बेशर्म नेता, भ्रष्ट प्रशासन और तमाशबीन जनता के कारण वेंटिलेटर पर है मां यमुना
2019 के लोकसभा चुनाव की फील्ड सजने लगी है। नेताओं के दौरे शुरू हो चुके हैं। बैठकों का सिलसिला जारी है।
यमुना को प्रदूषण मुक्त कराने का वचन देकर 2009 के चुनाव में भाजपा के सहयोग से लोकसभा की अपनी पारी शुरू करने वाले राष्ट्रीय लोकदल के युवराज जयंत चौधरी 2019 में महागठबंधन के सहारे एकबार फिर अपनी नैया पार लगती देख रहे हैं।
सिटिंग एमपी और अभिनेत्री हेमा मालिनी भी दोबारा चुनाव लड़ने के लिए अपनी ओर से ताल ठोक चुकी हैं। पार्टी ने चाहा तो वह यमुना को प्रदूषण मुक्त कराने का संकल्प लेने के लिए एकबार फिर चुनावी मैदान में होंगी।
इत्तेफाक देखिए कि जयंत चौधरी तथा हेमा मालिनी दोनों ने कृष्ण की पावन जन्मस्थली से ही चुनावी राजनीति में कदम रखा और ‘कालिंदी’ के कलुष को धोने का संकल्प लिया परंतु नतीजा सबके सामने है।
जयंत और हेमा ही क्यों, यमुना तो पिछले 20 साल से अपना कलुष धुलने के इंतजार में है। इस बीच कितने नेताओं ने यमुना का जल हाथ में लेकर वचन दिया कि वह पतित पावनी को प्रदूषण मुक्त करायेंगे किंतु यमुना से ज्यादा प्रदूषित वो खुद हो गए।
जिस तरह अब उन्हें यमुना का प्रदूषण दिखाई नहीं देता, उसी तरह अपने चेहरे पर लगी कालिख भी नजर नहीं आती।
10 जुलाई 1998 के दिन एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यमुना को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए शासन-प्रशासन को तमाम दिशा-निर्देश दिए। इन दिशा-निर्देशों में कृष्ण जन्मभूमि (मथुरा) से चंद कदम दूरी पर किए जाने वाले पशुवध को नई पशुवधशाला का निर्माण होने तक पूरी तरह बंद कराने, यमुना के जल में सीधे गिरने वाले मथुरा-वृंदावन के दर्जनों नाले-नालियों को टैप करने तथा जनपद भर में मांस की बिक्री बंद करने जैसे आदेश शामिल थे।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के इन आदेश-निर्देशों की किस तरह धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, यह समझने के लिए कल का वाकया काफी है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर सुरक्षा-व्यवस्था और दूसरे इंतजामों के लिए कल कलक्ट्रेट सभागार में जिला प्रशासन ने एक मीटिंग रखी थी। इस मीटिंग में संबंधित विभागों के अधिकारियों सहित कृष्ण जन्मस्थान की ओर से गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी तथा द्वारिकाधीश मंदिर की ओर से श्रीधर चतुर्वेदी भी शामिल हुए। गोपेश्वरनाथ चतुर्वेदी ही 20 साल पहले यमुना प्रदूषण के मुद्दे को इलाहाबाद उच्च न्यायालय लेकर गए थे।
इस मीटिंग के दौरान गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी ने जब जिलाधिकारी सर्वज्ञराम मिश्रा तथा एसएसपी बबलू कुमार को बताया कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 1998 में जिस कट्टीघर को बंद कराने के आदेश दिए थे उसमें आज भी पशुओं का लगातार कटान हो रहा है, तो उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया।
डीएम और एसएसपी ने ये आश्चर्य पशुओं का कटान जारी रहने पर व्यक्त किया अथवा इस बात पर कि वह खुद इस जानकारी से कैसे अनभिज्ञ थे, यह तो वही जानें अलबत्ता मथुरा की जनता इस बात पर आश्चर्यचकित जरूर है कि ”योगीराज” में भी वही सारे कृत्य बदस्तूर हो रहे हैं जिन्हें सरकार बनते ही बंद कराने का वायदा भाजपा ने किया था।
योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के तत्काल बाद जो कदम उठाए, उनमें एक आदेश प्रदेशभर के अवैध कट्टीघरों को बंद कराने का भी था।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि यदि हाईकोर्ट के आदेश से बंद हुआ मथुरा का कट्टीघर भी आजतक संचालित है, तो प्रदेश के दूसरे कट्टीघर क्या वाकई बंद हो पाए हैं ?
