शुक्रवार, 31 अगस्त 2018

राजनीति के अजातशत्रु अटल बिहारी वाजपेयी का मथुरा से रहा हमेशा गहरा नाता

राजनीति में ‘अजातशत्रु’ कहे जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का महाभारत नायक योगीराज भगवान श्रीकृष्‍ण की जन्‍मस्‍थली मथुरा से भी गहरा नाता रहा है।
दरअसल, मथुरा जनपद में राष्‍ट्रीय राजमार्ग नंबर दो पर स्‍थित फरह क्षेत्र का गांव नगला चंद्रभान पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मातृभूमि है।
चूंकि अटल बिहारी वाजपेयी ने एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय के सानिध्य में ही ‘जनसंघ’ से अपनी राजनीति का सफर शुरू किया था इसलिए उनका पंडित दीनदयाल एवं उनकी मातृभूमि नगला चंद्रभान से हमेशा आत्‍मीय लगाव रहा।
अटल जी नगला चंद्रभान में बने दीनदयाल उपाध्याय धाम ट्रस्ट के अध्यक्ष रहे। प्रधानमंत्री बनने के बाद भी अटल जी पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय को नमन करने नगला चंद्रभान (मथुरा) आए।
मथुरा की कचौड़ी-जलेबी और ठंडाई के शौकीन अटल बिहारी वाजपेयी ने यहां अपना संबंध और प्रगाढ़ बनाने के लिए 1957 में मथुरा लोकसभा सीट से चुनाव भी लड़ा, किंतु हार गए। यहां उन्‍हें अपनी जमानत तक गंवानी पड़ी। इस चुनाव में प्रसिद्ध क्रांतिकारी राजा महेन्‍द्र प्रताप निर्दलीय प्रत्‍याशी की हैसियत से चुनाव जीते थे।
अटल जी ने तब एकसाथ तीन लोकसभा सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ा था। लखनऊ में वो चुनाव हार गए, मथुरा में उनकी ज़मानत ज़ब्त हो गई लेकिन बलरामपुर से चुनाव जीतकर वो दूसरी लोकसभा में पहुंचे। अगले पाँच दशकों के उनके संसदीय करियर की यह शुरुआत थी।
अटल बिहारी-बांके बिहारी-छैल बिहारी
राजनीति में मथुरा की हमेशा अपनी एक विशिष्ट पहचान रही। जनसंघ के जमाने में भी मथुरा की राजनीति हमेशा चर्चा का केन्‍द्र रहती थी, और इसका एक कारण शायद यह भी था कि अटल बिहारी वाजपेयी के दो अभिन्‍न मित्र मथुरा से ताल्‍लुक रखते थे।
अटल बिहारी, बांके बिहारी और छैलबिहारी के रूप में प्रसिद्ध मित्रों की इस तिकड़ी में अटल जी के अलावा स्‍वामीघाट के बांके बिहारी माहेश्‍वरी तथा राया (मथुरा) कस्‍बे के निवासी छैल बिहारी अग्रवाल शामिल थे।
बांके बिहारी माहेश्‍वरी हालांकि अपनी योग्‍यता के अनुरूप राजनीति में कोई बड़ा मुकाम हासिल नहीं कर सके किंतु अटल जी से उनके रिश्‍तों की गरमाहट में कभी कोई कमी नहीं आई।
यही हाल राया निवासी छैलबिहारी का भी था। छैलबिहारी से अटल जी जब भी मिले, तब उतनी ही आत्‍मीयता से मिले जितने राजनीति के सफर की शुरूआत में मिला करते थे।
यही कारण है कि जनसंघ में यह कहा जाता था कि दिल्ली में अटल बिहारी, मथुरा में बांके बिहारी और राया में छैल बिहारी।
25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर (मध्‍यप्रदेश) में जन्‍मे अटल बिहारी वाजपेयी चुनाव प्रचार करते हुए भी नमकीन में चाट-पकौड़ी और मूंग की दाल के मगोड़े तथा मिठाई में पेड़े व रबड़ी का स्‍वाद लिए बिना नहीं रहते थे।
बताया जाता है कि आपातकाल के चलते मीसा में बंद होने के बाद जब उन्‍हें पैरोल मिली तो वह सीधे मथुरा आए।
यह सारी घटनाएं बताती हैं कि चुनाव में हार मिलने के बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी न तो कभी मथुरा और मथुरा के अपने मित्रों को भूल पाए और न मथुरा कभी उन्‍हें विस्‍मृत कर सकी।
-Legend News

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