यूपी में कल मुगलसराय जंक्शन का नाम बदलने के बाद आयोजित जनसभा के दौरान BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने विपक्ष को खुली चुनौती देते हुए कहा कि बुआ, बबुआ और बाबा के मिल जाने पर भी BJP ही जीतेगी।
अमित शाह ने दावा किया कि 2019 के लोकसभा चुनावों में BJP को यूपी से 2014 के मुकाबले 73 की जगह 74 सीटों पर तो जीत मिल सकती है, किंतु वह 72 नहीं हो सकतीं।
चूंकि 2019 के लोकसभा चुनावों में अब कुछ माह ही शेष हैं इसलिए BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष का यूपी की धरती से किया गया यह दावा निश्चित ही बहुत अहमियत रखता है।
अमित शाह की संयुक्त विपक्ष को दी गई यह चुनौती सिर्फ विपक्ष के लिए ही नहीं, खुद BJP के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि एक ओर जहां BJP के सहयोगी संगठन अक्सर उसके सामने समस्याएं खड़ी करते रहते हैं वहीं दूसरी ओर पार्टी के अंदर की गुटबाजी भी रह-रहकर सिर उठाती रहती है।
BJP के लिए 2019 का लोकसभा चुनाव 2014 के मुकाबले आसान नहीं होगा, इस बात से BJP के शीर्ष नेता भी न सिर्फ इत्तेफाक रखते हैं बल्कि मीडिया के सामने भी स्वीकारते हैं।
दरअसल, BJP का शीर्ष नेतृत्व भली-भांति समझ रहा है कि यदि BJP स्पष्ट बहुमत पाने में सफल नहीं हुई तो कर्नाटक वाली कहानी दोहराई जा सकती है। कर्नाटक में जिस तरह विपक्ष ने BJP को सत्ता से दूर करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था, उसने BJP को यह समझने में मदद की कि आने वाले समय में सीटों का मामूली अंतर भी उसके अरमानों पर पानी फेरने वाला होगा।
BJP में चाणक्य की उपाधि से विभूषित राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की इन सारी स्थिति-परिस्थितियों पर पैनी नजर होगी इसमें कोई संदेह नहीं, किंतु अपनी पार्टी में व्याप्त गुटबाजी पर उनकी उतनी ही पैनी नजर है, इसे लेकर संशय पैदा होता है।
दो दिन पहले मथुरा में घटी एक घटना इसका उदाहरण है। मथुरा में 04 अगस्त को 2019 के लोकसभा चुनावों की तैयारी के लिए BJP ने समन्वय समिति की बैठक बुलाई। इस बैठक में मथुरा की सांसद और प्रसिद्ध सिने अभिनेत्री दिखाई नहीं दीं जबकि उस दिन वह पहले से तय अपने कार्यक्रम के मुताबिक मथुरा में मौजूद थीं।
सांसद हेमा मालिनी का आगामी लोकसभा चुनावों की तैयारी के लिए बुलाई गई समन्वय समिति की बैठक में ही न पहुंचना बहुत से सवाल खड़े कर गया।
गौरतलब है कि इस बैठक में BJP के प्रदेश महामंत्री गोविंद शुक्ला, प्रदेश के ऊर्जा मंत्री और मथुरा-वृंदावन क्षेत्र के विधायक व प्रदेश सरकार के प्रवक्ता श्रीकांत शर्मा के अलावा पार्टी के बाकी तीनों विधायक, मेयर मुकेश आर्यबंधु सहित तमाम अन्य स्थानीय नेता तथा आगरा के विधायक और मथुरा के प्रभारी योगेन्द्र उपाध्याय भी मौजूद थे।
आश्चर्य तब हुआ जब इस सवाल का कोई एक संतोषजनक जवाब न देकर पार्टी स्तर से ऐसे जवाब दिए गए जो भ्रम फैलाने वाले थे। मसलन जिला मीडिया प्रभारी ने बताया कि सांसद हेमा मालिनी को बैठक की सूचना दी गई थी किंतु वह क्यों नहीं आईं, यह पता नहीं।