कुछ ऐसा ही हाल यमुना में गिरने वाले उन दर्जनों नालों का है जिन्हें टैप करने के आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिए थे। ये नाले तो कभी टैप नहीं हो पाए, हां इन्हें टैप करने के नाम पर करोड़ों का घोटाला जरूर कर लिया गया। भाजपा की चेयरपर्सन मनीषा गुप्ता के कार्यकाल में हुए करीब 2 करोड़ रुपयों के एक ऐसे ही घोटाले का वाद न्यायालय में लंबित है।
वैसे इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश आने से लेकर अब तक 20 वर्षों के बीच सिर्फ एक टर्म कांग्रेस के श्यामसुंदर उपाध्याय बिट्टू नगरपालिका के चेयरमैन रहे अन्यथा हमेशा भाजपा ही मथुरा नगर पालिका पर काबिज रही, बावजूद इसके यहां अवैध रूप से पशुओं का कटान कभी बंद नहीं हुआ।
अब जबकि मथुरा नगर पालिका, नगर निगम में तब्दील हो चुकी है और भाजपा के ही डॉ. मुकेश आर्यबंधु मेयर हैं तब भी न तो अवैध पशुकटान बंद हुआ है और न यमुना में नाले गिरना बंद हो पाया है।
जाहिर है कि ऐसे में वर्तमान विपक्ष यह कहने से नहीं चूकता कि अब तो दिल्ली से लेकर लखनऊ तथा मथुरा तक भाजपा की सरकार है, फिर क्यों बंद नहीं हो पा रहा अवैध पशु कटान और क्यों यमुना में गिर रहा है नालों का पानी।
इस संबंध में बात करने पर याचिकाकर्ता गोपेश्वरनाथ चतुर्वेदी अत्यंत व्यथित हुए। उन्होंने कहा कि बेशर्म नेता, भ्रष्ट प्रशासन और तमाशबीन जनता के कारण यमुना का प्रदूषण घटने की बजाय बढ़ता जा रहा है। शासन-प्रशासन का कोई भी अंग यमुना की इस दयनीय दशा को लेकर चिंतित नहींं है। यही कारण है कि यमुना को प्रदूषण मुक्त कराने के जितने भी और जो भी प्रयास जिस स्तर से किए गए, वो सब निष्फल साबित हुए हैं। यमुना में उसका अपना जल तो दिखाई ही नहीं देता। बाढ़ का पानी पूरी तरह उतर जाने के बाद यमुना उसी स्थिति को प्राप्त हो जाएगी जिस स्थिति में बाढ़ का पानी आने से पहले थी। मानव ही नहीं, नभचर एवं जलचरों के जीवन को ऑक्सीजन देने का काम करने वाली यमुना आज अपने लिए ऑक्सीजन के इंतजार में है। वह मृतप्राय हो चुकी है। जिस तरह सरकारी कागजों में यमुना की प्रदूषण मुक्ति के लिए दिए गए कोर्ट के समस्त आदेश-निर्देश काम कर रहे हैं, उसी तरह यमुना भी कागजों में बह रही है अन्यथा वह मृतप्राय है।
हर चुनाव में नेताओं की फौज आती है और यमुना के लिए घड़ियालू आंसू बहाकर अपना मकसद पूरा कर लेती है। कोई दिल्ली की गद्दी हथिया लेता है तो कोई यूपी की। स्थानीय स्तर पर भी ऐसे नेताओं की कमी नहीं जो यमुना के प्रदूषण को राजनीति का हथियार बनाकर मलाई मारते रहे और एक-दो बार नहीं कई-कई बार लोकसभा तथा विधानसभा में जा बैठे, किंतु इन लोगों ने यमुना को धोखे के अलावा कुछ नहीं दिया।
2019 के लोकसभा चुनावों में निश्चित ही यमुना को धोखा देने की एक और पटकथा लिखी जानी है।
चूंकि इस बार भाजपा का मुकाबला संभावित महागठबंधन के प्रत्याशी से होना है और चुनाव 2014 के मुकाबले कहीं अधिक कठिन होने की उम्मीद है इसलिए भ्रमजाल भी उतना ही बड़ा फैलाया जाएगा।
