शुक्रवार, 31 अगस्त 2018

MY Lord, जनसामान्‍य के लिए भी बनवा दीजिए कोई ‘लेन’, उसकी भी सुन लीजिए हुजूर

बीते बुधवार को मद्रास हाई कोर्ट ने NHAI (नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया) को सख्‍त आदेश देते हुए कहा कि वह अपने सभी टोल प्लाजा पर वीआईपी और मौजूदा जजों के लिए एक अलग से एक्सक्लूसिव लेन बनाए या Contempt of court की कार्यवाही के लिए तैयार रहे।
जस्टिस हुलुवाडी जी रमेश और जस्टिस एमवी मुरलीधरन की डिवीजन बेंच ने कहा, ये वीआईपी और जजों के लिए बहुत शर्म की बात है कि वे टोल प्लाजा पर इंतजार करें और अपने आइडेंटिटी कार्ड दिखाएं। बेंच ने केंद्र सरकार और एनएचएआई से कहा कि वे इस मामले में प्रत्‍येक टोल प्‍लाजा के लिए सर्कुलर जारी करें।
कोर्ट ने यह भी कहा: टोल कलेक्टर की जिम्मेदारी होगी कि वह उस लेन से वीआईपी और जज के अलावा किसी और को गुजरने न दे, और जो भी इस नियम का उल्लंघन करे, टोल कलेक्टर उसके खिलाफ सख्त कार्यवाही करे।
कोर्ट ने कहा, ‘अलग लेन न होने से हर टोल प्लाजा पर सिटिंग जज और वीआईपी लोगों को ‘अनावश्यक शर्मिंदगी’ का सामना करना पड़ता है। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। टोल प्लाजा पर सिटिंग जज को 10 से 15 मिनट तक इंतजार करना पड़ता है।
MY Lord, आपका आदेश तो सिर माथे, लेकिन उन लोगों का क्‍या जो पूरा पैसा देकर भी हर टोल पर इंतजार करने को मजबूर हैं। हुजूर, क्‍या उनका समय कोई मायने नहीं रखता।
लगे हाथ उनके लिए भी कोई आदेश-निर्देश NHAI को दे दिया होता। वो तो कई बार घंटों-घंटों फंसे रहते हैं।
वहां से जैसे-तैसे निकल भी आएं तो आपकी अदालतें रहम नहीं करतीं क्‍योंकि आम आदमी के लिए वहां भी कोई लेन नहीं है।
कोई वादी अथवा प्रतिवादी, और यहां तक कि वकील साहिब भी यदि टोल प्‍लाजा पर अटक जाने के कारण अदालत में समय से उपस्‍थित नहीं होते तो उन्‍हें ‘अदम मौजूदगी’ या ‘अदम पैरवी’ का कितना बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ जाता है, इसे कौन नहीं जानता जबकि आपकी देरी पर कहां कौन सवाल खड़ा कर सकता है।
आप अदालत में बैठें या न बैठें, मालिक का मालिक कौन।
Your Honor, आपने अपने इस आदेश में अपने साथ-साथ ‘वीआईपी’ का जिक्र क्‍यों किया यह तो आप जानें, अलबत्ता आम आदमी यह जरूर जानता है कि वीआईपी किसी टोल पर कहां रुकते हैं। वो तो यूं भी लाल-नीली बत्तियों वाली गाड़ियों के बीच बिना टोल दिए ‘हूटर’ बजाते तेजी के साथ निकल लेते हैं। उनके काफिले को किसी टोल पर कोई रोकने या टोकने की हिमाकत कर बैठे तो वहीं के वहीं फैसला करके जाते हैं वो। न तहरीर, न तारीख…सीधे फैसला।
क्‍या आप इस कड़वे सच से वाकई परिचित नहीं हैं MY Lord, अथवा आपने सहारे के लिए वीआईपी को जोड़ दिया अपने आदेश में।
एक विधायिका है MY Lord जो अपने वेतन-भत्ते खुद तय कर लेती है और उसमें कहीं कोई पक्ष-विपक्ष आड़े नहीं आता क्‍योंकि तब सवाल समूची नेता बिरादरी के ‘लाभ’ का होता है। दूसरी न्‍यायपालिका है जो आज तक तो अपनी नियुक्‍ति ही खुद करती रही है लेकिन अब वह अपने लिए ‘टोल नाकों’ पर अलग से लेन बनाने का आदेश भी दे रही है।
लोकतंत्र के तीन प्रमुख स्‍तंभों में से शेष रह जाती है कार्यपालिका, तो उसे टोल नाकों पर किसी के आदेश-निर्देशों की दरकार नहीं है। टोल वालों का उनसे और उनका टोल वालों से रोज वास्‍ता पड़ता है। वो उनकी अहमियत बिना आदेश-निर्देश के समझते हैं इसलिए दूर से ही उनके लिए बैरियर खड़ा कर देते हैं। एक सिपाही भी टोल कर्मियों के लिए कितना विशिष्‍ट है, इसे किसी भी टोल पर देखा जा सकता है।
वैसे लोकतंत्र का एक ‘तथाकथित’ चौथा स्‍तंभ भी है जिसे इस दौर में ‘मीडिया’ कहा जाने लगा है, लेकिन उसकी यहां चर्चा करने का कोई अर्थ नहीं क्‍योंकि उसकी अब कोई अहमियत नहीं रह गई।
टोल प्‍लाजा पर तो मीडियाकर्मियों को कोई दो कौड़ी का नहीं पूछता क्‍योंकि उसे अपने लिए आदेश-निर्देश देने का हक प्राप्‍त नहीं है।