पार्टी सूत्रों की मानें तो हेमा मालिनी ने अपनी इस उपेक्षा को काफी गंभीरता से लेते हुए प्रदेश और दिल्ली स्तर पर भी शिकायत की, नतीजतन पार्टी के मथुरा प्रभारी को भविष्य में ऐसी गलती न होने का भरोसा दिलाना पड़ा।
उधर हेमा मालिनी ने स्पष्ट कहा है कि उन्हें बैठक में शामिल होने के लिए समन्वय समिति का कोई पत्र नहीं मिला। हेमा मालिनी ने हालांकि अपने पद व पार्टी की गरिमा का ध्यान रखते हुए यह भी जोड़ दिया कि शायद पार्टीजन मेरी मथुरा में मौजूदगी से अनभिज्ञ रहे होंगे।
इस सब के बावजूद मीडिया को दिए गए अपने बयान में हेमा मालिनी यह कहने से नहीं चूकीं कि कुछ लोग पार्टी में नए आए हैं इसलिए उन्हें पार्टी की रीति व नीति का ज्ञान नहीं है।
हेमा मालिनी का इशारा किस ओर था, इसे पार्टी और पार्टी के बाहर वाले लोग भी बखूबी समझ गए क्योंकि उन्होंने यह कहकर अपनी ताकत का अहसास करा दिया कि नए लोगों को साथ लेकर चलने की जिम्मेदारी भी उनकी है।
इसी दौरान हेमा मालिनी ने पार्टी में व्याप्त गुटबाजी पर जो कुछ कहा, वह चौंकाने वाला है। उन्होंने पहले तो मथुरा BJP में किसी तरह की गुटबाजी होने से इंकार किया किंतु फिर कहा कि यदि कोई गुटबाजी है भी तो वह समाप्त हो जाएगी।
उल्लेखनीय है कि मथुरा के जिलाध्यक्ष पद पर हाल ही में नगेन्द्र सिकरवार की नियुक्ति हुई है। नगेन्द्र सिकरवार को ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा का अत्यंत करीबी बताया जाता है। इससे पहले नगर निगम के लिए भी मुकेश आर्यबंधु का नाम तय कराने में श्रीकांत शर्मा की बड़ी भूमिका बताई जाती है।
श्रीकांत शर्मा यूं भी क्षेत्र में हेमा मालिनी से कहीं अधिक सक्रिय रहते हैं इसलिए ऐसे कयास भी लगाए जाने लगे हैं कि श्रीकांत शर्मा को पार्टी 2019 का लोकसभा चुनाव लड़वा सकती है। पार्टी के स्तर से भी इस बात के संकेत तब मिले जब यह बात निकल कर आई कि 2019 में कई महत्वपूर्ण हस्तियों का टिकट काटा जा सकता है।
यही कारण है कि चुनावों की तैयारी के लिए बुलाई गई समन्वय समिति की बैठक में सांसद हेमा मालिनी की अनुपस्थिति एक बड़ा मुद्दा बन गई और बैठक के दो दिन बाद तक उसे लेकर बयानों का सिलसिला जारी है।
जो भी हो, लेकिन समन्वय समिति की बैठक से उपजे हालात और उसके बाद आए बयान यह जाहिर कराने के लिए काफी हैं कि BJP में सब-कुछ ठीक तो नहीं चल रहा।
मथुरा की लोकसभा सीट हमेशा से BJP के लिए बहुत अहमियत रखती है और इसीलिए प्रत्येक चुनाव में मथुरा की उम्मीदवारी का चयन बहुत जद्दोजहद के बाद हो पाता है।
2009 के लोकसभा चुनाव में BJP ने अपना कोई उम्मीदवार न उतारकर रालोद को समर्थन दिया और 2014 के चुनाव में अभिनेत्री हेमा मालिनी को चुनाव लड़ाना पड़ा।
मथुरा जैसे महत्वपूर्ण संसदीय क्षेत्र से किसी बाहरी प्रत्याशी को चुनाव लड़ाने का पार्टी का निर्णय स्थानीय भाजपाइयों के लिए हमेशा असह्य रहा है क्योंकि उससे उनके अपने राजनीतिक भविष्य पर काले साए मंडराने लगते हैं लेकिन वह इस उम्मीद में कड़वा घूंट पी जाते हैं कि शायद अगली बार पार्टी उनके बारे में विचार करेगी।