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कुछ दिन पहले अपने एक आदेश में गंगा नदी को ”जीवित मानव” का दर्जा दिया था। उस नजरिए से देखें तो युगों से यमुना को दिया गया मां का दर्जा बेमतलब नहीं है।
और जब यह दर्जा बेमतलब नहीं है तो यह कथन भी बेमतलब नहीं है कि 2019 का चुनाव कम से कम मथुरा में तो यमुना की लाश पर ही राजनीति करके लड़ा जाना है। यमुना की लाश पर तैरकर ही जयंत चौधरी एकबार फिर चुनावी वैतरणी पार करके लोकसभा पहुंचना चाहते हैं और इसी लाश को ट्यूब की तरह इस्तेमाल करके हेमा मालिनी दोबारा जीत का परचम लहराना चाहती हैं। दोनों ने अपने-अपने तरीके से इसकी तैयारी भी शुरू कर दी है, हालांकि अभी न तो महागठबंधन मुकम्मल हुआ है और न किसी का टिकट, परंतु इरादे मुकम्मल दिखाई दे रहे हैं।
वजह साफ है, और वह वजह यह है कि यदि यमुना को मैया कहने वाले ब्रजवासियों में ही अपनी मैया को लेकर वो दर्द नहीं है जो उसकी दुर्दशा पर राजनीति करने वालों को कोई सबक सिखा सकें तो मात्र चुनाव लड़ने के लिए यमुना का सहारा लेने वालों को दर्द क्यों होने लगा।
नेताओं को जब इंसानी लाशों पर राजनीति करने से परहेज नहीं है तो एक नदी की लाश से परहेज कैसा।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
2019 के लोकसभा चुनाव की फील्ड सजने लगी है। नेताओं के दौरे शुरू हो चुके हैं। बैठकों का सिलसिला जारी है।
यमुना को प्रदूषण मुक्त कराने का वचन देकर 2009 के चुनाव में भाजपा के सहयोग से लोकसभा की अपनी पारी शुरू करने वाले राष्ट्रीय लोकदल के युवराज जयंत चौधरी 2019 में महागठबंधन के सहारे एकबार फिर अपनी नैया पार लगती देख रहे हैं।
सिटिंग एमपी और अभिनेत्री हेमा मालिनी भी दोबारा चुनाव लड़ने के लिए अपनी ओर से ताल ठोक चुकी हैं। पार्टी ने चाहा तो वह यमुना को प्रदूषण मुक्त कराने का संकल्प लेने के लिए एकबार फिर चुनावी मैदान में होंगी।
इत्तेफाक देखिए कि जयंत चौधरी तथा हेमा मालिनी दोनों ने कृष्ण की पावन जन्मस्थली से ही चुनावी राजनीति में कदम रखा और ‘कालिंदी’ के कलुष को धोने का संकल्प लिया परंतु नतीजा सबके सामने है।
जयंत और हेमा ही क्यों, यमुना तो पिछले 20 साल से अपना कलुष धुलने के इंतजार में है। इस बीच कितने नेताओं ने यमुना का जल हाथ में लेकर वचन दिया कि वह पतित पावनी को प्रदूषण मुक्त करायेंगे किंतु यमुना से ज्यादा प्रदूषित वो खुद हो गए।
जिस तरह अब उन्हें यमुना का प्रदूषण दिखाई नहीं देता, उसी तरह अपने चेहरे पर लगी कालिख भी नजर नहीं आती।
10 जुलाई 1998 के दिन एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यमुना को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए शासन-प्रशासन को तमाम दिशा-निर्देश दिए। इन दिशा-निर्देशों में कृष्ण जन्मभूमि (मथुरा) से चंद कदम दूरी पर किए जाने वाले पशुवध को नई पशुवधशाला का निर्माण होने तक पूरी तरह बंद कराने, यमुना के जल में सीधे गिरने वाले मथुरा-वृंदावन के दर्जनों नाले-नालियों को टैप करने तथा जनपद भर में मांस की बिक्री बंद करने जैसे आदेश शामिल थे।