और हां हुजूर, वीआईपी से याद आया कि वीआईपी तो हर जगह वीआईपी ही होते हैं। उनके लिए देश की सर्वोच्‍च अदालत भी आधी रात को खुल जाती है और सुबह होते-होते फैसला सुना देती है किंतु आम आदमी अपनी जिंदगी का आधा हिस्‍सा जाया करके भी फैसला सुनने को तरसता रहता है।
जब यमराज सामने खड़े होते हैं तब उसे याद आता है कि उसने अपने हिस्‍से की काफी उम्र तरह-तरह के टोल नाकों पर लाइन में लगकर गुजार दी।
अब देखिए हुजूर, दो दिन पहले की ही बात है। भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में देश के तथाकथित पांच बुद्धिजीवियों को पुलिस ने क्‍या पकड़ा, कोहराम मच गया। सड़क से लेकर संसद तक और मानवाधिकार आयोग से लेकर अदालत तक सब खड़े हो गए।
अगली सुबह तो आदेश हो गया कि जिन्‍हें पकड़ा है, उन्‍हें उनके घर पर नजरबंद रखें। पुलिस कस्‍टडी में उन्‍हें नहीं रखा जा सकता, तकलीफ होती है। बाकी 06 सितंबर को देखेंगे कि करना क्‍या है।
MY Lord, आम आदमी की मंशा आपके आदेश-निर्देश पर सवालिया निशान लगाने की नहीं है। वह तो सिर्फ इतना जानना चाहता है कि जनसामान्‍य के लिए अदालतें इसी प्रकार सक्रिय क्‍यों नहीं होतीं। क्‍यों उनके प्रति कोई संवेदनशील नहीं होता। मानवाधिकार आयोग उनकी गिरफ्तारी पर संज्ञान क्‍यों नहीं लेता। कोई बुद्धिजीवी गैंग उसकी खातिर सड़क पर उतरकर क्‍यों हंगामा नहीं काटता।
वो पुलिस के डंडे खाता है, अधिकारियों के यहां दुत्‍कारा जाता है, न्‍यायालयों में फटकारा जाता है लेकिन तब कोई नहीं कहता कि लोकतंत्र खतरे में है, या यह कैसा लोकतंत्र है।
हां, अगर एक आतंकवादी पूरी प्रक्रिया के बाद फांसी पर चढ़ाया जाता है अथवा किसी राज्‍य सरकार के गठन में गतिरोध उत्‍पन्‍न होता है और यहां तक कि सवा सौ करोड़ की आबादी में से पांच खास लोग गिरफ्तार कर लिए जाते हैं तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाता है। आपातकाल से भी बदतर हालात बताए जाते हैं।
तब तमाम लिस्‍टेड मुकद्दमों को दरकिनार कर उनकी गिरफ्तारी पर सुनवाई होती है और उसी दिन राहत भी दे दी जाती है, ऐसा क्‍यों है हुजूर।
दूसरी ओर जनसामान्‍य के लिए टोल प्‍लाजा का बैरियर और Court का Hammer दोनों बराबर हैं। दोनों उसका रास्‍ता तय करते हैं। दोनों के उठे बिना, उसका निकल पाना मुश्‍किल ही नहीं, नामुमकिन है। लेकिन फिर भी वह लगा है ‘कॉमन लेन’ में, भीड़ के बीच इस उम्‍मीद के साथ कि कभी तो वह भी निकल पाएगा।
हुजूर, नहीं पता कि मॉब लिंचिंग गायों के कारण हो रही है या सांप्रदायिकता के कारण। असहिष्‍णुता इसके पीछे की वजह है अथवा राजनीतिक विद्वेष। लेकिन एक बात पता है, और वह यह कि मॉब लिंचिंग करने वालों में किसी न किसी स्‍तर पर अपने अंदर विशिष्‍टता का भाव अवश्‍य भरा होता है। वह कानून हाथ में लेने की हिमाकत ही तब कर पाते हैं जब वह यह समझने लगते हैं कि पुलिस भी वहीं हैं और अदालत भी वही।
इसलिए हुजूर ये विशिष्‍टता का भाव बहुत खतरनाक है। इसी भाव ने स्‍वतंत्रता के सात दशक बीत जाने के बाद भी ‘लोक’ से ‘तंत्र’ को काट रखा है। अगर यह ‘तंत्र’ ही ‘लोक’ के लिए नहीं है तो कैसा लोकतंत्र। यह तो राजतंत्र हुआ न हुजूर। वही राजे-रजवाड़ों वाला या शासक और शोषित वाला।
बा-अदब…बा-मुलाहिजा…होशियार! महाराज की सवारी पधार रही है।
आखिर में हुजूर याद दिलाना चाहूंगा सर्वोच्‍च न्‍यायालय की ताजा टिप्‍पणी जिसमें कहा गया है कि असहमति जताना लोकतंत्र के लिए ‘सेफ़्टी वॉल्व’ है। अगर आप इस सेफ़्टी वॉल्व को नहीं रहने देंगे तो प्रेशर कुकर फट जाएग।.’
यकीन मानिए MY Lord, आम आदमी भी विशिष्‍ट लोगों द्वारा विशिष्‍ट लोगों के लिए दिए जाने वाले आदेश-निर्देशों से पूरी तरह असहमत है। उसका सेफ़्टी वॉल्व काफी हद तक चोक हो चुका है। यदि वह फट गया तो सच में लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा। लोकतंत्र को बचा लीजिए हुजूर। ये विशिष्‍टता का भाव त्‍याग दीजिए। आम बने रहिए ताकि जनता आपको खास समझती रहे।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

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