मामूली उपकार पाकर अपने भविष्य से समझौता कर चुके कुछ भाजपाइयों की बात छोड़ दें तो ऐसे नेताओं की मथुरा में कोई कमी नहीं है जिन्हें लंबी रेस का घोड़ा कहा जा सकता है लेकिन पार्टी ने उनके प्रति उदासीन रवैया अपना रखा है।
लोकसभा चुनावों में 2009 से लगातार बाहरी प्रत्याशी और पिछले विधानसभा चुनावों में पांच में से दो बाहरी दलों से आए हुए प्रत्याशियों के चयन ने निष्ठावान भाजपाइयों को काफी आहत किया है। बसपा से आए लक्ष्मीनारायण चौधरी तो योगी सरकार में कबीना मंत्री भी हैं।
ऐसे में पार्टी के अंदर यदि 2019 के लोकसभा चुनावों से ठीक पहले कोई खिचड़ी पक रही हो तो आश्चर्य कैसा। आश्चर्य तो तब होता है जब भविष्य की खातिर उठने वाली हर आवाज़ को खारिज करके यह संदेश दिया जाता है कि ऑल इज़ वैल।
इस ऑल इज़ वैल के संदेश पर संशय पैदा करा देते हैं क्रिया की प्रतिक्रिया के रूप में आने वाले पार्टीजनों के बयान और अपनी-अपनी हैसियत दर्शाने वाले जवाब।
BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष की चुनौती को संयुक्त विपक्ष किस तरह लेता है, यह तो वही जाने लेकिन यह हर कोई जानता है कि यदि मथुरा भाजपा इसी प्रकार ढपली बजाती रही तो यही ढपली राष्ट्रीय अध्यक्ष की चुनौती के लिए पानौती जरूर बन सकती है।
देखना यह है कि अमित शाह समय रहते चुनौती के लिए पनौती बन सकने वाली इन ढपलियों के सुर व ताल मिला पाते हैं या नहीं, अन्यथा चिड़ियों द्वारा खेत चुग जाने के बाद पछताने का कोई फायदा होने वाला नहीं है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
अमित शाह ने दावा किया कि 2019 के लोकसभा चुनावों में BJP को यूपी से 2014 के मुकाबले 73 की जगह 74 सीटों पर तो जीत मिल सकती है, किंतु वह 72 नहीं हो सकतीं।
चूंकि 2019 के लोकसभा चुनावों में अब कुछ माह ही शेष हैं इसलिए BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष का यूपी की धरती से किया गया यह दावा निश्चित ही बहुत अहमियत रखता है।
अमित शाह की संयुक्त विपक्ष को दी गई यह चुनौती सिर्फ विपक्ष के लिए ही नहीं, खुद BJP के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि एक ओर जहां BJP के सहयोगी संगठन अक्सर उसके सामने समस्याएं खड़ी करते रहते हैं वहीं दूसरी ओर पार्टी के अंदर की गुटबाजी भी रह-रहकर सिर उठाती रहती है।
BJP के लिए 2019 का लोकसभा चुनाव 2014 के मुकाबले आसान नहीं होगा, इस बात से BJP के शीर्ष नेता भी न सिर्फ इत्तेफाक रखते हैं बल्कि मीडिया के सामने भी स्वीकारते हैं।
दरअसल, BJP का शीर्ष नेतृत्व भली-भांति समझ रहा है कि यदि BJP स्पष्ट बहुमत पाने में सफल नहीं हुई तो कर्नाटक वाली कहानी दोहराई जा सकती है। कर्नाटक में जिस तरह विपक्ष ने BJP को सत्ता से दूर करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था, उसने BJP को यह समझने में मदद की कि आने वाले समय में सीटों का मामूली अंतर भी उसके अरमानों पर पानी फेरने वाला होगा।