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के इन आदेश-निर्देशों की किस तरह धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, यह समझने के लिए कल का वाकया काफी है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर सुरक्षा-व्यवस्था और दूसरे इंतजामों के लिए कल कलक्ट्रेट सभागार में जिला प्रशासन ने एक मीटिंग रखी थी। इस मीटिंग में संबंधित विभागों के अधिकारियों सहित कृष्ण जन्मस्थान की ओर से गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी तथा द्वारिकाधीश मंदिर की ओर से श्रीधर चतुर्वेदी भी शामिल हुए। गोपेश्वरनाथ चतुर्वेदी ही 20 साल पहले यमुना प्रदूषण के मुद्दे को इलाहाबाद उच्च न्यायालय लेकर गए थे।
इस मीटिंग के दौरान गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी ने जब जिलाधिकारी सर्वज्ञराम मिश्रा तथा एसएसपी बबलू कुमार को बताया कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 1998 में जिस कट्टीघर को बंद कराने के आदेश दिए थे उसमें आज भी पशुओं का लगातार कटान हो रहा है, तो उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया।
डीएम और एसएसपी ने ये आश्चर्य पशुओं का कटान जारी रहने पर व्यक्त किया अथवा इस बात पर कि वह खुद इस जानकारी से कैसे अनभिज्ञ थे, यह तो वही जानें अलबत्ता मथुरा की जनता इस बात पर आश्चर्यचकित जरूर है कि ”योगीराज” में भी वही सारे कृत्य बदस्तूर हो रहे हैं जिन्हें सरकार बनते ही बंद कराने का वायदा भाजपा ने किया था।
योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के तत्काल बाद जो कदम उठाए, उनमें एक आदेश प्रदेशभर के अवैध कट्टीघरों को बंद कराने का भी था।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि यदि हाईकोर्ट के आदेश से बंद हुआ मथुरा का कट्टीघर भी आजतक संचालित है, तो प्रदेश के दूसरे कट्टीघर क्या वाकई बंद हो पाए हैं ?
कुछ ऐसा ही हाल यमुना में गिरने वाले उन दर्जनों नालों का है जिन्हें टैप करने के आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिए थे। ये नाले तो कभी टैप नहीं हो पाए, हां इन्हें टैप करने के नाम पर करोड़ों का घोटाला जरूर कर लिया गया। भाजपा की चेयरपर्सन मनीषा गुप्ता के कार्यकाल में हुए करीब 2 करोड़ रुपयों के एक ऐसे ही घोटाले का वाद न्यायालय में लंबित है।
वैसे इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश आने से लेकर अब तक 20 वर्षों के बीच सिर्फ एक टर्म कांग्रेस के श्यामसुंदर उपाध्याय बिट्टू नगरपालिका के चेयरमैन रहे अन्यथा हमेशा भाजपा ही मथुरा नगर पालिका पर काबिज रही, बावजूद इसके यहां अवैध रूप से पशुओं का कटान कभी बंद नहीं हुआ।
अब जबकि मथुरा नगर पालिका, नगर निगम में तब्दील हो चुकी है और भाजपा के ही डॉ. मुकेश आर्यबंधु मेयर हैं तब भी न तो अवैध पशुकटान बंद हुआ है और न यमुना में नाले गिरना बंद हो पाया है।
जाहिर है कि ऐसे में वर्तमान विपक्ष यह कहने से नहीं चूकता कि अब तो दिल्ली से लेकर लखनऊ तथा मथुरा तक भाजपा की सरकार है, फिर क्यों बंद नहीं हो पा रहा अवैध पशु कटान और क्यों यमुना में गिर रहा है नालों का पानी।
