहाल कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं हो सकी है। बात चाहे हरियाणा से आए मनीराम बागड़ी की हो अथवा फर्रुखाबाद से आए डॉ. सच्चिदानंद हरि साक्षी महाराज की। रालोद के युवराज जयंत चौधरी की हो अथवा मायानगरी से आईं स्वप्न सुंदरी हेमा मालिनी की।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
इस बावत पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा की गई मीटिंग में उपस्थित रहे सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार भाजपा अपने इस समय मौजूद कुल 273 लोकसभा सदस्यों में से लगभग 45 प्रतिशत सदस्यों का पत्ता काटने की तैयारी कर चुकी है जिनमें वो 19 सांसद भी शामिल हैं जो 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले 75 साल की उम्र पूरी करने वाले हैं।
75 साल और उससे अधिक की उम्र वाले ऐसे सांसदों में पार्टी के मार्गदर्शक मंडल से लालकृष्ण आडवाणी तथा मुरली मनोहर जोशी के अलावा करिया मुंडा, शांता कुमार, भुवनचंद्र खंडूरी, लीलाधरभाई वाघेला, कलराज मिश्र, रामटहल चौधरी, हुकुमदेव नारायण यादव के नाम प्रमुख हैं।
बताया जाता है कि 75 साल की उम्र पूरी करने वाले सांसदों के अलावा जिन सांसदों का टिकट 2019 में काटा जाना है, उनकी परफॉरमेंस के बारे में पार्टी ने विभिन्न स्तर पर अपने सोर्सेज से फीडबैक ले लिया है।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक फीडबैक देने वालों में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ यानि आरएसएस के अलावा चुनिंदा पार्टी कार्यकर्ता तो हैं ही, साथ ही कुछ प्राइवेट एजेंसीज तथा ”नमो एप” की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
इन सभी सोर्सेज ने सीधे प्रधानमंत्री मोदी को अपने-अपने सर्वे से अवगत कराया है और इसी आधार पर यह निर्णय लेने की तैयारी की गई है ताकि समय रहते 2019 के लिए लोकप्रिय व ईमानदार चेहरों को तलाश लिया जाए।
गत दिनों हरियाणा के सूरजकुंड में इस विषय पर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा की गई बैठक में राष्ट्रीय सचिव और महासचिव एवं आरएसएस के वरिष्ठ नेता भी मौजूद थे। इस बैठक में विस्तृत रूप से इस बात पर चर्चा के बाद सहमति बनी कि नाकाबिल सिटिंग सांसदों को टिकट न दिया जाए।
ऐसे सांसदों में सबसे अहम नाम विदेश मंत्री और मध्य प्रदेश के विदिशा से सांसद सुषमा स्वराज का है क्योंकि विदिशा की जनता सुषमा स्वराज से खासी नाराज बताई गई है। इसके अलावा नीति आयोग ने भी विदिशा की विकास संबंधी रिपोर्ट को बहुत खराब बताया है।
बताया जाता है कि संगठन के सचिव और महासचिवों ने अपनी रिपोर्ट में जिन सांसदों की जनता के बीच परफॉरमेंस और पॉपुलेरिटी पूअर बताई गई है, उनकी संख्या एक सैकड़ा से अधिक है।
ऐसे सभी सांसदों को पार्टी ने अंतिम रूप से अधिकतम 6 माह का समय इसलिए दिया है कि यदि वह इस दौरान अपनी परफॉरमेंस को पूअर से प्रॉपर बना पाते हैं तो उन्हें चुनाव लड़ाने के बावत विचार किया जा सकता है।
पार्टी ने ये समय भी इसलिए दिया है ताकि इसी वर्ष चार राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों के नतीजे भी सामने आ जाएं और वहां के सिटिंग भाजपा सांसदों की परफॉरमेंस का ठोस आकलन किया जा सके।
इन सब के अलावा पार्टी उन सांसदों को रीप्लेस करने का पूरा मन बना चुकी है जिन्होंने पार्टी के अंदर रहकर मोदी सरकार के काम-काज की न सिर्फ तीखी आलोचना की है बल्कि समय-समय पर पार्टी को नुकसान पहुंचाने का काम भी किया है।
पार्टी के अंदरुनी और अत्यंत भरोसमंद इन सूत्रों के अनुसार 2019 के लोकसभा चुनावों में जिन सांसदों का पत्ता काटा जाना है उनमें से करीब डेढ़ दर्जन ने उत्तर प्रदेश से जबकि 26 ने मध्यप्रदेश जीत हासिल की थी। बाकी का ताल्लुक राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश, कर्नाटक व गुजरात से है।
इस सबके बीच पार्टी ने इस बात का भी पूरा ख्याल रखा है कि विपक्ष का संभावित गठबंधन कौन-कौन से और कहां-कहां के उम्मीदवारों को प्रभावित कर सकता है।
उल्लेखनीय है कि मथुरा भी ऐसा ही संसदीय क्षेत्र है जहां विपक्ष का संभावित गठबंधन भाजपा के सामने संकट खड़े कर सकता है।
मथुरा से 2014 में भी भाजपा ने बाहरी प्रत्याशी सिने अभिनेत्री हेमा मालिनी को चुनाव लड़वाया क्योंकि तब यहां पार्टी को कोई जिताऊ कद्दावर प्रत्याशी नहीं मिल सका था।
बाहरी प्रत्याशियों को लेकर मथुरा की जनता का जैसा कटु अनुभव पूर्व में रहा है, उसमें फिलहाल कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं हो सकी है। बात चाहे हरियाणा से आए मनीराम बागड़ी की हो अथवा फर्रुखाबाद से आए डॉ. सच्चिदानंद हरि साक्षी महाराज की। रालोद के युवराज जयंत चौधरी की हो अथवा मायानगरी से आईं स्वप्न सुंदरी हेमा मालिनी की।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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