BJP में चाणक्य की उपाधि से विभूषित राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की इन सारी स्थिति-परिस्थितियों पर पैनी नजर होगी इसमें कोई संदेह नहीं, किंतु अपनी पार्टी में व्याप्त गुटबाजी पर उनकी उतनी ही पैनी नजर है, इसे लेकर संशय पैदा होता है।
दो दिन पहले मथुरा में घटी एक घटना इसका उदाहरण है। मथुरा में 04 अगस्त को 2019 के लोकसभा चुनावों की तैयारी के लिए BJP ने समन्वय समिति की बैठक बुलाई। इस बैठक में मथुरा की सांसद और प्रसिद्ध सिने अभिनेत्री दिखाई नहीं दीं जबकि उस दिन वह पहले से तय अपने कार्यक्रम के मुताबिक मथुरा में मौजूद थीं।
सांसद हेमा मालिनी का आगामी लोकसभा चुनावों की तैयारी के लिए बुलाई गई समन्वय समिति की बैठक में ही न पहुंचना बहुत से सवाल खड़े कर गया।
गौरतलब है कि इस बैठक में BJP के प्रदेश महामंत्री गोविंद शुक्ला, प्रदेश के ऊर्जा मंत्री और मथुरा-वृंदावन क्षेत्र के विधायक व प्रदेश सरकार के प्रवक्ता श्रीकांत शर्मा के अलावा पार्टी के बाकी तीनों विधायक, मेयर मुकेश आर्यबंधु सहित तमाम अन्य स्थानीय नेता तथा आगरा के विधायक और मथुरा के प्रभारी योगेन्द्र उपाध्याय भी मौजूद थे।
आश्चर्य तब हुआ जब इस सवाल का कोई एक संतोषजनक जवाब न देकर पार्टी स्तर से ऐसे जवाब दिए गए जो भ्रम फैलाने वाले थे। मसलन जिला मीडिया प्रभारी ने बताया कि सांसद हेमा मालिनी को बैठक की सूचना दी गई थी किंतु वह क्यों नहीं आईं, यह पता नहीं।
पार्टी सूत्रों की मानें तो हेमा मालिनी ने अपनी इस उपेक्षा को काफी गंभीरता से लेते हुए प्रदेश और दिल्ली स्तर पर भी शिकायत की, नतीजतन पार्टी के मथुरा प्रभारी को भविष्य में ऐसी गलती न होने का भरोसा दिलाना पड़ा।
उधर हेमा मालिनी ने स्पष्ट कहा है कि उन्हें बैठक में शामिल होने के लिए समन्वय समिति का कोई पत्र नहीं मिला। हेमा मालिनी ने हालांकि अपने पद व पार्टी की गरिमा का ध्यान रखते हुए यह भी जोड़ दिया कि शायद पार्टीजन मेरी मथुरा में मौजूदगी से अनभिज्ञ रहे होंगे।
इस सब के बावजूद मीडिया को दिए गए अपने बयान में हेमा मालिनी यह कहने से नहीं चूकीं कि कुछ लोग पार्टी में नए आए हैं इसलिए उन्हें पार्टी की रीति व नीति का ज्ञान नहीं है।
हेमा मालिनी का इशारा किस ओर था, इसे पार्टी और पार्टी के बाहर वाले लोग भी बखूबी समझ गए क्योंकि उन्होंने यह कहकर अपनी ताकत का अहसास करा दिया कि नए लोगों को साथ लेकर चलने की जिम्मेदारी भी उनकी है।
इसी दौरान हेमा मालिनी ने पार्टी में व्याप्त गुटबाजी पर जो कुछ कहा, वह चौंकाने वाला है। उन्होंने पहले तो मथुरा BJP में किसी तरह की गुटबाजी होने से इंकार किया किंतु फिर कहा कि यदि कोई गुटबाजी है भी तो वह समाप्त हो जाएगी।
उल्लेखनीय है कि मथुरा के जिलाध्यक्ष पद पर हाल ही में नगेन्द्र सिकरवार की नियुक्ति हुई है। नगेन्द्र सिकरवार को ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा का अत्यंत करीबी बताया जाता है। इससे पहले नगर निगम के लिए भी मुकेश आर्यबंधु का नाम तय कराने में श्रीकांत शर्मा की बड़ी भूमिका बताई जाती है।