इस संबंध में बात करने पर याचिकाकर्ता गोपेश्वरनाथ चतुर्वेदी अत्यंत व्यथित हुए। उन्होंने कहा कि बेशर्म नेता, भ्रष्ट प्रशासन और तमाशबीन जनता के कारण यमुना का प्रदूषण घटने की बजाय बढ़ता जा रहा है। शासन-प्रशासन का कोई भी अंग यमुना की इस दयनीय दशा को लेकर चिंतित नहींं है। यही कारण है कि यमुना को प्रदूषण मुक्त कराने के जितने भी और जो भी प्रयास जिस स्तर से किए गए, वो सब निष्फल साबित हुए हैं। यमुना में उसका अपना जल तो दिखाई ही नहीं देता। बाढ़ का पानी पूरी तरह उतर जाने के बाद यमुना उसी स्थिति को प्राप्त हो जाएगी जिस स्थिति में बाढ़ का पानी आने से पहले थी। मानव ही नहीं, नभचर एवं जलचरों के जीवन को ऑक्सीजन देने का काम करने वाली यमुना आज अपने लिए ऑक्सीजन के इंतजार में है। वह मृतप्राय हो चुकी है। जिस तरह सरकारी कागजों में यमुना की प्रदूषण मुक्ति के लिए दिए गए कोर्ट के समस्त आदेश-निर्देश काम कर रहे हैं, उसी तरह यमुना भी कागजों में बह रही है अन्यथा वह मृतप्राय है।
हर चुनाव में नेताओं की फौज आती है और यमुना के लिए घड़ियालू आंसू बहाकर अपना मकसद पूरा कर लेती है। कोई दिल्ली की गद्दी हथिया लेता है तो कोई यूपी की। स्थानीय स्तर पर भी ऐसे नेताओं की कमी नहीं जो यमुना के प्रदूषण को राजनीति का हथियार बनाकर मलाई मारते रहे और एक-दो बार नहीं कई-कई बार लोकसभा तथा विधानसभा में जा बैठे, किंतु इन लोगों ने यमुना को धोखे के अलावा कुछ नहीं दिया।
2019 के लोकसभा चुनावों में निश्चित ही यमुना को धोखा देने की एक और पटकथा लिखी जानी है।
चूंकि इस बार भाजपा का मुकाबला संभावित महागठबंधन के प्रत्याशी से होना है और चुनाव 2014 के मुकाबले कहीं अधिक कठिन होने की उम्मीद है इसलिए भ्रमजाल भी उतना ही बड़ा फैलाया जाएगा।
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कुछ दिन पहले अपने एक आदेश में गंगा नदी को ”जीवित मानव” का दर्जा दिया था। उस नजरिए से देखें तो युगों से यमुना को दिया गया मां का दर्जा बेमतलब नहीं है।
और जब यह दर्जा बेमतलब नहीं है तो यह कथन भी बेमतलब नहीं है कि 2019 का चुनाव कम से कम मथुरा में तो यमुना की लाश पर ही राजनीति करके लड़ा जाना है। यमुना की लाश पर तैरकर ही जयंत चौधरी एकबार फिर चुनावी वैतरणी पार करके लोकसभा पहुंचना चाहते हैं और इसी लाश को ट्यूब की तरह इस्तेमाल करके हेमा मालिनी दोबारा जीत का परचम लहराना चाहती हैं। दोनों ने अपने-अपने तरीके से इसकी तैयारी भी शुरू कर दी है, हालांकि अभी न तो महागठबंधन मुकम्मल हुआ है और न किसी का टिकट, परंतु इरादे मुकम्मल दिखाई दे रहे हैं।
वजह साफ है, और वह वजह यह है कि यदि यमुना को मैया कहने वाले ब्रजवासियों में ही अपनी मैया को लेकर वो दर्द नहीं है जो उसकी दुर्दशा पर राजनीति करने वालों को कोई सबक सिखा सकें तो मात्र चुनाव लड़ने के लिए यमुना का सहारा लेने वालों को दर्द क्यों होने लगा।
नेताओं को जब इंसानी लाशों पर राजनीति करने से परहेज नहीं है तो एक नदी की लाश से परहेज कैसा।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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