श्रीकांत शर्मा यूं भी क्षेत्र में हेमा मालिनी से कहीं अधिक सक्रिय रहते हैं इसलिए ऐसे कयास भी लगाए जाने लगे हैं कि श्रीकांत शर्मा को पार्टी 2019 का लोकसभा चुनाव लड़वा सकती है। पार्टी के स्तर से भी इस बात के संकेत तब मिले जब यह बात निकल कर आई कि 2019 में कई महत्वपूर्ण हस्तियों का टिकट काटा जा सकता है।
यही कारण है कि चुनावों की तैयारी के लिए बुलाई गई समन्वय समिति की बैठक में सांसद हेमा मालिनी की अनुपस्थिति एक बड़ा मुद्दा बन गई और बैठक के दो दिन बाद तक उसे लेकर बयानों का सिलसिला जारी है।
जो भी हो, लेकिन समन्वय समिति की बैठक से उपजे हालात और उसके बाद आए बयान यह जाहिर कराने के लिए काफी हैं कि BJP में सब-कुछ ठीक तो नहीं चल रहा।
मथुरा की लोकसभा सीट हमेशा से BJP के लिए बहुत अहमियत रखती है और इसीलिए प्रत्येक चुनाव में मथुरा की उम्मीदवारी का चयन बहुत जद्दोजहद के बाद हो पाता है।
2009 के लोकसभा चुनाव में BJP ने अपना कोई उम्मीदवार न उतारकर रालोद को समर्थन दिया और 2014 के चुनाव में अभिनेत्री हेमा मालिनी को चुनाव लड़ाना पड़ा।
मथुरा जैसे महत्वपूर्ण संसदीय क्षेत्र से किसी बाहरी प्रत्याशी को चुनाव लड़ाने का पार्टी का निर्णय स्थानीय भाजपाइयों के लिए हमेशा असह्य रहा है क्योंकि उससे उनके अपने राजनीतिक भविष्य पर काले साए मंडराने लगते हैं लेकिन वह इस उम्मीद में कड़वा घूंट पी जाते हैं कि शायद अगली बार पार्टी उनके बारे में विचार करेगी।
मामूली उपकार पाकर अपने भविष्य से समझौता कर चुके कुछ भाजपाइयों की बात छोड़ दें तो ऐसे नेताओं की मथुरा में कोई कमी नहीं है जिन्हें लंबी रेस का घोड़ा कहा जा सकता है लेकिन पार्टी ने उनके प्रति उदासीन रवैया अपना रखा है।
लोकसभा चुनावों में 2009 से लगातार बाहरी प्रत्याशी और पिछले विधानसभा चुनावों में पांच में से दो बाहरी दलों से आए हुए प्रत्याशियों के चयन ने निष्ठावान भाजपाइयों को काफी आहत किया है। बसपा से आए लक्ष्मीनारायण चौधरी तो योगी सरकार में कबीना मंत्री भी हैं।
ऐसे में पार्टी के अंदर यदि 2019 के लोकसभा चुनावों से ठीक पहले कोई खिचड़ी पक रही हो तो आश्चर्य कैसा। आश्चर्य तो तब होता है जब भविष्य की खातिर उठने वाली हर आवाज़ को खारिज करके यह संदेश दिया जाता है कि ऑल इज़ वैल।
इस ऑल इज़ वैल के संदेश पर संशय पैदा करा देते हैं क्रिया की प्रतिक्रिया के रूप में आने वाले पार्टीजनों के बयान और अपनी-अपनी हैसियत दर्शाने वाले जवाब।
BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष की चुनौती को संयुक्त विपक्ष किस तरह लेता है, यह तो वही जाने लेकिन यह हर कोई जानता है कि यदि मथुरा भाजपा इसी प्रकार ढपली बजाती रही तो यही ढपली राष्ट्रीय अध्यक्ष की चुनौती के लिए पानौती जरूर बन सकती है।
देखना यह है कि अमित शाह समय रहते चुनौती के लिए पनौती बन सकने वाली इन ढपलियों के सुर व ताल मिला पाते हैं या नहीं, अन्यथा चिड़ियों द्वारा खेत चुग जाने के बाद पछताने का कोई फायदा होने वाला नहीं है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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